मिनरल वाटर / शमोएल अहमद
ए सी केबिन में उसका पहला सफर था। ये महज इत्तेफाक था कि ऐसा मौका उसके हाथ आ गया था वरना उसकी हैसियत का आदमी ए सी का सपना नहीं देख सकता था। वो एक दवासाज़ कम्पनी में डिस्पैच क्लर्क था और इस वक्त राजधानी एक्सप्रेस में मैनेजर की जगह खुद सफर कर रहा था।
असल में कम्पनी का एक मामला सुप्रीमकोर्ट में अटका हुआ था। वकील ने कुछ कागजात तलब किये थे। मैनेजर खुद जाना चाहता था लेकिन एक दिन पहले वो अचानक बीमार पड ग़या था। कागजात अहम् थे जिनका वकील तक पहुंचना जरूरी था। मैनेजर ने यह जिम्मेवारी उसको सौंप दी थी और अपने नाम का टिकट भी हवाले किया था। वो मैनेजर का हमउम्र था। मैनेजर के नाम पर सफर करने में आपत्ति नहीं थी। रास्ते के खर्च के लिये कम्पनी की तरफ से दो हजार की राशि भी पेशगी मिली थी।
उसको सफर का बहुत अनुभव नहीं था। उसने दिल्ली देखी तक नहीं थी। उसका जीवन यूं भी बहुत बंधा - टका था जैसा दफ्तर के क्लर्कों का होता है। ये सोच कर उसको घबराहट हुई कि ए सी में बुर्जवा तबके के लोग होंगे और उसके पास ढंग के कपडे भी नहीं हैं। फिर भी वो खुश था कि मैनेजर ने उसको विश्वसनीय समझा और कम्पनी के काम से दिल्ली जा रहा है।
सबसे पहले उसको सूटकेस की मरम्मत का खयाल आया। उसके पास एक पुराना सूटकेस था जिसकी हालत जर्जर हो चुकी थी। उसने चाहा नया खरीदे लेकिन सूटकेस मंहगा था। उसको अपना इरादा तर्क करना पडा। पुराने सूटकेस को ही झाड पौंछ कर साफ किया, मरम्मत करवाई और नया ताला लगवाया। कपडे हमेशा बीवी प्रेस करती थी। इस बार कपडे लॉन्ड्री में धुलवाए।
डब्बे में घुसते ही उसको राहत भरी ठण्ड का अहसास हुआ लेकिन घबराहट एक - जरा बढ ग़यी। उसको छब्बीस नम्बर की बर्थ मिली थी। परदे के पीछे से उसने केबिन में झांकने की कोशिश की। ये चार बर्थ वाला केबिन था, ऊपर की दोनों बर्थ खाली थीं और सामने एक खातून विराजमान थीं। वो झिझकते हुए अन्दर दाखिल हुआ और चारों ओर उव्चटती हुई सी नजर डाली। खिडक़ी का परदा सिमटा हुआ था और खातून के बाल खुले हुए थे। वो इंडिया टुडे पढने में मग्न थीं, उनका सामान मुख्तसर था। एक छोटा सा सूटकेस फर्श पर रखा हुआ था। हैण्डबैग बर्थ पर पडा था और एक छोटा सा थर्मस जो खिडक़ी से लगे डैशबोर्ड पर रखा हुआ था। पत्रिका उनकी उंगलियों में इस तरह दबी थी कि अंगूठी का नगीना नुमायां हो रहा था। हाथों में सोने की चूडियां थीं, कानों में बुंदे टिमटिमा रहे थे और गले में चेन चमक रही थी जिसका लॉकेट आंचल में छुपा हुआ था। शायद इमिटेशन हो? उसने सोचा। आजकल औरतें सफर में ज्यादा जेवर नहीं पहनतीं!
सहसा उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट रेंग गयी। आखिर वो खातून के बारे में ही क्यों सोचने लगा?
