माय / अमरेन्द्र
"माय केॅ है मालूम नै छै कि केना केॅ बाबू जी के ठठरी उठत्हैं जेेठोॅ बेटां मइयो के बोरियो-बिस्तर बांधी देलेॅ छेलै आरो हमरा कहलेॅ छेलै--लै जो माय केॅ, जहाँ लै जाना छौ। बाप-माय के ऋण खाली बड़के बेटा वास्तें नै होय छै, छोटको लेॅ होय छै।" कहतें-कहतें हमरोॅ कंठ भरी ऐलै, "आरो आय देखोॅ, माय बड़के बेटा कन जाय लेॅ जिद मचैलेॅ छै।"
"जिद मचैल्हैं सें की होतै, माय केॅ वहाँ नै जाना दै छै। पचहत्तर के होलै, देह-हाथ के काठी होन्है केॅ झलकै छै, वै पर आँखी सें लाचार। दिशा-मैदान लेॅ बहियार जैतै आरो नहावे लेॅ ओत्तेॅ दूर नद्दी--काँही कुछ होय गेलै तेॅ लेनी के देनी। की होय छै, एकाध दिन शोरे नी मचैतै। समझी जैतै कि नै लै जाय वाला छै, तेॅ आपने चुप होय जैतै।" चॉर बिछती शैलजां आपनोॅ मूड़ी बिना उठैले कहलकै।
"ठीक कहै छौ" हम्मंे कहलियै आरो माय दिश एक दाफी ताकी केॅ आपनोॅ कोठरी में जाय बैठलियै। एक केस के काम जल्दी-जल्दी निपटाना छेलै। जों आय खाता-खसरा पूरा नै होय छै, तेॅ यहू पार्टी हाथोॅ सें निकलै ही वाला छै, जे रँ कि ऊ कल झंुझवैलोॅ बोली गेलोॅ छै।
अभी फाइल खोललोॅ नै होव्है कि माय उठी केॅ हमरोॅ कोठरी चललोॅ ऐलै "दिलो, की सोचलैं--हमरोॅ जाय के बारे में" आरो बगले में पड़लोॅ टेबुल पर बैठतें कहेॅ लागलै, "कै दिनोॅ सें तोरा सिनी सें कही रहलोॅ छियौ कि हमरा मुकुन्द कन पहुँचाय दे। तोहें हमरोॅ बेटा छेकैं, तेॅ वहू हमरोॅ बेटा छेकै। साल भरी होय गेलै; हुनकोॅ उठला के बाद मुकुन्द के मुँह आय तक नै देखेॅ पारलेॅ छियै।"
मोॅन तेॅ यहेॅ करलै कि कही दियै--तोर्है कोॅन देखै लेॅ ऐलौ छौ--बाबू मरला के बाद। तोहें जोॅन बेटा केॅ देखै लेॅ बेकल होय रहलोॅ छैं, तोरा नै मालूम कि हुनी तोरा देखत्हैं कत्तेॅ बेकल होय जैतौ। कहीं दुसरे दिन नै कही दौ, "माय, जानवे करै छैं कि यहाँ नहाय-धोयाय के कत्तेॅ तकलीफ छै, तोहें दिलो के पास रहै छैं तेॅ हमरौ शांति मिलै छै। शहर के बात अलग छै, घरे में मोॅर-मैदान सें लैकेॅ नहाय-धोआय के सब वेवस्था।" हुनकोॅ पास तोरा वहाँ सें हटावै के सौ बहाना छौ।
शायत माय केॅ ई बतैये लेॅ कि हमरोॅ मोॅन ठीक नै छै, हम्में आपनोॅ कपारोॅ पर दाँया हाथ फेरेॅ लागलियै, तेॅ माय लागले कहलकै, "देखें, तोहें बहाना नै करें कि हमरोॅ तबीअत ठीक नै। आरो सब काम तेॅ करवे करै छैं, खाली हमरा घर पहुँचाय के नामोॅ पर तोरोॅ हठाते तबीअत खराब होय जाय छौ आकि कचहरी में काम बढ़ी जाय छौ। आरो जो एतन्हैं व्यस्तता छौ तेॅ हमरा देघरोॅ वाली गाड़ी पर बैठाय दे। हम्में असकल्लिये चल्ली जैवोॅ। संते नगर तेॅ जाना छै, गाड़ी दुआरिये होय केॅ तेॅ जाय छै।"
पहिलोॅ दाफी माय केॅ ई रँ बेकल हम्में देखलियै। इखनी माय केॅ कुछुवो कहना ठीक नै होतै, ई सोची हम्में चुप्पे रहलियै। फाइल बन्द करलियै आरो बायाँ हथेली पर कपार टिकैतें केहुनी केॅ टेबुल पर टिकाय देलियै। माय हमरोॅ मनोॅ के बात गमी गेलै, से बिना कुछ बोलले उठलै आरो आपनोॅ कोठरी में जाय केॅ बैठी गेलै।
शैलजा ऐलै आरो चाय के प्याली हमरोॅ सामना में राखी देलकै। कुछ बोललै नै। मैयो के कोठरी गेलै आरो वहौं ओकरो सामना में चाय राखी केॅ रसोयघोॅर लौटी गेलै।
