मिलावट/गिरिराज शरण अग्रवाल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शाम के लगभग चार बजे जब मुख्य द्वार की घंटी बजी तो हम पद्मश्री महापंडित आत्मारामजी के ड्राइंग रूम में उनकी प्रशंसा के पुल बाँधने में व्यस्त थे। हम छाती पर हाथ मार-मारकर और उदाहरण दे-देकर यह सिद्ध करने में जुटे थे कि भारत में आज तक हिदीभाषा का इतना बड़ा सेवक उत्पन्न ही नहीं हुआ है। महापंडित आत्मारामजी हमारे घी-चुपड़े वाक्य सुनते तो ख़ुशी के मारे उनकी बाँछें कनपटियों तक फैल जातीं। मुख्य द्वार की घंटी बजी तो उनका सर्वोत्तम आज्ञाकारी चेला मोहन, जो इस समय महापंडित के चरणों में बैठा उनकी पिडलियाँ दबा रहा था, उठकर फ़ुर्ती के साथ द्वार की ओर लपका। कुछ ही देर बाद वापस आया तो मोहन के हाथ में एक सुंदर-सा परिचय कार्ड था। बोला, 'कोई विदेशी आपसे भेंट करने आए हैं, गुरुजी!'

महापंडित पद्मश्री आत्मारामजी ने परिचय कार्ड हाथ में लेकर उस पर नजर डाली और विदेशी का नाम जोर-जोर से पढ़ा-

रिचर्ड ए॰ विलियम हिदी स्कॉलर, केनाडा।

हम यहाँ आपको यह बताते चलें कि अपने महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी विश्वविद्यालय में हिदी विभागाध्यक्ष हैं। हिदीभाषा में कोई ढाई सौ पुस्तकें अपनी विद्युत् गति से चलनेवाली क़लम की नोक से नीचे उतार चुके हैं। प्रवचन अर्थात् लैक्चर देने के लिए दर्जनों बार विदेशयात्रा कर चुके हैं। हिदी खाते हैं, हिदी पहनते हैं, हिदी ओढ़ते हैं, हिदी लेते हैं, हिदी देते हैं। गरज 'हिदी हैं हम, वतन है, हिदोस्ताँ हमारा' का मूल रूप हैं अपने महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी.

हाथ का इशारा पाते ही मोहन नामधारी चेला फिर मुख्य द्वार की ओर लपका और समंदर पार से मिलने आए विदेशी सज्जन रिचर्ड ए॰ विलियम को साथ लेकर भीतर आया।

भीतर आते ही हिदी स्कॉलर विलियम ने थोड़ा झुककर और श्रद्धा की मुद्रा में दोनों हाथ जोड़कर महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी को सादर प्रणाम किया। विदेशी रिचर्ड ए॰ विलियम का स्वागत करते हुए महापंडित आत्माराम जी बोले, 'प्लीज टेक योर सीट।'

विदेशी 'धन्यवाद' कहता हुआ महापंडित आत्माराम जी के सामने वाले सोप़फ़े पर टिक गया। हुलिए से वह एक सुसभ्य और शिक्षित व्यक्ति दिखाई दे रहा था। ग्रे रंग का बढ़िया सूट और गले में टाई, पर अपने महापंडित आत्माराम जी के सामने जम नहीं पा रहा था। पंडित जी की तो सजधज ही निराली थी। इस समय हलके नीले कलर का बहुमूल्य सूट, आँखों पर सुनहरी कमानी का प्रोफेसरी चश्मा चढ़ा हुआ, मुँह में विलायती सिगार, पीछे अलमारी में मोटी-मोटी किताबें, एक की बगल में एक धरी हुई. ऐसा लग रहा था, जैसे ड्राइंग रूम में सचमुच विद्या की देवी अवतरित हुई हो। झूठ न मानें तो हम आपको बताएँ कि अपने महापंडित पद्मश्री आत्माराम इस समय बिलकुल असली काले विदेशी और कनाडा से आए यह सज्जन रिचर्ड ए॰ विलियम उनके सामने एकदम देसी वस्तु दिखाई पड़ रहे थे। औपचारिक बातचीत से पता तो चल ही गया था कि रिचर्ड ए-विलियम हिदीभाषा और हिदी-संस्कृति के सम्बंध में अध्ययन करने तथा हिदीभाषा के वर्तमान रूप और विकास पर शोध करने के इरादे से भारत आए हैं।

'विलियम कह रहा था कि उसे हिदीभाषा और भारतीय संस्कृति से जितना प्रेम है, वह उसे शब्दों में व्यक्त करना चाहे तो भी शायद ही कर पाएगा।' हमने उसके मुख से ये शब्द सुनकर आश्चर्य से उसकी ओर देखा। सोचा, ' ग़जब का आदमी है! कितनी बढ़िया हिदी बोल रहा है, गंगा-यमुना के पवित्र जल से धुली हुई. उच्चारण इतना शुद्ध कि क्या कोई भारतीय बोल पाएगा। बातचीत से हम यह तो समझ ही गए थे कि आगंतुक कनाडा के किसी विश्वविद्यालय में हिदीभाषा का प्रवक्ता है और कालिदास से लेकर निराला तक सबको चाट चुका है। अब हमारे महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी और विदेश से आए रिचर्ड ए-विलियम के बीच जो वार्ता हुई, उसका एक नमूना आप भी सुनिए ताकि सनद रहे और आवश्यकता पड़ने पर काम आए.

