माहौल / अमित कुमार मल्ल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दौड़ भाग करने और सिफ़ारिश लगाने के बाद भी शहर के इकलौते विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिला।उस समय सांध्य कॉलेज, सेल्फ फाइनेंस के कोर्स नहीं थे। ले देकर केवल एक विश्वविद्यालय था, लेकिन उसमें एडमिशन नहीं हो पाया क्योंकि वे लोग इंटर के अंक में, पी-सी एम ग्रुप के नम्बर को भी

जोड़कर मेरिट बनाकर एडमिशन ले रहे थे और इस मेरिट लिस्ट में न आ पाने के कारण, एडमिशन नहीं हो पाया।

उद्देश्य था आई आई टी में जाने का,बी एस-सी की पढ़ाई तो मात्र इस लिये थी कि होस्टल में रहकर आई आई टी की तैयारी करने की जगह मिल जाय। विश्वविद्यालय में प्रवेश न मिलने के बाद,महाविद्यालय का नम्बर आया। पता किया कि किस महाविद्यालय में होस्टल है और मेस चलती है, वही प्रवेश ले लिया जाय।

इस तरह से रामपुर महाविद्यालय में एडमिशन हुआ और वही के होस्टल न0 1 आबंटित हुआ।

इस महाविद्यालय में तीन होस्टल थे। होस्टल न01 नया था, जिसमे 150 कमरे थे। तीन तल्ला था। प्रथम तल पर सीढ़ी के बगल वाला कमरा,रमेश का था जिसका न0 51 था उसके बगल वाले कमरे 52 न0 में, मैं रहता था और कमरा न0 53 में शिवहरि।ये कमरे डबल सीटेड थे। इन तीनो कमरे में 6 लोग रहते थे, रैगिंग के डर व आपस में विचार मिलने के कारण 15 दिन में ही हम छ लोगों का एक ग्रुप बन गया। हम सभी आई आई टी में प्रवेश चाहते थे।हम सभी पी-सी एम ग्रुप,से बी एस-सी कर रहे थे।

हम सभी ने आपस में विचार विमर्श किया, मंथन किया कि हम लोग आई आई टी में कैसे प्रवेश पाए ? मैंने सुझाव दिया किआई आई टी प्रवेश परीक्षा की, वीकेन्ड की,कोचिंग ज्वाइन कर लिया जाय, जिससे पढ़ाई में गति मिलेगी। दूसरे ने कहा कि बी एस-सी की पढ़ाई के साथ आई आई टी प्रवेश परीक्षा की भी तैयारी हो ही जाएगी। तीसरे ने कहा कि हम लोग बी एस-सी का क्लास छोड़ दे। केवल आई आई टी प्रवेश परीक्षा की तैयारी करें, क्योकि बी एस-सी की पढ़ाई व आई आई टी प्रवेश परीक्षा का कोर्स - दोनों अलग अलग है। चौथे ने कहा कि बी एस-सी के क्लास में 3 घंटे लगते है, छोड़े क्यो ? दोनों साथ साथ चलाये। यदि आई आई टी में नहीं हुआ तो साल तो, बेकार नहीं होगा।रमेश ने कहा,

यह सामान्य और रूटीन परीक्षा नहीं है कि केवल पढ़ कर ही इसे क्रैक कर लिया जाय।इस परीक्षा में लाखों बच्चे बैठते है और सफल कितने होते है -10000 मात्र।

फिर ?

दूसरे ने पूछा

हमे यह जानना होगा कि जो बच्चे इस प्रतियोगी परीक्षा में सफल होते हैं, वे कैसे उठते हैं, कब सोते है,कैसे रहते हैं, क्या पढ़ते हैं, कितना पढ़ते हैं, क्या क्या पढ़ते हैं,कैसे प्रश्न पत्र को अटेम्प करते हैं?

