मिस्टर इंडिया / पंकज सुबीर
"अपने घर में चार मज़बूत खूंटियों को ठोंको दीवार में, एक पर सिद्घाँतों को, एक पर संस्कारों को, एक पर मूल्यों को और चौथी पर मर्यादा को टांग दो। टांगना हमेशा के लिए और फिर उतरना इस कीचड़ में। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जो व्यक्ति कपड़े पहना होता है उसी को डर होता है छींटे पड़ने का, दाग लगने का, एक बार आदमी नंगा हो जाए तो फिर किसी भी तरह के दाग का डर उसको नहीं लगता।" तीखे स्वर में कहा धीरेन्द्र सर ने, इतने तीखे स्वर में कि प्रद्युमन उनका चेहरा देखता रहा, कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पाया।
'मैं तुम्हें डरा नहीं रहा हूँ बल्कि तुमको उस दुनिया कि हक़ीक़त बता रहा हूँ जहाँ तुम उतरने जा रहे हो। मैं ये भी नहीं कह रहा कि मत उतरो, वह तुम्हारा अपना मामला है। मैं तो केवल ये चाह रहा हूँ कि तुम अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करके वहाँ जाओ, ताकि तुम्हें एकदम शॉक लगने वाली स्थिति का सामना ना करना पड़े।' प्रद्युमन को कुछ सहमा हुआ देखकर स्वर को थोड़ा ढीला करते हुए समझाइश भरे अंदाज़ में कहा धीरेन्द्र सर ने।
'मगर सर, क्या ज़रूरी है कि ऐसा सबके साथ ही होता हो?' कुछ अटकते हुए कहा प्रद्युमन ने।
'बिल्कुल ज़रूरी है क्योंकि जहाँ तुम जा रहे हो वहाँ हर चीज़ की एक निश्चित क़ीमत है, एक निश्चित दाम है और वह दिये बिना आप उसे प्राप्त नहीं कर सकते। चाणक्य ने कहा है कि पिशाच हुए बिना संपत्ति नहीं बनाई जा सकती, उसको मैं कुछ अलग तरीके से परिभाषित करता हूँ, मेरा मानना है कि सफलता एक धीमी प्रक्रिया है, जो सहजता से चलती है, परंतु रातोंरात सफलता एक तीव्र प्रक्रिया है, जो पूरी तरह से असहज है। ये रातोंरात वाली सफ़लता जिस सुनहरी चादर पर खड़ी होती है उसे अगर हटा कर देखेगे तो रातोंरात की पूरी कहानी समझ में आ जाएगी। यहाँ मेहनत और प्रतिभा के दम पर कुछ भी रातों रात नहीं होता माय डियर।' धीरेंद्र सर ने प्रद्युमन के विरोध में अपनी लंबी बात कही।
'लेकिन सर ये भी तो हो सकता है कि मैं अपने सिद्घाँतों को ना छोडूँ और फिर भी सफ़लता प्राप्त करूँ' प्रद्युमन ने एक और प्रयास किया।
'हो सकता है ना, क्यों नहीं हो सकता, कई लोग सफल हुए हैं, मगर उस क्षेत्र में नहीं जहाँ तुम जा रहे हो। जहाँ तुम जा रहे हो वह ओवर नाइट स्टारडम का क्षेत्र है वहाँ सफ़लता कि धीमी प्रक्रिया नहीं चलती, वहाँ तो एक आंधी आती है जो आपको उड़ा कर ले जाती है और शिखर पर बैठा देती है।' धीरेंद्र सर ने प्रद्युमन की आंखों में झांकते हुए उत्तर दिया। प्रद्युमन कुछ और कहने की स्थिति में नहीं था। वह चुपचाप धीरेंद्र सर की ओर देखता रहा।
'ये सब कुछ हमेशा से ऐसा नहीं था' धीरेंद्र सर ने लगभग बुदबुदाते हुए कहा। 'नहीं था ये सब कुछ हमेशा से ऐसा ही' फिर अपनी ही बात को प्रद्युमन की आंखों में झांकते हुए दोहराया। प्रद्युमन को उन आंखों में कुछ ऐसा दिखा जो धूं-धूं करके जल रहा था।
'पिछले कुछ सालों में ये सब कुछ इस बाज़ार ने कर दिया है। सत्यानाश। सत्यानाश बौद्धिकता का, सत्यानाश विचारों का और सत्यानाश दिमाग़ों का भी।' कांच के ग्लास पर धीरेंद्र सर की उंगलियाँ इस प्रकार जकड़ी हुईं थीं मानो ग्लास को अभी चूर-चूर कर देंगीं।
'हू नीड्स यूवर डेम दिमाग़ एंड विचार' हिन्दी और अंग्रेज़ी के शब्दों को मिलाकर एक अजीब-सा वाक्य बोला धीरेंद्र सर ने। प्रद्युमन चुपचाप उस छटपटाहट को देख रहा था जो किरचा-किरचा होकर धीरेंद्र सर की बॉडी लैंग्वेज से बिखर रही थी।
'ये साहित्य, ये संस्कृति, ये विचारधाराएँ, ये सब तो दिमाग़ों के लिये हैं और बाज़ार कब चाहेगा कि दिमाग़ों का विकास हो। उसे तो शरीर चाहिये। ताज़ा और जवान जिस्म। आज जो दौर है ये शरीर का दौर है, ये बाज़ार का दौर है। कुछ सालों पहले तक दिमाग़ों का दौर हुआ करता था और तब इसी बाज़ार को कोई पूछता भी नहीं था। दिमाग़ों को विचार नियंत्रित करते हैं किन्तु शरीरों को बाज़ार नियंत्रित करता है। इसीलिये बाज़ार ने पहले विचारों को समाप्त किया और फिर दिमाग़ों को और उके बाद शरीर उसके कब्ज़े में आ गये।' धीरेंद्र सर ने लम्बी बात को समाप्त कर बचे हुए पैग को एक लम्बे घूंट में समाप्त कर दिया।
'मगर सर, विचारों की क्या कहीं कोई कद्र नहीं होती?' प्रद्युमन ने पूछा।
