मास्करोबोट / मनोहर चमोली 'मनु'
विज्ञान प्रसार से संबंधित खबरों की कतरनों में उलझे शिक्षक जलीस अहमद का मोबाइल लगातार घनघना रहा था। अनमने भाव से और लगभग झुंझलाते हुए उन्होंने मोबाइल पर कहा-”हैलो। कहिए।” मोबाइल से स्वर जलीस अहमद के कानों पर पड़ा। उन्होंने सुना-”नमस्ते सर। मैं सुजाता। सर आज मैं बहुत खुश हूँ।” जलीस खुशी से चिल्ला ही पड़े-”सुजाता! सुजाता पुरी न? अरे! भई तुम हो कहॉ। अचानक कहां गायब हो गई थी। इतने सालों बाद! कहॉ हो? कैसी हो?”
“दिल्ली में ही हूँ। इण्डियन इनस्टिट्यूट् ऑफ मिसाइल एंड टेक्नालॉजी में। बाकी बातें बाद में। फिलहाल आपके घर के बाहर काले रंग की एक कार खड़ी है। नंबर है, डी0एल0 2047. चालक आपको सीधे एयरपोर्ट ले आएगा। आपको विशेष विमान से यहां पहुंचना है। सर। अब हमारे देश के जवान सीमा की सुरक्षा करते हुए अकारण नहीं मारे जाएंगे। आप तो जानते ही हैं, मैंने पहले अपने पिता को और फिर दोनों भाइयों को खोया है। मैं सबसे पहले आपको ही इस नई खोज की परफॉरमेंस दिखाना चाहती हूं। आप....।”
जलीस अहमद प्रसन्न मुद्रा में बोले-” वेलडन! मेरी बच्ची। वेलडन। बस। फोन पर कुछ नहीं। मैं आ रहा हूँ।” विशेष विमान से जलीस इण्डियन इनस्टिट्यूट् ऑफ मिसाइल एंड टेक्नालॉजी पहुँच गए। द्वार पर ही सुजाता खड़ी थी। जलीस अहमद के चरण छूते हुए बोली-”आइए सर। बस आपकी ही कमी थी। मैं आपसे कहती थी न कि युद्ध में अकारण ही कई इंसान मारे जाते हैं। अब ऐसा नहीं होगा। लक्ष्य को छोड़कर जान-माल की हानि न होगी।”
जलीस मुस्कराते हुए कहने लगे-”ओह! तो हमारी सुजाता ने भूमिगत रहकर इतिहास रचने वाला काम कर ही दिया। खैर। लैब में ले चलो। जरा हम भी तो देखे कि आखिर इतने सालों तक तुमने क्या किया।” वे दोनों अब अत्याधुनिक प्रयोगशाला के भीतर थे। तभी जलीस अहमद बोले-”लैब के अंदर इतने सारे मच्छर। ये देखो। एक तो मेरी कलाई पर ही आ बैठा है।” उन्होंने अपना हाथ हवा में घुमाया। सुजाता ने संयत भाव से कहा-”सर ये मच्छर नहीं है। हमारा ‘मास्करोबोट’ है।”
जलीस चौंके-”मास्करोबोट! यू मीन बनावटी मच्छर हैं ये, जो हवा में घूम रहे हैं। अद्भुत।”
सुजाता ने जवाब दिया-”जी हॉ। वो देखिये सर। उस विशालकाय स्क्रीन पर। जिसे आप मच्छर समझ रहे हैं। वो हमारा मास्करोबोट है। इसने आपके शरीर का एक्सरे कर सारी सूचनाएं हमारे कम्प्यूटर को दे दी है। आपके पास दो रूमाल, घर की तीन चाबियों से जुड़ा एक गुच्छा। पर्स में तीन हजार पॉच सो तीस रूपये, आपका स्कूल का पहचान पत्र, पैन कार्ड, एक बेल्ट और दो पेन हैं। गले में हॉलमार्कयुक्त तीस ग्राम सोने की चेन है। ये देखिए। आपके शरीर के भीतर सुबह किया हुआ नाश्ता जिसमें चाय और ब्रेड थी। इसकी जानकारी तक इस मास्करोबोट ने हमें दे दी है। इसने ये भी बता दिया कि पिछले 24 घंटे में आप 5 घंटे 45 मिनट और 51 सेकण्ड की ही निद्रा ले पाए हैं। अभी आप प्रसन्न मुद्रा में हैं। दो घंटे पहले आप मेरे प्रति बेहद चिंतित थे। ये सब सूचनाएं उसी मास्करोबोट ने हमें उपलब्ध करायी है, जो आपकी कलाई पर जा बैठा था। दिलचस्प बात ये है कि से सामान्य मच्छर से पॉच सो गुना फुर्तीला है। हम आपके बारे में और अधिक जानकारी इस मास्करोबोट से ले सकते हैं।”
