मानसिक संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती / जयप्रकाश चौकसे

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मानसिक संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती
प्रकाशन तिथि : 30 अक्टूबर 2018


अमिताभ बच्चन द्वारा संचालित कार्यक्रम 'कौन बनेगा करोड़पति' के एक एपिसोड में सर्वाणी दास राय ने मानसिक रोग पर प्रकाश डाला। वे इन रोगियों के इलाज और देखभाल करने वाली एक संस्था चलाती हैं। उनका कहना कि समाज द्वारा उपेक्षा और जीवन में प्रेम के अभाव के कारण कुछ लोग अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं। भारत में कुल जमा 3500 मनोरोग चिकित्सक हैं, जबकि मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारे समाज में ऐसा वातावरण है कि किसी व्यक्ति द्वारा इस रोग के डॉक्टर से परामर्श के लिए जाने पर ही उसे पूरी तरह पागल मान लिया जाता है। इस धारणा के कारण प्राथमिक संकेत मिलने पर भी व्यक्ति विशेषज्ञ के पास नहीं जाता।

ज्ञातव्य है कि गुलज़ार की फिल्म 'खामोशी' में वहीदा रहमान ने नर्स की भूमिका निभाई थी। डॉक्टर के परामर्श पर वह रोगियों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करती है और उसके स्नेह की डोर थामकर कुछ रोगी पूरी तरह ठीक हो जाते हैं परंतु प्रेम का अभिनय करते करते हुए, वह स्वयं मनोरोग का शिकार हो जाती है। इस फिल्म के सारे गीत मधुर थे परंतु एक मनोरोगी पर फिल्माया गीत मन्ना डे ने बखूबी गाया था। गीत कुछ इस तरह था- 'रम से भागे गम जिन से भागे भूत-प्रेत।'

सलमान खान अभिनीत 'तेरे नाम' में भी असफल प्रेमी पागल हो जाता है। भारत में पागल खाने जेलों से बदतर हैं और अंधविश्वास तथा कुरीतियों से शासित समाज पागलखाने और जेल से भी बदतर है। बादल सरकार के नाटक 'बाकी इतिहास' में एक व्यक्ति द्वारा की गई आत्महत्या के कारणों पर पत्रकार पति एक आकलन प्रस्तुत करता है और लेखिका पत्नी दूसरा आकलन परंतु नाटक के तीसरे अंक में आत्महत्या करने वाला व्यक्ति उन दोनों से पूछता है कि वे दोनों आत्महत्या क्यों नहीं करते? क्यों अपना निरुद्देश्य जीवन ढोते हुए जीने का अभिनय कर रहे हैं? इसी तर्ज पर मानसिक संतुलन खो देने वाला व्यक्ति हम सभी से पूछ सकता है कि इस तर्कहीनता और झूठे प्रचार के दौर में हम सामान्य कैसे बने रह सकते हैं? आज के हालात में स्वयं को इन्सुलेट करना, तटस्थ बनाए रखना या सामान्य रहना कैसे संभव है? आज के दौर में मानसिक संतुलन कायम रखना सबसे बड़ी चुनौती है।

निर्माता रमेश बहल के लिए निर्देशक रमेश तलवार ने रेखा, राखी और शशि कपूर अभिनीत फिल्म 'बसेरा' बनाई थी। कथासार कुछ इस तरह था कि शशि कपूर और राखी का विवाह होता है, बच्चे का जन्म होता है परंतु कुछ समय पश्चात राखी मानसिक संतुलन खो देती है। उसे इलाज के लिए भेजा जाता है। इस दरमियान शशि कपूर और रेखा में प्यार होता है। वे विवाह कर लेते हैं। राखी पूरी तरह सेहतमंद होकर लौटती है। उसके आने के बाद परिवार के सारे समीकरण गड़बड़ा जाते हैं। धीरे-धीरे राखी यह समझ लेती है कि उसके नहीं होने पर सब व्यवस्थित था। अतः वह पागलपन का ढोंग करके व्यवस्था को सुविधाजनक और यथावत बनाए रखने के लिए पागल खाने चली जाती है। यह एक विलक्षण फिल्म थी।

इसी तरह 'वन फ्ल्यू ओवर द कुकुज नेस्ट' भी मानसिक संतुलन खोए हुए लोगों की कथा कहती है। संजीव कुमार मुमताज अभिनीत फिल्म 'खिलौना' में मानसिक रोगी व्यक्ति की शादी करा दी जाती है। यह दुल्हन धन देकर खरीदी हुई वेश्या है। उन दोनों के बीच प्रेम होता है और प्रेम उपचार सिद्ध होता है मनोरोगी पूरी तरह ठीक हो जाता है परंतु परिवार एक वेश्या को बहू कैसे स्वीकार करें। 'खिलौना' गुलशन नंदा के उपन्यास 'पत्थर के ओंठ' से प्रेरित बताई गई है परंतु इसके बहुत पहले बंगाली भाषा में सिद्धेश्वरी के नाम से प्रकाशित हुई थी। हमारा समाज इतना रोगी है कि कुछ लोग बेघरबार मानसिक रोग से ग्रस्त स्त्री के साथ हमबिस्तर हो जाते हैं और वह गर्भवती हो जाती है। कोई उसका उत्तरदायित्व नहीं लेता। सर्वाणी दास गुप्ता ने उस कार्यक्रम में इस तरह की कुछ घटनाओं का विवरण दिया है। हम शर्मसार होते हैं कि हमने कैसा समाज रच दिया है।

इतिहास गवाह है कि कुछ तानाशाह भी मानसिक रोगी हुए हैं और कुछ नपुंसक भी हुए हैं। सामान्य जीवन में हम देखते हैं कि कुछ लोग कंट्रोल फ्रीक होते हैं अर्थात वे चाहते हैं कि सभी लोग उनकी इच्छानुरूप व्यवहार करें। मौजूदा वक्त में भी डर की एक विराट चादर से पूरे समाज को ढंक दिया है। 'इक रिदाए तिरगी है और इक है ख्वाबे कायनात, डूबते जाते हैं तारे और भीगती जाती है रात’। इस घनघोर नैराश्य में हमें उम्मीद नहीं खोना है। 'वह सुबह तो आएगी, वह सुबह हमी से आएगी।'