'होती थी, अब नहीं है। जियादह नहीं, पन्द्रह बीस साल पहले के समय को देखोगे तो पाओगे कि हर उस जगह पर पहले विचार हुआ करता था, जहाँ आज बाज़ार है। चूंकि बाज़ार पुस्तकें तो छापता नहीं है इसलिये उसे नहीं चाहिए विचार। बाज़ार तो बनाता है कंडोम, कोल्ड ड्रिंक, मोटरसाइकिलें, कारें, मोबाइल, अंडरवियर और जाने क्या क्या। बाज़ार दिमाग़ों के लिये कुछ नहीं बनाता, वह सब कुछ शरीरों के लिये बनाता है। इसीलिये उसे ज़रूरत है केवल और केवल शरीरों की। शरीर नहीं सोचता कि मात्र पचास पैसे की लागत वाला झाग वाला कोल्ड ड्रिंक पन्द्रह रुपये में ख़रीद कर क्यों पिया जाये। मगर दिमाग़ होगा तो सोचेगा और सोचेगा तो निश्चित बात है कि बाज़ार को परेशानी होगी। इसीलिये बाज़ार ने ख़त्म कर दिया दिमाग़ों को। आज दिमाग़ कहीं नहीं है, बस शरीर हैं, बाज़ार की चीज़ों का उपयोग कर रहे शरीर।' कुछ कड़वाहट के साथ कहा धीरेंद्र सर ने।
'और चूंकि बात शरीर की है इसीलिये समय कम है। शरीर जल्दी तैयार होता है और जल्दी ही ख़त्म भी हो जाता है। विचार बहुत धीरे-धीरे तैयार होते हैं और देर तक क़ायम रहते हैं। तुम चुंकि बाज़ार बेचने वाले शरीरों की दुनिया में जा रहे हो इसलिये तुम्हारे पास उतना ही समय है जितना तुम्हारे शरीर के पास है।' बहुत ठंडे और सपाट लहजे में बात को बढ़ाया धीरेंद्र सर ने।
'मगर...' प्रद्युमन ने फिर कुछ कहना चाहा मगर धीरेंद्र सर ने हाथ के इशारे से उसको रोक दिया और बोले 'मैं जानता हूँ तुम क्या कहना चाह रहे हो, यही ना कि धीमी प्रक्रिया से सफ़लता जब सब जगह मिलती है तो फिर यहाँ क्यों नहीं? वह इसलिए माय डियर के यहाँ पर समय कम है जो कुछ भी होना है वह अभी होना है, अभी मतलब अभी, रातोंरात, अगर प्रतीक्षा करनी पड़ी तो फिर बाक़ी ही क्या रहेगा।' कुछ लापरवाही से अपनी बात ख़त्म करते हुए धीरेंद्र सर अपना पैग बनाने लगे, प्रद्युमन चुपचाप उनको देखता रहा। उन्होंने छोटा-सा पैग बनाकर हाथ में लिया और हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ प्रद्युमन की ओर देखने लगे।
'बाक़ी ही क्या रहेगा से आपका क्या आशय है?' प्रद्युमन ने पूछा।
धीरेद्र सर ने एक छोटा-सा घूंट भरा और गिलास को वापस टेबल पर रख दिया और बोले 'मेरा आशय है तुम्हारे इन गुलाबी होठों से, चमकते दांतों से, रेशमी बालों से, जिम में जाकर तराशे गए इस सुगठित बदन से, बिकाऊ तो यही सब कुछ है, तुम थोड़े ही हो। तुम्हारे ये बाल शैंपू वालों के काम आऐेंगे, तुम्हारे दांत टूथ पेस्ट वालों के, शरीर चड्डी बनियान वालों के हिस्से आएगा और तुम्हारा कसरती बदन काम आएगा कंडोम वालों के। इन सबको अपना सामान बेचने के लिए एक ज़िंदा माल चाहिए। कभी मेडिकल कॉलेज की प्रयोगशाला में गए हो? वहाँ हर विभाग वाला शव के अलग-अलग अंग पर कब्जा कर लेता है और उस पर अपने-अपने हिसाब से प्रेक्टिकल करता है, यही तुम्हारे साथ भी होगा।' धीरेंद्र सर ने बात को ख़त्म कर के गिलास को फिर टेबल पर रख दिया। कुर्सी की पीठ पर सर टिकाते हुए आंखें बंद कर ली।
'मगर सर जो कुछ मेरे पास है, मतलब मेरी आंखें, मेरा चेहरा, मेरा जिस्म, ये सब कुछ तो चार पांच साल बाद भी मेरे पास रहेगा, तो क्या अगर मुझे चार पांच साल बाद सफलता मिले तो आप उसे भी असहज ही कहेंगे?' प्रद्युमन ने पूछा।
'बेशक ये सब कुछ आज से चार पांच साल बाद भी रहेगा, मगर ऐसा नहीं रहेगा, जैसा आज है। आज तुम्हारे अंदर जवानी का टटकापन है, नमक है और वही तो बिकाऊ है। इस मंडी में केवल ताज़ा माल बिकता है माय बॉय, बासी सब्जी को लोग उठाकर छोड़ देते हैं। बाज़ार को बासी माल पसंद नहीं है। बाज़ार को ऐसे जिस्मों की आवश्यकता होती है जो ताज़े होते हैं। चार पांच साल बाद कौन पूछेगा तुमको, तब तो तुमको उठाकर फैंक दिया जायेगा कूड़ेदान में। क्योंकि तब तक तो बाज़ार को तुमसे भी नया कोई दूसरा जिस्म मिल गया होगा।' धीरेंद्र सर ने उत्तर दिया और सामने रखी प्लेट से कुछ काजू उठा कर हाथ में ले लिए।
'तुमने देखा होगा कि आजकल स्त्री से ज़्यादा पुरुष का अधनंगा जिस्म दिखता है विज्ञापनों में और वह इसलिये क्योंकि विज्ञापन वाले जान गए हैं कि अगर पुरुष को महिला का जिस्म विज्ञापनों में देखना अच्छा लगता है तो क्या महिलाओं को । तुम भी चूंकि बाज़ार के प्रतिनिधि बनने जा रहे हो इसलिये वह तुम्हें भी नंगा कर देगा उतार देगा तुम्हारे सारे कपड़े और खड़ा कर देगा तुमको शो विंडो में ताकि वह आकर्षित कर सके उन स्त्रियों को जो ख़रीदार बन कर बाज़ार में घूम रहीं हैं। लेकिन बाज़ार ये नहीं जानता कि लोग ऊबते हैं और बहुत जल्दी ऊबते हैं। जब आखिरी कपड़ा भी उतार कर फैंक दिया जाये तो उसके बाद नंगे होने के लिये कुछ नहीं बचता' धीरेंद्र सर के जबड़े भिंच गये थे और कनपटी की नसें उभर आईं थीं।
'तो क्या मैं नहीं जाऊँ?' प्रद्युमन ने निर्णायक प्रश्न किया।