जलीस के चेहरे पर कभी आश्चर्य,कभी प्रसन्नता, तो कभी अति उत्साह के मिले-जुले भाव आ-जा रहे थे। सुजाता ने कहा-”आइए सर। हमारी टीम ने ऐसे 100 मास्करोबोट तैयार कर लिए हैं। हर एक का अपना कोड है। ये सब मेरे एक ही निर्देश पर अनूठा काम करने को तत्पर हैं।”
जलीस बोले-”मैं समझ गया। ये मच्छर से दिखने वाले रोबोट सौ शक्तिशाली मिसाइल की तरह काम करेंगे। है न?”
सुजाता मुस्कराई-”बिल्कुल सर। आप जब हमें पढ़ाते थे, तो अक्सर जैव विविधता की सुरक्षा की बात करते थे। आप कहा करते थे कि इस धरती में एक-एक जीव का महत्व है। युद्ध और देश की सीमा सुरक्षा में की गई कार्यवाही में सैकड़ों जवान हताहत होते हैं। बमबारी से कई अनमोल संपदा नष्ट हो जाती है। लेकिन सर अब ऐसा नहीं होगा। कम से कम हमारा देश जैव विविधता को बचाये और बनाये रखने में महती भूमिका निभा सकेगा। निर्दोष जनता भी युद्ध की भयावह त्रासदी का हिस्सा नहीं बनेगी। ये मास्करोबोट अब हिंदुस्तान की सरजमीं पर कहीं भी लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। दुश्मन को पहचान कर कृत्रिम रूप से काटने भर से मौत की नींद सुला सकते हैं। या गहरी नींद में सुला सकते हैं। ऐसी नींद जो फिर तभी खुलेगी, जब हम चाहेंगे। न कोई गोलाबारी, न कोई शोर-शराबा। हमने उच्च तकनीकी से समूचे भारत के भूभाग का मानचित्र भी विकसित कर लिया है। पलक झपकते ही ये कहीं भी जा सकते हैं। ये सेकण्ड के दसवें हिस्से के अंतराल पर वांछित सूचनाएं हमें उपलब्ध करा सकते हैं।”
जलीस ने बीच में ही कहा-”एक मिनट। जरा मेरे स्कूल में तो भेजिए कुछ मास्करोबोट। मैं भी तो देखूं कि मेरे स्कूल में क्या हो रहा है।” यह कहकर जलीस ने कागज पर स्कूल का पता लिखकर सुजाता को दे दिया। सुजाता की अंगुलियां कंप्यूटर के की-बोर्ड पर नाचने लगी। उसने कहा-”एक मास्करोबोट ही काफी है।” सुजाता ने टाइप किया, ‘प्राथमिक स्कूल नीतिरासा, जनपद देहरादून’। स्क्रीन पर तत्काल जलीस का स्कूल उभर आया।
सुजाता ने कहा-”ये लीजिए सर। अब आप एक-एक कक्षा में हो रही गतिविधियां देख सकते हैं। मास्करोबोट ने वहां पहंुचकर आपको सीधा प्रसारण दिखाना शुरू कर दिया है। लेकिन हमारा मास्करोबोट सिर्फ इतना करने के लिए नहीं बना है। ये आपको बता सकेगा कि आपके स्कूल के शिक्षक इस समय बच्चों को जो कुछ भी पढ़ा रहे हैं उसका बच्चों के मन-मस्तिष्क में क्या असर पड़ रहा है। वह ये संकेत भी देगा कि एक-एक बच्चा इस समय क्या सोच रहा है। हमें यह भी पता चल जाएगा कि बच्चों के बैग में कौन-कौन सी किताबें हैं। उनकी कॉपियों में क्या-क्या लिखा गया है?”