घरोॅ में जबेॅ भी माय जाय के बात उठाय छै, कुछ देर लेली माहौल सनसनावै छै, फेनू पहिलके नाँखी व्यवस्थित होय जाय छै। मजकि आय होनोॅ बात नै होलै। माय जे कुछ कहलकै, वै में गुस्सा के रंग छेलै, जेकरा हम्मी नै, रसोई घर में चाय बनैती शैलजौं सुनलेॅ छेलै। यहेॅ कारण छेलै कि ऊ माय के आगू चाय रखी बाहर निकली ऐलै--बिना कुछ बोललै। नै तेॅ चाय रखतें एतना टा ज़रूरे बोलै, "माय जी चाय, जल्दिये पीथिन, नै तेॅ ठंडाय जैतै।"
माय केॅ चाय पीयै के खूब आदत छै। मतरकि चाय जब तक एकदम नै ठंडाय जाय, तब तांय ठोरोॅ सें नै सटावै। चाय पर जबेॅ गाढ़ोॅ लाल पपड़ी दूध के छाली रँ जमी जाय, तेॅ माय उठावै। घर भरी जानै छै कि माय केॅ खाली मिट्ठोॅ चाहियोॅ--चाय-वाय सें कुच्छू मतलब नै। मजकि शैलजा केॅ ई बात एकदम नागवार गुजरै। से चाय रखत्हैं कहै--पानी बनाय केॅ नै पीथिन। तबेॅ माय हाँसी केॅ प्याली उठावै आरो शैलजा के मोॅन राखै लेॅ ही ठोरोॅ सें लगाय तुरत राखियो दै। शैलजो केॅ मालूम छै, आबेॅ माय एकरा तब्हैं ठोरोॅ सें लगैतै, जबेॅ चाय ठंडाय केॅ कजरी रंग के होय जैतै।
आय शैलजा के होना केॅ चाय राखी निकली जैवोॅ मइयो केॅ अखड़लोॅ होतै, हम्में जानै छियै, मतरकि ऊ बोललै कुछ नै। बस आपनोॅ गोस्सा जाहिर करै लेॅ प्याली टसकाय केॅ एक दिश करी देलकै।
हम्में समझी गेलियै, इखनी आबेॅ घरोॅ में रहवोॅ मुश्किल। नै शैलजा कुछ बोलतै, नै माय। बच्चा-बुतरू सहमलोॅ-कठुवैलोॅ हिन्नें-हुन्नें नुकियैलोॅ फुरतै से अलगे। कै दिन सें बीनू, मंटू आरो तुलसी देखी रहलोॅ छै--जबेॅ-जबेॅ दादी कुछ बोलै छै--माय-बाबू, दोनों दिन भरी अनखनोॅ बनले रहै छै आरो हेना में कखनी केकरा डाँट पड़ी जैतै आरो केकरा धुमक्का--है कहना मुश्किल छेलै।
कुछ सोचलियै आरो चाय सुढ़की केॅ कमीज-फुलपैंट के मांग करलियै, तेॅ शैलजा रसोय घरोॅ सें नै निकललै। है बात नै छेलै कि हमरोॅ आवाज ओकरा तक नै पहुँचलोॅ होतै, मतरकि सुनियो केॅ अनठियाय देलकै।
की करतै आवी केॅ। कोॅन ओकरोॅ बातोॅ के हम्में ख्याल राखै छियै। कहतियै--बाहर जाय छोॅ तेॅ खाय-पीवी ला, आवेॅ कखनी लौटवा, नै लौटवा। हम्मू निश्चिन्त रहवोॅ, नै तेॅ मनोॅ में लागले रहतौ कि।
आरो शैलजा के एतना कहला के बादो की होतियै--बस ऊ बोलतंे रहतियै आरो हम्में कपड़़ा पिन्ही बाहर निकली जैतियै। आरो जबेॅ-जबेॅ हेनोॅ होलोॅ छै, शैलजा भूखले रही गेलोॅ छै--दिन भरी। कोय-न-कोय मुँहोॅ से ई बात मालूम होइये जाय छै।
"तुलसी कमीज-फुलपैंट दिएं" बेटी केॅ आवाज देलियै तेॅ वैं झट सना लै आनलकै आरो बिना नजर मिलैलेॅ वहेॅ टेबुल पर राखी लौटी गेलै, जे टेबुल पर माय कुछ देर पहिलें बैठली छेलै। हमरा ई समझै में देर नै लागलै कि इखनी बच्चो-बुतरू यहेॅ चाहतेॅ होतै कि केन्हौं केॅ बाबू जी घरोॅ सें बाहर निकली जाय तेॅ अच्छा। माय-दादी के हेनोॅ कोप तेॅ बच्चा-बुतरू केॅ सहै के जेना आदत बनी गेलोॅ छै। बाहर निकलै सें पहिलें आपनोॅ आवाज केॅ तेज करतें कहलियै, "बिनू माय सें कहीं दिऐं--दादियो केॅ ठीक टैम पर खिलाय केॅ खुद खाय लेतौ। हमरोॅ कोय ठिकानोॅ नै--संझो बेरां लौटेॅ पारौं। जों ग्यारह बजेॅ तांय नै ऐलियौ तेॅ समझी लिऐं--हम्में कोय हौटलोॅ में खाय लेलिऐ."