'वो मैंने कब कहा? जाओ, बिल्कुल जाओ। अपने सपने पूरे करने का अधिकार सबको होना चाहिए। मगर मैं तो केवल ये कह रहा हूँ कि हर बात के लिए मानसिक रूप से पूरी तरह से तैयार होकर जाओ। जहाँ तुम जा रहे हो वहाँ पर सफलता का हर एक रास्ता बिस्तर से होकर जाता है। जहाँ शरीर सफलता का सबसे बड़ा साधन होता है, इसलिए अपनी हर चीज़ को बेचने के लिए मानसिक रूप से तैयार होकर जाना।' धीरेंद्र सर ने उत्तर दिया और काजू चबाने लगे।
'हर चीज़?' प्रद्युमन ने चीज़ पर ज़ोर डालते हुए प्रश्न किया।
'हाँ हर चीज़' धीरेंद्र सर का उत्तर बहुत शुष्क था। 'हर चीज़ का मतलब हर चीज़। क्योंकि बाज़ार का मानना है कि हर चीज़ बिकती है और हर चीज़ ख़रीदी जा सकती है और ये चूंकि बाज़ार की सत्ता का युग है इसलिये तुमको वही करना होगा जो बाज़ार चाहता है। नहीं करोगे तो बाज़ार तुमको लात मारकर बाहर कर देगा। तुम उस बाज़ार के प्रतिनिधि बनने जा रहे हो इसलिये ये मान लो कि अब वही तुमको नियंत्रित करेगा। उसे तुम्हारा उपयोग करके अगरबत्ती से लेकर कंडोम तक सब कुछ जो बेचना है।' धीरेंद्र सर का स्वर अभी भी उसी प्रकार तल्ख़ था।
'मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि हमेशा से ऐसा नहीं था। लेकिन उससे भी कौन इनकार कर सकता है कि आज तो ऐसा है। ये जो आज है ये पूरी तरह से बाज़ार के हाथ में जा चुका है और जहाँ तुम जा रहे हो वह इस बाज़ार का नियंत्रण कक्ष है। जहाँ पर वे शरीर तैयार किये जाते हैं, वे चेहरे बनाये जाते हैं जो बाज़ार का प्रचार कर सकें। इसलिये भूल जाना विचारों को, दिमाग़ को, सबको। वही करना जो बाज़ार चाहता है। अगर तुमको बाज़ार में टिकना है तो तुम्हें भी बाज़ारू बनना होगा। बाज़ारू होने का अर्थ तुम समझते हो ना?' कह कर धीरेंद्र सर ने प्रश्नवाचक नज़रों से प्रद्युमन की ओर देखा। प्रद्युमन ने कोई जवाब नहीं दिया केवल सर झुका लिया। काफ़ी देर तक ख़ामोशी छाई रही। प्रद्युमन उसी प्रकार सर झुकाये बैठा रहा और धीरेंद्र सर काजू कुतरते रहे।
'मैं चलूँ?' प्रद्युमन ने उठते हुए पूछा।
'हाँ जाओ तुम्हे तैयारी भी तो करनी है, कब निकल रहे हो?' धीरेद्र सर ने कहा।
'बस कल शाम की ट्रेन से निकलना है, तैयारी तो सब हो गई है' कहते हुए प्रद्युमन ने धीरेंद्र सर के पैर छू लिए।
'बस-बस, जाओ और बस एक बात याद रखना कि जहाँ तुम जा रहे हो। वहाँ सफ़लता ही सबसे महत्त्वपूर्ण है, सफलता पाने के लिए आपने क्या रास्ता अपनाया, वह कोई मायने नहीं रखता।' धीरेंद्र सर ने कहा।
धीरेंद्र सर से हुई उस बात चीत के बाद एकबारगी तो प्रद्युमन को लगा था कि वह नहीं जाए। इस तरह की बातचीत टुकड़ों-टुकड़ों में पहले भी होती रही थी। मगर धीरेंद्र सर ने कभी भी उसे सीधे नहीं कहा था कि तुम मत जाओ, हर बार उसे केवल इतना ही चेताया था कि मानसिक रूप से सब कुछ होने को लेकर तैयार रहना। उस बातचीत के बाद काफ़ी उहापोह में रहा था, मगर फिर आंखों में झिलमिलाते सपनों ने प्रश्न का निर्णायक उत्तर दे दिया था 'चलो जो कुछ भी होगा देखा जाएगा'।
और यहाँ पर आने के बाद वह इस मुकाम तक आ भी पहुँचा है जहाँ उस समेत अब केवल पचास ही प्रतिभागी बचे हैं। अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जैसा धीरेंद्र सर कहते थे, उसे ऐसा लगने लगा है जैसे धीरेंद्र सर के रूप में कहीं उनका फ्रस्ट्रेशन तो नहीं बोल रहा था। जब वह यहाँ आया था तब देश भर के कोने-कोने से आए लगभग पांच सौ प्रतियोगी थे जो इस देश के सबसे सुंदर पुरुष की प्रतियोगिता में चयनित होकर आए थे। सुंदरता, सामान्य ज्ञान, शरीर सौष्ठव जैसी प्राथमिक चीज़ों के अलावा मुस्कुराहट, आवाज़, दांत, आंखें जैसी चीज़ों को भी आधार बनाकर इन पांच सौ में से चयन प्रक्रिया शुरू की गई थी।
जब वह यहाँ आया था तब कुछ नर्वस-सा था क्योंकि बाक़ी के युवकों में एक से बढ़कर एक सुंदर थे। आत्मविश्वास केवल इस बात को लेकर था कि उसके पास सुंदरता के अलावा धीरेंद्र सर द्वारा दिया गया ऐसा बहुत कुछ है जो यहाँ उसके काम जाएगा और शायद वही उसके काम भी आता गया। धीरेंद्र सर कहते हैं कि दुनिया के दस सबसे सुंदर पुरुष खड़े हों और मुझे उनमें से किसी एक का चयन करना हो तो मैं उन दसों से कहूंगा कि तुम बोलना शुरू करो, मेरा काम हो जाएगा।
पांच सौ प्रतिभागियों से अंतिम पचास तक आने का ये सफ़र उसे बहुत ज़्यादा मुश्किल नहीं लगा। इसी बीच रोज़ ही वह सेलफोन पर धीरेंद्र सर से बात करता रहा है। हर बार अपनी सफ़लता के बारे में बताने पर उधर से धीरेंद्र सर का लगभग एक ही जवाब मिलता है 'गुड, यू डिज़र्व इट, पर याद रखना सफ़लता तुम्हारा सबसे बड़ा सपना है इसलिए केवल उसी को याद रखना।'
