मास्टर प्लान / सुकेश साहनी
मई की जलती हुई धूप थी, गर्म हवा के झोंके-से चल रहे थे। ऐसे में गरीबे एक पेड़ के नीचे बैठा सोच रहा था कि कल डाकखाने जाकर रतन को तीन सौ रुपए का मनीआर्डर ज़रूर कर देगा। वह बहुत कोशिश के बाद इतने रुपयों का जुगाड़ हो पाया था। चाहे जैसे भी हो उसे रतन को पढ़ाना है। आखिर एक ही बेटा है उसका। सोचते-सोचते वह चौंक पड़ा। मंगलू का बेटा तेजा उसी की ओर दौड़ा आ रहा था।
"चच्चा, तुम्हारे खेत में सरकारी आदमी आए हैं!" वह दूर से चिल्लाया।
गरीबे का दिल धक्-धक् करने लगा। न जाने कौन-सी मुसीबत लेकर आए हैं ये लोग। वह लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ अपने खेत की ओर बढ़ चला। उसने उन्हें काफी दूर से ही देख लिया। एक बाबूनुमा व्यक्ति अपने सहायक के साथ ऊँच-नीच मापने की मशीन (डम्पी लेवल) पर झुका हुआ था। गरीबे का दिल डूबता जा रहा था।
"नमस्ते सरकार!" वह बाबूजी के समीप पहुँच कर गिड़गिड़ाया। बाबू जी पूरी गम्भीरता से अपने काम में तल्लीन थे। उन्होंने गरीबे की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।
"साब, ये क्या हो रहा है?" उसने डरते-डरते पूछा। फिर भी कोई जवाब नहीं मिला। उसने थोड़ी देर बाद फिर अपना सवाल दोहराया।
"तुम्हारे खेत सरकार के 'मास्टर प्लान' में आ रहे हैं।" वे बोले।
"माटर पलान!" गरीबे की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वह पागलाया-सा टुकुर-टुकुर बाबूजी को देखे जा रहा था।
"हाँ...तुम्हारे खेतों के बीच से अस्सी फीट चौड़ी सड़क निकलेगी।" अबकी बाबूजी ने थोड़ा और खोलकर समझाया।
"सरकार! सब आपके हाथ में है। मेरे खेत बचा लें, साब!" गरीबे को लगा कि वह चकराकर गिर जाएगा। गिड़गिड़ाते हुए उसने बाबूजी के पांव पकड़ लिए. मामला तीन सौ रुपए में तय हो गया। गरीबे खुश था कि उसके खेत बच गए थे। गरीबे दुखी था कि अब उसके पास रतन को भेजने के लिए पैसे नहीं बचे थे।
उधर सर्वेयर बाबूजी अपने सहायक के साथ वापस लौटते हुए बहुत खुश थे। उनका मास्टर प्लान सफल हो गया था। तीन सौ रुपए में से पचीस रुपए उन्होंने अपने सहायक को दे दिए थे। कल रात वह बड़े बाबू से जुए में बच्चों की फीस के अढ़ाई सौ रुपए हार गए थे। अब उन्हें कोई चिन्ता न थी। फीस जमा करने के बाद भी उनके पास पचीस रुपए बचेंगे जिनसे अंगेजी शराब का एक 'हाफ' तो आ ही जाएगा।