अचानक पत्रिका खातून के हाथ से फिसल कर गिर पडी। वो झुक कर उठाने लगी तो बाल कन्धों पर बिखर गये और गले का लॉकेट झूल गया। लॉकेट पान की शक्ल का था जिस पर मीनाकारी की हुई थी। खातून की उंगलियां लम्बी व नुकीली थीं। उन पर फालसाई रंग की नेलपॉलिश चमक रही थी। उसने गौर किया साडी क़ा रंग भी फालसाई है यहां तक कि चप्पल का फीता भी। अचानक खातून ने सिर की जुम्बिश से बालों की लटों को पीछे किया उसको पेन्टीन शैम्पू वाली मॉडल याद आ गयी। उसने टी वी में देखा था। उसके बाल इसी तरह लम्बे और चमकीले थे और वो पीछे की तरफ इसी तरह इन्हें लहराती थी।
उसकी नजर अपने सूटकेस पर पडी। उसको लगा सूटकेस का मैला रंग नये ताले से मैच नहीं कर रहा है। उसको याद आया मरम्मत के बाद सब ठीक ठाक लगा था। खातून का सूटकेस नया नहीं था लेकिन उसमें चमक बाकी थी। ए सी केबिन के फर्श पर आस - पास रखे दोनों सूटकेस तबके के फर्क को नुमायां कर रहे थे। पुराने सूटकेस का नया ताला उसकी हैसियत की जैसे चुगली खा रहा था। उसने चोर निगाहों से खातून की तरफ देखा और अपना सूटकेस बर्थ के नीचे खिसका दिया।
बैरा मिनरल वाटर की दो बोतलें डैशबोर्ड पर रख गया। खातून ने अपने हिस्से की बोतल हैंगर पर औंधा दी। स्नैक्स और चाय भी आई। वो बिस्कुट चबाने लगा। खातून ने चाय के पैकेट को प्याली में आहिस्ता - आहिस्ता एक - दो बार डिप किया फिर बिस्कुट का छोटा सा टुकडा तोड क़र मुंह में डाला तो उसको अहसास हुआ कि खाने के भी आदाब होते हैं। उसको लगा वो दलिद्दर की तरह बिस्कुट चबा रहा है जबकि खातून किस सलीके से!
खातून उसी बेनियाज़ी से चाय की चुस्कियां ले रही थी। इस बीच उन्होंने एक बार भी निगाह उठा कर उसकी तरफ नहीं देखा था। उसको सिगरेट की तलब हुई। केबिन से निकल कर वो बाथरूम के पास आया। एक सिगरेट सुलगायी और हल्के - हल्के कश लेने लगा। अचानक खातून के लम्बे बाल निगाहों में लहरा गये और उसको बीवी की याद आयी। उसको खुले बालों में उसने कम देखा था। वो हमेशा जूडा बांधा करती थी। सिर्फ गुस्ल के वक्त उसके बाल खुले रहते थे। उसको याद आया कि इन दिनों उसकी बीवी ने साबुन का ब्रांड बदला है और लिरिल इस्तेमाल कर रही है। लिरिल का टीवी विज्ञापन उसकी निगाहों में घूम गया बिकनी पहन कर झरने में नहाती हुई लडक़ी पेड क़ी लताओं से झूलती हू हडप करती हुई! वो धीरे से मुस्कुराया उसकी बीवी आजादी से झरने में नहा नहीं सकती पेड क़ी लताओं से झूल नहीं सकती हू हडप नहीं कर सकतीलेकिन लिरिल का इस्तेमाल कर सकती है! लिरिल उसको लडक़ी से जोडता है। उस तबके से जोडता है जो बुर्जवा है लिरिल दोनों में समान है लिरिल का इस्तेमाल कर वो अपने माहौल से पलायन करती है जहां तंगी है रोज क़ी खिच - खिच है। लिरिल उसके पलायन का माध्यम बन जाता है। अपने विश्लेषण पर मन ही मन मुस्कुराते हुए उसने सिगरेट का आखिरी कस लिया और केबिन में लौट आया।
गाडी रेंगने लगी थी। खातून ने एक बार खिडक़ी के शीशे से सट कर बाहर की तरफ देखा और कोहनी के बल लमड ग़यीं टखने के करीब साडी क़े कोर को दुरुस्त किया तो पांव के नाखून झलक गये। पांव के नाखूनों पर भी फालसाई रंग की नेल पॉलिश थी और बीच की उंगली में बिछिया चमक रही थी। खातून के पांव खुशनुमा मालूम हुए। उसको फिर बीवी की याद आ गयी। वो भी बिछिया पहनती थी और पांवौं में आलता भी लगाती थी। फिर भी वो खुरदुरे मालूम होते। उसने सोचा बुर्जवा महिलाएं कुछ भी धारण कर लें हसीन लगती हैं। साडी क़ितनी खूबसूरत है और सिलवटों को कितने सलीके से दुरुस्त किया। उसको याद आया कि उसकी बीवी के पास एक बनावटी सिल्क की साडी है जिसे वो जुगा - जुगा कर रखती है और मुहल्ले - टोले में कहीं जाती है तो वही साडी ऌस्तेमाल करती है और चलती है बत्तख की तरह दद द और पेटिकोट का मैला किनारा साडी क़े कोर से झांकता है! कहां से लायेगी कपडे? क़पडा तो गहना है और गहना तो सपना है।
गाडी क़िसी स्टेशन पर रुकी थी। प्लेटफार्म का शोर सुनाई नहीं दे रहा था। लोग खामोश पुतलों की तरह चल - फिर रहे थे। उसके जी में आया अपने पांव फैलाए लेकिन संकोच मालूम हुआ और तब हैरत हुई कि वह अभी तक सहज नहीं हो सका है?
