मासूमों की मृत्यु : गर्म हवा और सर्द व्यवस्था / जयप्रकाश चौकसे

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मासूमों की मृत्यु : गर्म हवा और सर्द व्यवस्था
प्रकाशन तिथि : 21 जून 2019


कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म में बच्चे एक भटकते हुए कुत्ते को शरण देते हैं। मंत्रीजी का आदेश है कि शहर की स्वच्छता की खातिर आवारा कुत्ते पकड़ लिए जाएं और जंगल में मरने के लिए छोड़ दिए जाएं। फिल्म के अंतिम दृश्य में टीवी स्टूडियो में मंत्रीजी और बच्चे सवाल-जवाब करते हैं। विवाद में मंत्री महोदय की करारी पराजय होती है। इस फिल्म का नाम था 'चिल्लर पार्टी'। फिल्म 'चिल्ड्रन ऑफ हैवन' में बहन-भाई के पास एक ही जोड़ी जूते हैं। बहन सुबह के स्कूल में पढ़कर लौटती है तो भाई जूते पहनकर दोपहर के स्कूल में जाता है। बेचारे बच्चों के इकलौते जोड़ी जूते चोरी चले जाते हैं। जब वे चोर को खोजते हुए उसके घर पहुंचते हैं तब उस परिवार को अपने से भी अधिक साधनहीन पाकर लौट आते हैं। विगत कुछ वर्षों से ईरान में मानवीय करुणा से ओतप्रोत फिल्में बन रही हैं। 'स्लमडॉग मिलेनियर' में झोपड़पट्टी में पला बालक एक ज्ञान स्पर्धा में सबसे बड़ा पुरस्कार पाता है। वह बालक जीवन की पाठशाला में पला है और घटनाओं से ही उसने ज्ञान पाया है।

फिल्म में प्रश्न पूछने वाला जानकार बच्चे को गुमराह करता है, क्योंकि श्रेष्ठ वर्ग को यह बड़ा बुरा लग रहा है कि एक साधनहीन बालक इतना बड़ा पुरस्कार जीत रहा है। कितना छोटा दिल होता है दौलत वालों का। चेतन आनंद की फिल्म 'आखरी खत' में एक 4 वर्ष का मासूम महानगर में अपने पिता को खोज रहा है, जिसे उसने कभी देखा ही नहीं। उसकी मां ने अपनी मृत्यु के पहले उसे खत दिया था। पहाड़ों में पुरानी प्रेम कथा है कि महानगरी लोग ग्रीष्म ऋतु में पहाड़ों पर जाते हैं और उनकी अय्याशी से पहाड़ों का कद छोटा हो जाता है। मनुष्य अपने भीतरी बौनेपन से, विराट को लघुतम बना देता है। इस पुरातन कथा में जीनियस चेतन आनंद ने नए प्राण फूंक दिए। उन्होंने शूटिंग करते समय अपना कैमरा छिपा लिया था, वह अवाम की स्वाभाविक निर्ममता को कैमरे में कैद करना चाहते थे। ज्ञातव्य है कि चेतन आनंद की शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी और गुरुदेव टैगोर के शांतिनिकेतन में हुई थी। यूरोप की एक फिल्म में एक अस्पताल में आग लग जाती है। अस्पताल से लगा एक अनाथालय है। आग बुझाने आया दल अनाथालय को खाली करा लेता है।

अब समस्या सामने आती है कि आधी रात को बच्चों को कहां ले जाएं। वे फैसला करते हैं कि निकट ही एक वृद्ध आश्रम है, उस आश्रम में रहने वाले उम्रदराज शांति के अभ्यस्त हैं। बच्चों के शोरगुल से त्रस्त हो जाते हैं। समय बीतने के साथ उम्रदराज और बच्चों में मित्रता हो जाती है। बच्चों की मस्ती उम्रदराज लोगों को अपनी यादों के गलियारे में ले जाती है। एक उम्रदराज की मृत्यु हो जाती है और उसके साथी यह तय करते हैं कि बच्चों से सत्य छिपाकर आधी रात के बाद में मृतक को कब्रिस्तान ले जाएंगे। वे ऐसा ही करते हैं, परंतु कब्रिस्तान में बच्चे उनके पहले ही पहुंच चुके हैं। बच्चों को नादान व मूर्ख समझना एक भूल है। बिहार के मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत हो रही है। गरीबी व्यापक बीमारी है। बच्चे अलसुबह उठ जाते हैं और लीची खा लेते हैं। भूखे बच्चों के शरीर में शकर का अभाव है और खाली पेट लीची खाने से मारक मिथाइलीन साइक्लोन प्रोफाइल ग्लाइसिन का कष्ट हो जाता है। जिस कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। भरे पेट लीची खाने से यह बीमारी नहीं होती। सबसे पहले जमैका में इस बीमारी ने कहर ढाया था।

सरल सी बात है कि बच्चों को भोजन मिले तो उन्हें कुपोषण नहीं होगा और लीची खाने से मौत भी नहीं होगी। हमने तो गरीबी का उत्पाद किया है। भूख ने बड़े प्यार से हमें पाला है। लीची हमारे रक्त में शकर की मात्रा को कम कर देती है और भूखों के शरीर में न प्रोटीन है न शकर। भारत को विश्व में अत्यंत कुपोषित देश माना जाता है और हमारी राष्ट्रीय आय का अधिकांश हिस्सा देश की सुरक्षा के लिए हथियार खरीदने में खर्च हो रहा है। सच है कि देश की सुरक्षा सबसे ऊपर है, परंतु बच्चे मर रहे हैं तो हम क्या और किसके लिए बचा रहे हैं। महत्वपूर्ण है बजट में संतुलन का होना कि हथियार भी खरीदे जाएं और कुपोषण से होने वाली मौत से भी बचें।