मिस्ड कॉल के इंतजार में / शम्भु पी सिंह
"दिल्ली पहूँचते ही मैं तुम्हे मिस्ड कॉल करूँगी। अभी तो मुझे नम्बर भी नहीं पता। लेकिन तुम कभी अपना मोबाइल ऑफ मत करना। जब-जब मुझे मौका मिलेगा, मैं मिस्ड दूँगी। तुम कॉल जरूर करना। ढेर सारी बातें करेंगे। तुम्हें शादी की भी बात बतानी है। सॉरी मैं तुम्हें खबर नहीं कर पायी। डिटेल में बताऊँगी। मिस्ड कॉल का इंतजार करना। ये नंम्बर अब बन्द रहेगा। बॉय।" एक साल पहले रचना के ये आखिरी शब्द रोहित के कानों से टकराया था। रचना इतनी जल्दीबाजी में थी कि चाहकर भी रोहित कुछ भी नहीं पूछ पाया। रोहित की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हो गया कि अचानक उसे शादी करना पड़ी और बिना रोहित को कुछ बताये। वह भी मिस्ड कॉल की बात क्यों कह गयी। कॉल भी तो कर सकती थी, फिर सोचा इतना गरीब वह कब से हो गई कि एक रुपया मिनट खर्च नहीं कर सकती। कुछ तो बात है। अब बात होने पर ही जानकारी मिल पायेगी। आज एक साल में सैकड़ों मिस्ड कॉल आये और हर कॉल को रोहित ने रिंग बैक किया, लेकिन उसमें से एक भी कॉल रचना का नहीं था। जबकि उसको यह अच्छी तरह पता था कि रोहित कभी किसी के मिस्डकॉल का जवाब नहीं देता है, क्योंकि इसकी कसम रचना ने ही दिलायी थी। उसे यह डर था कि मिस्ड कॉल के चक्कर में कहीं रोहित ही उसके हाथ से न निकल जाये। रचना मिस्ड कॉल की ही देन थी। पहले जिसने मिस्ड कॉल को रिंग बैक नहीं करने की कसम दी थी, उसी ने मिस्ड कॉल को रिंग बैक करने की हिदायत कर दी। तब से लेकर न जाने कितने मिस्ड को रिंग बैक किया। '
'हेलो! आप कौन?' एक मिस्ड को रोहित ने रिंग बैक किया। 'जनाब आपने कहाँ कॉल किया है?' उधर से आवाज आयी। 'भाई! मेरे मोबाइल पर आपका मिस्ड कॉल था! सॉरी भाई साहब बुरा मत मानना। गलती से दब गया होगा।' कोई बात नहीं। ' रोहित का पाला अक्सर ऐसे मिस्ड कॉल से पड़ने लगा। लेकिन उसने रचना के कॉल का इंतजार नहीं छोड़ा। रोहित को अच्छी तरह याद है कि रचना से पहली बात मिस्ड कॉल के कारण ही हुई थी और बात करते-करते दोनों मिलने लगे और वह मिलन प्यार में तब्दील हो गया। चार साल के मिलन और प्यार के बाद बात शादी तक जा चुकी थी, लेकिन अचानक बुआ के कैंसर की बीमारी का ईलाज कराने रोहित को मुंबई जाना पड़ा, इस बीच भी रोहित ने मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिशें की, लेकिन बार-बार नॉट रिचेबल की सूचना ही आ रही थी। हो सकता है उसका नम्बर बदल गया हो। कोई मध्यस्थ भी नहीं था, जिसके मार्फत सूचना मिल पाती। इस छः महीने की दूरी ने बुआ को तो छीन ही लिया, रचना भी छोड़कर चली गयी। यह सब रोहित के लिये इतना अप्रत्याशित था कि आज भी सब कुछ उसकी समझ से परे था। एक दिन फिर रोहित को एक मिस्ड कॉल मिला, जिसे रोहित ने रिंग बैक किया-
'हेलो! आपका मिस्ड कॉल था? आप कौन बोल रहे हैं?' रोहित ने जानना चाहा। भैया मुझे बचा लो प्लीज! भैया। ' एक महिला की आवाज के बाद मोबाइल स्विच ऑफ हो गया। अब रोहित की समझ में यह नहीं आ रहा था कि भैया कहनेवाली ये महिला कौन है? अपने रिश्तेदारों में ढूंढ़ने का प्रयास किया, लेकिन किसी भी जान-पहचान वाले का वह नम्बर नहीं था। अंततः रोहित ने घटना का उल्लेख करते हुए नम्बर पुलिस को दे दी, तो बाद में पुलिस के खोजबीन में अपहरण की घटना सामने आयी। चूँकि पुलिस को रोहित ने सूचना दी थी, अतः कई दिन उसे भी थाने के चक्कर लगाने पड़े, लेकिन असर यह हुआ कि उस लड़की का पूरा परिवार रोहित को एक फरिश्ता मानता है, जिसने उसकी बेटी की जान और इज्जत बचायी। पुलिस की नजर में भी रोहित एक जिम्मेदार नागरिक साबित हो चुका है। हुआ यह था कि डायल किये गये एक गलत नम्बर से फोन रोहित के पास आ गया। दरअसल उस लड़की ने अपने भाई को फोन लगाया था। आज रोहित को न सिर्फ एक बहन मिल गयी, बल्कि एक भरा-पूरा खुशहाल परिवार बर्बाद होने से बच गया और आज पूरा परिवार रोहित का न सिर्फ शुक्रगुजार है, बल्कि जरूरत पड़ने पर हर स्थिति में रोहित के साथ खड़ा रहने को तैयार है। फिर भी रोहित ने रचना के मिस्ड कॉल का इंतजार नहीं छोड़ा। उसे लगता है किसी न किसी दिन वह जरूर कॉल करेगी। उसके साथ कोई न कोई समस्या है, जिससे वह कॉल नहीं कर पा रही है, मौका मिलते ही वह अवश्य ही कॉल करेगी। अचानक जाते वक्त उसने वादा भी यही किया था। पुनः एक दिन मिस्ड कॉल को रोहित ने रिंग बैक किया-