सुजाता की अंगुलिया की-बोर्ड से कुछ संकेत टाइप कर रही थी और मास्कोरोबोट उनका पालन कर रहा था। कुछ ही समय में मास्कोरोबोट ने समूचे स्कूल की रिपोर्ट कंप्यूटर में भेजनी शुरू कर दी। जलीस अहमद उन रिपोर्टों को पढ़कर कभी हैरान हो रहे थे तो कभी हौले से मुस्करा देते।
सुजाता का उत्साह देखते ही बनता था। वह बोली-”सर। माफ कीजिएगा। यदि आप कहें तो एक क्लिक से आपके स्कूल के 188 बच्चे और 7 लोगों का विद्यालयी स्टॉफ तब तक सोता रहेगा, जब तक मास्करोबोट नहीं चाहेगा। यही नहीं ये मास्करोबोट किसी भी व्यक्ति को स्कूल के भीतर आने से पहले ही अचेत कर देगा। यदि आप चाहें तो सिर्फ चालीस सेकंड के लिए सभी कक्षाओं के बच्चों को सुला दिया जाए?”
जलीस ने जोर से ठहाका लगाया। कुछ देर सोचा और कहा-”ठीक है। अनुमति है। पर जरा सावधानी से।” सुजाता ने की बोर्ड पर 40 सेकंड टाईप किया। वहीं पलक झपकते ही सारे बच्चे और स्कूल स्टाफ ने पलके मूंद लीं। ठीक चालीस सेकंड बाद वे स्वतः ही जाग गए। उन्हें आभास तक न हुआ कि वे चालीस सेकंड के लिए निद्रा भी ले चुके हैं। जलीस अहमद आगे बढ़े और सुजाता के सर पर हाथ रखकर बोले-”शाबास बेटी। ये तो ऐतिहासिक और अकल्पनीय आविष्कार है। विज्ञान प्रगति की अचूक और बेमिसाल तकनीक। हमारी सरहद तक तो ठीक है। लेकिन विश्व स्तर पर भी क्या ये मास्करोबोट.....?”
सुजाता ने लंबी सांस लेते हुए कहा-”तभी तो आपको याद किया है मैंने सर। अभी आपने देखा न। आपके स्कूल के बच्चों को मैंने पल भर के लिए सुला दिया। मैं चाहूँ तो हिंदुस्तान के किसी भी संस्थान, गांव, शहर को लक्ष्य बनाकर वहां के जीवित मनुष्यों को सुला सकती हूॅ। उन्हें मार भी सकती हूं। ये सौ मास्करोबोट एक क्षण में सौ शहरों की पांच कि.मी.में रहने वाली समूची मानव आबादी को हमेशा के लिए सुला सकते हैं। विज्ञान चमत्कार भी है तो अभिशाप भी। मैं और मेरी टीम के 11 साथियों ने अथक मेहनत कर इन्हें विकसित किया है। संस्थान का करोड़ों रुपया इस तकनीक को विकसित करने में लग चुका है। अब देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए ये अचूक रोबोट तैयार हैं। सौ से एक हजार मास्करोबोट बनाने के लिए सरकार की अनुमति और विश्वास भी तो चाहिए। गांधी जयंती पर मुझे ये तकनीक देश को समर्पित करनी है। आपकी सहमति चाहिए और आशीर्वाद भी।”
जलीस अहमद चौंक उठे। कहने लगे-”तुम आशंकित क्यों हो? हमारे देश का एक-एक नागरिक देश हित में जान देने को तैयार है। हमारी सरकारें देश की अस्मिता और अखण्डता के लिए तुम्हें भरपूर सहयोग करेगी। रही बात इसके दुरुपयोग की तो। ऐसी नादानी किसी भी देश का नेतृत्व नहीं कर सकता। हिरोशिमा और नागासाकी का उदाहरण हमारे सामने है। तुम चिंता मत करो। ये बताओ कि विश्व स्तर पर इन मास्करोबोट के लिए क्या-क्या चुनौतियां हैं?”