हमारे आदरणीय महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी ने रिचर्ड ए-विलियम से पूछा, 'बाय दि वे, यह तो मैं आपसे पूछ ही सकता हूँ मिस्टर रिचर्ड कि इन दिनों हिदी लेंग्वेज की किस प्राब्लम पर आप अपना ध्यान देने में इंटेªस्ट ले रहे हैं?'

अपने आत्माराम जी की दोगली हिदी के उत्तर में मिस्टर रिचर्ड ने शुद्ध भाषा में उत्तर देते हुए कहा, 'इन दिनों मेरा काम हिदीभाषा में अन्य विदेशी भाषाओं, विशेषकर पश्चिमी भाषाओं, के शब्दों की बढ़ती हुई मिलावट पर केंद्रित है! मैं इस बात पर शोध कर रहा हूँ कि कथन और लेखन में कितने प्रतिशत की दर से विदेशी शब्दों की मिलावट हुई है और यह मिलावट आम जनता के स्तर पर है या संभ्रांत, शिक्षित वर्ग के स्तर पर!'

'वंडरफुल, वंडरफुल' महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी प्रसन्न होकर बोले, 'बिल्कुल नया टॉपिक है रिसर्च का। बहुत इंपोर्टेंट सबजैक्ट है यह।'

विदेशी बोला, 'धन्यवाद, धन्यवाद! आपको मेरा विषय पसंद आया, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ और साथ ही यह भी प्रार्थना करता हूँ कि इस बहुत बड़े और बहुत ही महत्त्वपूर्ण काम में आप मेरी सहायता करें। मैं इस सहयोग के लिए आपका सदैव आभारी रहूँगा।'

'थैंक यू.' अपने महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी रिचर्ड ए-विलियम की बात का उत्तर देते हुए बोले, 'कितु रियलिटी यह है मिस्टर रिचर्ड कि आज अडलट्रेशन की प्राब्लम अकेले भारत ही में नहीं है, समूचे बर्ल्ड में है और समूचे वर्ल्ड की भी अगर ज़रा गहराई से रीडिग की जाए तो यह प्राब्लम, अंडर डेवलेप्ड कंट्रीज में अधिक दिखाई देगी।'

'बिलकुल! आपकी धारणा बिलकुल उचित है। मेरा अपना अनुभव भी कुछ ऐसा ही है, आत्माराम जी. देशी भाषाओं में विदेशी भाषाओं के शब्दों की धड़ाधड़ मिलावट हो रही है और इससे भी अधिक गंभीरता की बात यह है कि देशी शब्दों के शुद्ध उच्चारण भी मिलावटी होते जा रहे हैं।'

'करैक्ट!' महापंडित आत्माराम जी ने रिचर्ड की बात को अनुमोदित करते हुए कहा, 'कितु अडलट्रेशन की प्राब्लम केवल लेंग्वेज तक ही सीमित नहीं है, अब यह प्राब्लम हर क्षेत्र में बढ़ रही है। प़्ाफ़ार एक्जामपुल, भारत के क्लासिकल म्यूजिक में पश्चिमी म्यूजिक की मिलावट धड़ल्ले के साथ हो रही है। भारत के क्लासिकल डांसेज में वैस्टर्न डांसों की मुद्राओं का अडलट्रेशन ख़ूब जमकर किया जा रहा है।'

एक क्षण रुककर पंडित जी आगे बोले, 'बात यह है मिस्टर रिचर्ड, हमारा-आपका युग ही वास्तव में अडलट्रेशन का युग है। जैसे हम देखते हैं कि पॉलिटिक्स में क्राइम का अडलट्रेशन बढ़ रहा है, सोसायटी में अनैतिकता का पौल्यूशन बढ़ रहा है, फूड सामग्री से लेकर हर चीज, चाहे वह कोई भी हो, अडलट्रेशन से बची हुई नहीं है।'

पंडित आत्माराम अपनी खिचड़ी भाषा में बोलते-बोलते थोड़ा रुके तो मिस्टर रिचर्ड ए-विलियम ने अपनी बात कुछ इस प्रकार कही, 'विडंबना यह है आत्माराम जी, प्रबुद्ध एवं शिक्षित वर्ग की दृष्टि इस ओर नहीं जा रही है। संस्कृति को बचाने के लिए या उसकी सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं किया जा रहा है, विद्यालय और विश्वविद्यालय तक एक ऐसी ही मिलावटी खेप तैयार करके शहर भेज रहे हैं, जिसकी चर्चा इस समय हम दोनों के बीच चल रही है।'