आने वाले दो दिनों में अंतिम पचास का दिन-दिन भर का सत्र होना है जिसमें इन पचास में से केवल दस का चयन किया जाएगा और फिर वे दस ही भाग लेंगे इंडिया के सबसे सुंदर पुरुष के भव्य और रंगारग समारोह में। जिसको लेकर बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार किया जा रहा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक हर जगह उस समारोह को लेकर हलचल मचाने का प्रयास जारी है। मुख्य समारोह में अभी पन्द्रह दिन और हैं। आने वाले दो दिनों के बाद जिन दस युवकों का चयन होगा उनको फिर हर प्रकार से तैयार किया जाएगा, उस अंतिम प्रतियोगिता के लिए।
सेलफ़ोन की घंटी बजी तो प्रद्युमन वर्तमान में वापस आया देखा तो खन्ना सर का नंबर डिस्प्ले हो रहा है। खन्ना सर उस दस सदस्यीय दल के एक मेंबर हैं जिनको इन युवकों की हर प्रकार की तैयारी की जवाबदारी दी गई है।
'जी सर' प्रद्युमन ने सेलफ़ोन आन करके विनम्रता से कहा।
'क्या कर रहे हो प्रदू?' यहाँ उसके नाम को भी छोटा कर दिया गया है।
'कुछ नहीं सर, बस कल से शुरू होने वाले सेशन के लिए थोड़ा वर्क कर रहा था।' प्रद्युमन ने फिर से विनम्रता पूर्वक कहा।
'अच्छा ऐसा करो तुम अभी इवेंट हाल के साथ बने ऑफ़िस में चले आओ' उधर से खन्ना सर ने आदेश रूप में उत्तर दिया।
'जी सर मैं आ जाता हूँ' प्रद्युमन ने कहा।
'ठीक है, आय एम वेटिंग फ़ार यू' कहते हुए खन्ना सर ने सेलफोन काट दिया।
प्रद्युमन उठा और बाथरूम में चला गया थोड़ी देर में फ्रेश होकर निकला और जल्दी-जल्दी तैयार होने लगा। अपनी फ़ेवरेट ब्लेक एंड यलो टी शर्ट पहनने के बाद जब वह कांच के सामने खड़ा होकर मस्क स्प्रे कर रहा था तो आइने में ख़ुद को देखकर माँ की बात याद आ गई। जब भी वह तैयार होकर निकलता है तो एक ही बात कहती है 'प्रद्युमन तू हमें ज़रूर मुश्किल में डालेगा, तेरे जोड़ की सुंदर लड़की अपने समाज में तो मिलने से रही'।
कुछ देर तक प्रद्युमन आइने में मुग्ध भाव से ख़ुद को देखता रहा। धीरेंद्र सर अक्सर कहते हैं 'नारसीसस हुए बिना कोई सफ़लता नहीं मिलती'। उसे ऐसा लगता है कि धीरे-धीरे वह भी नारसीसस होता जा रहा है। रूम लॉक कर जब बाहर निकला तो देखा रात गहरा गई है। इवेंट हॉल पहुँचने के लिए उसने टैक्सी कर ली। ऑफ़िस पहुँचा तो देखा कि केबिन में खन्ना सर और मिसेज सुधा जैमिनी बैठकर किसी फ़ाइल पर चर्चा कर रहे हैं। सुधा जैमिनी प्रतियोगिता के आयोजन मंडल से जुड़ी हैं, एक दो बार ही इस दौरान नज़र आई हैं और उसी समय प्रद्युमन का परिचय उनसे हुआ था। प्रद्युमन से हाथ मिलाते हुए कुछ प्रशंसा के भाव से कहा था उन्होनें 'हूँ नाइस फिज़ीक विथ ए स्वीट फ़ेस'। उनके उद्योगपती पति की कंपनी इस प्रतियोगिता कि मुख्य स्पांसर है और इसीलिए वे आयोजन मंडल की सबसे प्रभावशाली सदस्या हैं। चालीस के लगभग पहुँच चुकी हैं। परन्तु अपने आपको इस तरह से मेन्टेन करके रखा है कि तीस से नीचे की ही लगती हैं।
खन्ना सर की नज़र केबिन के बाहर खड़े प्रद्युमन पर पड़ी तो वहीं से बोले 'आ जाओ प्रदू' केबिन का दरवाज़ा खोलकर प्रद्युमन अंदर पहुँचा शिष्टता पूर्वक सुधा जैमिनी और खन्ना सर को नमस्कार किया।
'आओ प्रदू बैठो' खन्ना सर ने सामने रखी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा। प्रद्युमन बैठ गया, कुछ देर तक वे दोनों फिर उस फ़ाइल पर चर्चा करते रहे फिर खन्ना सर फाइल को बंद करके प्रद्युमन से मुख़ातिब हुए 'हाँ प्रदु कैसा चल रहा है सब?'
'जी बस ठीक चल रहा है' प्रद्युमन ने उत्तर दिया।
'कल से सेमी फायनल सेशन है' खन्ना सर ने कहा।
'जी सर उसी से थोड़ी नर्वसनेस हो रही है।' प्रद्युमन ने झिझकते हुए उत्तर दिया।
'नर्वसनेस? ये शब्द तुमको सूट नहीं करता पीडी' खन्ना सर की जगह कुछ मुस्कुराते हुए कहा सुधा जैमिनी ने।
'नहीं मैडम बस थोडी-सी घबराहट है' प्रद्युमन ने 'पीडी' पर ग़ौर करते हुए उत्तर दिया।
'अभी दूर हो जाएगी, मिस्टर खन्ना में पीडी को अपने साथ डिनर के लिए ले जा रही हूँ, विथ युवर काइंड परमिशन' सुधा जैमिनी ने उठते हुए कहा।
'अरे क्यों शर्मिंदा कर रहीं हैं मैडम परमीशन की बात करके, जाओ पीडी, मैडम के साथ जाओगे तो तुम्हारी घबराहट दूर हो जाएगी' खन्ना सर ने कहा और उनके कहते ही सुधा जैमिनी उठकर खड़ी हो गईं साथ में प्रद्युमन भी।
आलीशान महल समान घर के उस भव्य डाइनिंग रूम में बैठकर उसे ऐसा लगा जैसे स्वर्ग में आ गया हो। अभी तक फ़िल्मों में इस तरह के दृष्य देखता था तो प्रद्युमन समझता था कि ये सब फ़िल्मी सेट होते हैं, वास्तव में ऐसे घर थोड़े ही होते होंगे। पर यहाँ का दृष्य तो उन फ़िल्मी दृष्यों से भी आगे का था।