सुजाता गंभीर हो गई। कहने लगी-”एशियाई मित्र देशों के ई-नक्शे तो हम तैयार कर चुके हैं। बस परीक्षण बाकी है। समूचे विश्व के ई-नक्शों को एकत्र करने से अच्छा होगा कि हम उन देशों की सरहदों को रेखांकित करें जिनसे भविष्य में टकराव की संभावना है। इसके लिए विदेश विभाग के सहयोग की आवश्यकता है। दूसरा ये मास्करोबोट अभी लक्ष्य क्षेत्र के पांच किलोमीटर की परिधि में ही काम कर पाएंगे। इनकी शक्ति बढ़ाने के लिए हमें अति नेनो तकनीक और नेनो सुपर कंप्यूटरों की आवश्यकता है। इस संदर्भ में सरकार के साथ मध्यस्थता के लिए आपसे अधिक विश्वस्त मेरे लिए कौन हो सकता है। तीसरा भारत के कोने-कोने में सौ नकली मानवों पर मास्करोबोट का परीक्षण किया जाना है। ताकि हम दावे के साथ कह सके कि हम असंदिग्ध और पहचाने जा चुके शत्रु को अपने देश में कहीं भी ढेर कर सकते हैं।”
जलीस एकदम बोल पड़े-”ये सब तुम मुझ पर छोड़ दो। जहां तक मैं समझ पाया हूं तो ये तकनीक हमारे देश के लिए बेहद काम की है। कितने लोग जानते हैं कि परमाणु बम के विस्फोट के प्रभाव से नागासाकी में 9 अगस्त 1945 से सन् 2010 तक डेढ़ लाख से अधिक इंसान मर चुके हैं। हिरोशिमा में लगभग दो लाख सत्तर हजार लोगों की मौत हो चुकी है। यह सामान्य बात नहीं है। सामान्य बम हो या परमाणु बम। उनके विस्फोट से जो ऊर्जा निकलती है, वो बेहद विनाशकारी होती है। हम सभी जानते हैं कि विस्फोट के साथ रेडियोधर्मी विकिरण बड़े पैमाने में निकलता है। मानव शरीर के लिए ये बहुत हानिकारक होता है। हिरोशिमा में परमाणु बम गिरने के बाद तीन सेकंड तक वहां का तापमान लगभग चार हजार डिग्री सेल्सियस तक रहा। लोहा डेढ़ हजार सेल्सियस पर गलता है। परमाणु बम के विस्फोट स्थल से कई किलोमीटर दूर तक बसे सैकड़ों लोगों पर भी रेडियोधर्मी विकिरण का दुष्प्रभाव पड़ा था, ये किसी से छिपा नहीं है। यह प्रभाव सालों तक बना रहता है। मानव शरीर की बात करें तो खून बनाने का तंत्र ही नहीं कोशिकाओं सहित कई अंगों का कार्य प्रभावित हो जाता है। परिणाम साल दर साल मौत है। मास्करोबोट सिर्फ और सिर्फ लक्ष्य जीवों पर केंद्रित रहेंगे। तुम्हें और तुम्हारी समूची टीम को बधाई।”
सुजाता की आंखों में चमक थी। वह कहने लगी,”सर अभी काम अधूरा है। देश को बाह्य शक्तियों से भी तो बचाना विज्ञान का दायित्व है।”