घरोॅ सें निकलै वक्ती नै शैलजां टोकलकै, नै मइयैं।
आखिर कत्तेॅ चक्कर मारतियै। घण्टा भरी पहिलें कचहरी पहुँची गेलियै। एकदम खाली-खाली हाता। मोॅर-मोकदमा लड़ैवाला के आवा-जाही तेॅ दू घण्टा बादे होतै। हों रोजनके नाँखी हरिचन्दर आपनोॅ टाइपराइटर पर अंगुली ज़रूरे उड़ाय रहलोॅ छेलै। कलकोॅ बचलोॅ काम दुसरोॅ दिन सबेरिये आवी केॅ निपटाय लै छै हरिचन्दर। दस आदमी के परिवार चलाय छै--सेहो एक टाइपराइटर पर। कचहरी खतम होला के बादो एक घंटा तांय खुटखुटैतै रहै छै। कोय मतलब नै--कोय कुच्छू बोलेॅ, नै बोलेॅ।
हमरा लागलै, हमरा सें दस गुना अच्छा छै हरिचन्दर। दू सौ टाका सें एक्को दिन कम नै कमैतें होतै। कोय-कोय दिन तेॅ तीनो सौ आरो यहाँ तेॅ पचास-सौ पुरतें-पुरतें धतपत। वकील बनिये गेला सें की होय छै, पाँच ठो डिगरिये लेला सें की होय जाय छै। पत्थोॅ के काम करै छै तेॅ पुराने चॉर। जे जत्तेॅ पुरानोॅ वकील, ओत्ते नामी। नामी होय में ओकरा आरो बीस-तीस साल आपनोॅ खटास वकील के पुछड़ी थामले राखै लेॅ लागेॅ। दिन भरी टहलगिरी करोॅ तेॅ आखिर वक्ती हाथ में पचास टाका हेना केॅ थमैतौं, जेना जमीन्दारी के कोय पट्टा थमैतें रहेॅ। आबेॅ की बतैयै कि ई आरती के पैसा सें जबेॅ खैनी के जुगाड़ तांय मुश्किल होय छै तेॅ परिवार कहाँ सें चलतै। ...माय केॅ पेंशन नै मिलतेॅ रहतियै तेॅ नै जानाैं की हाल होतियै हमरोॅ। हौ तेॅ महीना पुरत्है माय केॅ छोॅ सौ मिली जाय छै, तेॅ यादो नै आवै छै कि हमरा सिनी किराया के मकान में रहै छियै। मइयो सब बात समझै छै--तहीं सें तेॅ एक तारीख ऐत्हैं शैलजा केॅ लै केॅ बैंकोॅ सें टाका लै आनै छै आरो बाहरे-बाहर मकान मालिक के हाथोॅ में किराया थमाय दै छै। कोय तगादा लेॅ दुआरी तांय आवै--माय केॅ ई बात एकदम पसन्द नै।
"आरो जबेॅ माय देवघर चल्लोॅ जैतै तबेॅ..." हठाते हमरोॅ मनोॅ में विचलित करी दै वाला बिन्डोवोॅ उठलोॅ छेलै--तबेॅ किराया ठीक समय पर केना चुकैवै। मानी लै छियै कि ऊ महीना भरी मकान मालिक ठहरियो जाय, मतरकि है ज़रूरी तेॅ नै छै कि महीना भरी के बाद माय लौटिये ऐतै। जाय रहलोॅ छै तेॅ लौटै, नै लोटै के बात ओकरोॅ मनोॅ पर छै। आरो ई तेॅ हुऐ नै पारेॅ कि मकान मालिक दोसरोॅ महीना के एक तारीख केॅ बिना दोनों महीना के किराया लेलेॅ मुक्ति दै देॅ...