मातृशक्ति और उसका त्याग / महेश कुमार केशरी

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बिलासी काम पर जाने को लगभग तैयार था l उसने चेक किया पानी की बोतल और टाॅर्च ले लिया l उसने रोटियों वाले डब्बे

में हाथ डाला l वह खाली था l वह रोटियाँ ढूँढ़ रहा था l लेकिन उसमें एक रोटी ही बची थी l उसने घड़ी पर नज़र दौड़ाई l घड़ी दस बजा रही थी l उसकी माँ अब घर लौटेगी l उसकी दोपहर दो से दस की शिफ्ट चलती है l सहसा उसे अपनी पत्नी रज्जो की याद आई l वह तो मायके गयी हुई है l गर्मियों की छुट्टियों में l बच्चों के साथ l कल लौट आयेगी l स्कूल जो खुलने वाले हैं l बिलासी को बहुत तेज भूख लगी थी l क्या करे ? खा ले वह रोटी l लेकिन माँ भी तो दोपहर से काम पर गई है l बेचारी बूढ़ी अम्मा l उसे भी तो भूख लगी होगी l माँ को भूखा रखकर भला वह कैसे खा सकता है ? उसे उसकी आत्मा धिक्कारेगी नहीं ! अब माँ तो बस हड्डियों का ढाँचा भर रह गई है l गिरती पड़ती बहुत मुश्किल से चल पाती है l पिछले महीने बीमार थी l वह तो सुई दवाई और गाय के दूध का कमाल है कि अभी दौड़ भाग कर ले रही है l नहीं तो उसमें चलने की भी हिम्मत कहाँ थी l वह इतना निर्दय थोड़े ही है कि माँ कि रोटी खा जायेगा l भले ही वह भूखा है , तो क्या ?

अब इतना ही कम है , क्या कि इस उम्र में भी वह काम कर रही है l अब उसकी अकेले की सैलरी से तो घर नहीं चलता l चिंतामणि भी वहीं काम करती है l जहाँ बिलासी काम करता है l उसने कुछ ठोस सोचा और रोटी को डब्बे में वापस रख दिया l पानी की बोतल और टाॅर्च लेकर वह काम पर निकल गया l

रात सवा दस बजे चिंतामणि घर पहुँची l दिन भर काम करके थकान हो गयी थी l थोड़ी देर सुस्ताने के बाद l वह दिन भर के जूठे बर्तन धोने के लिये निकालने लगी l जब बर्तन धुल गये l तो अँगीठी पर चाय का पानी चढ़ा दिया l चाय उबलने लगी l आज कारखाने से लौटते समय शँभू का बेटा मिल गया था l उसने थोड़ी खीर चिंतामणि को दी थी l चाय पीते हुए बुढ़िया ने सोचा l खीर तो मिल ही ग ई है l उसे अब भूख भी लग आई है l क्यों ना थोड़ा-सा आटा गूँथकर दो रोटी चटपट बना ले l लेकिन हत् भाग्य l उसने कनस्तर खोला तो वह खाली था l ये आटे का कनस्तर था l" हे भगवान् ये लड़का भी ना निपट उल्लू है l इसको दोपहर को जाते ही कहा था l बेटा कुछ करो ना करो लेकिन मोहन पंसारी के यहाँ से आटा लेते आना l लेकिन ये लड़का भी ना l नाच नौटंकी , गाने बजाने और बैठकबाजी में सारा समय निकाल देता है l एक बात नहीं सुनता मेरी l इतना लापरवाह भी भला कोई होता है l ओह ! लगता है भूखा ही चला गया है l नहीं मैंने एक रोटी छोड़ दी थी , रोटी वाले डब्बे

में l शायद खा लिया हो l हे भोले नाथ इसको ज़रा सद्बुद्धि दीजिये l माँ का दिल बेटे के ममत्व से पिघला जा रहा था l डब्बा खोला तो देखा , रोटी ज्यों-की- त्यों वैसे ही डब्बे में रखी है l ओह ! कैसा लड़का है l जब उसे आटा लाना याद नहीं रहा होगा l तब उसे अफ़सोस हुआ होगा l सोचा होगा माँ भी तो भूखी होगी l कितना ख़्याल करता है , मेरा l बेकार ही उसको भला - बुरा कहा l माँ की आंँखों से आँसू झरने लगे l भला कोई इतना भी प्रेम करता है , माँ से ! पगला है रे बिलासी , तू पगला है l बुढ़िया ने खीर तो खा लिया l लेकिन रोटी जैसे के तैसे रख दिया l सोचा सुबह छ: बजे जब बिलासी लौटेगा तो खा लेगा l आख़िर अभी उम्र ही भला कितनी है l पच्चीस साल इस बार लगा है l लेकिन दिखता पैंतीस का है l बाप के मरने के बाद से घर की सारी जिम्मेदारी उसने उठा ली है l बेचारा खाता भी भला क्या है ? दो रोटी सुबह , दो रोटी शाम l दूध घी तो देखे उस ज़माना हो गया l बुढ़िया ने लैंप बुझायी और सो गई l

