माफ़ी / अमित कुमार पाण्डेय

Gadya Kosh से
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विनय कचहरी से शाम को वापस आया और अपने पुस्तैनी मकान में चला गया जो बनारस शहर से 10 किलोमीटर दूरी पर था। जब यह मकान बना तब वहाँ कोई बस्ती नहीं थी पर आजकल तो वहाँ अच्छी खासी कॉलोनी बस गई थी। पर समय के साथ अब भी वहाँ शहर की सुविधा आसानी से उपलब्ध नहीं थी। मकान छोटा था पर विनय के रहने के लिए पर्याप्त था। एक कमरा और आंगन नीचे तथा एक कमरा किचन के साथ ऊपर था। ऊपर वाले कमरे के साथ एक बड़ी-सी बालकनी लगी हुई थी। बालकनी पर से सामने वाली सड़क दूर तक दिखाई देती थी इसलिए जब भी विनय शाम को कचहरी से लौटता था तो शाम की चाय लेकर उसी बालकनी पर बैठ जाता था और दूर से आती उस सड़क को निहारता रहता था। यह बात उसकी आदत में शुमार हो गई थी। विनय की उम्र लगभग 40 साल थी। पर उसने अब तक शादी नहीं की थी या अभी तक उसे शादी की कमी महसूस नहीं हुई थी। विनय का पूरा परिवार एक बस दुर्घटना में मारा गया था। जिसमें उसके माता पिता और एक बहन थी। तब विनय ग्रेजुएशन में था। उस दुर्घटना के बाद विनय काफी अकेला हो गया था और ज़रूरत से ज़्यादा शांत भी। ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद उसने वकालत की पढ़ाई पूरी की और बनारस में वकालत करने लगा। हलाकि उसकी वकालत की आमदनी कुछ ज़्यादा नहीं थी पर विनय के लिए पर्याप्त थी। विरासत में विनय को वही एक घर और अपनी माँ के कुछ गहने मिले थे।

रोज की तरह विनय आज भी चाय लेकर अपनी बालकनी में बैठा हुआ था और सड़क को निहार आ रहा था। तभी मोबाइल की घंटी बजी. विनय ने अपना मोबाइल उठाया और बोला, -"हां सुरेश कैसे याद किया भाई"।

सुरेश ने कहा, -"यार विनय, आज मेरे बेटे का जन्मदिन है। मैंने अपने घर पर एक छोटी-सी पार्टी रखी है। तुम आज आमंत्रित हो। रात का खाना घर से खाकर जाना"।

हालांकि विनय का बहुत मन तो नहीं था पर फिर भी उसने अनमने मन से हां बोल दिया। उसके बाद विनय फिर बालकनी में बैठ गया और सामने वाली सड़क को देखने लगा। तनहाई उसके घर में ज़्यादा थी या उसके दिल में ये कहना मुश्किल था। कुछ देरी बालकनी में बैठने के बाद विनय घर के अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद तैयार होकर अपनी बाइक पर सुरेश घर की ओर चल दिया। सुरेश के घर उसी के साथ वकालत करने वाले लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था। रात के करीब 10: 00 बजे वह सुरेश के घर से लौटा। उसकी बाइक सड़क पर तेजी से दौड़ी जा रही थी। ठंड की वजह से सड़क पर आदमियों की संख्या काफी कम हो गई थी। अचानक विनय क्या देखता है कि उसके बाइक के सामने एक लड़की आ गई. ब्रेक लगाते-लगाते लड़की को ठोकर लग गई और लड़की सड़क पर गिर पड़ी। विनय ने तुरंत बाइक रोकी और लड़की के पास गया। लड़की के पैर में मामूली चोट आई थी।

उसने लड़की को पकड़ कर उठाया और बोला, -"मैडम आपका ध्यान कहाँ था। मैं लगातार हॉर्न दिया जा रहा हूँ और आप उसे सुन ही नहीं रही हैं"।

लड़की ने कहा, -"मुझे माफ कर दीजीए. मेरा ध्यान कहीं और था"।

विनय ने कहा, -"चलिए आप को डॉक्टर के पास ले चलते हैं"।

उस लड़की ने कहा, -"नहीं शायद इसकी ज़रूरत नहीं"।

विनय ने कहा, -"ज़रूरत है। यह ठंड की चोट है। अभी मालूम नहीं पड़ रही है। रात में आपको दिक्कत हो सकती है। बिना वजह आपके घर वाले परेशान होंगे"।

उस लड़की ने तपाक से उत्तर दिया मेरे घर वाले नहीं है।

विनय ने कहा, -"तब तो आपको ज़रूर मेरे साथ चलना चाहिए डॉक्टर के पास"।

इसके बाद विनय के आग्रह पर लड़की विनय के साथ डॉक्टर के पास चलने के लिए राजी हो गई. डॉक्टर ने उसकी मामूली मरहम-पट्टी करके उसे छोड़ दिया।

