मिर्च संसार और मनोरंजन जगत में 'शिमला' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 30 जून 2014
रमेश सिप्पी बरसों बाद फिल्म बना रहे हैं, नाम है 'शिमला मिर्च' और केंद्रीय भूमिका कर रही हैं उनकी प्रिय हेमामालिनी जिसके साथ वे अंदाज, सीता-गीता और शोले बना चुके हैं। फिल्म में युवा नायक राजकुमार गुप्ता भी हैं जिन्हें हाल ही में हंसल मेहता की 'सिटी लाइट्स' में सराहा गया है। युवा नायिका का चयन हो रहा है।
रमेश सिप्पी और हेमा मालिनी 39 वर्ष पश्चात एक फिल्म कर रहे हैं। रमेश सिप्पी निर्माता जीपी सिप्पी के पुत्र हैं और उनकी शम्मी कपूर अभिनीत 'ब्रह्मचारी' में सहायक निर्देशक थे। उन दिनों फ्रांस की फिल्म 'मैन एंड वीमैन' की चर्चा थी जो एक विधुर और विधवा की प्रेम-कथा थी। सलीम-जावेद ने 'अंदाज' के बाद उनके लिए 'राम और श्याम' से प्रेरित 'सीता और गीता' लिखी तथा शोले, शान और शक्ति भी लिखी। रमेश सिप्पी अपनी फिल्मों के साथ ही अपने सीरियल मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखे 'बुनियाद' के लिए भी याद किए जाते हैं। उनकी 'अकेला' और 'भ्रष्टाचार' असफल रही।
विगत लंबे समय से रमेश सिप्पी ने फिल्म निर्देशित नहीं की है और वे अपने पुत्र रोहन सिप्पी की फिल्मों का निर्माण कर रहे थे। उनका बहुत सा समय 'शोले' के स्वामित्व अधिकार की कानूनी लड़ाई में गया अर्थात लगभग तीन दशक तक वे फिल्म उद्योग में रहकर भी बतौर निर्देशक सक्रिय नहीं थे। अब निर्देशन क्षेत्र में लौटना इस बात का संकेत है कि वे 'शिमला मिर्च' की पटकथा से संतुष्ट है और उन्हें यथेष्ठ प्रेरणा दे रही है।
रमेश सिप्पी नए तेवर लेकर आए थे परंतु उनकी फिल्में प्राय: विदेशी फिल्मों से प्रेरित रही है और उनके प्रस्तुतीकरण पर ही उनका ध्यान रहता था। अब 'शोले' पर एक दर्जन देशी विदेशी फिल्मों का प्रभाव है परंतु रमेश सिप्पी ने विभिन्न मनोरंजक तत्वों का मिश्रण बेहतरीन किया और फिल्म की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि वह फिल्मी किवदंती बन गई है और किवदंतियों का वैज्ञानिक अध्ययन हमारे देश में लगभग प्रतिबंधित है।
'शोले' के हैंग ओव्हर में बनाई गई 'शान' असफल रही और रमेश सिप्पी एक्शन-मसाले से प्रेम-कथा की ओर गए तथा 'सागर' बनाने में उन्होंने लंबा समय लिया परंतु 'संगम' व 'बॉबी' की इस गोवानीज ढंग से पकाई खिचड़ी स्वादहीन रही। रमेश सिप्पी अपनी फिल्मों को हमेशा दूसरों से भिन्न मानते रहे और दूसरों के तर्कहीन मसाले के प्रति उनके मन में बड़ी हिकारत रही, मसलन हरमेश मल्होत्रा की 'नगीना' की सफलता से उन्हें दहशत हो गई और उन्होंने मनोहर श्याम जोशी से सलाह ली कि 'इस घटिया दौर' में वे अपनी निजता और गुणवत्ता की रक्षा कैसे करे तथा इस दुविधा और दिशाहीनता की शिकार रही उनकी 'अकेला' और 'भ्रष्टाचार'। दरअसल रमेश सिप्पी यह कभी नहीं समझ पाए कि हिन्दुस्तानी सिनेमा के हर दौर में घटिया फिल्मों के साथ ही थोड़ी सी सार्थक फिल्में हमेशा बनती रही है।
बहरहाल आज के दौर में भी हमेशा की तरह फूहड़ फिल्मों के साथ ही सार्थक फिल्में बन रही हैं और रमेश सिप्पी के सामने दो रास्ते है- अपने अतीत की जुगाली करते हुए फिल्म बनाएं या वेडनेसडे, पानसिंह तोमर, कहानी, विकी डोनर, रांझना इत्यादि की तरह कुछ रचें। गौरतलब यह है कि 'किवदंती' बन जाने के बाद आप स्वयं अपनी 'कीर्ति' के गुलाम हो जाते हैं और सफलता का चश्मा आपके मौलिक दृष्टिकोण को ढंक देता है।
'शिमला मिर्च' एक अत्यंत रोचक टाइटिल है और 'विकी डोनर' की तरह ताजगी का संकेत देता है, इसी तरह राजकुमार का चयन भी रमेश सिप्पी की नई सोच को बता रही है क्योंकि राजकुमार की छवि पारम्परिक हीरो की नहीं है, वे इरफान के स्कूल के कलाकार हैं, मैथड स्कूल के कलाकार हैं। शिमला मिर्च, मिर्च संसार की मासूम मिर्च है और उसमें आंख, नाक से पानी बहाने वाली धार नहीं है। वह सुंदर दिखती है परंतु उसमें मिर्चपन कम है और फलों तथा मिर्च के बीच की श्रेणी में आती है। मिर्च के मिर्चपन के मूल्यांकन के एक्सपर्ट होते है और वे श्रेणीकरण करते है। छोटी मिर्चियां प्राय: तेजतर्रार होती हैं।
कुछ ऐसी भी मिर्च होती हंै कि उनके स्पर्श मात्र से पसीना आ जाता है। मिर्च का रंग कुछ भी हो, उसमें विटामिन मूल्य होते हैं। भाषा में मिर्च ने मुहावरों को जन्म दिया है, मसलन कुछ मिर्च खाई नहीं जाती परंतु लगती है। अब मनोरंजन जगत में रमेश सिप्पी की 'शिमा मिर्च' किस तरह का मनोरंजन होगा इसका आकलन मुश्किल है। क्या 'बसंती' 'शिमला मिर्च' है? अगर रमेश सिप्पी अपनी 'किवदंती' से मुक्त है तो 'शिमला मिर्च' मनोरंजक होगी