मानव संपदा खनन और रद्दी की टोकरी / जयप्रकाश चौकसे

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गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
प्रकाशन तिथि : 17 अक्टूबर 2018


अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की राय है कि सन् 2020 में नन्हा बांग्लादेश मानव संपदा के मामले में विराट भारत से बहुत अधिक आगे निकल जाएगा। हुक्मरान सारे समय भारत को विश्व का तीसरा शक्तिशाली देश बनाने का खोखला दावा करते रहते हैं। मानव संपदा का आकलन इस आधार पर होता है कि कितने प्रतिशत शिशु 5 वर्ष की आयु पार कर पाएंगे और उनमें से कितने प्रतिशत साठ वर्ष की आयु तक जी पाएंगे तथा उनमें से कितने लोगों को सार्थक शिक्षा मिल पाएगी? विशेषज्ञों का आकलन सरकार को सौंपा गया तो मंत्री महोदय ने उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया कि यह ‘फेक न्यूज़’ है। किसी भी सरकार के शासन का मूल्यांकन उनकी स्वीकृत फाइलों के आधार पर नहीं करते हुए उनके वातानुकूलित दफ्तर में पड़ी रद्दी की टोकरी में एकत्रित अस्वीकृत आवेदनों के आधार पर किया जाना चाहिए। दरअसल रद्दी की टोकरी में चिन्दे करके फेंके गए आवेदनों के आधार पर भी सरकारी काम या काम के झूठे वादों के आधार पर ही यह किया जाना चाहिए।

भारत में गढ़ी गई विराट आर्थिक खाई में ही किसी दिन भारत को खोजना होगा। खाई में भी साधन संपन्न इंडिया के नीचे दबा हुआ मिलेगा साधन हीन भारत। खाई के ऊपर जमी काई ध्वस्त महत्वाकांक्षाओं और महज दो वक्त की रोटी के टूटे हुए ख्वाबों से बनी हुई पाई जाएगी। विश्व मुद्रा-बाजार में रुपए का मूल्य गिरता जा रहा है परंतु इससे कहीं अधिक भयावह है मानव संपदा की उपेक्षा किया जाना। 20 करोड़ लोग महज एक वक्त मिले आधे अधूरे भोजन पर ही जीवित हैं। भूख हमें बड़े प्यार से पाल रही है। सारे समय हुक्मरान तथाकथित ग्रोथ रेट की बात करता रहता है और मानव संपदा ही नष्ट होती जा रही है। उम्रदराज लोगों को यह फ़िक्र खाई जा रही है कि उनके नाती-पोते और अन्य शिशु किस तरह की दुनिया में जवां होंगे?

वे कितने सुरक्षित और स्वस्थ होंगे। एंटीबायोटिक बेअसर होते जा रहे हैं क्योंकि उनका आवश्यकता से अधिक उपयोग किया गया है। क्या महान चित्रकार भोपाल निवासी डॉ शिवदत्त शुक्ला या इंदौर के प्रभु जोशी मानव आकृति को चित्रित करेंगे जिसमें टैबलेट्स, कैप्सूल्स हैं और शिराओं मैं सायरप बह रहा है, खोपड़ियों में प्रचार का गोबर भरा है जिसमें पनपते अंधविश्वास की कोपलें कान से बाहर आती दिख रही हैं। मानव संपदा के आर्थिक दोहन पर चार्ल्स डिकेंस का उपन्यास का नाम है ‘ओलिवर ट्विस्ट’ जिस पर अंग्रेजी और हिंदी में अनेक फिल्में बनी है। इंग्लैंड में ‘ओलिवर ट्विस्ट’ पर एक ऑपेरानुमा फिल्म भी बनी थी। कुछ वर्ष पूर्व महान चार्ल्स डिकेंस की जन्म शति के अवसर पर उनके द्वारा वर्णित बस्तियों को पुन: निर्मित किया गया था। वह पर्यटन का लोकप्रिय स्थान माना गया। क्या हम भारत महान में मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में वर्णित स्थानों का फिल्मी सेटनुमा कोई निर्माण कर पाएंगे? क्या जागरूक बंगाल में दुर्गा उत्सव के अवसर पर बनाई गई झांकियों में शरत या रवींद्र नाथ टैगोर के द्वारा वर्णित स्थान भी नहीं बनाए जा सकते? क्या गणेश उत्सव में बनाई गई झांकियों को पौराणिकता से मुक्त करके मुंबई की किसी चाल की झांकी नहीं बनाई जा सकती? रावण दहन के लिए बनाए गए रावण हुक्मरान की तरह गढ़े जा सकते हैं? क्या ताजियों पर किसी कौम विशेष को हाशिए में ढ़केले जाने की झांकियां नहीं बनाई जा सकती? हमें उत्सव झांकियों के माध्यम से सरकार को अपने कष्टों का ब्यौरा देना चाहिए क्योंकि धर्म का चुनावी राजनीति में प्रयोग करके महज 31% मतों से बनी है यह सरकार।

गुजश्ता सरकारों का गठन 45% मतदान से हुआ था। यह कैसी गणतांत्रिक व्यवस्था है कि 75% मतदान पर सरकारी नहीं बनती? मतदान की उपेक्षा सरकारी विफलता का प्रतीक है। हर मनुष्य एक विराट संभावना है परंतु इस संपदा के दोहन में हम असफल रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के विचार छूत की बीमारी बनकर गुजरात पहुंच गए जहां से उत्तर प्रदेश और बिहार में जन्में लोगों को खदेड़ा जा रहा है और प्रतिक्रिया स्वरूप उत्तर प्रदेश और बिहार से गुजरात में जन्में लोग खड़े ले जा सकते हैं? इस तरह नए विभाजन बीज बोए जा रहे हैं और अंत में रह जाएगा हुक्मरान के मनभावन कोई छोटा सा भूखंड। क्या लिलिपुट साहित्य आकल्पन यथार्थ में उबर आएगा?

सरकारी दफ्तरों की रद्दी की टोकरियों से प्राप्त सामग्री से इस कालखंड का इतिहास लिखा जाएगा। क्या वह अर्नाल्ड ट्वानबी रचित ‘ ए स्टडी ऑफ हिस्ट्री’ की तरह होगा या पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक "ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ किस तरह तथस्थ अध्ययन होगा या बादल सरकार के नाटक ‘बाकी इतिहास’ की तरह होगा? यह तय है कि हुक्मरान उसे नेहरू की तरह तटस्थ अध्ययन नहीं रहने देगा? वह तो नई दिल्ली में भवन बनवा रहा है जिसमें प्रधान मंत्रियों के दस्तावेज सुरक्षित रखे जा सकें ताकि उसके लिए बनाए गए भवन में जीएसटी नियमावली सहेजी जा सके?