माय / राहुल शिवाय

Gadya Kosh से
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जो वस्तु हमारे पास में होती है उससे अधिक जो नहीं होती है उसके प्रति लोगो की ममता देखने को मिलती है। यही कारन है कि कोई व्यक्ति भले ही इस दुनिया मे नहीं हो पर उसकी याद और उसके नहीं होने का टीस सदा ही रह जाता है। अभी भी जब मैं अपनी आँखों को बंद करता हूँ तो माय (मेरी दादी) को अपने पास पाने लगता हूँ। वो उपर से भले ही कभी-कभी कठोर दिखती थीं पर अंदर से उनका हृदय हमेशा ही कोमल था। उन्हें अपने घरों के बच्चों से ही नहीं बल्कि आस-पास के बच्चों से भी काफी स्नेह था। मुझे विश्वास है कि अगर अभी भी उनकी चर्चा किसी बच्चे के सामने हो जाये तो उस बच्चे की आँख भर आएगी।

मेरी बुआ ने मुझे एक कहानी सुनायी थी जो उनकी चाची ने उन्हें सुनाया था। इस कहानी को मैं बताना आवश्यक समझता हूँ, इसलिए कह रहा हूँ। यह बहुत पुराणी बात है। दादाजी ने अनजाने में एक एसी लडकी का कन्यादान कर दिया था जिसकी कुण्डली में लिखा था कि जो भी इसका कन्यादान करेगा वह निरवंश हो जायेगा। दादाजी को यह बात कन्यादान के अगले दिन पता चली थी। बाद में बहुत हंगामा भी हुआ पर अब पछताने से क्या होता? वैसे तो आज के समय में इन बातों का विशेष महत्व नहीं है पर इस घटना के पाँच दिन बाद उनके एक साल के बेटे का देहांत हो गया। संतान के मरने के दुख से बडा कोई दुख नहीं होता। बुआ को बडी दादी ने बताया कि दादी अक्सर उनके पास जाकर रोया करती थी। वो कहती थी ‘‘जानती हैं न कि जिसको पुत्र नहीं होता उसे स्वर्ग का सुख नसीब नहीं होता है। वह बैतरनी पार नहीं कर पाता। आप ही बताईए कौन मेरे मुख में गंगाजल तुलसी देगा? कौन मुझे मुखाग्नि देगा?’’

दादी ने उस समय इस श्राप को काटने के लिए कई उपाय किए। छठ का सुप भी गछा। अंत में भगवान ने उनकी सुन ली और मेरे पिताजी का जन्म हुआ। इसके बाद मेरी तीन बुआ का जन्म हुआ। लेकिन मेरे पिताजी हमेशा बीमार रहते थे। बडकी माता या चेचक से वो परेशान रहते थे। उस समय में आज की तरह चिकित्सा व्यवस्था कहाँ थी। पर जो भी हो वह कई बार मौत के मुँह से बचकर के वापस लौट आए।

इसके बाद जब पिता जी की शादी हुई तो उन्हें भी लम्बे समय तक कोई संतान नहीं हुआ। फिर माय ने मेरी दूसरी बुआ के दो बच्चों को अपने पास रखा। वैसे तो वे उनकी नानी थी पर हमेशा भैया उन्हें माय ही कहते रहे। बडे भैया जब दस वर्ष के हुए तो मेरी बडी बहन का जन्म हुआ। फिर मेरा और मेरे चार भाई और दो बहनों का जन्म हुआ। हम सब भी दादी को माय ही कहने लगे। जो दादी एक संतान के लिए रोती थी, उनका घर बेटा बेटियों से भर गया था।

मैं जब 11 वर्ष का था तो मेरे बाबा इस दुनिया को छोड के चले गए। दादी इसके बाद नौ वर्षों तक जीवित रही। उनकी मौत लगभग पच्चासी वर्ष की अवस्था में हुई पर मैंने उन्हें कभी भी दूसरों पर आश्रित नहीं देखा। वो एक आईरन लेडी थी। जो शरीर से भले ही मुड गई थी पर उनकी कार्य कुशलता कभी कम नहीं हुई। उस उम्र में भी वह घर का सारा काम कर लेती थी। 20 जनवरी 2013 में कुरूक्षेत्र से घर आया। अचानक से मेरी अंतिम परीक्षा 14 दिन आगे बढ गई थी। जब मैने माय को प्रणाम किया तो उन्होंने मुझे मेरे बडे फुफेरे भाई के नाम से पुकारा। तो मैंने कहा माय मैं राहुल हूँ, पप्पू नहीं। वो हसने लगी कहा जो भी हो नाती नहीं पोता ही सही। अगले दिन मैने उनके कुछ फोटोग्राफ लिए। फिर रात को एक बजे तक उनसे बात की। 23 जनवरी की सुबह उन्होंने कहा उनके सिर में दर्द है तो मैंने कहा आप खाना खा लो तो मैं दवाई दे दूँगा। फिर मैं छत पर खेलने चला गया। अचानक मेरी बहन ने मुझे जोर से आवाज लगाई। मैं नीचे आया तो माय के अकडे शरीर को देखा। वो उस समय खाना खा रही थी। उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ था। मैंने और भैया ने उन्हें गोद पर उठाया और अस्पताल आ गए। उन्हें आई॰ सी॰ यू॰ में भेजा गया। वो दो दिन आई॰ सी॰ यू॰ में जीवित रही। 27 जनवरी की सुबह मेरी बुआ और छोटे पफुपफेरे भैया ने उनके मुख मे मरते समय गंगाजल और तुलसी डाला।

उन दो दिन में उन्हें देखने दादी के भाई, उनकी बेटी-जमाई सब आ गए थे। 27 जनवरी माघ पूर्णिमा के दिन हमने उन्हें कन्धा दिया। गंगा स्नान करवाया। बडे भैया भी कोलकाता से अंतिम संस्कार के समय आ गए। हमने अंतिम सैया तैयार की, पिताजी ने मुखाग्नि दी। कुछ समय बाद वो पंचतत्व में विलीन हो गई, पर मुझे इतना विश्वास है कि इतने पुत्रों की यह माता वैतरनी पार कर गई होगी। उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया होगा क्योंकि इतने पुत्रों की इस माता की हर कांछा पूरी हो गयी थी।