माया मेमसाब की नई पहल / जयप्रकाश चौकसे
माया मेमसाब की नई पहल
प्रकाशन तिथि : 24 फरवरी 2011
फिल्मकार केतन मेहता की पत्नी दीपा साही 'माया मेमसाब' की भूमिका के लिए याद की जाती हैं। गुस्ताव के विवादास्पद उपन्यास 'मैडम बोवरी' पर आधारित इस फिल्म में फारुख शेख, राज बब्बर और शाहरुख खान ने मुख्य अभिनय किया था। गुलजार लिखित इसके गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं। आज विशाल भारद्वाज को गर्व है कि उन्होंने सच्चे प्रेम की तलाश करने वाली महिला की फिल्म 'सात खून माफ' बनाकर एक पहल की है, उन्हें गुलजार की अलमारी में रखी 'माया मेमसाब' की डीवीडी देखनी चाहिए।
बहरहाल दीपा साही ने विनय पाठक के साथ 'तेरे मेरे फेरे' नामक फिल्म बनाई है, जो विवाह और प्रेम के रिश्तों पर आधारित है। इसकी सारी शूटिंग हिमालय की वादियों में 7 सौ फीट से लेकर 14 हजार फीट की ऊंचाइयों वाले विभिन्न स्थानों पर की गई है। दीपा ने प्रेम और विवाह की कहानी पहाड़ों पर फिल्माई है, क्योंकि उनका ख्याल है कि ये रिश्ते पहाड़ों की तरह सुंदर और बुरे मौसम में पहाड़ों की तरह खतरनाक भी हो सकते हैं। दरअसल प्रेम पहाड़ों की तरह पुराना विषय भी है और शादी गुरिल्ला युद्ध की तरह होती है। जिसमें पति-पत्नी मौका देखकर एक-दूसरे पर आक्रमण करते हैं और फिर अपनी कमजोरियों की टेकडिय़ों के पीछे छुपकर अगले अवसर की तलाश में बैठ जाते हैं। दीपा ने मौसम के बदलने पर पहाड़ों के हिंसक हो जाने की बात की है, जबकि सच्चा प्रेम दिलों में हमेशा एक सा वसंत बनाए रखता है और बाहर की बर्फीली हवाएं भीतर पहुंच नहीं पातीं। प्यार वह कंडीशनिंग है जो रिश्तों के पारे को थामे रहती है।
दीपा और केतन मेहता के रिश्ते को लगभग दो दशक हो गए हैं। एक सृजनशील फिल्मकार और एक मूडी अभिनेत्री का इतना लंबे समय तक रिश्ते निभाए रखना भी कम खुशी की बात नहीं है। इनके पे्रम के प्रारंभिक काल में दोनों ने कुछ वक्त इंदौर-देवास में गुजारा है, क्योंकि दूरदर्शन के लिए वे कुमार गंधर्व पर वृत्तचित्र बनाने जा रहे थे और राहुल बारपुते ने उनकी लंबी मुलाकात कुमार गंधर्व से आयोजित की थी। इसी सिलसिले में एक बार ऑपेरा हाउस के निकट उनके मकान पर जाने का अवसर मिला। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि 'मिर्च मसाला' और 'भवनी भवई' इत्यादि कला फिल्मों को बनाने वाले के घर की दीवारों पर 'मदर इंडिया', 'आवारा', 'गंगा जमना' और 'मुगल-ए-आजम' के पोस्टर लगे हैं। दरअसल पूना फिल्म संस्थान से प्रशिक्षित अधिकांश फिल्मकार कला फिल्में बनाते हुए भव्य व्यावसायिक फिल्मों के सपने देखते हैं। गोडार्ड, फैलिनी, विटोरयो डि सिका इत्यादि उन्हें पढ़ाए गए हैं। परंतु जो नहीं पढ़ाए गए हैं वे ही उन्हें आंदोलित करते हैं।
यह गौरतलब है कि भारत की तमाम फिल्म प्रशिक्षण देने वाली संस्थाओं में सिर्फ विदेशी फिल्मकार ही पढ़ाए जाते हैं और शांताराम, महबूब खान और राज कपूर को अनदेखा करने की शिक्षा दी जाती है। उन्होंने बिमल राय और गुरुदत्त को कुछ रियायत दी है। विदेशी फिल्मकार के पढ़ाने में कोई एतराज नहीं परंतु ठेठ भारतीय व्यावसायिक सिनेमा को हेय दृष्टि से देखना अनुचित है।
बहरहाल दीपा साही ने देश-विदेश की सफल फिल्में देखी हैं। क्या उनकी सिनेमायु शैली अपने पति केतन से प्रभावित होगी? अगर उन्होंने रिश्ते को सही समझा है, तो स्वतंत्र शैली ही विकसित की होगी। माया कभी बंध सकती है?