मार्कण्डेय के नाम पत्र / इसराइल
कलकत्ता - 11.12.64
प्रिय मार्कण्डेय भाई,
माया का यह अंक देखने के साथ ही यहाँ दिलचस्प चर्चा छिड़ गई है। हजार प्रतिक्रियाएँ! हजार तरह की बातें। कुछ लोगों का कहना है, पिछले दशक के '54,'55 के आसपास 'कहानी' पत्रिका के माध्यम से जो कुछ हुआ, वह इस दशक में माया के माध्यम से इस बार होगा, एक नयी शुरुआत! साथ ही कुछ बंधु आतंकित भी हैं। ज़ाहिर है, अलग-अलग कारण हैं। डॉ. साहब का समकालीन कहानी पर लिखना भी उत्सुकता से भरा एक इंतिज़ार है। क्योंकि वे पिछले दिनों बहुत-बहुत ख़ामोश रहे, और उन पर लगातार हमले भी हुए। उन्होंने ही कुछ विवादग्रस्त प्रश्न भी उठा रखे थे। लोगों को इसका इंतजार है कि इस बदली परिस्थिति और बदले संदर्भ में उनका अब क्या कहना है।
भीष्म साहनी की आलोचना निर्मम आलोचना है। और इस बोधहीनता की सच्चाई! लोग बहुत-अलग-अलग अर्थ लगा रहे हैं। एक इस तरह कि इस स्थापना को व्यक्त करने के लिए 'बोध' के बदले किसी और शब्द का सहारा लिया जाता। क्योंकि यह 'बोध' खास अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है - शायद-सजगता और चेतनशीलता के अर्थ में। जो हो, था कमाल का और अछूता। यह तो ऐसा ही है - अबोध से बोध और फिर सम्पूर्ण बोधहीनता, जैसे आदिम साम्यवाद से कई व्यवस्थाओं से चलते हुए फिर साम्यवाद तक! बात अच्छी लगी है।
यहाँ बंगला में सुभाष मुखोपाध्याय की एक मशहूर कविता 'पा राखार जायगा' ('पाँव रखने की जगह') की 'नंदन' में ऐसी कड़ी और सटीक आलोचना हुई कि वे पूरी तरह हास्यस्पद स्थिति में खड़े हो गये। कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार थीं -
"हातटा सरिये निन ना, मशाई!
उ दादा, एकटू एगिये जान-
दया करे
सर, एक टू पाराखार जायगा....।"
जाहिर है कि सर, महाशय, दादा-भइया कहकर भीड़ भरी बस में कवि पाँव रखने की जगह की दया मांग रहा है। स्वर में कातर अनुनय विनय है। बस, इस लबो-लहज़ा की सख्त आलोचना हुई है। बहुप्रशंसित कविता उखड़ गई है और सुभाष बाबू साथ ही हास्यास्पद स्थिति में खड़े हो गये हैं।
कुछ कथित मानवीय गुण ऐसे हैं, जिन्हें हर वैचारिक प्याले में भरकर परोस दिया जाता है। और वे भी शराबे-कुहन की तरह अपना नशा बरकरार रखते हैं।
मैं अपने उपन्यास पर काम कर रहा हूँ। थोड़ा-सा लिखना बाकी है। उम्मीद है, जनवरी तक सब ठीक कर लूँगा। पूरा हो जाने पर ही उस पर सोच विचार हो।
'अधूरी कथाएं' नाम की एक कहानी 'कहानी' के नववर्षांक के लिये भेजी है।
मैंने विमल वर्मा को प्रश्न प्रतिक्रिया दे दिया था। हो सकता है, उन्होंने कुछ लिखकर भेजा हो।
और सब ठीक है। पत्र देंगे। वक्तव्य और तसवीर तो मिली होगी।
आपका
इसराइल