डॉक्टर के क्लीनिक से निकलकर विनय ने लड़की से पूछा, -"आप को कहाँ छोड़ दूं"।

लड़की ने कहा, -"मैं हॉस्टल में रहती हूँ। पर वह यहाँ से बहुत दूर है। मैं पास के ही पब्लिक स्कूल में पढ़ाती हूँ। आज बच्चों का वार्षिक उत्सव था। इसलिए मुझे लौटने में काफी देर हो गई. अब पता नहीं हॉस्टल तक मुझे कोई सवारी मिलेगी की नहीं"।

विनय ने कहा, -"एक बात कहूँ आप बुरा तो नहीं मानेंगी"।

लड़की ने कहा, -"नहीं। बोलिए"।

विनय ने कहा, -"मेरा घर पास में ही है और मेरे घर में मेरे अलावा कोई नहीं रहता है। आप चाहें तो आज की रात आप मेरे घर पर गुजार सकती है। वैसे भी डॉक्टर ने आपको आज की रात एहतियात बरतने को कहा है"।

लड़की सोचने लगी। विनय ने कहा, -"देखिए रात काफी हो चुकी है। ठंड बढ़ती जा रही है और रास्ता सुनसान होता जा रहा है। और आप कह चुकी हैं कि आपका हॉस्टल यहाँ से काफी दूर है। अब आप चुपचाप बेहिचक मेरे घर चलिए. मैं पेशे से एक वकील हूँ। आप मेरा विश्वास करिए आपको तनिक भी डरने की ज़रूरत नहीं है"।

लड़की ने एक बार सड़क पर निगाह दौड़ाई जो लगभग सुनसान हो चुकी थी और इसके बाद हामी भर दिया।

विनय ने लड़की से कहा कि आप बाइक के पीछे बैठ जाइए. इसके बाद विनय ने बाइक स्टार्ट की और अपने घर की ओर दौड़ा दिया।

रास्ते में विनय ने लड़की से पूछा, -"अगर आपको कोई कष्ट ना हो तो क्या आप अपना नाम बताना पसंद करेंगी"। लड़की ने कहा, - "रागिनी" ।

और मेरा नाम विनय है। इसके बाद पूरे रास्ते दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.

घर पहुंचकर विनय ने रागिनी से कहा, -"रागिनी आप नीचे के कमरे में आराम से लेट जाओ. मेरे सोने का कमरा ऊपर है। अगर आपको रात में किसी भी चीज की ज़रूरत-ज़रूरत हो तो बेहिचक मुझे पुकार लीजिएगा"।

इसके बाद शुभरात्रि कहकर विनय ऊपर चला गया। विनय कमरे में आकर अपना नाइट सूट पहना और कुर्सी लेकर बालकनी में बैठ गया और उसी सुनसान रास्ते को निहारने लगा। थोड़ी देर बाद रागिनी ने पीछे से आवाज दी सुनिए.

विनय झटके से पीछे मुड़ा और बोला, -"क्या बात है? कुछ चाहिए"।

रागिनी ने कहा, -"मुझे अकेले कमरे में डर लग रहा है। अगर आपको कोई एतराज ना हो तो मैं आपके कमरे में जमीन पर सो जाऊंगी। बात दरअसल यह है कि हॉस्टल में भी मैं कभी अकेले नहीं सोती हूँ"।

विनय ने असहाय दृष्टि से एक बार रागिनी को देखा और बोला, -"ठीक है। आप को जमीन पर सोने की ज़रूरत नहीं है। मैं फोल्डिंग चारपाई डाल देता हूँ"।

रागिनी चारपाई पर सो गई. एक बार फिर विनय चाय लेकर बालकनी में बैठ गया और सुनसान रास्ते को देखने लगा। काफी देरी बाद विनय बालकनी से उठकर कमरे में आया इस उम्मीद से कि अब तक रागिनी सो चुकी होगी। पर क्या देखता है कि रागिनी जाग रही है और अपलक छत को देख रही है।

विनय ने कहा, -"क्या तुम्हें नींद नहीं आ रही? कहीं मुझसे डर तो नहीं लग रहा"।

रागिनी ने कहा, -"नहीं आपने मेरी इतनी सहायता की है तो आपसे डर कैसा और इतने दिनों में मैं आदमी पहचानना सीख गई हूँ"।

रागिनी ने विनय से पूछा, -"क्या बात है आप घर में अकेले क्यों रहते हैं? कहाँ है आपका परिवार"।

विनय ने कहा, -"हां। मैं घर में अकेले ही रहता हूँ। एक एक्सीडेंट में मेरे सारे परिवार की मृत्यु हो गई थी। तब से मुझे अकेले रहने की आदत हो गई है"।

रागिनी ने पूछा, -"लेकिन आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की"।

विनय ने कहा, -"मेरा सबकुछ एकाएक समाप्त हो गया था। शायद इसलिए अब मुझे में कुछ भी खोने की हिम्मत नहीं है"।

विनय ने कहा और तुम अपने बारे में कुछ बताओ.