आय छेकै बीस, जों माय जिद्दे ठानी दै छै, तेॅ कल नै परसूं ओकरा पहुँचाइये लेॅ लागतै...पिछले महीना सें जिद् करी रहलोॅ छै, ऊ तेॅ हम्में तीन दिन तांय बीमारी के बहाना करी बिछौना पर पड़लोॅ रहलियै तेॅ मांय जाय के नाम पर मुँह बान्ही लेलकै...एकदम चादर तानी केॅ सुतले रही गेलोॅ छेलियै। शैलजो परेशान रहलै--नै देह-हाथ गरम छै, नै कँपकँपी. हुएॅ पारै छै--देह-हाथ के ऐंठन रहेॅ आकि फेनू माथोॅ दरद--यही लेॅ लेटलोॅ रहै छियै आरो माय आपनोॅ बिछौना पर बैठलोॅ-बैठलोॅ बात केॅ भाँपै के कोशिश करै, आखिर हमरा होलोॅ छै की? माय केॅ मालूम छै--बाबू के मरला के ठीक सोलमे दिनोॅ बाद, जबेॅ हमरोॅ पेटोॅ में दरद उठलोॅ छेलै, तेॅ पक्का दस दिन तांय सौंसे घोॅर उधियाय देलेॅ छेलियै; बाबू के मरै के दुक्खे जेना खतम होय गेलोॅ छेलै। शायत वहेॅ खयाल करी, जबेॅ हम्में बिछावन पकड़लियै तेॅ माय के चेहरा तीनो दिन उड़ले-उड़ले रहलै। शैलजा जेन्है केॅ हमरोॅ घरोॅ सें निकलै कि आपनोॅ आँखी पर मोटोॅ शीशा के चश्मा तुरत लगाय, बैठले-बैठले ओकरोॅ चेहरा के भाव पढ़ै के कोशिश करै--कहीं तबीअत ज़्यादा तेॅ खराब नै छै।
...ऊ दिन जेन्है शैलजा हमरोॅ कोठरी सें निकली केॅ माय लुग गेलै तेॅ माय बड़ी फुर्त्ती सें साड़ी के अँचरा से आपनोॅ चश्मा के शीशा बारी-बारी सें पोछी आँखी पर चढ़ैलकै आरो ओकरोॅ चेहरा बड़ी गौर सें देखलकै, जेना शैलजा के चेहरा पर हमरोॅ तबीअत के उतार-चढ़ाव लिखलोॅ रहेॅ। हमरा हँसी आवी गेलै। माय तेॅ देखेॅ नै पारै--सवो दाफी कहलेॅ होवै--माय ठंडा आवी गेलौ, अबकी दाफी मोतियाबिन्द के ऑपरेशन करवाय ले, मतरकि ओकरोॅ तेॅ बस एक्के जिद, "हमरा लेॅ तेॅ दोनों बेटा--दू आँख। बेटा, आबेॅ तेॅ तोरहे सिनी हमरोॅ आँख। ई आँख रहेॅ कि जाय, की फरक पड़ै छै।"
"की बात छै दिलिप जी, आय एत्तेॅ भोरे-भोर। तोरोॅ कचहरी तेॅ दस-ग्यारह के बादे जमै छौं" हरचिन्दर नें टाइप मशीन पर आपनोॅ औंगरी बिना रोकल्हैं, हमरोॅ दिश देखतें कहलकै, "गृहयुद्ध सें लौटलोॅ छौ की?"
