मार्गरिता के सोलहवें वर्ष को सलाम / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मार्गरिता के सोलहवें वर्ष को सलाम
प्रकाशन तिथि : 01 अक्टूबर 2014


सोनाली बोस की फिल्म 'मार्गरिता विथ स्ट्रॉ' को 39वें एशिया फिल्म फेिस्टवल में पुरस्कृत किया गया है। यह फिल्म शारीरिक कमतरी के साथ पैदा हुए लोगों के जीवन आैर सोच के अब तक अनछुए पहलू पर प्रकाश डालती है आैर यह पहलू है उनके मन में जागते यौन संबंध की इच्छाआें का। सामान्य व्यक्ति की इस तरह की इच्छा को स्वाभाविक माना जाता है तो कमतरी के शिकार लोगों में इसे अस्वाभाविक क्यों माना जाए क्योंकि यौन संबंध की इच्छा मानव ह्रदय में जागती है आैर शारीरिक अपंगता का इससे कोई संबंध नहीं है। सच तो यह है कि तथाकथित रूप से सामान्य व्यक्तियों के मन में शारीरिक या मानसिक कमतरी वाले व्यक्तियों के बारे में जो अधूरी जानकारी आैर संवेदनहीनता है उसे उनकी अपंगता माना जाना चाहिए। सैक्स इच्छा के अनियंत्रित अतिरेक आैर अपने मन के बीहड़पन के कारण बलात्कार करने वाले लोगों को ही अपंग माना जाना चाहिए। यह उनकी मानसिक हिंसा आैर अपंगता ही है जिससे बलात्कार जैसे जघन्य अपराध होते हैं।

इस फिल्म की सोलह वर्षीय नायिका मार्गरिता को जन्म के समय यथेष्ठ ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण उसके दिमाग में केमिकल लोचा हो गया है आैर शरीर के कुछ अंग आड़े-ितरछे हो गए हैं तथा इस टेढ़ेपन पर उनका नियंत्रण नहीं रहता परंतु मन में सभी सामान्य इच्छाएं जागती हैं। उनके ह्रदय में इच्छाआें आैर अक्षमताआें की कशमकश हमेशा चलती रहती है आैर इस 'मिक्सी' में ख्वाबों के चिथड़े हो जाते हैं जैसे उनका कीमा कूटा गया हो। यह विषय बेहद संवेदनशील है आैर सामान्य माने जाने वाले लोग भी यौन संबंधों के सूक्ष्म संसार में अपनी पैदाइशी कमतरी से आहत ही रहते हैं। इस क्षेत्र में प्रकृति नारी के प्रति उदार आैर पुरुष के प्रति किंचित कंजूस रही है जिस कारण पुरुष नारी के खिलाफ भांति-भांति के षड्यंत्र आैर छलावे रचता है। अत: अपंगता व्यापक है परंतु उसकी आेर ध्यान केवल उन क्षेत्रों में दिया जाता है जहां वे शारीरिक कमतरी के लक्षणों के साथ प्रस्तुत हैं परंतु अनेक सामान्य माने जाने वाले लोगों की भयावह कमतरियां अदृश्य ही रहती हैं आैर यही मनुष्य में छुपा अदृश्य 'मिस्टर एक्स' अपराध करता है।

सोनाली बोस की फिल्म मेें मार्गरिता को इंटरनेट पर अश्लील फिल्म देखते हुए उसकी मां पकड़ लेती है तो उनमें विवाद होता है। मां इच्छा संसार को स्वीकार नहीं करती, बेटी अपंगता के बावजूद उस संसार को जानना चाहती है। प्राय: सामान्य युवती ऐसे विवाद में दरवाजा बंद करके एकांत की शरण में चली जाती है परंतु बेचारी मार्गरिता तो यह भी नहीं कर सकती। दरवाजे से याद आया मेहबूब खान की अमर कृति मदर इंडिया का दृश्य जिसमें हाथ कटा राजकुमार दरवाजे पर दस्तक सुनकर दरवाजा खोलने के लिए दौड़ता है। क्षण भर के लिए वह भूल गया था कि उसके हाथ कटे हैं। इसे मेडिकल जबान में 'फैंटम लिम्ब' कहते हैं। अंग कटने के बाद भी मनुष्य मन जिस क्षण उस यथार्थ को भूल जाता है उस क्षण में वह 'फैंटम लिम्ब' से पीड़ित है।

कुछ दिन पूर्व ही 'जिंदगी' चैनल पर एक अंधी आैर अधजले चेहरे वाली युवा का अपने संगीत शिक्षक से प्यार हो जाता है, शादी तय हो जाती है। एक दिन हारमोनियम के पास रखे लकड़ी के पैर का वह स्पर्श करती है तो उसे ज्ञात होता है कि भावी पति का एक पैर नहीं है। इस प्रकरण में उसे ज्ञात होता है कि उसके चेहरे के झुलसे हिस्से का अहसास उसकी मां ने उसे होने नहीं दिया। हमेशा उसे खूब सुंदर कहती रही ताकि अपने अंधत्व का गम उसे कम हो जाए। अब वह लंगड़े पति के प्रेम को समझ पाती है। कई बार कमतरियों पर परदा डालकर मनुष्य भरम बनाए रखता है। संभवत: जीवन में यथार्थ से आंख मिलाने की ताकत की तरह ही कुछ भरम पालने की भी आवश्यकता है।

आज के माता-पिता को जानना चाहिए कि उनके सामान्य बच्चे इंटरनेट पर क्या देख रहे हैं। दरअसल सोलहवां साल जीवन की अलसभोर का समय है, कविता का समय है- इस वय के सुरमई अंधेरे को संवेदना से देखें। सोनाली बोस को सलाम, मार्गरिता को सलाम।