'नो डाउट-नो डाउट' आत्माराम जी ने थोड़ा गंभीर होकर रिचर्ड की बात का उत्तर दिया, 'आज हमारा जो माडर्न एजुकेशन सिस्टम है न, वह भी इस अडलट्रेशन को बढ़ावा देने का कुछ कम दोषी नहीं है, मि-रिचर्ड! स्टूडैंट तो वही एडोप्ट करेगा, जो उसे टीच किया जा रहा है, पूरे सिस्टम में चेंज लाए बिना इस प्राब्लम को हल करना पौसिबिल नहीं है, कम-से-कम मैं तो ऐसा ही समझता हूँ, मिस्टर रिचर्ड।'

'केवल समझने से तो काम चलता नहीं है आत्माराम जी.' रिचर्ड ए-विलियम ने महापंडित की बात पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'भाषा और अन्य ललित कलाओं पर विदेशी शब्दों और अभिव्यक्तियों का जो प्रभाव तेजी से पड़ रहा है और जिस तीव्रता से यह अपनी मूल विशेषताओं को गुम करती जा रही हैं, उन पर विस्तृत शोधकार्य होना चाहिए. जिस प्रकार हम दूध में पानी की मिलावट की मात्र का रासायनिक परीक्षण के बाद पता लगा लेते हैं, ठीक इसी प्रकार शोध एवं गहन विश्लेषण के बाद यह बात भी सामने आनी चाहिए कि भाषा, कला और संस्कृति के स्तर पर आज मिलावट का प्रतिशत क्या है? सही स्थिति की जानकारी होगी, लोगों के सामने वास्तविकता आएगी, शिक्षित वर्ग इस भाषाई प्रदूषण के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ेगा तो मुझे विश्वास है कि स्थिति बदलेगी, भाषा और संस्कृति में हो रही मिलावट पर रोक लगेगी।'

'यू आर राइट! मिस्टर रिचर्ड।' महापंडित आत्माराम जी अपने चेहरे पर कृत्रिम गंभीरता का भाव लादते हुए बोले, 'कभी-कभी मिस्टर रिचर्ड, यह एडलट्रेशन, नैचुरल प्रोसेस के अंतर्गत भी होता और यदि कंडीशन ऐसी हो तो उसे रोक पाना काप़्ाफ़ी डिफिकल्ट हो जाता है।'

'जैसे? तनिक विस्तार से कहिए.' रिचर्ड ने आत्माराम जी ने पूछा। आत्माराम जी ने उसी प्रोफेसरी गंभीरता के साथ उत्तर दिया, 'रियलिटी यह है मिस्टर रिचर्ड कि जब दो कलचर एक-दूसरे से निकटतम रिलेशन स्थापित कर लेती हैं तो वे एक-दूसरे की विशेषताओं का आदान-प्रदान करती हैं। मान लीजिए इंडियन कल्चर, वैस्टर्न कलचर के निकट संपर्क में आती है तो वह नेचुरली उससे कुछ-न-कुछ टेक-अप करेगी और यह तो आप जानते ही हैं मिस्टर रिचर्ड कि जो कल्चर जितना ज़्यादा माडर्न एवं स्ट्रांग अथवा पापुलर होती है, वह प्राचीन सभ्यताओं पर उतना ही अधिक इफैक्ट डालती है।'

'आपकी बात ठीक हो सकती है आत्माराम जी, रिचर्ड ने धीमे से मुस्कराते हुए उत्तर दिया,' लेकिन यह आदान-प्रदान जब औसत से ज़्यादा होने लगे अथवा संयम से बाहर चला जाए तो उसे एक ख़तरा ही मानना चाहिए और मेरा विचार है कि यह ख़तरा आपके बिलकुल सम्मुख आ गया है। '

'महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी स्वचालित मशीन की तरह बोले,' इस टॉपिक पर अवश्य सोचना होगा, अवश्य अवश्य। '

इतना कहकर महापंडित पद्मश्री आत्माराम जी थोड़ा रुके, फिर बोले, 'आई वंडर मिस्टर रिचर्ड! आप इतनी अच्छी और शुद्ध हिदी बोल लेते हैं, रियली आई वंडर।'

रिचर्ड आत्माराम जी की बात सुनकर हँसा। बोला, 'मैं स्वयं भी आश्चर्यचकित हूँ आत्माराम जी कि आप हिदीभाषा में अँग्रेजी शब्दों की इतनी अच्छी मिलावट कर लेते हैं।'

उत्तर में दोनों एक साथ ठहाका मारकर हँसे और वार्तालाप समाप्त हो गया।