कहतें-कहतें हाँसेॅ लागलै हरिचन्दर। पान सें करियैलोॅ ओकरोॅ बत्तीसो दाँत अचोके दिखावेॅ लागलै। कारोॅ देह पर कारोॅ रँ के कपड़ा सालो भर चढ़ैलेॅ हरिश्चन्दर बारहो घण्टा पान चबैतें रहै छै--यहीं सें ऊ बोलै-हाँसै नै के बराबर छै, जबेॅ एकरोॅ बिना काम्हे नै चलेॅ, तभिये ऊ हाँसै-बोलै छै। आरो जखनी हाँसै, तेॅ सामना ताला के कमीज आरो टाइप पर राखलोॅ कागज छींटदार होन्हैं छेलै। जेना मुँह नै रहेॅ--फुहारा।
हम्में देखलियै ओकरोॅ हँसी हठाते रुकी गेलोॅ छै। मतलब साफ छेलै कि मशीन सें लागलोॅ कागज कुछ ज्यादाहे रंगी गेलोॅ होतै। हमर्हौ हँसी आवी गेलै। कोॅन हेनोॅ पार्टी नै होतै जे यहेॅ कारण हरिचन्दर सें उलझतें नै होतै आरो फेनू नरमो नै पड़ी जैतै होतै। उपायो की छै--हरिचन्दर अकेला आदमी छेकै जे हिन्दी टाइप करै छै, नै नरमैतै तेॅ कल सें कामो नै होतै। हमरोॅ मनोॅ में ऐलै, जों हम्मूं हिन्दी टाइप करै लेॅ जानतियै तेॅ हमरोॅ स्थिति आरो कुछ होतियै।
एकदम सें उचाट होय गेलै मोॅन। ज़रूर हमरोॅ चेहरा एत्है मनझमान होतै कि जे भी देखतै, वहीं टोकतै। उठलियै आरो हरिचन्दर केॅ बिना कोय जवाब देल्हैं सीधे सड़क पर आवी गेलियै। मोॅन होलै कि जयप्रकाश उद्यान चल्लोॅ जाँव। कै दाफी तेॅ वाँही रही केॅ दिन काटी देलेॅ छियै--मोॅन उचाट होला पर।
मतरकि हेनोॅ चाहतौं, हम्में हुन्नें जाय के बदला आपनोॅ घरोॅ दिश मुड़ी गेलियै--पता नै, घरोॅ में कोॅन कुहराम मचतें रहेॅ, ओकरोॅ भुखले चल्लोॅ ऐला पर। जों मइयौं कौर नै उठैलकै तेॅ आरो विपद। कै दाफी हेनोॅ होइयो चुकलोॅ छै। आबेॅ माय नै खैतै तेॅ शैलजौं केना खैतै। आरो जबेॅ दोनों भुखलोॅ छै तेॅ तुलसिये, बीनू आरनी के कंठोॅ सें कत्तेॅ कौर नीचेॅ निकलतै। बस ऊ दिन सौंसे घोॅर के उपास...जबेॅ उपास के सचमुचे नौबत आवी जाय? ऐतै तेॅ देखलोॅ जैतै, हेनोॅ दिन ऐलोॅ नै छै की? हम्में केन्होॅ केॅ नै भुलावेॅ पारौं ऊ दिन--हफ्ता भरी के बंदी होय गेलोॅ छेलै--बीच कचहरी में हौ रं के नामी वकील वीरु बाबू केॅ गुण्डा भरनांटी दिखाय देलकै। हेनोॅ बंदी होलै कि कचहरी में भंक लोटेॅ लागलै, तबेॅ मोॅर-मुकदमा लड़ैवाला के दूर तांय छायाहौ नै दिखावै। पैसा आनतियै कहाँ सें? एक शाम खाना चलै, तेॅ एक शाम उपासे।
जों सुक्खोॅ के दिन आवियो गेलै तेॅ ऊ दिन केना केॅ भूलेॅ पारवै--सड़क के किनारी गुपचुप के खाड़ोॅ खोंचा। पाँच छोॅ खायवाला के पाँत। खोंचावालां देलेॅ जाय आरो खवैयां मुँहोॅ में देलेॅ जाय। वैंने दूरे सें देखी लेलेॅ छेलै--बिनू-मिन्टू खोमचा सें थोड़ोॅ दूरी पर खाड़ोॅ छै। ओकरोॅ नजर गुपचुप के निकालै आरो उठावै के साथ उठी-गिरी रहलोॅ छेलै। हमरा देखत्हैं दोनों छरबिन्न नाँखी उड़तें घरोॅ में नुकाय गेलै--मारे डरोॅ सें...हम्में मारतियै की, खुद्दे मरी गेलोॅ छेलियै--जे बाप आपनोॅ बच्चा केॅ दू शाम ठीक सें भोजन नै दिएॅ पारेॅ, ओकरा बाप बनै के की अधिकार। सौ बच्चा के हत्या से भी बड़ोॅ पाप छेकै--एक बच्चा केॅ भूखे रखी केॅ बाबू बनवोॅ।
गुपचुप वाला बात याद ऐत्हैं हम्में एकदम व्याकुल होय जाय छियै। चाहै छियै--बाते केन्हौ केॅ भुलाय दाैं, मजकि ऊ तेॅ तेलन्होॅ कपड़ा पर जमलोॅ धूल नाँखी उतरवे नै करै छै, जबेॅ तांय कोय जब्बड़ बात नै सामना में आवी जाय।
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"अरे दिलो, आय एत्तेॅ जल्दी। आय कचहरी नै छौं की?" दुआरी पर गोड़ राखत्हैं मौसीं टोकलेॅ छेलै।
"अगे मौसी." हम्मू आपनोॅ चेहरा पर कठहस्सी लानतें कहलियै, "कखनी ऐलै? हमरा तेॅ फुर्सते नै मिलै छै कि तोरा सें भेटोॅ-गांट हुएॅ पारेॅ। कचहरी के कामोॅ सें मुक्तिये नै मिलै छै। आरो घरो पर वहेॅ हलफनामा-तफलनामा संे उलझतेॅ रहोॅ। मजकि तहूँ तेॅ हिन्नंे गोड़ नहियें धरै छैं--जब तांय कोय भारी काम नै आवी जाय। की झूठ कहै छियौ?"
