मानवीय चिंताओं का चितेरा चार्ली चैपलिन / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मानवीय चिंताओं का चितेरा चार्ली चैपलिन
प्रकाशन तिथि :24 अगस्त 2015


विश्व के फिल्म बनाने वाले सभी देशों में इस वर्ष चार्ली चैपलिन की फिल्म 'द ट्रैम्प' के प्रदर्शन की शताब्दी मनाई जा रही है। लेख लिखे जा रहे हैं और आम गरीब आदमी के इस पात्र की रचना को महान घटना माना जा रहा है। इस पात्र का आकल्पन स्वयं चैपलिन ने किया था। इसकी ढीली-ढाली सी पतलून, तंग कोट और बॉउलर हैट, छोटी-सी मूंछें मानो किसी अनकिए अपराध की क्षमा याचना कर रही हों तथा दारुण दशा में चेहरे पर मुस्कान जैसे विश्वविजय का उद्‌घोष हो, एक गरीब की दिली दौलत का एेलान-सा लगती है। आज के बाजार विज्ञापन शासित काल खंड में सफलता और सम्पदा की होड़ में भागते हुए और कहीं नहीं पहुंचते लोगों के बीच चैपलिन की यह छवि व्यंग्य लगती है। भारत के सबसे लंबे समय तक सक्रिय एवं महानतम कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण के आम आदमी में भी चैपलिन का मौजूद है परंतु लक्ष्मण ने अपने ट्रॉपिकल भारत में उसे एक छाता भी दिया है, जो उसे धूप और बारिश से बचा सकता था परंतु देश के दृष्टिहीन नेताओं के लोभ-लालच से उसे कोई नहीं बचा सकता। सृजन के शिखर पर विराजे महान आरके लक्ष्मण ने चैपलिन के पात्र को आदर दिया है। पश्चिम के देशों में अनगिनत चार्ली चैपलिन प्रशंसकों को आरके लक्ष्मण की आदरांजली का ज्ञान नहीं है।

चैपलिन सिनेमा माध्यम के पहले कवि माने जाते हैं और उनका ट्रैम्प (आवारा) का पात्र आम आदमी के सुख-दुख का प्रतिनिधित्व करता है। सिनेमा के पहले की अभिव्यक्ति के सारे माध्यमों में महान योद्धाओं, सूर्यवंशी व चंद्रवंशी साहसी व्यक्तित्वों की दास्तान रही है, परंतु सिनेमा सड़क पर चलते हुए आम आदमी के सुख-दुख की गाथा है। इस अनोखे माध्यम का पूंजी निवेशक भी आम आदमी इस मायने में रहा है कि दशकों तक सिनेमाघरों की टिकिट बिक्री का धन ही वितरकों के माध्यम से निर्माता तक पहुंचता रहा है। अत: उपभोक्ता के धन से ही यह उद्योग संचालित रहा है परंतु विगत दशक में देश के अधिकांश पूंजीपतियों ने मनोरंजन उद्योग में पूंजी निवेश किया है परंतु अभी तक कोई पूंजीपति फिल्म निर्देशक नहीं हुआ है और पीसी बरुआ इसके एकमात्र अपवाद हैं। सन् 1935 में बनी 'देवदास' को बरुआ ने बनाया था, जो किसी रियासत के राजकुमार थे और हमारे महान संगीतकार सचिवदेव बर्मन भी किसी रियासत के राजकुमार थे परंतु उन्होंने प्रेम विवाह करके अपनी रियासत त्याग दी थी। कोई आश्चर्य नहीं उनके बनाए प्रेमगीत अमर हैं।

चैपलिन की मानवीय करुणा की फिल्में और ट्रैम्प के पात्र का प्रभाव दुनिया के अनेक फिल्मकारों पर पड़ा है। भारत में चौथे दशक के एक हास्य अभिनेता ने तो अपना नाम ही चार्ली रख लिया था। तानाशाह हिटलर की फोटो जारी हुई थी, जिसमें मूंछ के समान होने के कारण प्रचारक की गलती से चैपलिन का फोटो जारी हुआ! इस घटना के कारण चैपलिन ने 'द ग्रेट डिक्टेटर' फिल्म रच दी और उस समय कुछ दर्शकों का विचार था कि चैपलिन की फिल्म देखने के बाद हमारे मन से तानाशाह हिटलर का भय दूर हो गया! ये संभव है कि तानाशाह व्यक्तिगत जीवन में असफल प्रेमी या असफल एक्टर होते हैं और अपनी ईश्वरीय कमतरी के भी शिकार होते हैं और इन कमजोरियों को आवरण देने के लिए क्रूरता अपनाते हैं, हत्याएं करते हैं। एक घोर असफल अभिनेता को एक महान संस्था का अध्यक्ष बना दिया गया है, वह कला की रक्तहीन हत्या करने में सक्षम है। यह भी कोई मामूली योग्यता नहीं है। आजकल इस योग्यता के लिए ऊंचे दाम और पद मिलते हैं।

चार्ली चैपलिन की कथा एक अत्यंत पठनीय व बहुत बिकने वाली किताब िसद्ध हुई। उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता। उन्होंने एक बूचड़खाने में मांस का टुकड़ा अपने दांतों में उठाए भागते हुए कुत्ते को देखा और कसाई उसके पीछे भाग रहा था। बचपन के इस दृश्य की अनुकृति उन्होंने अपनी फिल्मों में इस तरह की कि गरीब आदमी भाग रहा है और मोटा थुलथुल शरीर वाला पुलिस वाला उसके पीछे दौड़ रहा है। यह थुलथुले डील-डौल वाला पुलिसमैन निर्मम व्यवस्था का प्रतीक है अौर गरीब आदमी तो रोटी लेकर भाग रहा है। दरअसल, गरीब आदमी को थोड़ी-सी खुशी भी पाकेटमारी से ही मिलती है।

यह आंसू के मध्य से मुस्कान दिखाने की राज कपूर की कला का प्रेरणा-सूत्र चैपिलन ही रहा है और उनके पोते रणबीर कपूर की अनुराग बसु द्वारा बनाई 'बर्फी' भी आदरांजली ही है। सुना है कि चैपलिन की कब्र से उनका ताबूत चोरी करने का प्रास हुआ। चैपलिन जीवित होते तो मृतदेह की चोरी पर भी अपनी शैली की फिल्म रच देते। चैपलिन ने कहा था, 'लॉन्ग शॉट में जीवन सुखद दिखता है, क्लोजअप में त्रासदी।' अमेरिका के कवि हार्ट क्रैन ने चैपलिन की प्रशंसा में गीत लिखा है, जिसका अनुवाद यहां प्रस्तुत है : 'तुम्हारा बार-बार गिरना कोई झूठ नहीं था, छड़ी के सहारे बैले नर्तक की तरह घूमना भी कोई भ्रम नहीं; हमारी चिंताअों को तुमने सजीव प्रस्तुत किया, हम तुम्हें भूलना चाहते हैं परंतु दिल है कि मानता नहीं।'