रागिनी ने कहा, -"आपको अपनों का साथ कुछ समय तक मिला भी है। मुझे तो अभी तक कोई अपना मिला ही नहीं। मैं बचपन से अनाथ हूँ। कक्षा एक से लेकर ग्रेजुएशन तक में अनाथालय में रही हूँ। कुछ दिन पहले जब मुझे पब्लिक स्कूल में टीचर की नौकरी मिली तो मैंने अनाथालय छोड़कर गर्ल्स हॉस्टल में रहने आ गई और अभी मेरा स्थाई पता गर्ल्स हॉस्टल ही है। मैंने तो कभी महसूस ही नहीं किया अपनों का प्यार। आपके पास सब कुछ था जो आपसे छिन गया और मेरे पास कभी खोने के लिए कुछ था ही नहीं। बस आप में और मुझ में इतना ही अंतर है। आपने आज इतनी हमदर्दी दिखाई तो मैंने अपना दुख आपसे कह दिया। अन्यथा मैंने कभी किसी से अपने मन की बात नहीं की है"।

विनय ने कहा, -"चलो अच्छा ही है अनजाने में ही सही तुम्हारा मन थोड़ा हल्का हुआ। चलो अब सो जाते हैं। रात काफी हो गई है"।

इसके बाद विनय ने कमरे की लाइट बंद कर दी और पलंग पर आकर लेट गया। पर आज उसे नींद नहीं आ रही थी। रागिनी की बातों ने शायद उसके प्रति हमदर्दी पैदा कर दी थी। कुछ समय के लिए ही सही विनय अपनी परेशानी भूलकर रागिनी के बारे में सोच रहा था। सुबह के अलार्म के साथ विनय और रागिनी दोनों की ही नींद टूटी. विनय ने रागिनी के लिए चाय बनाई. चाय पीने के बाद विनय रागिनी को ऑटो तक छोड़ने गया। ऑटो में चढ़ने से पहले विनय ने रागिनी से कहा, -"रागिनी, अगर तुम्हें कोई एतराज ना हो तो क्या तुम अपना मोबाइल नंबर दे सकती हो"। रागिनी मुस्कुराई और बोली, -"क्यों नहीं?"

इसके बाद ऑटो चल पड़ा। विनय और रागिनी एक दूसरे को अपलक देखते रहे। विनय घर लौट आया और कचहरी जाने के लिए तैयार होने लगा। कचहरी से लौटने के बाद वह चाय लेकर बालकनी में बैठ गया। पर आज उसका ध्यान सड़क पर ना होकर रागिनी की तरफ था। आज पूरे दिन कचहरी में भी उसका ध्यान रागिनी की ही तरफ था। पता नहीं क्यों उसे रागिनी के प्रति एक आकर्षण-सा महसूस हो रहा था। एक नजर उसने अपने मोबाइल में रागिनी के नंबर पर नजर डाली और रागिनी का नंबर डायल कर दिया। पर उसने उसे तुरंत ही काट दिया। इसके बाद वह शाम को बाहर घूमने के लिए निकल पड़ा। बाहर खाना खाने के बाद विनय घर लौटा पर न जाने क्यों रागिनी का ख्याल उसके जहन से उतर नहीं रहा था और अंततः उसने रागिनी का नंबर डायल कर दिया।

रागिनी ने फोन उठाया। विनय बोला, -"रागिनी अब तुम्हारा पैर कैसा है"।

रागिनी ने कहा, -"बेहतर है"।

रागिनी ने कहा, -"आप कैसे हैं। आज का आपका दिन कैसा बीता"।

विनय ने कहा, -"ठीक हूँ"। आपने खाना खा लिया।

विनय ने कहा, -"हां। खाना बाहर से खा कर के आया था और तुमने खाना खा लिया"।

रागिनी ने कहा, -"मैं खाना थोड़ा लेट खाती हूँ"। । इसके बाद फोन पर एक शांति छा गई.

