मानवता के पुजारी- मुहम्मद / विष्णु प्रभाकर
साँचा:GKCatBodhkatha मानवता आखिर है क्या? क्या उसका सम्बन्ध मात्र मानव से है, वे क्या उसकी परिधि से बाहर है? जननी और मां दोनों शब्द समानार्थक माने जाते है। जननी अपने जने को प्यार करती है। स्वाभाविक है; लेकिन मां के साथ जनने की कोई शर्त नहीं है। सब उसके है। वह सबकी है। सबको प्यार करती है।
मानवता की परिधि मां की तरह असीम है। मानवीय कल्याण और सम्वेदन जीव मात्र के सन्दर्भ में ही सार्थक हो सकते है, हुये है। इस्लाम धर्म के पैगम्बर हजरत मुहम्मद के सम्बन्ध में यह उतना ही सच है, जितना किसी और के। कथा आती है कि एक बार वे एक बगीचे में गये। वहां बधां हुआ था एक ऊंट। जैसे ही उसने पैगम्बर को देखा, वह अत्यन्त स्वर में डकराने लगा। उसकी आंखें बरसने लगी।
उसका वह करुण स्वर मुहम्मदसाहब को कहीं गहरे छू गया। वह तुरन्त उसके पास पहुंचे। उसे पुचकारा। उसके सिर पर, गरदन पर, हाथ फेरा। उसे बार-बार सहलाया, थपथपाया। जब कहीं जाकर वह शान्त हुआ।
उसके बाद मुहम्मदसाहब ने उसके मालिक को बुला भेजा। कहा, "यह ऊंट पशु है। बोल नहीं सकता। इस लिए क्य तुम इस पर अत्याचार करते ही रहोगे? अल्लाह से भी नहीं डरोगे? अल्लाह न हो तो इसका मालिक बनाया है।"
ऊंट के मालिक ने पूछा, "पर मैंने इस पर क्या अत्याचार किया है?"
मुहम्मदसाहब बोले "इसने मुझसे शिकायत की है कि तुम इससे जरूरत से ज्यादा काम लेते हो। इसे भूखा रखते हो। क्या तुम्हारे ऐसा करने से इसे दु:ख नहीं होता? क्या इसके जिस्म में जान नहीं है, वैसे ही जैसे तुम्हारे जिस्म में है, मेरे जिस्म में है? तुमको पूरा खाना न मिले तो?"
सुनकर मालिक ने सिर झुका लिया।
इसी प्रकार एक आदमी उनके पास आया। उसके पास एक दरी थी। उसमें कुछ बंधा हुआ था। मुहम्मदसाहब ने पूछा, "क्या बंधा है तुम्हारी इस दरी में?"
उस आदमी ने जबाब दिया, "ऐ रसूलल्लाह, मैं जंगल के बीच में से जा रहा था। एकाएक चिड़ियों के बच्चों की आवाज मेरे कानों में पड़ी। उधर जाकर देखा तो वहां कई बच्चों को पाया। उन्हें उठा कर मैंने दरी में बांध लिया। तभी आ पहुंची उनकी मां। बच्चों को बंधा हुआ देखकर वह तड़फड़ा उठी। मैंने दरी खोल दी। मां बच्चों से आ मिली। मैंने उसे भी दरी में लपेट लिया। वे ही सब इस दरी में बन्द..."
इससे पहले कि वह अपनी पूरी बात कर पाता, मुहम्मद साहब ने उसे आदेश दिया, "जाओ, तुरन्त इस चिड़िया मां और बच्चों को वहीं छोड़ आओ, जहां से पकड़ कर लाये हो।"
वह आदमी तुरन्त उलटे पैरों लौट गया।
मुहम्मद साहब ने इन घटनाओं के माध्यम से मानो कहा है, "पशु मूक है। वे अपने दर्द की बात नहीं बता सकते। उनकी आंखों की भाषा पढ़ो और उनके सामानवीयता का बर्ताव करो। उन्हें बन्दी मत बनाओं। यहीं मानवीयता सम्वेदना है। यही मानवीय करूणा है।
इस तथ्य को उन्होने दो और नीतिकथाओं के द्वारा स्पष्ट किया है। एक कुत्ता एक कुंएं के पास बैठा प्यास के मारे तड़प रहा था। एक तथाकथित दुराचारिणी उधर आ निकली। उसने कुत्ते को देखा। तुरन्त अपनी कीमती चादर उतारी। उसमें जूते बांधे और कुंए से पानी खींच कर कुत्ते को पिलाया।
कुत्ते के प्राण लौट आये। खुदाबन्द ताला ने उसे दुराचारिणी के सब गुनाह माफ कर दिये।
एक दूसरी नारी थी। व दुराचारिणी नही थीं। उसने एक बिल्ली को बांध रखा था। उसे व पेट भर खाने को नहीं देती थी। खोलती भी नहीं थीं, जिससेचवह कहीं और जाकर खा-पी सके।
परिणाम यह हुआ कि वह भूख से तड़प-तड़प कर मर गयी। अल्लाह ने उस नारी को कड़ा दण्ड़ दिया।
मानवीय करूणा से ओतप्रोत मानव का ह्रदय बहुत करुण होता है। एक व्यक्ति का हृदय बहुत कठोर था। वह हजरत मुहम्मद के पास आया। बोला, "मेरा दिल बहुत सख्त है। मैं क्या करुं?"
