मानवीय, प्रेम और करुणा का गीत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 20 नवम्बर 2014
विधु विनोदचोपड़ा, राजकुमार हीरानी, आमिर खान आैर अभिजीत जोशी (लेखक) ने बार-बार, फिल्म दर फिल्म यह सिद्ध किया है कि आप कठिनतम आैर उलझे हुए गूढ़ मुद्दों को हास्यमय ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। उनकी फिल्मों में सभी श्रेणी के दर्शक जी खोलकर हंसते हैं आैर गंभीर संकेत उनके अवचेतन में जमा हो जाते हैं जो समय-समय पर उन्हें कचोटेंगे आैर सोचने पर विवश करेंगे कि क्या हमारे सबके अवचेतन में किसी ने 'गलत फोन नंबर' ठूंस दिया है। दरअसल विगत सौ वर्षों में हर किस्म की फिल्में बनती रही है परंतु भारतीय सिनेमा का मूल स्वर हमेशा सार्थक मनोरंजन ही रहा है आैर यह धारा कभी सतह के नीचे आैर कभी ऊपर प्रवाहित होती रहती है, ठीक वैसे ही जैसे अच्छाई की धारा जीवन में कभी सतह के ऊपर आैर कभी भीतर प्रवाहित होती है। शांताराम, मेहबूब खान, राजकपूर, विमलरॉय आैर ऋषिकेश मुखर्जी इसी धारा के फिल्मकार रहे हैं आैर वर्तमान में राजकुमार हीरानी इसकी कड़ी है। सच तो यह है कि इस धारा की जड़ें चार्ली चैपलिन तक जाती है। सिनेमा माध्यम की यह शक्ति है कि आप हंसते-हंसते गहरी बात भी कर सकते हैं। इतिहास आैर दर्शनशास्त्र का गंभीरतम मुद्दा हंसाते-हंसाते प्रस्तुत किया जा सकता है क्रिस्टोफर नोलन की 'इंसेप्शन' में दूसरों के सपनों में पैंठने की बात थी आैर उसी तथ्य को राजकुमार हीरानी मोटे रूप से समझाने के लिए अंतरिक्ष से आया एक एेसा पात्र गढ़ते हैं जो आपके अवचेतन को पढ़ लेता है। भूत, भविष्य वर्तमान-समय की नदी की तीनों सतहें वह देख सकता है। यह भी संकेत है कि हम अपनी सहज बुद्धि से तर्क सम्मत स्वतंत्र विचार शैली को विकसित करें तो हम सब भी यह कर सकते हैं। ईश्वर की सर्वोत्तम रचना मनुष्य है, उसकी महानतम स्तुति मानवता है, उसकी प्राथमिकता करुणा आैर दया है। हजारों वर्ष पूर्व कबीर कह गए है कि "घूंघट के पट खोल तोह पियू मिलेंगे" जिसका अर्थ यह है कि सारे घूंघट अर्थात परदे मनुष्य की आंख पर पड़े हैं, यह घूंघट अहंकार, धन संपदा का लोभ इत्यादि है, ईश्वर को घूंघट की आवश्यकता नहीं, सत्य को आवरण की आवश्यकता नहीं, वह तो निर्वस्त्र हमारे सामने सदैव विद्यमान हैं परंतु हम ही उसे अपने घूंघटों के कारण देख नहीं पाते।
राजकुमार हीरानी सूक्ष्मतम विचारों को स्थूल ठोस माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इस फिल्म के नायक का अंतरिक्ष से आना भी केवल यह संकेत है हमारे अपने स्वार्थ आैर सत्तालोलुपता से धरती में सरल जीवन को कठिन बना दिया है। अंतरिक्ष से आया नायक भी प्रेम करता है, रोता है आैर प्रेम का अर्थ दूसरों की खुशी है- यह सरल बात कहता है। हमने अपने बौनेपन से अपने ईश्वर को भी लघु कर दिया है। हर व्यक्ति अपने ईश्वर की कल्पना अपने सोच के दायरे में ही करता है। हमने उदात जीवन को एक कैरीकेचर बना दिया है।
राजकुमार हीरानी की फिल्मों के गीत उसकी पटकथा का हिस्सा होते हैं आैर फिल्म में ही उनका अर्थ समझ में आता है। पहले ही गीत में मनुष्य की पहचान, असली परिचय की बात की है आैर एक महत्वपूर्ण दृश्य में विविध धर्मों के मनुष्यों को दूसरे धर्मों की प्रचलित वेष-भूषा में प्रस्तुत किया है। पोशाकें हटाने पर वे सब एक जैसे नजर आते हैं। स्पष्ट है कि जहां आपने जन्म लिया है, उसी परिवार का धर्म आपका धर्म है। दृश्य में अस्पताल में नवजात शिशुआें के शरीर पर वह धर्म के ठप्पे खोजता है। गुलामों आैर जानवरों के शरीर पर ही मालिक के नाम के ठप्पे लगाए जाते थे। सारे गंभीर संकेतों को, अर्थ की भीतरी परतों को भूल कर भी फिल्म से आप निर्मल आनंद प्राप्त कर सकते हैं- यही भारतीय सिनेमा की मूल धारा है। आमिर खान हमेशा की तरह पूरी तरह से भूमिका में रम गए हैं आैर अनुष्का शर्मा भी कमाल लगी हैं। यह फिल्म भरपूर मनोरंजन करती है आैर इस दृष्टि से 'थ्री इडियट्स' की अगली कड़ी है। इस फिल्म के साथ न्याय करने के लिए शब्द है, ना भाषा है।