मिक्की और चिड़िया का बच्चा / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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मिक्की स्कूल से लौटा तो चिड़िया के बच्चे को बरामदे में देखकर चैंक पड़ा यह घोंसले से यहाँ तक कैसे आ गया। उसने झुककर ध्यान से उसकी ओर देखा-बच्चे के नन्हें पंख काँप रहे थे। आँखें बाहर की तेज रोशनी से मुंदी हुई थीं। मिक्की ने सोचा यह घोंसले से गिरकर यहाँ आ गया है। चिड़िया और चिड़ा इसे ढूँढ रहे होंगे।

मिक्की के मन में बच्चे को वापस घोंसले में पहंंुचाने की बात आयी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह काम कैसे करे। उसने अपने दोस्तों से सुन रखा था कि चिड़िया के बच्चे को हाथ से नहीं छूना चाहिए. उसको एक उपाय सूझा, उसने एक उपाय सूझा, उसने कंधे से बस्ता उतार कर फर्श पर रखा और फिर उसमें से दो किताबें निकाल लीं। उसने एक किताब से सहारा देकर बच्चे को दूसरी किताब पर उठा लिया। किताब को सावधानी से थामें वह धीरे से उठ खड़ा हुआ।

किताब पर सिकुड़कर बैठे बच्चे ने घबराकर उड़ने का प्रयास किया। अभी वह पूरी तरह उड़ना नहीं सीख पाया था, इसलिए पंख फड़फड़ाकर बरामदे के स़ड़क वाले हिस्से पर जा बैेेठा। मिक्की घबरा गया। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, बच्चा कहीं घर से बाहर निकल गया। उसने एक बार फिर बच्चे को किताब पर उठाया और धीरे-घीरे कमरे की ओर बढ़ने लगा। इस बार उसने बहुत तेजी से पंख फड़फड़ाए और हल्की उड़ान भरता हुआ घर से बाहर खिड़की के छज्जे पर जा बैठा। अब वह मिक्की की पहुँच से बाहर था।

मिक्की बेचैनी से छज्जे पर बैठे बच्चे को ताक रहा था। तभी शोर मचाती हुई चिड़िया कमरे से बरामदे में आ गयी। वह चीं-चीं करती हुई अपने बच्चे को खोज रही थी। वह बार-बार उस जगह पर बैठ रही थी, जहाँ से मिक्की ने पहली बार बच्चे को किताब पर उठाया था। मिक्की की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह कभी दौड़ता हुआ छज्जे की तरफ जाता, कभी चीं-चीं करती चिड़िया की ओर, उसने घबराहट में हाथ के इशारे से चिड़िया का ध्यान छज्जे की ओर दिलाने की कोशिश की। वह चक्करघिन्नी की तरह उसी पहले स्थान पर घूम रही थी, जहाँ उसने आखिरी बार अपने बच्चे को छोड़ा था।

तभी मिक्की ने देखा अचानक एक कौआ छज्जे पर बैठे बच्चे पर झपटा और उसे अपनी चोंच में दबोचकर उड़ गया। मिक्की दुखी हो गया। वह उस स्थान की घूर रहा था, जहाँ थोड़ी देर पहले बच्चा बैठा हुआ था। चिड़िया के पास आकर चिड़ा भी शामिल हो गया था। मिक्की की आँखें भर आई. वह चिड़िया के बच्चे की मोैत के लिए खुद को ही दोषी समझ रहा था।

वह खोया-खोया-सा अपने कमरे में आया और बिस्तर पर लेट गया। उसकी आँखों के सामने अब भी बच्चा घूम रहा था-प्यारी-प्यारी आँखें, कोमल पीली चोंच, नन्हें पंख। जब दीवार घड़ी के पीछे चिड़िया ने घोंसला बनाना शुरू किया था तो माँ को बहुत गुस्सा आया था। उन्हें घोंसले की घास-फूस के कमरे के गंदे होने की चिंता लगी रहती थी। रोकने पर भी चिड़िया-चिड़ा घोंसला बनाने में सफल हो गए थे।

एक दिन घोंसले से हल्की चीं-चीं की आवाजें सुनकर उसे बच्चों का पता चला। उसे चिड़िया-चिड़े का दाना लेकर आना और चीं-चीं के शोर के साथ मुंह खोले बच्चों को खिलाना बहुत अच्छा लगता था। उन्हें घंटों एकटक देखता रहता था।

आज उन्हीं तीनों बच्चों में से एक उसे बरामदे में दिखाई दिया था। अगर वह उसे बचाने की कोशिश न करता तो चिड़िया का बच्चा डरकर छज्जे पर न बैठा। छज्जे पर बैठे बच्चे को कौआ लेकर उड़ गया।

" मिक्की, खाना नहीं खाओगे क्या? माँ की आवाज उसक कानों में पड़ी। उसकी सूनी-सूनी आँखें कमरे की छत पर टिकी थी।

"तबीयत तो ठीक है न?" नजदीक आकर माँं ने उसके माथे पर हाथ रखा तो फफक पड़ा।

"स्कूल में किसी से झगड़ा हुआ है?" घबराकर माँ ने पूछा।

मिक्की चाहकर भी नहीं बोल पा रहा था। माँ चुपचाप उसके सिर पर हाथ फेरती रही। रुलाई थमने पर उसने माँ को पूरी बात बता दी।

"बेटा, तुमने जो भी किया था, भलाई के लिए ही किया था। अब पछताने से कोई फायदा नहीं है। पर एक बात तुम्हें समझनी चाहिए."

मिक्की न उदास नजरों से माँ की ओर देखा।

"चिड़िया अपने बच्चों को उड़ना सिखा रही थी। इसीलिए बच्चा तुम्हें बरामदे में दिखाई दिया था। यदि तुम छेड़छाड़ न करते तो वह अपने माँ-बाप से दूर न होता और कौआ उसे-चोंच में दबाकर न उड़ता। अब तुम हाथ-मुंह धो लो। मैं खाना लगाती हूँ।"

"मुझे भूख नहीं है"-उदास मिक्की ने कहा।

"मेरे साथ आओ," माँ मिक्की का हाथ पकड़कर उसे बैठक में ले गयी। मिक्की ने हैरानी से देखा-चिड़ा-चिड़िया अपने बाकी बचे दोनों बच्चों को चुग्गा दे रहे थे।

मिक्की की डबडबाई आँखें छलक पड़ी। अब इन आँखों में चिड़िया-चिड़े के लिए बहुत प्यार और आदर के भाव दिखायी देने लगे थे।

"माँ खाना लगाओ. मैं आता हूंँ," मिक्की न आँसू पोंछते हुए कहा।

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