खाने वगैरह से फ़ारिग होकर जब वह दोनों ड्राइंगरूम में पहुँचे तो प्रद्युमन ने कहा 'अब में चलूं मैडम?'।
'अब इतनी रात को कहाँ जाओगे यहीं रुक जाओ, सुबह ड्रायवर तुम्हें इवेंट हाल पहुँचा देगा।' सुधा जैमिनी के स्वर में आदेश का पुट अधिक था।
'पर खन्ना सर ...?' प्रद्युमन ने झिझकते हुआ कहा।
'डोंट वरी, खन्ना को मैं बता दूंगी के तुम रात यहाँ रुक रहे हो। सामने रूम में चले जाओ, वार्डरोव में नाइट गाउन वगैरह सब है, जाओ और आराम करो' सुधा जैमिनी ने कहा।
किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह प्रद्युमन कमरे में चला आया। चेंज करके बिस्तर पर लेटा तो थकान के कारण आँख जल्दी ही लग गई और फिर जल्दी ही खुल भी गई क्योंकि कमरा झागदार रोशनी और तेज़ सुंगध से भरा हुआ था। सुधा जैमिनी उसके ऊपर झुकी हुईं थी। प्रद्युमन ने असहज होकर उठने का प्रयास किया पर तभी उसके कानों में धीरेंद्र सर की बात गूंजी 'वहाँ पर सफलता का हर एक रास्ता बिस्तर से होकर जाता है' उसने एक बार सुधा जैमिनी की आंखों में झांक कर देखा फिर आंखें बंद कर लीं। एक तेज़ चक्रवात आया और उसे अपने साथ उड़ा कर आसमान पर ले गया। प्रद्युमन को फिर धीरेंद्र सर की बात याद आई 'वहाँ सफ़लता महत्त्वपूर्ण है, रास्ता नहीं' और फिर उसने अपने आपको पूरी तरह से उस चक्रवात के हवाले कर दिया।
सुबह जब तैयार होकर बाहर आया तो देखा सुधा जैमिनी हाल में है। प्रद्युमन को देखा तो मुस्कुराते हुए बोलीं 'आओ पीडी यू आर लुकिंग डेशिम टुडे, आओ ब्रेकफ़ास्ट कर लो।' ब्रेकफ़ास्ट के बाद प्रद्युमन उठ खड़ा हुआ 'अब मैं चलूं सुधा जी ग्यारह बजे काम्पटीशन शुरू होगा, मुझे थोड़ी प्रिपरेशन्स भी करनी है।'
'वेल, जाना तो पड़ेगा ही, बट डोंट वरी एबाउट प्रिपरेशन्स, यू आर सिलेक्टेड फ़ार टाप टेन' रहस्य से मुस्कुराते हुए कहा सुधा जैमिनी ने। प्रद्युमन कुछ भी नहीं कह पाया। 'डोंट बी सरप्राइज़्ड दिस इज़ माय डिसिजन, ख़ैर जाओ बाहर ड्रायवर तैयार है वह तुम्हें छोड़ आएगा' सुधा जैमिनी ने प्रद्युमन को आश्चर्य की मुद्रा में देखा तो कहा।
बाद के दो दिन प्रद्युमन के लिए कोई ज़्यादा उत्सुकता वाले नहीं थे। दोनों दिन सुधा जैमिनी वहाँ मौज़ूद भी थीं और मुख्य निर्णायकों वाली कुर्सी पर थीं। बीच में वह धीरेंद्र सर को पूरी बात बता चुका था, उधर से जवाब आया था 'वेल इट इज़ जस्ट बिगनिंग माय ब्वाय, कीप युवर सेल्फ़ रेडी फार एवरी थिंग।'
दो दिन के सत्र के बाद जो परिणाम आया वह प्रद्युमन के लिए आश्चर्य और ख़ुशी से उछलने वाला नहीं था हालांकि वह टाप टेन में पहले ही नंबर पर था लेकिन ये उसे पता था। चमचमाती रोशनी और मीडिया के चमकते केमरों के बीच जब उद्घोषक ने उसका नाम पुकारा तो पूरा हाल तालियों से गूंज उठा था। प्रद्युमन पूरे आत्मश्विवास के साथ माइक पर आया और वही रटे रटाये से शब्द कह दिये जो ऐसे अवसर पर कहे जाते हैं।
इसके बाद वे दस ही बचे रह गए थे। दस, जिनमें से किसी एक को बनना था भारत का सबसे सुंदर पुरुष। जिसके पैरों के नीचे विज्ञापन, टीवी और फ़िल्मों के ग्लैमर की चमचमाती हुई दुनिया को आना था। उन दसों को लेकर विशेष तैयारियाँ प्रारंभ हो गई थीं। मुख्य समारोह को लेकर जिस तरह का प्रचार किया जा रहा था उससे चारों तरफ़ उत्सुकता का वातावरण था। इसी बीच प्रद्युमन दो बार और भी जा चुका था सुधा जैमिनी के घर डिनर के लिए। दूसरी बार जब जा रहा था तो उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था इसीलिए उसने धीरेंद्र सर को फ़ोन भी किया था, धीरेंद्र सर ने जवाब दिया था अगर वहाँ जाने में अच्छा नहीं लग रहा है तो एक काम करो पहली ट्रेन पकड़ कर वापस आ जाओ और फ़ोन काट दिया था। इसके बाद यंत्र चलित-सा चला गया था वह सुधा जैमिनी के घर।
ड्रेस डिज़ायनर, हेयर एंड ब्यूटी एक्सपर्ट, पर्सनालिटी एक्सपर्ट, जैसे कई सारे एक्सपर्ट उन दस लड़कों पर काम कर रहे थे। मेगा फंक्शन के लिए उन सबों को तैयार कर रहे थे। प्रद्युमन की हेयर स्टाइल पूरी तरह से बदल दी गई थी, उसकी अांखों पर तरह-तरह के रंग वाले कान्टेक्ट लेंसों का परीक्षण करने के बाद अंततः हल्के कत्थई रंग के लेंस उसके लिए फ़ाइनल किये गए थे। प्रद्युमन का पूरा लुक ही बदल गया था। बाक़ी के नौ लड़कों का भी यही हाल था सब के सब परिवर्तन का शिकार हो चुके थे। उनके चलने का तरीका, बातचीत करने का ढंग, सब कुछ वैसा होता जा रहा था जैसा वे एक्सपर्ट बना रहे थे।
'तुम्हारे ऊपर हर कलर सूट करता है प्रदू' ड्रेस डिज़ायनर सोनू जार्ज ने प्रद्युमन को फिरोज़ी और सफेद रंग के कॉम्बीनेशन वाली ड्रेस पहनाने के बाद कहा।