कुछ देरी बाद रागिनी ने कहा, -"अच्छा फोन रखती हूँ। गुड नाइट"।

बातचीत के बाद विनय की बेचैनी और बढ़ गई. वह कभी बालकनी में टहलता। कभी कमरे में टहलता। पर उसे बेचैनी-सी महसूस हो रही थी। नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। आँख बंद करते ही उसे रागिनी का चेहरा ध्यान में आ जाता था। इसी कशमकश में उसे कब नींद आ गई इसका पता ही नहीं चला। अचानक विनय की नींद मोबाइल की रिंग से टूटी. देखा तो 2: 00 बज रहे थे। मोबाइल पर नजर डाली तो देखा कि रागिनी का नंबर फ्लैश हो रहा था। विनय ने आँख मलते हुए रागिनी का फोन उठाया और बोला, -"रागिनी, तुम इस वक्त फोन कर रही हो। तबीयत ठीक तो है"।

रागिनी बोली, -"विनय, तबीयत तो बिल्कुल ठीक है। मुझे नींद नहीं आ रही है"।

विनय ने पूछा, -"क्यों?"

रागिनी ने कहा, -"पता नहीं"।

विनय ने मजाक में कहा, -"कहीं मेरी याद तो नहीं आ रही"।

रागिनी ने कहा, -"यही बात है"।

विनय ने कहा, -"और मेरी याद क्यों आ रही है"।

रागिनी ने फिर जवाब दिया, -"पता नहीं"।

विनय ने कहा, -"कहीं ऐसा तो नहीं कि कल की घटना के बाद से तुम मुझे पसंद करने लगी हो"।

"हां। तुम्हें पसंद करने लगी हूँ। पर अब यह मत पूछना क्यों। सारी बात पूछी नहीं जाती। कुछ बातें समझी भी जाती है"।

विनय ने कहा, -"रागिनी ऐसा करते हैं कि कल तुम स्कूल बंद होने के बाद मेरे घर चली आना। बाकी बातें हम कल ही करेंगे और हां तुम्हें कोई एतराज ना हो तो"।

रागिनी ने कहा, -"मेरा बस चलता तो मैं अभी चली आती"।

विनय ने हंसते हुए कहा, -"अभी आने की ज़रूरत नहीं है। तुम चुपचाप सो जाओ. शुभ रात्रि"।

दूसरे दिन शाम को रागिनी विनय के घर आई. रागिनी और विनय बालकनी में बैठे एक दूसरे को देखते रहे।

विनय बोला, -"अब बताओ मुझे क्यों पसंद करने लगी हो"।

रागिनी ने पूछा, -"विनय, क्या आप भी हमें पसंद करने लगे हैं?"

विनय ने कहा, -"तुम्हें पता है तुम्हारे-तुम्हारे इंतजार में मैं 1 घंटे से सड़क निहार रहा हूँ"।

रागिनी ने विनय का हाथ पकड़ा और बोली, -"विनय, पिछली रात जो तुमने मेरे साथ हमदर्दी दिखाई. वह मुझे आज तक किसी से नहीं मिली। तुममे कुछ तो बात है जो मैं तुमसे अपने दिल की बात कह रही हूँ। विनय मेरी ज़िन्दगी में ठहराव ला दो। मैं लक्ष्यहीन होकर आगे नहीं बढ़ना चाहती। मैं तुम्हारी हमसफर बनना चाहती हूँ"।

विनय ने कहा, -रागिनी, तुम नहीं जानती हो। तुम मुझे कितनी बड़ी खुशी देने जा रही हो। मैं तुमको अपना जीवन साथी बनाने के लिए तैयार हूँ। हम कल ही कोर्ट में शादी कर लेंगे"। विनय ने रागिनी का हाथ अपने हाथ में ले लिया और रागिनी की आंखों से आंसू बहने लगे।

विनय ने कहा, -"लेकिन मेरे में एक कमी है"।

रागिनी ने कहा। -"मैं कुछ नहीं सुनना चाहती"। "अरे सुनो तो सही। मेरे और तुम्हारे उम्र में काफी फासला है। कहाँ मैं 40 साल का और कहाँ तुम 22 साल की"।

रागिनी ने कहा, -"प्यार का उम्र के फासले से क्या मतलब। इतनी हमदर्दी तो आज तक मेरे उम्र वाले ने कभी दिखाई नहीं"। रागिनी ने विनय से कहा, -"विनय, मैं ग्रेजुएशन के बाद भी पढ़ना चाहती हूँ"।

विनय ने कहा, -"जैसी तुम्हारी मर्जी"। दूसरे दिन विनय और रागिनी ने शादी कर ली और उनका वैवाहिक जीवन चल पड़ा। धीरे-धीरे 3 साल बीत गए. इधर रागिनी ने अपनी पोस्टग्रेजुएशन की पढ़ाई कंप्लीट कर ली और एक लड़के की माँ बन गई. बच्चे का नाम उन्होंने प्यार से रखा 'जीतू' । जीतू के आने से घर में बहार आ गई. विनय का पारिवारिक जीवन समय के साथ और अच्छा होता चला गया। विनय अपने सारे गम भूल गया। एक दिन विनय शाम को कचहरी से घर वापस लौटा तो पाया कि जीतू बालकनी में खेल रहा है और रागिनी कुर्सी पर बैठी किसी सोच में डूबी है।

विनय धीरे से रागिनी के सर पर हाथ रखा और बोला, -"क्या समस्या है?"

