माफ़ कीजिये / गोपालप्रसाद व्यास

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क्या आप सभ्य जगत के किसी ऐसे एक शब्द को बता सकते हैं, जो नाक काटकर दुशाले से पोंछ लेता हो?

क्या मतलब?

मतलब यह कि ऐसा शब्द जो मारता तो हो, लेकिन रोने नहीं देता!

अजीब प्रश्न है। जरा खोलकर समझाइए।

ऐसा शब्द जो शरीफानी गली के बाद ही इस्तेमाल में लाया जाता है। यानी जो सब कुछ कहकर भी लीपा-पोती कर देता है।

माफ़ कीजिए, हम अभी भी नहीं समझे ।

तो फिर समझ लीजिए, वह शब्द 'माफ़ कीजिए' ही है।

वह कैसे?

इस तरह, हम आपसे कहें-आप निरे बुद्धू हैं। इतनी छोटी-सी बात भी आप नहीं समझ सकते तो आप में और वैशाख के नंदन में फिर क्या फ़र्क है?

और इससे पहले की आपकी आंखें लाल हो जाएं और मुठ्ठियां बंधने लगे और आप अकर्मक विचार से सकर्मक क्रिया पर उतारू हों, हम फौरन पैंतरा बदलकर कहें- 'माफ़ कीजिए', हमारा मकसद आपका अपमान करना या दिल दुखाना नहीं है। हम तो दोस्ताना तरीके से आपसे कह रहे हैं कि आप जैसे बुद्धिमान की समझ में इतनी मोटी बात तो आसानी से आ ही जानी चाहिए थी!

जी!

तो 'माफ़ कीजिए' शब्द वह लाल झंडी है, जो तेजी से एक तरफ दौड़ते हुए विचारों पर फौरन ब्रेक लगा देती है और बड़ी-से-बड़ी दुर्घटनाओं को तत्काल रोक देती है।

जी, यह कि निन्यानबे गाली एक तरफ और हल्का-सा 'माफ़ कीजिए' एक तरफ! 'माफ़ कीजिए' भी एक प्रकार की गाली है। ऐसी गाली, जो लगकर भी नहीं लगती। बल्कि शेष गालियों के बाहरी प्रभाव को रोकने में रामबाण की तरह काम करती है।

जी!

'माफ़ कीजिए' गाली ही नहीं, ढाल भी है। आप सरेआम किसी की पगड़ी उछाल दीजिए और उसके बाद दबी जुबान से 'माफ़ कीजिए' कह दीजिए, साफ बच जाएंगे। राह चलते किसी को धक्का देकर गिरा दीजिए और उठने के पहले ही उसका हाथ पकड़कर 'माफ़ कीजिए' कह दीजिए, आपका बाल भी बांका न होगा। आप कर भी क्या सकते हैं? अगर कोई आपका कलम उठाकर लिखने लगे और आपका पॉइंट बिगाड़ दे, आपका एलबम देखने लगे और अपनी अंगुलियों के निशान भी उन पर छोड़ जाए, आपकी पुस्तक ले जाए और न लौटाए और आपके कुछ कहने से पहले ही 'माफ़ कीजिए' का तीर चला दे तो आपके पास घायल होने के अलावा और चारा भी क्या है।

जी!

जी, आप शरीफ आदमी हैं और माफ़ कीजिए कहने वाले आपकी इस कमज़ोरी को जानते हैं। इसलिए वे आपको धकेलते हुए और 'माफ़ कीजिए' कहते हुए बस में चढ़ जाते है। रेल में आपकी सीट पर 'माफ़ कीजिए' कहते हुए जम जाते हैं।

जी!

इसलिए हम आपको सलाह देते हैं कि आज की दुनिया में सभ्य बनकर रहना है तो आज से ही 'माफ़ कीजिए' शब्द को गांठ में बांध लीजिए और संकट के समय अमोघ मंत्र की तरह इसका जाप कीजिए और देखिए फिर कोई मुसीबत, ताप और संताप आपको कैसे व्याप पाते हें।

जी!

