मिलना अपनी कहानी के पात्र से / शोभना 'श्याम'
वे छह सात स्त्री पुरुष थे जो बगीचे में सुबह की सैर के बाद अब बीचोबीच पड़ी बेंचों पर बैठे गपशप कर रहे थे।
"जी आप ही संयोगिता जी हैं?"
मैंने उनमें से एक को सम्बोधित करते हुए कहा।
"जी, मैं ही हूँ, आप ...?"
"जी, मैं गीता शर्मा, वह सामने वाले घर में रहती हूँ। मैं एक शार्ट फ़िल्म बना रही हूँ जिसके लिए मुझे एक साठ वर्ष से ऊपर की महिला कि आवश्यकता है, जो गाना भी गा सके। मुझे नीलिमा जी ने आपके बारे में बताया कि आप बहुत अच्छा गाती हैं।"
मैंने पार्क के एक छोर पर प्राणायाम करती नीलिमा जी की और इशारा कर कहा।
"जी ...मैंने तो... काफी समय से गाया नहीं, सो बहुत अच्छा नहीं गा सकूंगी।" उन्होंने पास बैठे पति की ओर कुछ डरी-डरी-सी दृष्टि डालते हुए कहा।
"उसकी ज़रूरत भी नहीं। बस थोड़ा-सा, बल्कि दो लाइन ही गानी है। सुना है, आप भजन बहुत अच्छे गाती हैं, सो... उन्हीं में से किसी की बस दो पंक्तियाँ।"
"मैडम इनसे नहीं होगा।" मेरी बात को काटते हुए उनके पति कुछ व्यंग से बोले।
"देखिये! इस कहानी की ये पात्र भी काफी समय बाद गाने की कोशिश करती दिखाई गयी है क्योंकि विवाह के बाद उनका गाना बंद करा।"
"मैडम मैंने कहा न, ये नहीं कर पाएंगी फिलम-विलम।"
"सर ये तो मात्र एक शार्ट मूवी है, सिर्फ़ एक मिनट का रोल है ।"
"जी हमें माफ़ करिये," कहते हुए वह संयोगिता जी को भी आने का इशारा कर पार्क से बाहर की ओर चल दिए। "
संयोगिता जी उठ कर पैरों को सीधा करने के उपक्रम में पीछे रह गयी थी। उनके साथ चलते हुए मैंने धीरे से पूछा, "नीलिमा जी बता रही थी, आप रेडियो व टी वी आर्टिस्ट रही हैं, फिर...क्या प्रॉब्लम है?"
"जी वह शादी से पहले की बात है।"
कहती संयोगिता जी अपनी चाल तेज कर पति के पास पहुँचने की कोशिश करने लगीं।