बैरा खाने का पैकेट दे गया। पैकेट खोलते ही इसको खयाल आया कि आहिस्ता - आहिस्ता खाना चाहिये और यह सोच कर उलझन हुई कि कौर चबाते हुए उसके मुंह से चपड चपड क़ी आवाज निकलती है! वो होंठों ही होंठों में मुस्कुराया शायद दलिद्दर आदमी इसी तरह खाना खाता है।
खाने के बाद उसको फिर सिगरेट की तलब हुई। वो झुंझलाया कि फिर केबिन से बाहर जाना होगा। उतर कर प्लेटफार्म पर आया। प्लेटफार्म तरह तरह के शोर से गूंज रहा था। खोमचे वाले इधर से उधर भाग रहे थे। सिगरेट सुलगाते हुए उसने सोचा कि प्लेटफार्म का शोर सफर का हिस्सा है जिससे ए सी केबिन वंचित है। ए सी में आजादी मानो छिन जाती है। सिगरेट नहीं पी सकते। खिडक़ी का लुत्फ नहीं ले सकते। लेकिन भीड से तो राहत है हां भीड से। और ये मैडम कहां जा रही हैं? इनके जेवर असली हैं?
गाडी ने सीटी दे दी तो उसने आखिरी दो - तीन कश लगाये और उचक कर डब्बे में चढ ग़या। बैरा बेडरोल दे गया। खातून ने बेड लगाया और तकिये के सहारे अधलेटी हो गयीं। गाडी रेंगने लगी। उसका संकोच कुछ कम हो गया। उसने भी अपना बिस्तर लगाया और खिडक़ी से टेक लगा कर बैठ गया।
अचानक खातून ने करवट बदली तो कूल्हे के कटाव नुमायां हो गये और वो उधर देखे बिना नहीं रह सका। ज़ुल्फें एक तरफ बिखर गयीं थीं और पुश्त का ऊपरी हिस्सा झलक रहा था, जहां ब्लाउज की नीची तराश अर्धचन्द्र सा बना रही थी और गर्दन के करीब सुनहले चेन का बहुत थोडा सा हिस्सा केबिन की दूधिया रोशनी में चमक रहा था। खातून का जिस्म सुडोल था। कमर के गिर्द गोश्त की हल्की सी तह
गाडी रफ्तार पकड रही थी। वो हिचकोले महसूस कर रहा था। झपकी आने लगी तो पांव पर कम्बल डाल कर लम्बा हो गया लेकिन लेटते ही झपकी कहीं लुप्त हो गयी नींद आंखों से कोसों दूर थी।
वो उठ कर बैठ गया। खातून भी बैठ गयीं। खातून ने थर्मस से पानी ढाल कर पिया और गिलास को डैशबोर्ड के दूसरे किनारे पर रख दिया जहां उसकी मिनरल वाटर की बोतल रखी थी। उसको अजीब लगा। खातून ने अपना गिलास वहां क्यों रखा? उसकी बोतल के करीब?
खातून का बिल्लौरी गिलास मिनरल वाटर की बॉटल को करीब - करीब छू रहा था और वो चेहरा हथेली पर टिकाये अधलेटी फर्श को तक रही थी। गाडी पूरी गति से भाग रही थी। अचानक केबिन में पटरी बदलने की आवाज उभरी। गाडी शायद जंगल से गुजर रही थी। खातून ने रोशनी गुल कर दी। केबिन में मटमैला अंधेरा फैल गया। उसको अपने दिल की धडक़न तेज सी होती महसूस हुई।
वो फिर केबिन से बाहर आ गया। गलियारे में सन्नाटा था। सभी केबिन के परदे खिंचे हुए थे, रोशनी बुझी हुई थी। सिर्फ नीले रंग का एक बल्ब रोशन था। उसको फिर सिगरेट की तलब हुई। उसने सिगरेट सुलगाई। जल्दी - जल्दी दो चार कश लिये और केबिन में लौट आया। खातून ने अपनी बर्थ से लगा परदा बराबर नहीं किया था। वो चारों खाने चित्त लेटी थी और कम्बल पैरों पर डाल रखा था। आंखें बन्द थीं और हाथ सीने पे बंधे थे।
गाडी क़ी रफ्तार अचानक धीमी हो गयी। किसी स्टेशन का आउटर था। गाडी सीटी देती हुई रुक गयी। उसने बाहर की तरफ देखा। दूर इक्का - दुक्का मकान नजर आ रहे थे जिन में रोशनी बहुत मध्दिम थी। पास ही बरगद की शाखों में चांद बिल्लौर की चूडी क़ी तरह अटका था। पत्ते हवा में जोर - जोर से झूम रहे थे। इनमें यकीनन सरसराहट थी जो केबिन में सुनाई नहीं दे रही थी।
सहसा उसको महसूस हुआ कि वह किसी प्रेत की तरह बैठा है और खातून उसके वजूद से कतई अनजान है। उसको हैरत हुई कि वाकई खातून ने एक बार भी नजर उठा कर उसको नहीं देखा। उसको लगा खुद उसने अपने वजूद को कहीं गुम करने की कोशिश की है। आखिर अपना सूटकेस बर्थ के नीचे क्यों छिपा दिया? और अगर खातून डिब्बे में नहीं होती तो क्या ये बात उसको जहन में आती कि बीवी ने साबुन का ब्राण्ड बदला है और बनावटी सिल्क में चलती है बत्तख की तरह ? एक तरह से उसने अपनी बीवी के वजूद को भी नकारा?