रागिनी ने कहा, -"कोई बात नहीं। आप हाथ मुह धोकर कपड़े बदल लीजिए. तब तक मैं आपके लिए चाय लेकर आती हूँ"। थोड़ी देर बाद रागिनी विनय के लिए बालकनी में चाय लेकर आई.

विनय ने चाय का प्याला पकड़ा और बोला, -"चलो अब तो बताओ क्यों चिंतित दिखाई दे रही हो"।

रागिनी ने कहा, -"विनय, मुझे एक कॉलेज से पीएचडी का ऑफर मिला है। 2 साल मुझे भारत में और अंतिम 1 साल जर्मनी में रहना होगा"।

विनय ने कहा, -"यह तो बहुत खुशी की बात है। इसमें क्या दिक्कत है"।

रागिनी ने कहा, -"विनय, इसमें काफी पैसा लगेगा। जर्मनी में रहने का खर्चा मुझे खुद उठाना होगा"।

विनय ने कहा, -"रागिनी यदि तुम्हारी इच्छा पीएचडी करने की है तो तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। अंतिम साल का इंतजाम हो जाएगा। यदि नहीं संभव हो सका तो मैं माँ के गहने बेच दूंगा। आखिर वह सब भी तो तुम्हारा ही हैं और इससे अच्छा क्या होगा कि माँ के गहने तुम्हारे किसी काम आ जाए"। रागिनी ने मन ही मन सोचा मेरे और विनय में उम्र का फासला होने के बावजूद विनय मुझे कितना समझते हैं। जब से शादी हुई है तब से लेकर आज तक विनय ने मुझे चीज के लिए मना नहीं किया है। वह मन ही मन बहुत खुश थी कि उसे विनय की तरफ से पीएचडी करने की इजाजत मिल गई. रागिनी ने पीएचडी में दाखिला लिया और पढ़ाई शुरु कर दी। धीरे-धीरे 2 साल बीत गए और इस बीच रागिनी ने मन लगाकर पीएचडी की पढ़ाई की। उसने पढ़ाई और परिवार दोनों की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।

तीसरे साल की शुरूआत में रागिनी ने विनय से कहा, -"विनय, तीसरी साल की पढ़ाई के लिए मुझे जर्मनी जाना होगा। पता नहीं मैं तुम्हारे और जीतू के बिना जर्मनी में कैसे रह पाऊंगी"।

विनय ने कहा, -"तुम क्यों चिंता करती हो। 1 साल तो बस देखते ही गुजर जाएंगे। हां पर हमें जीतू को बहुत समझाना होगा। वह तुम्हारे बिना दिक्कत से रहेगा। पर धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा"।

रागिनी ने विनय से कहा-"विनय, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा कि तुमने जर्मनी का खर्चा उठाने के लिए अपनी माँ के गहने बेच दिए हैं और अपनी सारी सेविंग खर्च कर दी"।

विनय ने कहा, -"रागिनी तुम्हें मन भारी करने की ज़रूरत नहीं है। यह सब तुम्हारा और जीतू का ही तो है। फिर तुम पीएचडी करके आ जाओगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा"।

एक हफ्ते बाद रागिनी जर्मनी को जाने वाली थी। उसने अपनी पूरी पैकिंग कर ली थी। पर वह जीतू को लेकर मायूस होती जा रही थी। उसका मन बार-बार भटक रहा था। जैसे-जैसे जर्मनी जाने का दिन पास आता जा रहा था जीतू उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ता था। वह बार-बार सोच रही थी कि वह जीतू को कैसे समझा पाएगी। जीतू इतना छोटा था कि उसे समझाना और मुश्किल हो गया था। अंततः वह दिन आ गया जब उसे जाना था। सामान देखकर जीतू बार-बार उसे पूछ रहा था कि मम्मी हम कहाँ घूमने जा रहे हैं। यह सुनकर रागिनी की आंखों में आंसू आ गए. तभी विनय ने जीतू को गोद में उठा लिया और कहां, -"बेटा, मम्मी अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए बाहर जा रही हैं। कुछ दिन आपको मेरे साथ अकेले रहना होगा। आपको मम्मी नहीं मिलेगी"।

जीतू ने पूछा, -"पापा, मम्मी कितने दिन बाद आएगी। क्या मम्मी कल आ जाएगी"।

विनय ने कहा, -" नहीं बेटा। मम्मी एक साल बाद वापस आएगी।

जीतू ने कहा, -"पापा 1 साल कितना होता है। 1 साल मतलब बहुत दिन। इतने दिन मैं मम्मी के बिना नहीं रह पाऊंगा"।