"नै, झूठ तेॅ नै बोलै छोॅ। की करियै, नौकरी जोगै मेंसाँसो लै के फुर्सत नै। हाय-हाय करी केॅ बिहानै उठोॅ, चौका-चुल्हा करोॅ, बच्चा केॅ खिलावोॅ, फेनू घोॅर लौटोॅ तेॅ वहेॅ माया।" मौसी जे दुआरी के बरामदे पर बिछैलोॅ खटिया पर बैठली छेलै, थोड़ोॅ खिसकी केॅ हमरोॅ वास्तें जग्घोॅ बनैलकै आरो वही जग्घा केॅ दू-तीन बार थमथपैतेॅ हमरा बैठै के इशारा करलकै।
हम्में जबेॅ वहेॅ जग्घा पर बैठी गेलियै तेॅ मौसी कहलकै, "तोहें ठिक्के कहलौ, मौसी बिना काम के हिन्नें आवै नै पारेॅ। अइयो कामे लै केॅ ऐलोॅ छियै" आरो फेनू दिलो के कुछ कहला के पहिले कहनौ शुरू करी देलकै, "है कहै छियाैं दिलो, तोहें माय केॅ देवघर पहुँचाय कैन्हें नी दै छौ? आबेॅ माय के औरदे कत्तेॅ दिन? जबेॅ तांय जीत्तोॅ छै, जे चाहै छै, पूरा करी देलोॅ करौ। तोरोॅ बाबू नै रहलौं तेॅ की, हुनकोॅ पूरा-पूरा जिनगी तेॅ वांही बितलै। आबेॅ जोॅन-जग्घा सें हुनकोॅ ठठरी उठलै, ऊ जग्घा के प्रति मोह-माया तेॅ होवे नी करतै नूनू। माय कुछ पैसा-कौड़ी तेॅ मांगै नै छौं, से तेॅ तोरोॅ बाबूं आपनोॅ पंेशन संे दीदी के बचलोॅ जिनगी केॅ खेपै लायक वेवस्था करिये गेलोॅ छौं। आबेॅ बचलै--लै आरो पहुँचाय आवै के. से तेॅ तोर्है दोनो भाय केॅ नी करै लेॅ लागतौं। जानवे करै छौ कि माय केॅ सूझै पाकै छाैं नै। जों सूझवे करतिऐ, तभियो की? दीदी केॅ देश-दुनिया के की पता। कभियो बाबूं दुआरी सें बाहर तेॅ निकलेॅ नै देलखौं। शादी के बाद घुरी केॅ नैहरा नै देखलकै दीदीं। कहीं देखलेॅ छौ हेनोॅ मिडिल पास लड़की आकि जनानी, जेहनोॅ दीदी छै? जबेॅ दीदी वास्तें देहरी के बाहर अन्हारे अन्हार छै, तबेॅ तेॅ तोरा समय निकाल्है लेॅ पड़तौं। कौन मारेॅ कंधा पर बंधी राखी केॅ तीरथ-वैरांगन कराय लेॅ माय कही रहलोॅ छौं, बस देवघर तांय तेॅ पहुँचाय के बात छै। भोरे जैबा तेॅ सँझकी तांय लौटी ऐवा।" मौसी ई सब बात एक्के साँसोॅ में बोली गेलै।
"मौसी, तोेहें समझै नै छैं, ई सब बात थोड़े छै कि हम्में माय केॅ देवघर पहुँचाय लेॅ नै चाहै छियै। तोहें समझै कैन्हें नी छैं--माय केॅ आबेॅ आँख-कान तेॅ रहलै नै। आबेॅ ओत्तेॅ समांगो नै रहलै कि आपनोॅ साड़ियो थपकारी लेॅ; कुइयाँ संे पानी खीचै के तेॅ बाते छोड़ी दैं--जबेॅ यहाँ चापाकल के हेंडिलो उठावेॅ-बैठावेॅ नै पारेॅ छै। यहाँ छै तेॅ छोटकी पुतोहू सेवा करी दै छै, वहाँ के नौड़ी बैठलोॅ छै--माय केॅ हुलकियो ताकै वाली।"