'थैंक्स सर' यहाँ सारे एक्सपर्ट 'सर' थे क्योंकि फ़ायनल रिज़ल्ट का बहुत दारोमदार इन्हीं पर था।
'तुम्हारे अंदर एक अलग कुछ ज़रूर है जो तुम्हें बाक़ी लड़कों के ऊपर रखे हुए है और मेरे ख़याल से वह है तुम्हारी फ़्रेशनेस, तुम्हारी ताज़गी' सोनू जार्ज ने प्रद्युमन की ड्रेस ठीक करते हुए कहा।
'थैंक्स अगेन सर, पर मेगा इवेंट को लेकर तो मन बहुत घबरा रहा है, जाने क्या होगा?' प्रद्युमन ने शिष्टतापूर्वक कहा।
'घबराहट तो होना ही है, तुम एक छोटे से क़स्बे से आए एक साधारण से लड़के हो, एक झटके में तुम आसमान के सितारों पर खड़े हो सकते हो, उसके बाद पीछे मुड़कर देखना भी नहीं है।' सोनू जार्ज ने कहा।
'वो तो ठीक है सर, लेकिन बाक़ी के नौ लड़के भी तो मेरी ही तरह अपने सपने लेकर निकले हैं और उनको पाने के लिए तैयारी भी कर रहे हैं' प्रद्युमन ने उत्तर दिया।
'बिल्कुल कर रहे हैं, लेकिन मिलेगा तो उसी को ही जो उस टार्गेट को पाने के लिये हंड्रेड पर्सेंट समर्पित होगा' सोनू जार्ज ने जवाब दिया।
'औरों की तो मैं नहीं जानता लेकिन मैं तो हंड्रेड से भी ज़्यादा समर्पित हूं' प्रद्युमन ने बेल्ट के हुक को थोड़ा टाइट करते हुए जवाब दिया।
'हूँ ...' सोनू जार्ज प्रद्युमन के उत्तर पर मुस्कुरा दिया था।
'और मेरे गुरु ने मुझे ये कह के भेजा है कि सफ़लता पर नज़र रखना और यहाँ पर सफ़लता के रास्ते में जो कुछ भी हो उसको कड़वा घूंट समझ कर पी लेना' प्रद्युमन ने उत्तर दिया।
'तब तो तुम पा लोगे, तुम्हें सबसे बड़ा मंत्र मिल चुका है। चलो आज डिनर पर चलो मेरे साथ' सोनू जार्ज ने प्रद्युमन का कंधा थपथपाते हुए कहा।
होटल में खाना खाने के दौरान कई सारी बातें हुईं, सोनू जार्ज ने अपने बारे में काफ़ी कुछ बताया कि किस तरह वह एक छोटे से कस्बे से सपने लेकर चला था और यहाँ तक पहुँचा है। प्रद्युमन धीरेंद्र सर के बारे में बताता रहा। इसी बीच सोनू ने प्रद्युमन को बताया कि मेगा इवेंट के लिए के लिए जो तीन निर्णायक हैं उनमें से एक उसके गुरु देश के मशहूर फ़ैशन डिज़ायनर रवि कौशल भी हैं। बताने के साथ ही उसने प्रद्युमन से ये भी कहा था कि ये कॉनफिडेंशियल है अपने तक ही रखना।
जब खाना ख़त्म हुआ तब बारह बज चुके थे। नेपकिन से हाथ पोंछते हुए सोनू ने कहा 'प्रदू चल यहीं होटल में रूम लेकर रूक जाते हैं, कहाँ जाएंगे इतनी दूर अब।'
'जैसा आप कहें सर' प्रद्युमन ने उत्तर दिया।
रूम पहुँचने के बाद सोनू शावर लेने चला गया और प्रद्युमन टीवी देखने लगा। सोनू शावर लेकर टावेल लपेटे हुए आया और बोला 'चल सोते हैं प्रदु फिर तुझे सुबह जल्दी उठना भी है।' प्रद्युमन ने टीवी ऑफ किया और लाइट भी बंद कर दी। अभी उसे नींद भी नहीं आई थी कि..., प्रद्युमन ने दोनों हाथों से सोनू जार्ज को हटाने का प्रयास किया मगर असफ़ल रहा, वह पूरी ताक़त लगा कर हटाने की कोशिश कर ही रहा था कि फिर धीरेंद्र सर का स्वर गूूंज उठा 'दिस इज़ बिगनिंग माय ब्वाय कीप युवर सेल्फ रेडी फार एवरी थिंग।' प्रद्युमन ने धीरे-धीरे अपने आपको ढीला छोड़ दिया। सोनू जार्ज तेज़ अंधड़ बनकर गुज़रने लगा। प्रद्युमन ने अपना पूरा नियंत्रण उस अंधड़ के हवाले कर दिया और बहता चला गया उस तेज़ हवा के इशारे पर।
सुबह जब प्रद्युमन की आँख खुली तो देखा सोनू जार्ज तैयार हो चुका है। प्रद्युमन की नींद खुलते देखा तो आकर पास में बैठ गया और बोला 'सॉरी डीयर'।
'नहीं सर कोई बात नहीं है' प्रद्युमन ने फीकी-सी मुस्कुराहट के साथ कहा।
'बात तो है पीडी, मगर इसे सहन करना होगा क्योंकि यही रास्ता तुम्हें टॉप तक ले जाएगा। यहाँ सफलता कि सीढ़ी के हर एक पायदान पर केवल बिस्तर ही है' सोनू ने कहा।
'मेरे गुरु भी यही कहते हैं' प्रद्युमन ने उत्तर दिया।
'पीडी जो तीन लोग फ़ाइनल निर्णायक होंगे उनमें से एक सुधा जैमिनी को तो तुम पहले ही अपने पक्ष में कर चुके हो।' मुस्कुराते हुए कहा सोनू जार्ज ने।
'आप जानते हो ...' प्रद्युमन ने आश्चर्य से कहा।
'यहाँ सबकी बात सब जानते हैं पर कोई किसी से कुछ नहीं कहता। ये जो पूरे भारत से ख़ूबसूरत और जवान लड़के इकट्ठा करते हैं ये क्या यूंही किए जाते हैं? ये सारे जवान जिस्म सुधा जैमिनी और मेरी तरह के लोगों के लिए जुटते हैं। ख़ैर, हाँ तो मैं ये कह रहा थ कि एक निर्णायक तुम्हारे पक्ष में है और बाक़ी के दो में से एक तो मेरे गुरु रवी जी हैं और दूसरे फ़िल्म निर्देशक तरूण कपूर हैं और दोंनो ही मेरे समान हैं। सो आर यू रेडी फार देम आल्सो?' सोनू ने पूछा।
'जब सपने सामने खड़े हों तो रेडी या नाट रेडी जैसे प्रश्न नहीं होते सर, तब केवल सपने ही होते हैं' प्रद्युमन ने उठते हुए कहा।