रमेश ने बोलकर, प्रश्न वाचक ढंग से बाक़ी हम पांचो को देखा।

हम लोगों के लिये, यह दृष्टिकोण बिल्कुल नया था, इसलिये हमे प्रभावित भी किया, क्योकि अभी तक हम लोगों का मानना था कि पढ़ाई करेंगे तो आई आई टी में सलेक्शन होगा ही। हम पांच चुप चाप रमेश के आगे बोलने का इंतज़ार कर रहे थे।

रमेश ने बात आगे बढ़ाई,

मेरे रिश्तेदार इलाहाबाद और जे एन यू में रहते है, मैं उनके पास आता जाता रहता हूँ। मैं देखता हूँ कि वहाँ कैसे आई ए एस, पी-सी एस परीक्षा की तैयारी होती है ? वे लोग कब पढ़ते हैं ?कब सोते हैं ?कैसे उठते हैं? कैसे बैठते हैं? कितना पढ़ते हैं ? पढ़ाई तो ज़रूरी है ही लेकिन अन्य चीजें भी उतनी ही ज़रूरी है मान लो तुम 10 घंटे रोज़ पढ़ रहे हो, लेकिन तुम्हारे बगल वाला 11 घंटा पढ़ने लगा तो कॉम्पटीशन में वह पास हो जाएगा और तुम फैल हो जाओगे। सामान्य परीक्षा होती तो तुम भी पास होते, बगलवाला भी पास होता ।

रमेश की तर्कपूर्ण बात को हम पांच लोगों ने स्वीकार किया और हम छ लोगों ने फाइनल तय किया कि,एक तो, हमे बहुत पढ़ना है। लगभग 14 घंटे रोज।दूसरे यह कि,बी एस-सी की पढ़ाई अलग है। इसलिये हम लोग क्लास नहीं जाएँगे।तीसरा यह कि दिन में व्यवधान बहुत है अतः हम लोग रात में पढ़ेंगे। चौथी बात यह कि रात भर जागना है तो जागने के लिये चाय पीनी पड़ेगी और रात में चाय तो मिलेगी नही। इसलिये कमरे पर चाय की व्यवस्था रखेंगे। एक साथ चाय पिएँगे। चाय का ख़र्च बराबर सभी बाटेंगे।पांचवा यह कि,रात भर पढ़ना है। लगातार पढ़ने पर थकने की संभावना रहेगी। अतः थकने पर सिगरेट पी सकते हैं, क्योंकि बुद्धिजीवी ही सिगरेट पीते हैं।छठा यह कि,हम लोग आई आई टी में सलेक्ट हो ही जायेंगे, इसलिये हम लोग, बी एस-सी के अन्य छात्र और होस्टल के बाक़ी स्टूडेंट को लिफ्ट नहीं मारेंगें। सातवें यह कि कामयाब लोग अंग्रेज़ी की पुस्तकें पढ़ते हैं इसलिए हम लोग अंग्रेज़ी अख़बार पढ़ेंगे।आठवीं बात यह कि हम सभी कंबाइंड स्टडी करेंगे क्योंकि पिछले साल के आई ए एस टॉपर ने साक्षात्कार में बताया था कि वह कंबाइंड स्टडी करते थे। नौवा यह कि जो भी स्टडी मटेरियल मिलेगा, हम छ लोग आपस में शेयर करेंगे। दसवां यह कि,हम सब एक साथ ही होस्टल से बाहर निकलेंगे, ग्रुप बनाकर रहेंगे, ताकि फालतू लोग - नेगेटिव लोगों का असर हमारे ग्रुप पर न पड़े।

