माया मेमसा'ब और अमेरिकन पूंजी / जयप्रकाश चौकसे

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माया मेमसा'ब और अमेरिकन पूंजी
प्रकाशन तिथि :12 जनवरी 2018


फिल्मकार केतन मेहता एवं उनकी अंतरंग साथी व कलाकार दीपा साही ने 'माया कॉसमोस' नामक स्टूडियो की रचना की थी, जिसमें एनीमेशन और विशेष प्रभाव वाले दृश्य रचे जाते थे। खबर है कि 'के.के.आर' एवं 'एमराल्ड' नामक पूंजी निवेश करने वाली कम्पनी ने मालिकी अधिकार खरीद लिए हैं। इस व्यवसाय के तहत कुछ समय तक केतन मेहता एवं दीपा साही संस्था के संचालक बने रहेंगे परंतु व्यवसाय नीति खरीदने वाली संस्था ही तय करेगी। इसका अर्थ यह है कि अपनी ही रची संस्था में अब वे प्रबंधन की हैसियत से चाकरी करेंगे। इस व्यवस्था में मालिक को चौकीदार बना दिया जाता है। एक फिल्म में पिता-पुत्र लघु उद्योग चलाते हैं। पिता सीमित आय में खुश है। पुत्र को एक अमेरिकन पूंजी देकर उत्पादन बढ़ाने और माल खरीदने का प्रस्ताव देता है। पिता के विरोध के बाद भी पुत्र नहीं मानता। बाद में वे माल नहीं खरीदते तो पुत्र अपनी ही कंपनी में मैनेजर हो जाता है। खरीदने वाली संस्था में अमेरिकन पूंजी लगी है। अमेरिका में व्यवसाय अष्टपद इसी तरह संस्थाएं हड़पता है। उनका धर्म है कि सुबह के नाश्ते में दो कंपनी खाते हैं, दोपहर के भोजन में चार कंपनियां और रात के भोजन में मात्र एक कंपनी खाते हैं। रात्रि भोज को वे हल्का ही रखते हैं। कभी-कभी बतौर सूप वे एशिया का कोई व्यवसाय गटक लेते हैं। उनकी पाचन क्षमता असीमित है। उनके उदर में लोहा-इस्पात, खिलौने बनाने वाली कंपनियों के साथ मनोरंजन उद्योग की संस्थाएं भी पड़ी रहती हैं। उन्हें अपच होता है तो वे एक अदद युद्ध करा देते हैं।

इस अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय शतरंज पर चीन ने उन्हीं हथकन्डों का उपयोग करके पश्चिम के उद्योगों में पूंजी निवेश किया है। जिस तरह चीनी भोजन संसार भर में फैला है, उसी तरह उनका पूंजी निवेश भी विस्तार पा चुका है। मेक इन इंडिया का लुभावना नारा लगाने वाले जानते नहीं हैं कि उनके देश के उद्योगों में चीन और अमेरिका का कितना पूंजी निवेश हो चुका है। चीन और अमेरिका के बीच पहले ही यह करार हो चुका है कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध टाला न जा सके तो उसका कुरुक्षेत्र भारत ही होगा। राष्ट्रप्रेम की नारेबाजी करने वाले राष्ट्र हित की रक्षा ही नहीं कर पाए। उन्हें कपोल कल्पित सर्जीकल स्ट्राइक रचने से समय मिले तो वे देशहित में काम करें। राम नाम रटते-रटते वे कुरुक्षेत्र की रचना कर रहे हैं।

केतन मेहता पुणे फिल्म संस्थान में उस दौर में प्रशिक्षित हुए जब वहां सचमुच फिल्म विधा सिखाई जाती थी। उनकी पहली फिल्म 'भवनी भवाई' खूब सराही गई और स्मिता पाटिल अभिनीत 'मिर्च मसाला' ने बॉक्स ऑफिस पर भी सिक्कों की बौछार कर दी। यह केतन मेहता की सृजन ऊर्जा और व्यवसायिक बुद्धि का कमाल है कि फ्रांस के लेखक गुस्तव फ्ल्यूबर्ट के उपन्यास 'मैडम बोवेरी' के फिल्म अधिकार प्राप्त करके फ्रांस से ही आर्थिक सहयोग लेकर उन्होंने 'माया मेमसा'ब' की रचना की। एक साहसी महिला जो अनन्य प्रेमिका भी थी, उसके प्रेम एडवेन्चर से प्रेरित फिल्म में उन्होंने केंद्रीय पात्र दीपा साही को अभिनीत करने का अवसर दिया। दीपा साही ने उसे इस शिद‌्दत से अभिनय किया मानो अपने किसी पिछले जन्म में वह मैडम बोवेरी ही थीं। आत्माओं को वीज़ा नहीं लेना पड़ता। दीपा साही भी अपने पात्र से प्रेम करते हुए रचयिता से प्रेम करने लगी। 'माया कॉस्मोज व स्टूडियो' उन्हीं की संतान है, जिसे अब अमेरिकन पूंजी निवेशक गोद ले रहे हैं। इस तरह फ्रांस में जन्मी मैडम बोवेरी भारत होते हुए अमेरिका जा रही हैं। जाने कितने कोलम्बस हुए, जिनकी कथाएं अलिखित ही रहीं।

गौरतलब है कि मैडम बोवेरी 1857 में प्रकाशित हुई, जब हम पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ रहे थे। केतन मेहता की रुचि शास्त्रीय संगीत में थी। उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म वित्त निगम के सामने प्रस्ताव रखा कि मध्यप्रदेश के नगर देवास में रहने वाले कुमार गंधर्व पर एक वृतचित्र बनाया जाए। केतन मेहता और कुमार गंधर्व की मुलाकात राहुल बारपुते ने आयोजित की। राहुल बारपुते के हार्मोनियम के साथ एक प्रायवेट संगीत संध्या आयोजित हुई। उस रात संगीत वर्षा तन-मन का ताप हर ले गई।

इससे जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि राहुल बारपुते ने अजंता की गुफा में कुमार गंधर्व के गायन का कार्यक्रम रचा था परंतु सरकारी अधिकारी ने आज्ञा नहीं दी। बात इंदिरा गांधी तक पहुंची और उन्होंने सारी बाधाएं हटा दीं। कार्यक्रम संपन्न हुआ। उस रात कुमार गंधर्व का गायन सुनकर अजंता की कलाकृतियों में जान आ गई जैसे राम के चरण पड़ते ही अहिल्या का उद्धार हुआ था। सदियों से सोई वे कृतियां जाग गईं जिनके नीचे बनाने वाले का हस्ताक्षर नहीं है जैसे प्राय: कलाकार करते रहे हैं।

कलाकारों की कई पीढ़ियों ने रचना की है। एक पीढ़ी माथा बनाते-बनाते गुजर गई तो नई पीढ़ी ने इस माथे पर भाग्य की रेखाएं रचीं, इसी तरह सृजन चलता रहा। ऐसे में भला कोई कलाकार अपने हस्ताक्षर कैसे देता। मौजूदा हुक्मरान चाहें तो अपने हस्ताक्षर कर दें जैसा वे कई क्षेत्रों में कर रहे हैं। इतिहास खामोश है, भूगोल आहत हो रहा है। आम आदमी की धुरी पर ही घूमते हैं धरती, इतिहास और भूगोल।