आदमी तो आदमी, 'माफ़ कीजिए' कहने पर तो खुदा भी पसीज जाता है। परंतु कुछ लोग ऐसे होते हैं जो 'माफ़ कीजिए' कहने पर भी नहीं पसीजते। अड़े ही रहते हैं कि हम तो अमुक संस्था के लिए चंदा लेकर ही टलेंगे। जी नहीं, इसमें माफ़ करने की क्या बात है। अगर आप हमारी सभा का उदघाटन न करेंगे तो हॉल के दरवाजे ही बंद रह जाएंगे। यहां माफ़ी मांगने से काम नहीं चलेगा। हमारे विशेषांक के लिए तो आपको लेख लिखना ही पड़ेगा और चुनावों के दिनों में वोट मांगने वाले तो माफ़ करना या 'माफ़ कीजिए' सुनना जानते ही नहीं। वे कहते हैं साहब हम 'माफ़ कीजिए' सुनने नहीं आए। हमें तो आप साफ कह दीजिए कि आपका वोट हम ही को मिल रहा है न?

'माफ़ कीजिए' कहने से माफ़ कीजिए शरीफ आदमी ही माफ़ करते हैं। जो माफ़ करना जानते ही नहीं उनकी नज़र में 'माफ़ कीजिए' का कोई मूल्य नहीं। 'माफ़ कीजिए' शब्द का मतलब वे लगाते हैं कि अगला कमज़ोर है और दब गया है। दबे हुओं को दबाना जिनका पेशा है वे 'माफ़ कीजिए' के उत्तर में यही कहते नज़र आते हैं-माफ़ कीजिए! आपकी इन बातों का हमारे ऊपर कोई असर नहीं। असर 'माफ़ कीजिए' का उन्हीं पर होता है जो ज़रा तकल्लुफ़ाना किस्म के होते हैं। बेतकल्लुफ़ कभी 'माफ़ कीजिए' के पास नहीं फटकते। आपका रूमाल गिर गया है और कोई साहब उसे उठाकर आपके पास दौड़े आए और कहें-"माफ़ कीजिए” ये आपका रूमाल है। गिर गया था। बताइए इसमें माफ़ करने की क्या बात है? आपने दफ्तर में किसी विशेष काम से अपने सहायक को बुलवाया है और आप उसकी इंतज़ार में दम साधकर बैठे हैं, लेकिन जनाब हैं कि दरवाजे पर दस्तक देकर पूछ रहे हैं-'माफ़ कीजिए', क्या मैं अंदर आ सकता हूं। बैठने से पहले पूछते हैं, 'माफ़ कीजिए' मैं बैठ जाऊं। उठने से पहले कहते हैं, 'माफ़ कीजिए' इजाजत हो तो जाऊं।

'माफ़ कीजिए' हुई या मुसीबत हुई? कुछ लोगों को तो 'माफ़ कीजिए' कहने का रोग ही हो जाता है। एक वाक्य में कम-से-कम एक बार 'माफ़ कीजिए' का प्रयोग अवश्य करेंगे। जैसे लोगों को बात-बात में 'मेरा मतलब यह है”, 'जी मैं कह रहा था', 'आप समझे' 'तो बात यह है' आदि तकियाकलाम लगाने का मर्ज़ होता है। उसी प्रकार कुछ लोगों को 'माफ़ कीजिए' कहने की अजीब आदत पड़ जाती है। उदाहरण के लिए, अभी एक सज्जन का भाषण हमने सुना। गरज-गरजकर कह रहे थे 'माफ़ कीजिए, देश सदाचार के बिना तरक्की नहीं कर सकता। 'माफ़ कीजिए' सदाचार से मेरा मतलब यह है कि लोग जीवन में ईमानदारी से काम लें। 'माफ़ कीजिए' आज ईमानदारी दिखाई ही नहीं देती। 'माफ़ कीजिए' आपको मेरी बातें कड़वी लग रही हों, मगर कड़वी बातें ही 'माफ़ कीजिए' मीठी हुआ करती हैं।” भाषण के बीच में ही एक सज्जन उठे और कहने लगे, "माफ़ कीजिए आप भी थोड़ा सदाचार पर अमल करना शुरू कर दीजिए। आप भाषण देते रहिए हमने आपको माफ़ कर दिया है।" तो यह है 'माफ़ कीजिए' की छोटी-सी कहानी, आप समझे। नहीं समझे तो माफ़ कीजिए आपका समय बरबाद करना नहीं चाहता।