हम्में है सब बात फोकनैले मनोॅ सें कहलियै। हमरा जानै में ई तनियो टा देर नै लागलोॅ छेलै कि हमरोॅ घरोॅ सें निकलत्हैं माय मौसी कन पहुँची गेलोॅ होतै आरो सबटा हाल सुनाय देलेॅ होतै। दसे घोॅर के बाद तेॅ मौसी के घोॅर छै। शैलजां खुद दू-तीन दाफी माय के साथे चली केॅ ओकरा मौसी घोॅर तक जाय वाला रास्ता चिन्हवाय देलेॅ छै। आबेॅ माय असकल्लिये, जबेॅ होलोॅ मौसी कन पहुँची गेलोॅ। तेॅ आय पंचैती करै लेॅ माय मौसी केॅ बुलाय आनलेॅ छै।
"देखोॅ बेटा, वहाँ दीदी केॅ कोय देखैवाला छै, आकि नै छै, आबेॅ ई बात केॅ लै केॅ तोहें माय केॅ जाय सें नै रोकोॅ। जों कोय नै छै तेॅ जेठोॅ बेटा तेॅ छै।"
"मौसी, नै जानै छैं कि तोहें जहाँ माय केॅ लै जाय लेॅ कही रहलोॅ छैं, वहीं ठां सें माय..."
"छोड़ोॅ-छोड़ोॅ ई सब बात।" मौसी बीचे में हमरोॅ बात काटतें हुएॅ कहलकै, "होन्हौ केॅ माय तेॅ बेटा के सब अनकुट्ठोॅ बेवहार पचाय लेॅ ही होय छै। तोंही की बच्चा में माय केॅ कम सतैनें छौ। एक दिन गेंद वास्तें तोरा दू टाका नै देलेॅ छेलौं तेॅ माय केॅ केन्होॅ पीटी देलेॅ छेलौ, जेना कोय बुतरू केॅ बड़काहौ नै पीटै छै। दीदी मूड़ी झुकाय केॅ तोरो सब मार सही लेलेॅ छेल्हाैं, मतरकि आपनोॅ नै मूँ खराब करलेॅ छेलै, नै आपनोॅ हाथ। आबेॅ बड़का बेटा जे भी करतै, एकरा सें बेसी तेॅ नहियें नी करतै।"
मौसी कहीं सें गुस्सा में छेलै। मजकि ओकरोॅ गोस्सा सें कहीं ज़्यादा ओकरोॅ बात हमरा लागी गेलै। एकदम गुम होय गेलियै। हमरोॅ चेहरा उतरी ऐलै, जेना कोय पानी ढारी केॅ आग बुझाय देलेॅ रहेॅ। हम्में पासी पर दोनों हाथ के बल दै केॅ उठै लेॅ चाहलियै ही कि मौसी हमरोॅ हाथ पकड़ी लेलकै, "दिलो, माय केॅ कल बिहानी ज़रूरे देवघर पहुँचाय दौ। भाय आरो गाय के सींघ भले जन्मोॅ सें अलग रहेॅ, माय के मोॅन आरो कोख कभियो बँटलोॅ नै रहै छै। फेनू माय कौन मारे उमिर काटै लेॅ जाय रहलोॅ छै, महीना पुरतें नै पुरतें देखियौ नी, यहाँ आवै लेॅ धड़पड़ करेॅ लागतौं। हम्में जाय छियाैं दिलो। देखियोॅ माय के मोॅन कलपित्तोॅ नै हुएॅ।"
हमरोॅ कोय बोली नै फुटलै। मौसी उठी केॅ बाहर निकली गेलै। माय आपनोॅ कोठरी में बैठली-बैठली सब बात सुनी रहलोॅ छेलै आरो शैलजा शायत रसोय घरोॅ में होतै, यहीं सें मौसी के जाय के बारे में ओकरा कोय इलिम नै होलै। आरो हमरोॅ तेॅ मने एत्तेॅ टूटी गेलै कि मौसी केॅ रोकै वास्तें नै मुहे खुललै, नै हाथे बढ़लै।
ऊ दिन रात मरुवैलोॅ-मरुवैलोॅ हेनोॅ रहलै। वहेॅ माहौलोॅ में आधो रात के बाद हमरोॅ आरो शैलजा के बात होलोॅ छेलै, जबेॅ माय साथें बच्चा-बुतरू सुती गेलै। हमरोॅ भूल छेलै कि शैलजा मौसी के बात नै सुतलेॅ होतै। जखनी मौसी बोलै छलै, तखनी शैलजा चॉर बीछै के बहाना ऐंगनाहै में बैठली छेलै। सें शैलजाहैं सब तरह सें सोची-विचारी केॅ कहलकै, "जों माय यहेॅ चाहै छेथिन, तेॅ तोहें हिनका पहुँचाय आवौ--जे होतै, जेना होतै, देखलोॅ जैतै।"
