मायाजाल / सरस्वती माथुर
एक साल जाने कैसे निकल गया। सखी - साथियों ने चिरौरी की कि भाई आज पार्टी देनी पड़ेगी मैडम, आज आपको जोइन करें एक साल हो गया है तो उनके लिये प्रभा ने चाय समोसा मँगाया।आज कुछ फ़ुरसत भी थी क्योंकि टीचर - पैरेंट मिटिंग दो घंटे में ख़त्म करके सभी अध्यापिकाएं स्टाॅफ -रूम में तनावरहित बैठी बतिया रहीं थीं! प्रभा आज ज़रूर थोड़ी उदास थी।उसने आज जो देखा अनुभव किया उसकी उसने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी। उसे याद है गाँव में तो छात्र - छात्राएँ जब कोई प्रश्न पूछने आते थे तो वह तुरंत समाधान कर देती थीं पर शहर में तो बाक़ायदा सौदेबाज़ी है।शिक्षा का बाज़ारीकरण हो गया है। जब उसका तबादला गाँव से शहर में हुआ था तो नया शहर नये लोग देख कर प्रभा के मन में बस यही ख़्याल आया था कि देहरी लांघी है तो चुनौतियों का सामना तो करना होगा। एक सरकारी स्कूल में जब गाँव में पढ़ाती थी तो वातावरण बहुत अपना सा था परन्तु पलटते युग की मान्यताओं के अनुसार गाँव के सरकारी स्कूलों का जुड़ाव शहरों के स्कूल से होते हुअे तबादलों की चुनौतियाँ सामने आ खड़ी हुई। उन्हें शहर आना ही पड़ा। पहला दिन परिचय करने में बीता।धीरे- धीरे प्रभा शहर की अभ्यस्त होने लगी। अब एक साल बाद वह बहुत कुछ सीख गयी थी। आज टीचर पैरेंट मिटिंग में मिसेज़ धर ने तो हद ही कर दी!उसने अभिभावकों को साफ़ कहते सुना - "देखिये मैडम-सर आपको बच्चों को टयूश्न करवाने घर भेजना होगा वरणा वो अच्छें नंबरों से पास नहीं हो पायेंगें।" विडम्बना यह थी कि अभिभावक भी सहर्ष राज़ी हो रहे थे! प्रभा को एक पल के लिये तो यह अहसास हुआ कि यह स्कूल एक मायाजाल है। भ्रष्टाचार का एेसा तालाब है जिसमें छोटी छोटी मछलियाँ तैर रही हैं और वहाँ की अध्यापिकाएं बड़ी मछलियाँ हैं जो उन छोटी मछलियों को जीते जी निगल जाती हैं!