माधुरी दीक्षित नेने चुनाव कुरुक्षेत्र में? / जयप्रकाश चौकसे

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माधुरी दीक्षित नेने चुनाव कुरुक्षेत्र में?
प्रकाशन तिथि : 08 दिसम्बर 2018


अभिनेत्री माधुरी दीक्षित नेने को लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी पुणे से चुनाव लड़ने का आमंत्रण दे चुकी है। राजनीतिक दल हर क्षेत्र के हर मोहल्ले में किस जाति के कितने लोग रहते हैं इसकी वृहद जानकारी एकत्रित कर लेते हैं। मतदाता भी अपनी जाति के व्यक्ति को ही मत देना पसंद करते हैं। मदन मोहन मालवीय जैसे नेता ने संकीर्ण जातिवाद को समाप्त करने का भरपूर प्रयास किया। महात्मा गांधी भी सारा जीवन अथक प्रयास करते रहे। जातिवाद समाज की जड़ों तक फैला हुआ रोग है। जेपी दत्ता की एक फिल्म में पुलिस इंस्पेक्टर चार अपराधियों को जीप में बैठाकर सेंट्रल जेल की ओर जा रहा है। एक निर्जन स्थान पर जीप रोककर वह अपनी जाति के अपराधी को भाग जाने की सहूलियत देता है। इसके बाद वह अन्य तीन अपराधियों को गोली मार देता है ताकि उसके व्यवहार का कोई गवाह नहीं रहे।

'बंटवारा’ में नायक तथाकथित पिछड़ी जाति का व्यक्ति है। उसके बचपन का दोस्त राजपूत है। जब वह अपने दोस्त के घर जाता है तो दोस्त के पिता को नमन करता है परंतु उनके सामने कुर्सी पर नहीं बैठता। राजपूत के घर 'छोटी जात’ का व्यक्ति कैसे समान जगह पर बैठ सकता है परंतु वह फर्श पर भी नहीं बैठता जैसा कि छोटी जात के व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है। वह खड़ा रहकर ही वार्तालाप करता है। इस जातिवाद के खिलाफ पहली फिल्म 1936 में बनी थी। अशोक कुमार अभिनीत 'अछूत कन्या’। समय-समय पर इस तरह की साहसी फिल्में बनती रही हैं। इस कुरीति का विरोध केवल फिल्म उद्योग ने किया है और आज भी फिल्म उद्योग पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष है। महबूब खान की 'मदर इंडिया’ बाबूभाई मेहता की 'औरत' फिल्म के लिए लिखी गई कथा पर और काम करके बनाई गई थी। राज कपूर की अधिकांश फिल्में ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखी हैं। शांताराम की फिल्म 'पड़ोसी’ भी जातिवाद का विरोध करती है। इस तरह की प्रेम कहानियां भी परदे पर प्रस्तुत की गई हैं, जिनमें प्रेमी अलग-अलग धर्म मानने वाले परिवारों से आए हैं। पंकज कपूर अभिनीत एक फिल्म में एक ब्राह्मण दंगों के समय बिलखते बच्चे को अपने घर लाए। उसे हिंदू धर्म में दीक्षित किया गया और उसने धार्मिक ग्रंथ कंठस्थ कर लिए। कुछ वर्ष पश्चात एक मुस्लिम दंपति यह सिद्ध कर देते हैं कि यह उनका खोया हुआ बालक है। घटनाक्रम का क्लाइमैक्स यह है कि धर्म को लेकर दंगे नियोजित किए जाते हैं और पूरे मोहल्ले में आग लगा दी जाती है। जहां इस्लाम को मानने वाले लोग रहते हैं। ब्राह्मण पात्र जाकर बच्चों को झुलसते हुए घर से बाहर निकाल लाता है। उसके अपने धर्म को मानने वाले तलवारे हाथ में लिए उसे रोकने का प्रयास करते हैं परंतु वह अपने द्वारा पाले हुए बच्चे की रक्षा करता है। शायद फिल्म का नाम ‘धर्म’ था। गौरतलब यह है कि जातिवाद के खिलाफ अनगिनत साहसी लोगों ने संघर्ष किया है। अनगिनत किताबें लिखी गई हैं, फिल्में बनाई गई है परंतु जातिवाद कायम है। सारे चुनावों में मतदान भी इसी आधार पर होता है। सत्ता पद पर आसीन होने वाले इसका सतही विरोध करते हैं। विज्ञान भी इसका कोई एंटीडोट नहीं बना पाया है। इसकी जड़ों को अाख्यानों ने सींचा है। एकलव्य का अंगूठा हर कालखंड में काट दिया जाता है। श्रीकृष्ण सुदामा के घर जाते हैं परंतु सुदामा और एकलव्य कभी तथाकथित धर्म युद्ध में शामिल नहीं हो सकते। महान आख्यानों के मनमाने ऊटपटांग अर्थ करके एक जहालत पैदा की गई है। हमारे सारे महान ग्रंथ संस्कृत भाषा में रचे गए हैं और उनके अनुवाद गलत ढंग से किए गए हैं। उनका सार अनुवाद में गुम हो गया है। हॉलीवुड में बनी एक फिल्म का नाम ही है 'लॉस्ट इन ट्रांसलेशन’।