जीतू पापा की गोद से उतर कर मम्मी की साड़ी पकड़ ली और कहने लगा, -"मम्मी मुझे छोड़कर मत जाओ. मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा"।

रागिनी ने उसे प्यार से गोदी में उठाया और बोली, -"बेटा, पापा आपके साथ रहेंगे"।

जीतू ने कहा, -"नहीं मम्मी मैं रात में आपके बिना नहीं सो पाऊंगा। प्लीज मम्मी मुझे छोड़कर मत जाइए"। विनय और रागिनी दोनों ने मिलकर जीतू को बहुत समझाया पर जीतू मानने को तैयार नहीं था। रागिनी जीतू को गोद में उठाए टहल रही थी। धीरे-धीरे जीतू रागिनी की गोद में सो गया। सुबह से ही विनय का भी दिल उदास था पर वह अंदर से मजबूत बना हुआ था। थोड़ी देर बाद जब जीतू सो गया तो रागिनी एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गई. विनय बालकनी पर खड़े होकर रागिनी को जाते हुए देख रहा था। विनय को लगा कि जैसे उसके तन्हाई वाले दिन फिर वापस आ गए हैं। पर इस बार उसके साथ उसका बेटा जीतू था। वह रोज सुबह जीतू को तैयार करके स्कूल भेजता और जीतू के स्कूल आने से पहले घर आ जाता था। धीरे-धीरे जीतू को भी अपनी मम्मी की याद कम आने लगी थी। बीच-बीच में रागिनी जीतू को फोन पर बात कर लेती थी और उसे जल्द ही आने का दिलासा देती थी। पर हर दिन विनय जीतू को रात में सुलाने के बाद बैठकर सड़क को देखता जिस रास्ते रागिनी गई थी। 1 साल बीत गए इस बीच विनय ने जीतू को माँ और बाप दोनों का प्यार दिया। रागिनी की पीएचडी लगभग समाप्त हो चली थी। फिर एक रात रागिनी ने विनय को फोन किया और कहा कि वह अगले महीने वापस आ जाएगी। विनय और जीतू को तो जैसे खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। अब तो जीतू को समझाना और कठिन हो गया था। वह हर दिन विनय से पूछा करता की मम्मी कब आएगी। एक महीना विनय और जीतू दोनों से सब्र नहीं हो रहा था। अंततः जिस दिन रागिनी आने वाली थी विनय और जीतू एयरपोर्ट पर पहुंचकर रागिनी का इंतजार कर रहे थे। फ्लाइट लैंड हुई. सब लोग एक-एक करके एयरपोर्ट से बाहर जा रहे थे। विनय और जीतू को रागिनी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। विनय और जीतू ने बहुत देरी रागिनी का एयरपोर्ट पर इंतजार किया पर रागिनी नहीं आई. इस बीच विनय रागिनी का मोबाइल ट्राई कर रहा था पर उसका मोबाइल स्विच ऑफ जा रहा था। अब विनय को रागिनी की चिंता सताने लगी थी। थक हार कर विनय और जीतू घर वापस आ गए. विनय सारी रात रागिनी को मोबाइल पर ट्राई करता रहा पर-पर रागिनी का फोन लगातार स्विच ऑफ जा रहा था। दूसरे दिन सुबह विनय की नींद रागिनी के मोबाइल से टूटी. रागिनी का कॉल देखते ही विनय की जान में जान आई.

रागिनी ने कहा, -"विनय, मुझे माफ कर दो। मुझे आने में अभी एक महीना और लग सकता है। मैं तुम्हें अगली तारीख बता दूंगी। मुझे पता है तुम और जीतू बहुत परेशान हो रहे होंगे। पर क्या करूं मैं बुरी तरह फंस गई थी। मेरा मोबाइल भी डिस्चार्ज हो गया था"।

विनय ने कहा, -"कोई बात नहीं रागिनी। पर तुम्हें मुझे बता देना चाहिए था। तुम्हें पता है जीतू अब मुझे कितना परेशान करने लगा है। वह अब और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता"।

रागिनी ने कहा, -"प्लीज जीतू को कुछ दिन और समझाओ. अच्छा अब मैं फोन रखती हूँ"।

विनय ने जीतू को समझाया कि बेटा मम्मी को कुछ आवश्यक कार्य पड़ गया है। जिसकी वजह से मम्मी अगले महीने आएगी। पर जीतू कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं था। विनय जीतू की स्थिति अच्छे ढंग से समझ रहा था। पर जैसे-जैसे दिन बीत रहा था विनय ने महसूस किया की रागिनी के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया था। वह विनय की बात का ठीक ढंग से जवाब नहीं देती थी। जब भी विनय उससे आने की तारीख पूछता तो रागिनी बात को टाल जाती। विनय को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। एक महीना बीतने के बाद भी रागिनी ने कहा कि मैं अभी नहीं आ सकती। पीएचडी का काम समाप्त नहीं हुआ है।

