माता / रश्मि

Gadya Kosh से
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आज सारा देश मस्ती में है। क्यों न हो? देश आज़ादी का जश्न जो मना रहा है। आज़ादी का समारोह चल रहा था, वहां हम भी शरीक थे। पहली पंक्ति में ज्यादातर राजनेता, उद्योगपति और अधिकारी-प्रतिष्ठित थे। सब ही बड़े प्रसन्नचित्त नज़र आ रहे थे। प्रसन्न तो होंगे ही। इतनी मशक्कत के बाद तो यह आज़ादी मिली है; और असली आज़ादी तो इन्ही की है- खाओ, पियो ऐश करो।

तभी मेरी नज़र वहां भटकती हुई एक बदहवास सी महिला पर पड़ी। साधारण सी वेशभूषा में सीधी-सादी सी वो महिला किसी को खोज रही थी। मैंने नज़दीक जाकर पूछा-"आप कौन हैं, और किसे खोज रही हैं?" वो सहमते हुए रुक- रुक कर बोली- "मैं एक माता हूँ और अपने बच्चो को खोज रही हूँ। इसी आस में भटक रही हूँ कि कहीं तो मेरे भगत, आज़ाद, गाँधी, जवाहर मिलेंगे। वे कही मिलते ही नहीं।"

"तो तू यहाँ कहा आ गयी माँ! यहाँ तो सारे नेता व्यापारी भरे हैं।" सुनते ही माता घबरा गयी और सबकी नज़रों से खुद को बचाती वहां से निकल गयी।