आई आई टी प्रवेश परीक्षा को क्रैक करने के लिये हम लोगों ने दस बिंदु के निश्चय का क्रियान्वयन शुरू किया।जो सोचा जाय, अगर वह हो जाय तो दुनिया कितनी आसान हो जाय। इन बिंदुओं के क्रियान्वयन में हमने पाया कि रात भर पढ़ने के लिये, हम लोग रात में खाना कम खाते थे। 10 बजे से पढ़ाई शुरू करते। दो ढाई घंटे बाद जब कुर्सी से उठकर कमरे के बाहर बरामदे में आते,तो सभी कमरों की बत्तियाँ बन्द रहती। केवल हम लोगों के तीनों कमरे की लाइट जलती रहती। यह देखकर कितना सकून मिलता,कितनी तृप्ति मिलती, यह हम लोग जानते। अगली सिटिंग के लिये पुनः बैठ जाते। अगली बार जब 3 से 4 के बीच कुर्सी से उठते और हम सभी बरामदे में इकठ्ठा होकर चाय पीते। तब हमें लगता कि हम लोग कितना परिश्रम कर रहे हैं। 6 बजे सुबह सोते। दोपहर एक डेढ़ बजे उठते।ब्रश करके सीधे लंच। लंच के बाद दो अख़बार को पूरी तरह से चाटना अर्थात फर्स्ट पेज के फर्स्ट ख़बर से अंतिम पृष्ठ के अंतिम ख़बर तक पढ़ना। एकाध घंटे पढ़कर शाम की चाय और फिर बाज़ार भ्रमण।

यह रूटीन एक दो माह चला। अगली बार रमेश अपने रिश्तेदार से इलाहाबाद से मिलकर आया, तो हम लोगों की रूटीन में,एक और रूटीन जुड़ गई। हम लोग, हर 15 दिन पर लेट नाईट मूवी देखने लगे।यह रूटीन अगले दो माह चला। इसी बीच रमेश अपने जे एन यू वाले रिश्तेदार से जे एन यू में मिलकर लौटा और बोला,

प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिये ओपेन माइंड होना बहुत ज़रूरी है। प्रवेश परीक्षा के पाठ्यक्रम के अतिरिक्त फिलोस्फिकल पुस्तकें पढ़ना ज़रूरी है। काम का बदलाव,आराम देता है।

हम लोग ने इसे भी ब्रह्न वाक्य मन, इसके क्रियान्वयन में लग गए।

अब हम लोगों को लगने लगा था कि हम विशिष्ठ है और हममे आई आई टी मटेरियल है। हम लोग अपने पढ़ाई, रहन सहन, माहौल से पूर्ण संतुष्ट थे,और इस आधार पर हमे लगता था कि हम सभी आई आई टी में ज़रूर सेलेक्ट होंगे। हम सब नए लाइफ स्टाइल के जंनून से गदगद थे। इस लाइफ स्टाइल ने यह आत्म विश्वास दिया कि हमे आई आई टी में एडमिशन मिलेगा ही।

आई आई टी की प्रवेश परीक्षा हुई। हम सब अपने परीक्षा से बहुत ख़ुश थे। परीक्षा के बाद, इस हेक्टिक दिनचर्या से आराम ज़रूरी था। इसलिये हम लोग अपने घर निकले।रमेश का घर रेलवे लूप लाइन पर, काग़ज़ की फैक्ट्री में था।वहाँ रमेश के पिताजी,चीफ इंजीनियर थे। शहर से यह एकलौती ट्रैन थी जो लूप लाइन पर जाती। इस लूप लाइन पर जनप्रतिनिधिगण जाते इसलिये इस ट्रेन में ए-सी 2 का एक डिब्बा लगता था, जिससे जन प्रतिनिधि गण व फैक्टरी के अधिकारी आते जाते।

इसी ट्रैन से, ए-सी 2 में रमेश वापस घर जा रहा था। सिगरेट की एक डिब्बी, एक माचिस, विवेकानंद पर एक अंग्रेज़ी में किताब के साथ वह बैठा। ट्रेन के कोच के बीच वाले,नीचे वाले दोनों बर्थ में से एक पर चादर बिछाकर आधा लेट गया। ट्रेन छूटने के दो मिनट पहले एक सूटेड बूटेड आदमी बढ़िया ब्रीफकेस लेकर आया और ब्रीफ केस नीचे सरका कर,सामने वाले बर्थ पर अपनी चादर बिछाने लगा।इसी बीच ट्रेन चल पड़ी। चादर बिछाकर, उसने चारो ओर देखा। दोनों अपर बर्थ पर यात्री आये नहीं थे, साइड के दोनों बर्थ पर यात्री साइड पर्दा खीचकर सो गए थे। इतना देखकर उसने रमेश से पूछा,

कहाँ जाना है ?

