मासामोआ / शायक आलोक
मासामोआ नामक गाँव में एक सुन्दर स्त्री रहती थी। इस सुन्दर स्त्री के तीन प्रेयस थे। वह तीनों से बराबर बराबर प्रेम करती थी। उसने उन्हें प्रेम के उपनाम भी दिए। यह सिलसिला बरसों चलता रहा। एक रोज उस गाँव में एक पत्थरों काव्यापारी पंहुचा। उसके पास कीमती नगीने थे। स्त्री की सुन्दरता से रीझ कर उस व्यापारी ने उसे एक नगीना उपहार में दिया। मूल्य चुकाते हुए सुन्दर स्त्री ने उसे एक प्रेम पत्र लिखा। प्रेम पत्र में तीन जगहों पर उसने वे तीन उपनाम प्रयोगकिये जो वह अपने तीन प्रेयसों के लिए करती थी। गाँव से लौटते उस व्यापारी का वह प्रेम पत्र सराय में गिर गया। पत्र के शब्दों की सुन्दरता देखते हुए सराय के सिपाही ने वह पत्र सेनापति तक पहुंचा दिया। पत्र के कोमल भाव से वहसेनापति उस अज्ञात स्त्री पर मोहित हो गया। उसने सैनिकों से उस स्त्री का पता लगाने को कहा। एक रोज उस स्त्री और उसके तीनों प्रेयसों को सेनापति के सामने हाजिर किया गया। पूरा प्रकरण जानकर तीनों प्रेयस एक दूसरे से लड़ पड़ेऔर एक दूसरे की जान ले ली। सेनापति ने उस सुन्दर स्त्री को कसूरवार मानते हुए उसे दण्डित करने का आदेश दिया। अपने अंतिम शब्दों में सुन्दर स्त्री ने कहा वह अपने मन के भावों से प्रेम करती है, शब्द उसे प्यारे हैं। वह भरे दरबार मेंबोल पड़ी- “श्रीमान, मेरे शब्दों पर आप मर मिटे तो कसूर मेरा क्यों ?” सेनापति ने उसे माफ़ कर दिया। कहते हैं उस रोज से मासामोआ की स्त्री स्वतंत्र हो गयी।"