मुहम्मदसाहब का उत्तर था, "अनाथों के सिर पर हाथ फेरो और भूखों को भोजन खिलाओ। नरम हो जायेगा।"
मानवीय सम्वेदना की कोई सीमा नहीं होती। मुहम्मदसाहब स्वंय ही मानवीय करूणा से ओत-प्रोत नहीं रहते थे, बल्कि जो उनके निकट थे, उनके अन्तर में भी वह प्रफुटित हो, यह भी वह देखते थे। एक बार एक फकीर उनके पास आया, बोला, "मैं बहुत दुखी हूं। कई दिन से कुछ नहीं खाया।"
मुहम्ममद साहब ने तुरन्त कई घरो में सन्देश भेजा कि एक फकीर भूखा आया है। उसके लिए कुछ खाने को हो तो भेजो। सब कहीं से जबाब आया, "हमारे घरो में पानी के सिवाय कुछ नहीं है।"
मुहम्मदसाहब के पास तब कई व्यक्ति बैठे थे। उन्होने उनसे पूछा, "क्या कोई इसे अपना मेहमान बना सकमा है?"
उनमें से एक व्यक्ति खड़ा हुआ। उसका नाम था अबूतुल्ला। उसने कहा, "मैं बना सकता हूं।"
वह फकीर को अपने घर ले गया। अन्दर जाकर उसने अपनी पत्नी से पूछा, "एक फकीर मेरे साथ है। क्या उसके लिए खाने को कुछ है?"
पत्नी ने उत्तर दिया, "केवल बच्चों का पेट भर सके इतना खाना घर में है।"
अबूतुल्ला ने कहा, "बच्चों को किसी तरह बहला-फुसलाकर भूखा ही सुला दो। मेहमानके आने पर ऐसा जाहिर करना, जैसे हम भी साथ खायेंगे। जब वह खाने के लिए हाथ बढाये तो तो तुम ठीक करने के बहाने चिराग के पास जाना और उसे गुल कर देना।"
पत्नी ने ऐसा ही किया। अन्धेरे में मेहमान बेखबर खाता रहा और पति-पत्नी खाने का नाटक करते रहे।
सुबह अबूतुल्ला मुहम्मदसाहब के पास पहुंचा। वह सब कुछ जान चुके थे। उन्होने अबुतुल्ला को खुश खबरी सुनाई कि अल्लाहताला को अपने फलां बन्दे और फलां बन्दी का, यानी अबूतुल्ला और उसकी पत्नी का, यह काम बहुत पसन्द आया। वह उन पर बहुत खुश है।
मानवीय सम्वेदना के बहुत रूप है। मुहम्मदसाहब का समूचा जीवन उसकी व्याख्या है। वह क्षमा को भी एक महत्वपूर्ण गुण मानते थे। किसी ने उनसे पूछा था, "आप बन्दो में आप किसे सबसे ज्यादा इज्जत देंगें?"
मुहम्मदसाहब का उत्तर था, "उसे, जो कसूरवार पर काबू पाने के बाद भी उसे माफ कर दे।"
एक बाद वे अबूबकर (जो बाद में इसलाम धर्म के पहले खलीफा हुए) के पास बैठे थे। एक व्यक्ति वहां आया और अबूबकर को गाली देने लगा। वह शान्ति से सुनते रहे, लेकिन जब वह व्यक्ति शिष्टता की सभी सीमाओं को पार कर गया तो अबूबकर के सब्र का प्याला भी छलक पड़ा। वह जबाब में बोल उठे। उसी क्षण मुहम्मद साहब वहां से उठकर चले गये।
बाद में अबूबकर ने उनके चले जाने का कारण पूछा तो वे बोले, 'जब तक तुम चुप थे, अल्लाहताला का एक फरिश्ता तुम्हारे साथ था। जब तुम बोलने लगे तो वह चला गया।"
काश हम इन प्रतीक कथाओं का अर्थ समझ सकें और उसे जी सकें, अन्यथा गुणगान एक व्यवसाय है, जो दोनों पक्षों को धोखा देने में ही कृतार्थ होता है!