अमुक स्थान।

रमेश ने ट्रेन के अंतिम स्टॉपेज का नाम बताया।

क्या करते हैं?

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में एम एस-सी कर रहा हूँ।

वेरी गुड!

आपने इंजीनियरिंग में एडमिशन नहीं लिया?

मैं एयरो स्पेस में शोध करना चाह रहा हूँ। देश की सेवा करना चाह रहा हूँ।

रमेश बोला।

सामने वाले आदमी ने फिर पूछा,

विवेकानंद की पुस्तक भी पढ़ते हैं?

विवेकानंद मेरे आदर्श है। जब भी फुर्सत मिलती है, उनको ही पढ़ता हूँ।

अद्भुत। शुभ रात्रि।

शुभ रात्रि।

सामने वाला व्यक्ति जल्दी सो गया।रमेश ने सुबह 5 बजे का अलार्म लगाया क्योंकि यह ट्रेन पेपर मिल फैक्ट्री स्टेशन पर सवा पांच बजे पहुचेगी और सो गया। 5 बजे अलार्म से जब उसकी नीद खुली तो देखा कि सामने वाला बंदा, उतरने की तैयारी कर रहा था - क्या उसे भी यही उतरना था ? रमेश का दिल धड़का। रमेश ने अपने दिल को मज़बूत किया और

जैसे ही सामने वाला बंदा उतरने के लिये आगे बढ़ा, उसने तत्काल अपना सामान निकालकर, विपरीत दिशा - ए-सी 3 के कोच के भीतर की ओर से जाकर ट्रेन से उतर गया। वह बंदा रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर कार में बैठकर निकल गया। फिर मुलाकात न हो जाय, इसलिये रमेश, स्टेशन पर थोडी देर रुककर चाय पिया और रिक्शा कर घर पहुँचा। नमस्कार आदि के बाद नाश्ता करने के बाद, फिर सो गया।

शाम को 3- 4 बजे उठा तो पता चला कि पेपरमिल के नए महाप्रबंधक साहब, रात को डिनर पर घर आएँगे। मम्मी, मिल के कई नौकर डिनर की तैयारी में लगे थे। रात के आठ बजे जी एम साहब आये। उससे मिलने के लिये,पापा ने मुझे बुलाया,

रमेश बाहर आओ।

मैं ड्राइंग रूम पहुँचा तो ट्रैन वाला बंदा सामने खड़ा था। पापा बोल रहे थे,

यह मेरा बेटा है शहर के महाविद्यालय से बी एस-सी कर रहा है साथ ही साथ इंजीनियरिंग में प्रवेश की तैयारी कर रहा है

प्रणाम करो, यह नए जी एम साहब हैं। आज ही सुबह ट्रैन से आये हैं।

जी एम साहब मुस्कुरा रहे थे और मैं नजरे नहीं मिला पा रहा था।

जी एम साहब ने पापा को यह नहीं बताया कि हम लोग ट्रेन में मिल चुके हैं और हम लोगों के बीच क्या क्या बाते हुई ?

एक माह का रेस्ट लेकर हम लोग होस्टल लौटे तथा आई आई टी प्रवेश परीक्षा के परिणाम का इंतज़ार करने लगे। परिणाम घोषित हुआ

लेकिन हमारे लिये यह आश्चर्य की बात यह थी कि हम छहो में से कोई भी,आई आई टी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाया। कारण,हम लोग अभी भी समझ नहीं पाए।