'गुड। चलो अब उठकर तैयार हो जाओ फटाफ़ट, तुम्हें टाइम से पहुँचना भी है।' सोनू ने प्रद्युमन का कंधा थपथपाते हुए कहा।
सोनू जार्ज वाली घटना जब उसने कुछ झिझकते हुए धीरेंद्र सर को बताई थी तो उन्होंने कहा था 'प्रद्युमन कुछ मर्यादाओं के चलते बस यही बात मैं खुलकर नहीं कह पा रहा था। लेकिन मैं बार-बार जिस के बारे में कहता था कि हर बात के लिए तैयार रहना तो वह बात यही थी। सुधा जैमिनी वाली घटना किसी भी पुरुष के लिये स्वाभाविक घटना है पर ये जो दूसरी घटना है ये तो । ख़ैर उस सोनू जार्ज और सुधा जैमिनी को ग्रिप में रखना उनके बिस्तरों में तुम्हारी सफ़लता कि चाबी छुपी है।'
प्रद्युमन ने जवाब दिया 'सर सोनू जार्ज के बाद से कुछ अच्छा नहीं लग रहा।'
'किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा' धीरेंद्र सर ने उधर से उत्तर दिया था 'पर क्या करें इसके बिना कुछ भी नहीं होता।'
मेगा इवेंट के तीन दिन पहले सोनू जार्ज उसे एक बार फिर एक फ़ाइव स्टार होटल में डिनर के लिये ले गया था। मगर इस बार डिनर टेबल पर उन दोनों के साथ रवि कौशल भी थे जिनके बारे में सोनू उसे पहले बता चुका था।
'भाई में तो ये निर्णायक वगैरह बनता नहीं हूँ पर सोनू ने कहा कि किसी अपने वाले को ताज पहनाना है तो मैंने हाँ कर दी। इसकी बात मैं टाल नहीं पाता' रवि कौशल ने प्रद्युमन की आंखों में झाँकते हुए कहा।
'सो काइंड ऑफ यू सर' प्रद्युमन ने कुछ विनम्रता से उत्तर दिया।
'प्रद्युमन में टैलेंट और फ़ायर दोनों हैं सर, ही डिज़र्व देट प्लेस' सोनू जार्ज ने रवि कौशल के पैग में आइस क्यूब डालते हुए कहा।
'हूँ देखते हैं' संक्षिप्त-सा जवाब दिया रवि कौशल ने।
'सुधा जैमिनी तो इसके पक्ष में हैं ही, बस आपका आशीर्वाद और चाहिए सर' कुछ चापलूसी भरे स्वर में कहा सोनू जार्ज ने।
'तुम कह रहे हो तो वह भी मिल जाएगा, तरूण से बात की?' रवि कौशल ने पैग ख़ाली कर ग्लास को टेबल पर रखते हुए कहा।
'कर ली है सर, प्रदू को उनसे भी मिलवा दूंगा। आज तो आप...' कहते हुए सोनू ने बात छोड़ दी।
'हूँ ठीक है' कह कर रवि कौशल चुप हो गए।
इसी बीच बेयरा आकर डिनर लगा गया। तीनों चुप चाप खाना खाने लगे। खाना पूरा होने के बाद सोनू ने उठते हुए कहा 'मैं चलूं सर?'
'क्यों? तुम लोग रूम तक नहीं चल रहे?' रवि कौशल ने पूछा।
'नहीं सर मुझे इवेंट की ड्रेसेज़ पर कुछ वर्क करना है। प्रदू है न आपको कंपनी देने के लिए। अच्छा प्रदू' सोनू जार्ज ने प्रद्युमन का कंधा थपथपाया और चला गया।
प्रद्युमन को आगे का सारा घटनाक्रम पता था। वह यंत्र चलित-सा उठकर रवि कौशल के सुइट में चला आया। सुइट के अंदर रात गुज़रती गई और रात के साथ ही घटनाएँ इस प्रकार होती चलीं गईं मानों पूर्व निर्धारित हों।
सुबह जब वह जाने के लिए तैयार होकर रवि कौशल के सामने खड़ा हुआ तो रवि कौशल ने कहा 'प्रदू शायद तुम मुझे, सोनू और तरुण को जीवन भर नफ़रत से याद रखोगे, सुधा को शायद नहीं क्योंकि नार्मल और एब्नार्मल में फ़र्क होता है। लेकिन मेरी एक बात याद रखना तुम जिस फील्ड में आ रहे हो वह कोई बैद्धिक क्षेत्र नहीं है जहाँ बुद्धी से जंग जीती जाएगी। ये वह क्षेत्र है जहाँ शरीर प्रथम है तुम जहाँ खडें होओगे वहाँ केवल तुम्हारा शरीर होगा। इसलिए वहाँ पहुँचने के लिए और वहाँ लंबे समय तक खड़े रहने के लिए इस शरीर को ही इस्तेमाल करते रहना, ढाल के रूप में भी और तलवार के रूप में भी।' इतना कह कर रवि कौशल ने बात को कुछ समय के लिये रोका और गहरी नज़रों से प्रद्युमन की ओर देखा 'कहना तो नहीं चाहिए लेकिन सॉरी फ़ार द नाइट'।
'नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं ये तो सफलता कि क़ीमत है अगर मैं सफलता चाहता हूँ तो क़ीमत तो देनी ही पड़ेगी' कुछ आत्मविश्वास के साथ मुस्कुराते हुए कहा प्रद्युमन ने।
मेगा इवेंट को लेकर समाचार पत्र और सोसायटी पत्रिकाओं के रंगीन चिकने पेज रंग चुके थे। दसों प्रतियोगियों के चेहरे रह-रह कर इलेक्ट्रानिक मीडिया पर फ्लेश हो रहे थे। विज्ञापन कंपनियाँ इवेंट की लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए हर तरह का प्रयास कर रहीं थीं। सोनू और रवी कौशल के साथ रात गुज़ारने के बाद प्रद्युमन अपनी तैयारियों को लेकर थोडा-सा लापरवाह हो गया था। सोनू ने उसके लिए पांच ड्रेसेज़ तैयार की थीं जो उसे मेगा इवेंट के अलग-अलग राउंड में पहननी थीं।
इवेंट के दो दिन पहले सोनू प्रद्युमन को तरुण कपूर से मिलवाने ले गया था और फिर वही सब हुआ था, डिनर, डिनर के बाद वही रात और सुबह वही तरूण कपूर का सॉरी कहना। प्रद्युमन को लगा जैसे सब कुछ तय-सा है, रिहर्सल किया हुआ सा, जैसे यही सब कुछ घटता चला आ रहा है सालों से।