विनय ने कुछ झुंझलाकर कहा, -"अभी तुम्हें और कितना दिन लग जाएगा। मेरा तो ठीक है पर अपने बेटे के बारे में तो सोचो"।

रागिनी ने कहा, -"विनय, मैं तुम्हारी और जीतू की परेशानी समझती हूँ। पर क्या करूं पीएचडी के इस अंतिम पड़ाव पर मैं अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ सकती"। इसके बाद अगले दो महीने तक रागिनी ने विनय की कोई कॉल रिसीव नहीं की। विनय की हालत खराब होती जा रही थी। जीतू का स्वभाव भी काफी चिड़चिड़ा हो गया था। वह काफी गुमसुम रहने लगा था। वह बराबर विनय से कहता कि मेरी मम्मी से बात कराओ. विनय के काफी प्रयास के बाद भी उसकी रागिनी से बात नहीं हो पा रही थी। तभी अचानक एक दिन रागिनी का फोन आया। विनय ने बिना कुछ सुने रागिनी को काफी खरी खोटी सुनाई.

अंत में रागिनी ने कहा, -"विनय मैं तुम्हें आखिरी बार फोन कर रही हूँ। अब मैं भारत कभी वापस नहीं आऊंगी। मैंने अपने कॉलेज के एक प्रोफेसर से शादी कर ली है और मेरी नौकरी भी इसी कॉलेज में लग गई है। मुझे ज़िन्दगी में आगे बढ़ना है। तुम जीतू को समझा देना कि अब उसकी मम्मी कभी नहीं आने वाली। तुम और जीतू अब मेरे बिना रहने की आदत डाल लो। तुमने मेरी जितनी सहायता की मैं उसकी अहसानमंद हूँ। जीतू को मैं छोड़ना नहीं चाहती थी पर मैं अपने कैरियर के साथ समझौता नहीं कर सकती। अपना ख्याल रखना और जीतू को मेरा प्यार देना"।

इसके बाद रागिनी ने फोन काट दिया। विनय को तो जैसे काटो तो खून नहीं। वह सारी रात बालकनी पर टहलता रहा और सोचता रहा मेरा तो ठीक है पर मैं जीतू को क्या समझाऊंगा।

दूसरे दिन विनय ने जीतू को अपने पास बुलाया और कहा, -"बेटा, अब मम्मी कभी वापस नहीं आएंगी"।

जीतू ने मायूस होकर कहा, -"पापा, मम्मी को हमारी याद नहीं आती"।

विनय ने कहा, -" नहीं बेटा। मम्मी कहती है कि अब मैं जीतू से कभी नहीं मिलूंगी।

"पर पापा, मम्मी ऐसा क्यों कहती है। मम्मी से कह दो वह आ जाए. अब मैं कभी मम्मी को परेशान नहीं करूंगा। विनय ने कहा, -" मैंने मम्मी को बहुत समझाया पर वह नहीं मान रही है। वह कहती है जब जीतू बड़ा हो जाएगा तब मैं वापस आऊंगी"।

जीतू ने कहा, -"ठीक है पापा मैं जल्दी से बड़ा हो जाऊंगा। पर पापा आप तो मुझे मम्मी की तरह छोड़कर नहीं जाओगे ना"।

विनय ने कहा, -"नहीं बेटा। मैं आपको कभी छोड़कर नहीं जाऊंगा"।

इसके बाद जीतू विनय से लिपट गया और जोर-जोर से रोने लगा। धीरे-धीरे समय बीतता गया। बीच-बीच में जीतू अपने पापा से पूछा करता कि पापा मैं बड़ा हो गया हूँ कि नहीं। क्योंकि आपने कहा था कि मम्मी आएगी। पर धीरे-धीरे समय के साथ जीतू को इस बात का अंदाजा हो गया कि अब उसकी मम्मी कभी वापस नहीं आएगी। धीरे-धीरे 25 साल बीत गए. जीतू पढ़ लिखकर इंजीनियर बन गया। विनय की तबीयत भी अब काफी खराब रहने लगी थी। अब विनय चुपचाप अपने घर में अकेला पड़ा रहता। जीतू की लाख कोशिश के बावजूद वह जीतू के साथ रहने को राजी नहीं हुआ। एक दिन जीतू का फोन विनय के पास आया।

जीतू ने कहा, -"पापा मैं 15 दिन के लिए जर्मनी जा रहा हूँ। अब मैं आपसे लौटकर मिलूंगा"। विनय जर्मनी का नाम सुनकर चौंक गया और बोला, -"क्यों? अब तू भी अपनी माँ की तरह मुझे छोड़कर जर्मनी जा रहा है। कभी न आने के लिया"।

