माधुर्य- भाव- धारा का मंत्रमुग्ध अवगाहन / रश्मि विभा त्रिपाठी

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'मंत्रमुग्धा' काव्य-संग्रह निर्मल भाव- भूमि से फूटा एक अद्भुत रस - निर्झर; जिससे उमंग, उल्लास, अनुराग, शुचिता, नि:संगता पूरे वेग से प्रवाहित हुई है। इस माधुर्य भाव- धारा का मंत्रमुग्ध अवगाहन अवर्णनीय है। दर्शन की विदुषी, योग- विशेषज्ञ, बहुआयामी प्रतिभा की धनी डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री' हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के साथ- साथ जापानी विधाओं के सृजन की भी साधक बनकर साहित्य की सतत श्रीवृद्धि कर रही हैं।

हिन्दी साहित्य के विख्यात व्यंग्यकार, कवि डॉ. गोपाल बाबू शर्मा के अनुसार 'मैंने कविता का काव्य पढ़ा, सुन्दर सरस भाव, सुदृढ़ शिल्प से उसका काव्य सम्पृक्त है'।

परकल्याण कामना से परिशुद्ध उनके अंत:करण से निसृत काव्य हिन्दी साहित्य की धरोहर है। निस्संदेह एक सच्चा कवि ही व्यक्ति को स्व से ऊपर उठकर सृष्टि के साथ रागात्मक संबंध स्थापित करने का आह्वान कर अपने साहित्यिक धर्म का यथोचित निर्वहन करता है। उनकी काव्य- शक्ति में उच्च स्तरीय साधना का संचार है जिसका अनुशीलन मन को उच्छ्वसित करता है। प्रस्तुत पुस्तक में कविताओं के अतिरिक्त क्षणिका, हाइकु, ताँका तथा चोका संगृहीत हैं जिनमें सुगठित भाव- तत्व और प्रसाद- गुण- सम्पन्न भाषा का आभ्यंतरिक साहचर्य आद्यंत द्रष्टव्य है। शब्द- योजना में ओज एवं माधुर्य का सुन्दर समन्वय है।

संग्रह की पहली ही कविता मंत्रमुग्धा है- सुनो मंत्रमुग्ध मीत मेरे / आज शिखर पर खड़े होकर / झाँकने का मन है- / अश्रुताल के शांत जल की / असीम गहनता युक्त घाटी में... ( पृष्ठ- 11 )

इस निर्णीत निरीक्षण में अंत: प्रकृति का बाह्य प्रकृति के साथ राग प्रतीक रूप में इंगित है। प्रेम के बारे में असंख्य मत हैं। प्रेम क्या है? प्रेम जीवन का सार है? अथवा सार रूप में जीवन ही प्रेम है? प्रत्येक देश, काल, परिस्थिति में किए गए अनुसंधान के आधार पर जीव जगत एवं विज्ञान की अपनी अलग- अलग प्रेम विषयक परिभाषाएँ हैं। 'प्रेम' कविता में शुद्ध प्रेम की पूर्ण परिभाषा परिलक्षित है-

प्रेम है उतरना, डूबना, डूबे रहना ( पृष्ठ- 13 )

वस्तुत: मन रूपी नदी में उतरकर, उसमें आकण्ठ डूबकर ही प्रेम की प्राप्ति संभाव्य है। अगली कविता की निम्न पंक्तियाँ महत्वपूर्ण हैं-

हलंत विसर्ग सभी समर्पित / हुआ प्रेम- कविता का सृजन। ( पृष्ठ- 17 )

प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रेम का सम्पूर्ण दर्शन हैं, जिनमें अत्यंत गूढ़ तत्व निहित है। सूक्ष्म विश्लेषण द्वारा ही इस मर्म तक पहुँचा जा सकता है कि उपरोक्त पंक्तियों में हलंत- विसर्ग व्याकरणिक तत्व मात्र ही नहीं, बल्कि सृष्टि के उत्पत्ति कारक हैं। हलंत पुरुष रूप कारक व विसर्ग स्त्री रूप कारक।

बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक की कहानी का सार 'आँखें गले मिलीं' कविता की निम्नांकित पंक्तियाँ हैं-

बचपन जो पुरुष न था न स्त्री / अब वह पुरुष मैं स्त्री का बंधन। ( पृष्ठ- 18 )

इसमें बढ़ते हुए बचपन के साथ बढ़ती विसंगति का बोध है।

योग- शिक्षा के माध्यम से जीवन को व्यवस्थित विधि से जीने का कौशल सिखलाने वाली कवयित्री ने अपनी कविता में भी योग की हठयोग प्रणाली का बड़ा ही सुन्दर, सार्थक प्रयोग किया है- दीपक है मेरा प्यार आँधी से संघर्ष करेगा / समर्पण की चेतना हठयोग कर बैठी। ( पृष्ठ- 24 )