सुबह पाँच बजे ही रज्जो आॅटो से आ गई l बुढ़िया ने उठकर दरवाज़ा खोला l रज्जो ने पहले सारा घर साफ़ किया l फिर इधर - उधर बिखरे सामान को सलीके से रखा l बच्चे सफ़र से होकर थके आये थें l क्वाॅर्टर में पँखे के ठंड़े हवा के नीचे उनको तुरंत नींद आ गई l रज्जो को जो सफ़र से लौट आई थी l उसे भूख लग आई थी l ट्रेन और बस में उसे उल्टी होने लगती है l वह वैसे भी बाहर का खाना नहीं खाती l सोचा घर जाकर ही खाऊँगी l अपने हाथ से अपने घर का बना l उसने कनस्तर खोला l लेकिन उसमें आटा नदारद था l चिंतामणि से पूछा l तो चिंतामणि ने कल की घटना दुहरा दी l रज्जो को भी बिलासी के लापरवाह होने पर बहुत गुस्सा आया l सस्पेन में चाय बिठा दी l रोटी वाला डब्बा खोला तो उसमें वही पिछले दिन वाली एक रोटी बची थी l तभी दरवाज़े पर बिलासी ने आवाज़ लगाई -"अम्मा दरवाज़ा खोलो l"

रज्जो ने आगे बढ़कर दरवाज़ा खोला l

"अरे , तू कब आई l"

पानी की बोतल और टाॅर्च को अपनी जगह पर रखते हुए बिलासी बोला l

"अभी रात वाली गाड़ी से l"

"तू टेशन लेने नहीं आया l"

"अरे आज रात की पाली थी l"

"रहने दो , रहने दो l बहाना मत बनाओ l तुम कभी मुझे लेने नहीं आते l काम का तो केवल बहाना है l बच्चे ना जने होते तो मुझसे मतलब भी ना रखते l"

"धत् ऐसा क्यों कहती है , पगली!"

"तू तो मेरी रानी है , रानी l रानी बेकार ही कह रहा हूँ l तू तो महारानी है l मेरे घर की लक्ष्मी है l"

"चलो , ज़्यादा बातें ना बनाओ l बातें बनाने में बहुत ओस्ताद हो l"

"नहीं रे तू ऐसा क्यों कहती है l दुनिया की बात और है l लेकिन मैं तेरे सामने बातें नहीं बनाता l अगर बातें बनाता हूँ, तो मेरा मरा मुँह देखेगी l"

"धत् , सुबह- सुबह अशुभ - अशुभ बातें काहे बोलते हो l तुमको कुछ हो गया तो ई छौआ जने का और हमरा का होगा l दुनिया बहुत मतलबी है l बात भी ना पूछेगी l"

"धत् अभी मैं मरा थोड़े ही जाता हूँ l"

"मरे तोरा दुश्मन l"

"लापरवाह तो हो तुम l"

"मैं , नहीं मनता l"

"फिर , कल आटा काहे नहीं लाये ?"

"क्यों क्या हुआ ...?"

"अम्मा बता रहीं थीं l तुमको कल दिन में ही आटा लाने को बोलन रहीं l"

"अरे कल महीना का आखिर, दिन रहा l पैसा ख़त्म हो गया रहा रज्जो l"

"अम्मा ने खाना खाया था , कल रात l"

"नहीं वह रोटी जो तुमने अम्मा के वास्ते रखी थी l अम्मा ने तुम्हारे लिये रख छोड़ा है l चाय बना दी है l रोटी खा लो lजो डब्बे में बची रही है l ले आऊँ l"

"हाँ "

आज बिलासी को माँ की हैसियत पता चली थी l त्याग करने वाली माँ की l माँ को हम ऐसे ही माँ नहीं कहते l सचमुच वह अपने हिस्से का भी सब कुछ अपनी औलादों पर न्योछावर कर देती है l ऐसे ही इस दुनिया में माँ को लोग नहीं पूजते l ऐसे ही लोगों की श्रद्धा माँ पर नहीं बनी हुई है !

"तू भी तो अभी सफ़र से लौटी है l मैं अच्छी तरह से जानता हूँ l तू बाहर बस और ट्रेन में कुछ नहीं खाती l और तुझे तो गाड़ी में उल्टी भी आती है l"

"मैंने बस में पावरोटी खाई थी l अभी भूख बिल्कुल भी नहीं है l"

"सच l"

"हाँ ,सच तो बोल रही हूँ l"

"खा , मेरी सौगंध l"

"धत् इतनी छोटी बात पर भी भला कोई सौगंध खाता है ?"

"ले , आधी रोटी खा ले l"

"नहीं सच में भूख नहीं है l"

लेकिन, रज्जो की हालत तो ऐसी थी कि आधी क्या अभी चार - पाँच रोटियाँ भी

मिलती l तो वह वो सड़ाक से खा जाती l

"अच्छा, सुन तू सफ़र से लौटी है l तेरे पास कुछ पैसे हैं l"

"काहे के लिये l"

"दे ना कुछ काम है l"

"बता तब दूँगी l"

"घर के लिये आटा और तरकारी लानी है l"

"मेरे पास केवल आटे भर का ही सौ रूपये बचा है l वह भी जब अपने और बच्चों का बहुत मुँह दाब के चली हूँ , तब l"

"आँय l"

" तब क्या ?

रज्जो ने आँचल में बँधे सौ के उस आखिरी नोट को निकाला और बिलासी के हाथ पर धर दिया l

औरत का एक रूप त्याग का तो बिलासी ने देख लिया था l लेकिन, ख़ुद भूखे रहकर रज्जो ने जो रोटी , बिलासी को खिलायी थी l वह बिलासी ने भी कहाँ देखा l ये थी मातृ शक्ति और उसका त्याग! आख़िर रज्जो भी तो एक माँ थी , एक पत्नी थी l