उसको लगा वो एक अनदेखी आंच में सुलग रहा है। उसने खातून की तरफ देखा जी में आया उनको अपने होने का अहसास दिलाये लेकिन उसकी नजर बिल्लौरी गिलास पर पडी और वो बिना मुस्कुराए नहीं रह सका क्या मायने रखता ही आखिर भरी बोतल के पास रखा हुआ बिल्लौर का खाली गिलास।
अचानक खातून ने आंखें खोलीं और उसकी तरफ देखा। ऐसा पहली बार हुआ था तनहा केबिन के मटमैले अंधेरे में पहली बार खातून की निगाहे - गलत पडी थी वो सिहरन सी महसूस किये बिना न रह सका। खातून उठ कर डैशबोर्ड के करीब आईं तो उसको और भी हैरत हुई। वो उसके पास खडी थी यहां तक कि उसके बदन का स्पर्श उसको साफ महसूस हो रहा था। वो अपनी जगह से थोडा खिसक गया। खातून बैठ गयी बोतल से पानी ढाल कर पिया और उस पर फिर एक नजर डाली।
गाडी अचानक एक हिचकोले के साथ चल पडी। बिल्लौरी गिलास बोतल से छू गया और वो सकते में आ गया।
खातून उस पर झुकी थी
ये पल खुद सृष्टि ने उन्हें अर्पित किये थे। ये खालिस प्राकृतिक मिलन था जिसमें इरादे का कतई दखल नहीं था। दोनों अनजान थे न आपस में बात - चीत हुई और न इशारे न पास - पास बैठे न एक दूसरे को लुभाने की कोशिशें हुईं बस ऐसा हो गया चांद बरगद की शाखों से सरक कर ऊपर आ गया और चांदनी मटमैले अंधेरे में घुल गयी।
केबिन के फर्श पर सूटकेस का फर्क बेमायने हो गया था। संवेग की सतरह पर दो विपरीत जिस्म आनन्द की असीम लहरों में डूब रहे थे उभर रहे थे।
सुबह उसकी आंख खुली तो गाडी दिल्ली पहुंच गयी थी। उसने अलसाई सी अंगडाई ली और उठ कर बैठ गया। उसकी आंखों में रात का खुमार बाकी था और चेहरे पर ताजग़ी। खातून केबिन में मौजूद नहीं थीं। डैशबोर्ड पर खाली मिनरल वाटर की बोतल रखी हुई थी। उसने बर्थ के नीचे झांक कर देखा - चाय के खाली कप लुढक़े पडे थे।
प्लेटफार्म पर उतरते ही गरम हवा के झौंकों ने उसका स्वागत किया और उसको अचानक सब कुछ स्वप्न सा मालूम हुआ। रात की बातों को उसने याद करने की कोशिश की खातून की आकृति मिटती लकीर सी उभरी उसको अपना सफर स्वप्न सा मालूम हुआ, उसको लगा वो धुंध में चलता हुआ यहां तक आया है। फिर भी वो एक सुरूर सा महसूस कर रहा था। उसके चेहरे पर रहस्यमयी सी ताजग़ी थी। उसने एक सिगरेट सुलगायी और सामने फैली भीड क़ी तरफ देख कर मुस्कुराया।
ह्नबिचारों को क्या पता कि वो रात एक बुर्जुवा हसीना से हमबिस्तर था! उसकी नजर किताबों के स्टॉल पर पडी। उसने इण्डिया टुडे की प्रति खरीदी और ये सोचे बिना नहीं रह सका कि इसी तरह उसकी बीवी लिरिल साबुन खरीदती है