डॉ.कविता का सृजन अत्यंत समृद्ध है। वे शब्दों की मुक्ता को इस रीति से गुंफित करने में प्रवीण हैं कि काव्य की वह माला बड़ी ही मनोहारिणी बन पड़ती है-

दुख में मेरे कंधे पर अपनी हथेली से / आज किया तुमने प्रेम का हस्ताक्षर। ( पृष्ठ- 26 ) मूर्त को अमूर्त और अमूर्त को मूर्त रूप में उपस्थित कर देना उनके काव्य का वैशिष्ट्य है।

चाँद का मानवीकरण करते हुए उसके टेढ़े मुखड़े के पीछे छिपे जिस सत्य का उद्घाटन हमारे सामने हुआ है, कवयित्री की सूक्ष्म निरीक्षण- वृत्ति का परिचायक है। इस नए परिप्रेक्ष्य में उस पर शायद ही अब तक किसी की दृष्टि पड़ी हो।

काश! टेढ़े मुँह वाले चाँद की सच्चाई / लोग समझ पाते / तो शायद न कहते / मेरे दुख में विकल चाँद क्यों नहीं? ( पृष्ठ- 31 )

चाक्षुष बिंब के गठन व विलक्षण व्यंजना शक्ति द्वारा उन्होंने हमें चाँद की वह भावाकृति दिखा दी है जो संवेगों का प्रभावोत्पादक रूपांतर है। जैसे- खुशी में हँसते होठों का गालों तक फैल जाना, गुस्से में भौंहों का तन जाना, रोने में अजीबो-गरीब मुँह बनाना इत्यादि में से टेढ़ेपन को संवेग के सन्दर्भ में रेखांकित करना उनकी प्रखर प्रज्ञा का परिणाम है। चाँद की यह छवि एकदम न्यारी एवं नई है।

'अब अरुणोदय होगा' ( पृष्ठ 53 ) कविता आशावादी भाव की आभा बिखेरती है। जीवन में राहु-केतु की चाल से कौन अपरिचित है? वे सदैव अशुभ की कामना करने वाले व निरा दु:ख देने वाले हैं। ऐसी परिस्थिति में हम सबके हेतु सूर्य- सा तेज, चंद्रमा- सा ओज अक्षुण्ण रखने का एक उद्बोधन है यह कविता।

किसी दिन तो / फूटता तुम्हारा प्रेम / पहाड़ से छल- छल... ( पृष्ठ 64 )

उपर्युक्त क्षणिका के छल- छल वाक्य में ध्वन्यात्मक- चित्रात्मक- प्रतीकात्मक संयोजन बड़ा ही उत्कृष्ट है। पुस्तक के हाइकु- ताँका- चोका खण्ड में तीनों जापानी विधाएँ अपने प्राण तत्व के साथ प्रतिष्ठित हैं। उदाहरणस्वरूप-

हाइकु-

प्रतीक्षारत / मैं योगिनी सी ही हूँ / तुम महेश!

जग- जंजाल / झूठा यह मधु देश / तुम विशेष।

प्रेम- प्रस्तर / अडिग रह बने / शैल- शिखर।

तू हिमधर / पवन झकोरों में / खड़ा निडर।

ताँका-

ढला बादल / नदी के आगोश में / हुआ पागल / लिये बाँहों में वह / प्रेमिका- सी सोई।

चोका-

मेघ ने धरा- / धरा पर चुम्बन / झूम बरसे। / विरहन तरसे / मिलन- राग / गाओ प्रिय फिर से। / गूँगे का गुड़ / मन कुछ यूँ हर्षे / मनुहार हो / प्रेमालाप- प्यार हो / आशा है- अम्बर से।

संग्रह में आदि से अंत तक गहन भावाभिव्यक्ति, सुगठित भाषा, सुंदर प्रतीक, सशक्त बिम्ब, ध्वन्यात्मकता, लयात्मकता तथा मानव- प्रकृति के तादात्म्य का एक समन्वित शब्द- चित्र है। यह अनूठी कलाकृति पाठक को अवश्य ही मंत्रमुग्ध करेगी।

आवरण चित्र में स्थित सुंदर शिखर मुझे कवयित्री का ही भाव- शिखर लग रहा है, जो उनकी सृजन- गंगा का उद्गम स्थल है।

पुस्तक प्रकाशन हेतु आदरणीया अग्रजा डॉ. कविता भट्ट शैलपुत्री को अशेष बधाई एवं शुभकामनाएँ।

मंत्रमुग्धा ( काव्य- संग्रह ): डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री', पृष्ठ: 106, मूल्य: आईएसबीएन: 978 93 91378, प्रथम संस्करण: 2022 , प्रकाशक: शैलपुत्री ( शैलपुत्री फाउण्डेशन ), सहभागिता: जीएसएफ नेटवर्क, प्राइवेट लिमिटेड, ग्रीन पार्क एक्सटेंशन, नई दिल्ली- 110016