"नहीं पापा। मैं ऑफिस के काम से जर्मनी जा रहा हूँ। मैंने आपको बालकनी पर बैठकर मम्मी का इंतजार करते हुए देखा है। मुझे इस बात का एहसास है कि आपने मुझे कैसे पाला है। अगर मैं अब भी आपको छोड़ता हूँ तो मेरा भगवान मुझे कभी नहीं माफ करेगा"।

दूसरे दिन जीतू जर्मनी के लिए रवाना हो गया। जर्मनी में 7 दिन में जीतू ने अपना काम खत्म किया और बाकी बचे दिनों में उसने अपनी माँ को ढूंढना शुरु किया। हालांकि उसके मन में अपनी माँ को लेकर कोई भी उत्साह नहीं था। फिर भी वह अपनी माँ से मिलकर एक बार पूछना चाहता था कि उसकी माँ ने उन दोनों के साथ ऐसा क्यों किया। जर्मनी लौटने से 1 दिन पहले उसको अपनी माँ का पता मिला। वह पास की ही यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर पद पर कार्यरत थी। वह यूनिवर्सिटी पहुंचकर अपनी माँ रागिनी के केबिन में उससे मिलने गया। उस वक्त रागिनी लंच के लिए अपने घर गई हुई थी। नौकर ने उसे केबिन के बाहर इंतजार करने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद रागनी वापस आई तो उसके चपरासी ने कहा, -"मैडम कोई आपका बाहर इंतजार कर रहा है। क्या मैं उसे भीतर भेज दूं?"

रागिनी ने कहा, - "हां" ।

जीतू ने भीतर कदम रखा। रागिनी ने कहा, -"कृपया बैठिए और बताइए आपको मुझसे क्या काम है"।

जीतू ने कहा, -" मैडम मैं भारत से आया हूँ। मेरे पिता का नाम श्री विनय है और माँ का नाम श्रीमती रागिनी। मैं उन दोनों की इकलौती संतान जीतू हूँ। रागिनी भौचक्की हो गई और अपनी सीट से उठ कर जीतू के पास गई और उसका माथा चूम लिया।

रागिनी बोली, -"मेरा बेटा जीतू। मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी तुम से कभी मुलाकात होगी और तुम्हारे पापा कैसे हैं"।

जीतू बोला, -"आपके इंतजार में मैं बहुत जल्दी जवान और पापा बहुत जल्दी बूढ़े हो गए. मैडम मुझे आपसे मिलकर कोई खुशी नहीं हुई. मैं तो आपसे मिलकर सिर्फ़ यह कारण जाना चाहता हूँ कि क्या वाकई आपने अपने कैरियर के लिए हम दोनों को छोड़ दिया था। मैं वापस भारत जा रहा हूँ मेरी कल की फ्लाइट है"।

रागिनी ने प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और बोली, -"मेरा बेटा कितना बड़ा हो गया है"।

जीतू ने कहा, -"नहीं मैं अपने पापा का बेटा हूँ। आपका कर्ज तो मैंने आपके बिना इंतजार में उतार दिया"।

रागिनी ने कहा, -"मुझे पता है बेटा मेरा अपराध क्षमा योग्य नहीं है। मैं अपने कैरियर को लेकर पागल हो गई थी। जिससे मैंने शादी की वह तो मुझे 3 साल में छोड़कर चला गया था। मैं तब से अकेली हूँ। मेरी दुबारा तुम लोगों के पास की हिम्मत नहीं हुई. बेटा अब मैं तुम्हारे साथ इंडिया वापस लौटना चाहती हूँ"।

जीतू ने कहा, -"क्यों? क्या सारा समय फिर से वापस आ जाएगा"।

रागिनी ने कहा, -"नहीं। मैं सिर्फ़ तुम्हारे पापा से मिलकर उनसे माफी मांगना चाहती हूँ। ताकि मैं चैन से मर सकूं। उसके बाद मैं जर्मनी वापस आ जाऊंगी। तुम आ गए हो शायद इसलिए मेरी हिम्मत हो रही है"।

जीतू ने कहा, -"ठीक है"।

जीतू अपनी माँ को लेकर घर पहुंचता है तो देखता है कि घर के आगे काफी भीड़ लगी हुई है। वह घबरा कर कार से उतरता है और भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ता है। तभी उसका पड़ोसी आकर कहता है कि बेटा आज सुबह तुम्हारे पापा-पापा की मृत्यु हो गई. तभी पीछे से रागिनी विनय की लाश के पास पहुंचती है और उसके पैर पर अपना सर रख कर जोर-जोर से चिल्लाती है। विनय मुझे माफ कर दो मैं तुम्हारी गुनहगार हूँ। जीतू चुपचाप खड़ा विनय को देखता रहता है और अपनी माँ की चीख सुनता रहता है।