फिल्मकार सुभाष घई ने कश्मीर में सोहनलाल कुमार की एक फिल्म की शूटिंग करते समय माधुरी को देखा और उसकी प्रतिभा का पूर्व आकलन कर लिया। सुभाष घई ने अपनी सितारा जड़ित फिल्मों में माधुरी को लिया और वे अपनी मेहनत, अनुशासन व प्रतिभा के सहारे शिखर पर पहुंच गईं। विवाह करके वे अपने डॉक्टर पति के साथ कुछ वर्ष अमेरिका में रहीं परंतु उनके पति को उंगलियों में कंपन का एक रोग हो गया और वे शल्य चिकित्सा नहीं कर सकते थे। अतः दंपति भारत लौट आया। डॉ. नेने मेडिकल कॉलेज में नि:शुल्क पढ़ाने जाते हैं और माधुरी कुछ फिल्मों में अभिनय करना स्वीकार करती हैं।

कुछ समय पूर्व उन्होंने 'गुलाबी गैंग’ नामक फिल्म में अभिनय किया था। यह फिल्म एक सत्य घटना से प्रेरित फिल्म थी। फिल्म में माधुरी के खिलाफ उस क्षेत्र से चुनाव जीतकर मंत्री बनी महिला की भूमिका जूही चावला ने अभिनीत की थी। फिल्म के क्लाइमैक्स में माधुरी अभिनीत पात्र मंत्राणी का हाथ काट देती है। इसी हाथ से वह रिश्वत लेते थी और अन्याय करने वाले आदेशों पर हस्ताक्षर करती थी। इस तरह हम देखते हैं कि माधुरी नेने एक फिल्म में नेता की भूमिका कर चुकी हैं। यह अभिनय अनुभव उनके बहुत काम आ सकता है। नेता और अभिनेता में यह साम्य है कि वे दिखाते हैं, जो सत्य नहीं है। दोनों ही सपनों का व्यापार करते हैं। जॉन एफ. कैनेडी ने कहा था कि उनके खूबसूरत होने के कारण भी उन्हें मत प्राप्त होते हैं। महिला मतदाता वर्ग उनका समर्थक रहा है। इसी तरह माधुरी दीक्षित नेने को भी उनके सौंदर्य के लिए मत प्राप्त होंगे। अमित शाह ने सही चाल खेली है। कोई भी नेता अवाम का भला नहीं करता, इसलिए एक सुंदर स्त्री द्वारा शासित होना शायद कुछ कम कष्टप्रद हो सकता है। जयप्रकाश चौकसे