जलीस ने तत्काल जवाब दिया,”हम सभी का दायित्व है सुजाता। तुम भी तो प्रयोगशाला में ही सारी उम्र गुजार सकती हो। फिर क्यों नई तकनीक विकसित करने में उलझी हो? मैं क्यों तुम्हारे आग्रह पर आ गया? आपकी टीम के सभी साथी क्यों इतने संवेदनशील हैं? ये दायित्व हर संवेदनशील प्राणी का है। अरे! हॉ। ये मास्करोबोट तो केवल मनुष्य को ही काटेंगे न। आखिर ये हैं तो मानवनिर्मित ही। तो फिर क्या इन्हें मनुष्य को पहचानने में धोखा नहीं हो सकेगा? क्या ये लक्ष्य से नहीं भटक सकते?” जलीस अहमद ने पूछा।
सुजाता ने विनम्रता से कहा-”आप से क्या छिपाना सर। आम तौर पर मनुष्य कहीं भी हो। उसके शरीर का तापमान लगभग 37 डिग्री सेल्सियस होता है। हमने मास्करोबोट को 35 से 40 डिग्री पर नियंत्रित किया हुआ है। मानव के शरीर का तापमान उसके आसपास के हवा के तापमान से थोड़ा ज्यादा होता ही है। बस इसी अंतर को ये पहचान लेंगे और सीधे सांस लेने वाले प्राणी के पास चले जायेंगे। अब दूसरा सवाल यह हो सकता है कि ये प्राणी मनुष्य से इतर कोई और भी हो सकता है। हमने मानव के पसीने के घोल को कई श्रेणियों में विभाजित किया है। ये मानव के शरीर में आने वाले पसीने की गंध को पहचानते हुए ही उस तक पहुंचेगे। जैसा आपके साथ हुआ और अभी आपके स्कूल में भी। ये भी संभव है कि कोई मनुष्य ऐसे वस्त्रों और कवच से ढका हो, जहां मास्करोबोट पसीने या उसके शरीर के तापमान को न खोज पाए। इस स्थिति में हमने मानव श्वास की पहचान इन्हें कराई है। मानव कहीं भी रहेगा, श्वास तो लेगा ही। श्वास में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और कार्बनडाइऑक्साइड के मिश्रण को ये मास्करोबोट त्वरित पहचान लेता है, सो ये गलती कर ही नहीं सकता। हमने मानव गंध के न्यूनतम स्तर की पहचान की शक्ति अपने मास्करोबोट को दी है। कृत्रिम मानव में हमें कृत्रिम मानव सांस भरनी होगी, ताकि मास्करोबोट उन्हें बेध सके। एक परीक्षण असल मानव पर भी करना होगा, लेकिन वो परीक्षण तो सरहद के पार से निकट भविष्य में कभी होने वाले घोषित या अघोषित युद्ध के समय में ही हो सकेगा।”
जलीस अहमद ने स्नेह से सुजाता की ओर देखा-”गुड। बाकी मुझ पर छोड़ दो। गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में भी मेरे कई शिष्य हैं। वे कब काम आएंगे। देश की सुरक्षा के साथ-साथ मानव हित में ये तकनीक विश्व पटल पर हमारे देश को ओर सशक्त करेगी। सुजाता। तुम अपने काम पर जुटी रहो। मैं अभी से शेष काम मे लग जाता हूं। कल नहीं, आज नहीं मुझे अभी से तुम्हारे इस मिशन में हिस्सेदार बनना है। मैं सबसे पहले उच्च स्तर पर इसके परीक्षण की अनुमति की पूर्व तैयारी करता हूं। बेस्ट ऑफ लक।” यह कहकर जलीस तेजी से प्रयोगशाला से बाहर चले गए। सुजाता आदर भाव से उन्हें देखती रह गई। उसके सहयोगी फिर से काम पर जुट गए।