"तोहें एकदम ठीक कहै छोॅ। हम्मू सोची लेलेॅ छियै, बिहानके गाड़ी धरी केॅ माय केॅ देवघर धरी ऐवै। माय कहीं है तेॅ नै सोची लेलेॅ छै कि ओकर्है सें हमरोॅ सब भांगटोॅ संभरै छै। रहोॅक जेठा बेटा कन, जेठे बेटां आग देतै।"
आरो विहान होतेॅ न होतेॅ शैलजां माय केॅ जगाय देलकै।
देवघर जाय के बात सुनिये केॅ माय झबझब आपनोॅ कपड़ा-लत्ता एक प्लास्टिक वाला झोली में समेटी लेलकै। शैलजा रास्ता के नास्ता लेॅ रसोईघर घुसी गेलोॅ छेलै।
फरचोॅ होय पर छेलै। गाड़ी ठीक पाँच बजै छै। देखलियै आपनोॅ झोली उठाय सें पहलें मांय बिनू, मिंटू आरो तुलसी केॅ गालोॅ केॅ एकेक करी केॅ चुमलेॅ छेलै।
हमरे नाँखी रास्ता भर माय चुप्पे रहलै। गाड़ी पर चढ़ै वक्ती चेहरा पर जे चमक दिखाय पड़लोॅ छेलै, ऊ अनचोके गाड़ी के खुलत्हैं आलोपित होय गेलोॅ छेलै। बीचोॅ-बीचोॅ में माय हमरोॅ दिश आँख करै--शायत कुछ कहै लेॅ चाहै, मतरकि हमरोॅ नजर ड्रायवर दिश तनले रहलै।
गाड़ी घरोॅ के दुआरिये होय केॅ देवघर बस स्टैण्ड पहुँचै छै। कन्डक्टर केॅ पहिलैं बताय देलेॅ छेलियै, सें दुआरिये पर गाड़ी रुकलै। सामाने की छेलै--बस एक झोली। ओकरा लेल्हैं माय साथ नीचेॅ उतरी ऐलियै। झपटी केॅ झोली ठो दुआरी पर राखलियै आरो दौड़ी केॅ गाड़ी पकड़ी लेलियै। गाड़ी चलै पर होलै तेॅ माय दिश देखलियै--माय के दोनों हाथ आशीर्वाद दै लेॅ ऊपर उठलोॅ छेलै।
दुपहरिया के दू बजतें होतै, जखनी हम्में घोॅर लौटलियै। बिनू, मंटू आरो तुलसी इस्कूले में होतै--ई जानले बात छेलै। शैलजा दुआरिये पर ठाड़ी हमरोॅ इन्तजारी में छेलै।
दुआर पर गोड़ राखत्हैं अनमनैलोॅ ढंगोॅ सें सूचना देलियै, "पहुँचाय ऐलियै, बड़के बेटा केॅ पालौ--छायौ झबरले गाछ केॅ मिलै छै, ठूँठ केॅ नै..." कि हठाते अकचकैतेॅ ठाड़ी शैलजा सें पूछलियै, "अरे ई तोरोॅ हाथोॅ में? ... लगै छै, माय हड़बड़ी में लैलेॅ भूली गेलै।" फेनू झंुझलैतेॅ बोललियै, "आबेॅ एकरा पहुँचावै लेॅ फेनू देवघर दौड़ोॅ।"
हम्में देखलियै हमरोॅ बात सुनत्हैं शैलजा के आँख डबडबाय ऐलोॅ छै। कहलकै, "से बात नै छै, जाय वक्ती माय ई हमरोॅ हाथोॅ में थमाय देलकै, ई कहतें कि होना केॅ हम्में तीनो महिना नै ठहरवौं, तबेॅ माय के ममता। वैं कहतें तेॅ रुकियो जाय लेॅ पड़ेॅ। तोहें घरोॅ के ख्याल राखियोॅ। है पास बुक छौं। सब पन्ना में दसखत करी देलेॅ छियौं। होना केॅ एतना टा टाका सें होवे की करै छै--तहियो।"
शैलजा माय के एकेक बात सुनाय रहलोॅ छेलै आरो हमरोॅ आँखी के सामना दोनों हाथ उठैनें माय फेनू ठाड़ी होय गेलै।