मिलो और मुस्कराओ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
आख़िर जिस बात का अंदेशा था वही हुआ। रमाकांत की म्रृत्यु के बाद उनके दोनों बेटों में ठन गई। माँ रेवती के लाख समझाने पर भी राधाकांत पिताजी की जायदाद के बंटवारे की बात करने लगा।
छोटा बेटा कृष्णकांत वैसे तो खुलकर कुछ नहीं कह रहा था, परंतु बड़े भाई के व्यवहार से दुखी होकर उसने भी बंटवारे के लिए हामी भर दी। मकान का बंटवारा हो गया।
चार-चार कमरे दोनों के हिस्से में आए। पीछे के आंगन के बीचों-बीच दीवाल खड़ी होने लगी। सामने के बरामदे को भी दो हिस्सों में बांटने के लिए मिस्त्री काम पर लगा दिया गया।
ऊपर का एक कमरा जो रमाकांत का स्टडी रूम था, बंटने के लिए शेष रह गया था। दोनों भाई ऊपर पहुँचे, जहाँ दो अलमारियाँ रखी थीं। अलमारियों और उस कमरे का बंटवारा कैसे हो, इस पर विचार हो रहा था। कृष्णकांत ने देखा कि पिताजी की एक अलमारी पर लिखा था 'मिलो' और दूसरी पर लिखा था 'मुस्कुराओ' । उसे कुछ अजीब-सा लगा, इसका मतलब क्या है वह सोचने लगा। वैसे तो बचपन से ही दोनों भाइयों में आपस में बहुत स्नेह था, किंतु जैसे कि आजकल आम बात हो गई कि विवाह के बाद परिवारों में फूट पड़ जाती है, रमाकांत के बेटों के विवाह के बाद उनके परिवार को भी किसी आसुरी शक्ति की नज़र लग गई थी।
रोज कलह होने लगी। मनमुटाव बढ़ने लगा, जो चाय की प्याली में तूफान की तरह था। पिताजी के रहने तक अंगारे राख में दबे रहे, किंतु उनके जाने के बाद लावा फूट पड़ा था।
कृष्णकांत बोला-भैया, मैं 'मिलो' वाली अलमारी लूंगा'।' ठीक है तो मैं 'मुस्कुराओ' वाली ले लेता हूँ। ' राधाकांत कुछ सोचते हुए और मुस्कुराते हुए बोला।
'बहुत दिन बाद आपके चेहरे पर मुस्कान देख रहा हूँ भैया, कितने अच्छे लग रहे हैं आप मुस्कुराते हुए।' कृष्णकांत ने हंसते हुए कहा।
राधाकांत को हंसी आ गई। 'पिताजी ने अलमारियों पर यह क्यों लिखवाया, समझ में नहीं आया।'
वह कुछ सोचते हुए बोला-'मिलकर रहेंगे तभी तो मुस्कराएंगे।' यही तो मतलब हुआ।
कृष्णकांत ज़ोर से खिलखिलाकर हंसने लगा और बड़े भाई के गले लग गया। राधाकांत भी मोम की तरह पिघल गया।
'पिताजी के विचार कितने ऊंचे थे' वह इतना ही कह सका। आंगन और बरामदे की आधी बन चुकी दीवारों को गिरा दिया गया है।