माफ़ीनामा / जगदीश कश्यप
खाट के नीचे उसे कुछ खुसर-पुसर की आवाज सुनाई दी तो वह उठ बैठा. उसने बत्ती जलाकर इधर-उधर देखा—कोई नहीं था. उसने टेबल-लैंप बुझा दिया और कुछ सोचता हुआ लेट गया.
उसे फिर सुनाई दिया—‘माफीनामा-माफीनामा! बस यही शब्द उसके पल्ले पड़ रहा था. वह उठ बैठा और टेबल लैंप जलाकर हाल में लिखे ताजा पत्र को पढ़ने लगा जो उसने अखबार के मालिक को लिखा था. उसमें उसने कहा था कि वह सरकार के खिलाफ नहीं लिखेगा. छह महीने की बेकारी ने न केवल उस पर कर्जा चढ़ा दिया था. बल्कि गंभीर रूप से बीमार पत्नी और बच्चों का भविष्य भी संकट में पड़ गया था. वे सब उसी के कारण मुसीबत झेल रहे थे. ऐसी लानत-भरी जिंदगी से तो अच्छा है, सेठ से माफी मांग ली जाए. कुछ नहीं रखा इन सिद्धांत-विद्धांतों में.
उसने बत्ती बुझाई और नए निश्चय के साथ चारपाई पर लेट गया. उसी समय उसके कान में माफीनामा-माफीनामा शब्द सुनाई पड़े. वह आतंकित हो उठा.
वह झट से उठा और टेबल लैंप जलाकर ताजे लिखे पत्र को पैड में से फाड़कर चिंदी-चिंदी खाट के नीचे बिखेर दिया. अब उसे माफीनामा जैसा कोई शब्द सुनाई नहीं दिया.