मासूम बाबा / शानी
बस एक ही मिसरा महफ़िल की छत धुनने के लिए काफ़ी था ! ढोलकवाला बाईं तरफ़ गर्दन टेढ़ी किए पूरे जोश में आकर भरपूर थाप दिए जा रहा था, जिससे उसके लम्बे बाल थरथरा-थरथराकर चेहरे को ढंकने लगते थे। ऐसे अवसर पर एक झटका देकर वह बालों को पीछे फेंकता और किशन कव्वाल की ओर देखने लगता । किशन कव्वाल हारमोनियम की रीड्स पर फुर्ती से उँगलियाँ फेरता-फेरता धौंकनी चलाने वाला हाथ एकाएक छोड़, जरा आगे बढ़ा देता और पुरजोश आवाज़ में वही मिसरा दोहरानेलगता जिसने लगभग सात मिनट से पूरी महफ़िल में जादू-सा तारी कर दिया था-
ख्वाजा तेरे नयनों में मैं खो गई !
पहले कव्वाल के पास बैठे रहमत भाई को वज्द आया और बेख़ुदी के आलम में वह झूमते हुए खड़े हो गए । उनके उठते-न-उठते लालखाँ काँपने लगा । महमूद मियाँ को दो युवकों ने आगे बढ़कर संभाला और शहाबुद्दीन के हाथ से तस्बीह छूटकर गिर पड़ी ।
ख्वाजा तेरे नयनों में मैं खो गई !
मासूम बाबा अभी तक केवल संजीदा बने बैठे हुए थे । थोड़ी देर तक उनका सिर हिलता रहा, फिर अचानक अपनी उँगलियों में फँसी दोनों सिगरटें फेंककर एक झटके के साथ वह उठ खड़े हुए और सिर धुनने लगे । उनका उठना था कि पूरी महफ़िल पर किसी ने जादू-सा कर दिया । क़रीब-क़रीब हर आदमी अपनी जगह पर खड़ा हो गया और वज्द के आलम में झूमने लगा। किशन की आवाज़ मेंसौ-सौ बिजलियाँ लपकीं और ढोलकवाले ने यों गर्दन टेढ़ी की कि बालों से चेहरा ढँक जाने की भी परवाह न की।
जाजिम और पुराने बिछावन को बाँधकर औरतों के लिए परदा कर दिया गया था । जाजिम के सूराखों में कई-कई आँखें आ टिकीं और परदे के जोड़-जोड़ पर कई उजली-गोरी उँगलियाँ झाँक गईं।
पैट्रोमेक्स की झक-झक करती रोशनी में मासूम बाबा का समूचा व्यक्तित्व पर्दे के उस ओर के लोगों में समाने लगा। दुबला-पतला छरहरा शरीर, गहरा साँवला रंग, लंबा क़द और भावपूर्ण बड़ी-बड़ी आँखें। गर्दन से घुटनों तक लाल साटिन का ढीला-ढाला झुब्बा और टखनों से ऊँची शलवार! उनकी दोनों कलाइयों में पड़ी हरी-हरी चूड़ियाँ बड़े मीठे ढंग से बज रही थीं। थोड़ी ही देर बाद जाजिम के किसी बड़े सूराख पर अधिकार किए हुए एक लड़की (जिसका अपने पास बैठी औरत से केवल इसी बात पर झगड़ा हो गया था कि वह स्वयं आध घंटे से सूराख पर आँख जमाए बैठी थी और दूसरों को देखने का मौक़ा नहीं दे रही थी) ने आसपास के लोगों को झुक-झुककर एक ताज्जुब की बात बताई कि मासूम बाबा रो रहे हैं!
किशन कव्वाल की आवाज़ का सोज सबको बाँध लेता है। कम्बख़्त ने आज यह क्या किया कि एक मिसरे से ही महफ़िल को लूट लिया!
शहर में मासूम बाबा किसी का अता-पता पूछते नहीं आ गए