सुबह जब वह चलने लगा तो तरुण कपूर ने कहा 'वेल प्रदू अगर तुम इस सब को कन्टीन्यू रख पाओ तो मेरी अगली फ़िल्म में तुम रहोगे मेन लीड में, रही बात मिस्टर इंडिया कि तो वह तो अब तुम।' कहते हुए बात बीच ही छोड़ दी थी तरुण कपूर ने।
'थैंक्स सर' कहते हुए जब प्रद्युमन चलने लगा था तो टोक दिया था तरुण कपूर ने 'तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया? तुम इस सब को मेरे साथ जारी रख पाओगे?'।
'क्यों नहीं रखूंगा सर, इसके बदले आप वह सब भी तो मुझे दे रहे हैं जो मुझे चाहिए' मुस्कुरा कर उत्तर दिया था प्रद्युमन ने, पद्युमन के उत्तर देते ही तरुण ने उसको खींच कर गले से लगा लिया था। प्रद्युमन को ऐसा लगा जैसे उसके पूरे शरीर पर छिपकलियाँ रेंग रहीं हैं।
मेगा इवेंट की रात मानों आसमान के सारे सितारे ज़मीन पर उतर आए थे। हज़ारों दर्शकों से भरा हुआ इवेंट हाल लाल सुनहरी रोशनियों और लेज़र लाइटों से जगमगा रहा था। दसों प्रतियोगियों की जानकारी हाल में लगा हुआ बड़ा स्क्रीन दे रहा था।
इवेंट शुरू होने से ठीक पहले धीरेंद्र सर का कॉल आया था प्रद्युमन ने जब उनको इवेंट के बारे में बताया तो हंस कर बोले थे 'मैं सब देख रहा हूँ पूरा इवेंट यहाँ लाइव चल रहा है चैनल पर।'
प्रद्युमन ने जब रवि कौशल और तरुण कपूर के बारे में बताया तो कुछ झिड़कते हुए कहा था धीरेंद्र सर ने 'अब बच्चों की तरह बार-बार हर घटना बताना बंद करो। आर यू फीलिंग गिल्टी?'
'नहीं सर, बिल्कुल नहीं' प्रद्युमन ने उत्तर दिया था।
'बस तो फ़िर। चलो अब इवेंट की तैयारी करो। वैसे तुम्हें अब इसकी ज़रूरत तो नहीं है फिर भी बेस्ट ऑफ लक प्रद्युमन' धीरेन्द्र सर ने कहकर फ़ोन काट दिया था।
इसके बाद सब कुछ उस रोशनी की चकाचौंध और शोरगुल के हवाले हो गया। पांचों राउंड एक के बाद एक होते गए। दसों प्रतिभागी जनता और निर्णायकों के सामने आते और चले जाते। प्रद्युमन जब पहले राउंड में स्टेज के एक दम सामने वाले हिस्से में पहुँचा तो तीनों निर्णायक ठीक सामने थे। उसे ऐसा लगा जैसे तीनों निर्णायक बिल्कुल निर्वस्त्र बैठे हैं। उसने अपनी ओर देखा तो वह भी बिल्कुल निर्वस्त्र था। पांचों राउंडों में यही हुआ वह सोनू जार्ज की डिज़ाइन की हुई ड्रेस पहनकर चलता और स्टेज के सामने तक आते-आते अलफ़ नग्न हो जाता। जब वह पांचवे राउंड में निर्णायकों के सामने पहुँचा तो हैरत में पड़ गया, इस बार तो निर्णायक भी गायब थे उनकी जगह टेबल पर केवल कुछ विशेष मानव अंग ही रखे हुए थे। उसने घबरा कर अपनी ओर देखा तो उसका भी शरीर ग़ायब हो चुका था, बस कुछ अंग, वही जो सामने टेबल पर थे, वही उसके शरीर में भी नज़र आ रहे थे।
पांचों राउंडों के बाद केवल तीन प्रतियोगी ही रह गए थे, प्रद्युमन और दो और लड़के। तीनों से टेबल पर रखे मानव अंगों ने एक-एक प्रश्न पूछा और उसके बाद अपना निर्णय लिफ़ाफ़े में बंद कर दिया। जैसे ही उद्घोषक ने लिफ़ाफ़ा खोलकर प्रद्युमन का नाम पढ़ा पूरा हाल तालियों से गूंज उठा, रोशनियाँ उसके आस पास झिलमिलाने लगीं। प्रद्युमन जैसे ही चलकर स्टेज के सामने वाले हिस्से में आया वैसे ही कोने में खड़े विज्ञापन कंपनी वाले उसकी तरफ़ दौड़े, सबके हाथों में अपनी-अपनी कंपनियों के टैग थे। बात की बात में कंपनी वालों ने उसके सारे कपड़े फाड़ कर फैंक दिये और उसे निर्वस्त्र कर दिया। नंगा करने के बाद कंपनी वाले धड़ाधड़ उसके शरीर पर अपनी-अपनी कंपनियों के टैग लगाने लगे, दांतों पर, आंखों पर, बालों पर हर जगह किसी ना किसी कंपनी के टैग लगते जा रहे थे। प्रद्युमन का नंगा जिस्म टैगों से भरता जा रहा था। अचानक उसने देखा कि सामने निर्णायकों वाली टेबल पर रखे मानव अंग भी उड़कर उसकी तरफ़ आ रहे हैं। पास आकर वह अंग भी उसके शरीर के कुछ विशेष स्थानों पर उसी तरह चिपक गए जैसे कंपनी वालों के टैग चिपके थे। चिपकने के बाद उन अंगों ने जौंक की तरह उसे चूसना शुरू कर दिया। चारों तरफ़ शोर शराबा हो रहा था, ज़ोरदार आतिशबाज़ी हो रही थी, हर कोई चीख रहा था।
प्रद्युमन के पुरुषांग पर चिपकी एक जौंक के पास एक कंडोम बनाने वाली कंपनी ने अपना टैग पंच कर दिया, उसके दोनों कूल्हों पर चिपकी दो जौंकों के पास एक अंडर वियर बनाने वाली कंपनी अपना टैग लगा चुकी थी। प्रद्युमन के सर पर जगमगाता ताज रख दिया गया था। जगमगाती लाइटों के बीच प्रद्युमन ताज पहने अलफ़ नग्न खड़ा था, सारा शरीर टैगों से बिंधा हुआ था, कुछ जौंकें उसके शरीर पर चिपकी थीं तो कुछ और मंच के नीचे से झपटने की मुद्रा में नज़र आ रहीं थी। भीड़ फिर भी चीख रही थी, चिल्ला रही थी, उनको अपना मिस्टर इंडिया मिल चुका था।