'हेलो! आप कौन बोल रहे हैं। आपके नम्बर से मेरे मोबाइल पर मिस्ड कॉल था, सुबह सात बजे।' हमेशा की तरह रटी-रटायी बात रोहित ने की।
'हाँ! चाचा जी! दीदी की शादी में आ रहे हैं न? दो हजार रुपये की जरूरत पड़ेगी। पिताजी याद दिलाने को बोले हैं, जरूर से जरूर लेते आइयेगा।' उधर से आवाज आयी। फोन कट गया। रोहित को समझ में नहीं आ रहा था कि वह चाचा कब बन गया और किसकी शादी हो रही है और ये दो हजार का क्या चक्कर है? रोहित को लगा कि जानना चाहिए कि आखिर माजरा क्या है? 'हेलो! अभी-अभी इस फोन पर मेरी बात हो रही थी। भाई मैंने पहचाना नहीं। किसकी शादी है और कहाँ से आप कौन बोल रहे हैं। चाचा जी! आपने पहचाना नहीं। मैं टुनटुन! आपका भतीजा! तीन साल पहले आये थे ना, बोलकर गये कि मुन्नी की शादी में जरूर बुलाना। आपने दो हजार देने की भी बात की थी (रूककर) हाँ लीजिये बाबू से बात कीजिये।'
'हाँ! छोटू! अरे देखो न अचानक बेटी की शादी ठीक हो गयी है। दस तारीख तक तुम आ जाना। ग्यारह को शादी है। बिटिया भी तुम्हें याद करती है। रूपये की कोई बात नहीं, उसकी व्यवस्था यहाँ भी हो जायगी, लेकिन आना जरूर।' दूसरी ओर से बात समाप्त ही नहीं हो रही थी।
'भाई साहब! मुझे लगता है आपने गलत नम्बर डायल कर दिया। मैं आपका छोटू नहीं हूँ। रोहित ने स्पष्ट कर दी।'
'अच्छा। ये गलत नम्बर है। लेकिन तीन साल पहले तो छोटू ने यही नम्बर दिया था। यह तो उसके नाम से मेरे मोबाइल में सेव है।' उधर से आवाज आयी।
'नहीं! नहीं! यह नम्बर तो मैंने एक साल पहले ही लिया है। तीन साल पहले तो यह नम्बर मेरे पास था भी नहीं। मुझे लगता है गलत नम्बर डायल किया है आपने।'
- अच्छा, तो फिर गलती हो गयी। छोटू से मुझे ये उम्मीद नहीं थी कि वह मुझे गलत नम्बर देकर झांसे में रखेगा। मेरी तो उम्मीद ही टूट गयी। खैर शादी तो नहीं रूकेगी। अच्छा भाई साहब बचवा से गलती हो गयी। रखिये फोन। '
रोहित को लगा कि शायद वे लोग टूट गये। उस व्यक्ति से काफी आशा लगाया गया था। इस बातचीत ने रोहित को अशांत कर दिया। उसे लगने लगा कि संभवतः एक साल पहले यह नम्बर छोटू नामक उनके किसी रिश्तेदार के पास होगा, जो बंद हो जाने या अन्य कारणों से मोबाइल कम्पनी ने उसके नाम कर दिया। दूसरे दिन पुनः रोहित ने उसके नम्बर पर डायल किया-
'हेलो! मैं छोटू आप कौन बोल रहे हैं?'
'छोटू! देवर जी आपने तो हमारा दिल ही तोड़ दिया था। भैया आपका बाट जोह रहे थे। कल दूसरे नम्बर से किसी ने गलत नम्बर कह दिया। बताइये तो भला! वही तो हम सोच रहे कि हमारा छोटू तो ऐसा नाहिये न करेगा। कब आ रहे हैं? देवर जी! भौजाई को तो आप एकदम्मे से भूलिये गये ना। हाँ भाई! अब इस बुढ़िया में भला क्या रखा है। भईया! हम तो पहले से कहते ही रहे हैं न कि ले आइये कोनो जवनकी, हम तो परिछने के लिये तैयारे न हैं। चिन्ता काहे करते हैं भाई! हम घर का कोनो काम-धाम नहीं करवायेंगे। बेटी का ब्याह कर लीजिये, उसके बाद आपकी भी घोड़ी सजाइये देते हैं। पहले आइये न।' धाराप्रवाह वार्तालाप ने रोहित को बोलने का कोई मौका ही नहीं दिया।
'अच्छा! भाभी जी! एक काम कीजिये। कोई पढ़ा लिखा बच्चा पास में हो तो जरा उसे मोबाइल दीजिये तो। पता नहीं रोहित को क्या सूझी? हाँ! हाँ! है न मेरे बगले में मेरी बहन का दस साल का बेटा है, शहर में पढ़ता है, लीजिये बतियाइये उससे।'
'सुनो एक काम करो, जिनके बेटी की शादी है न, उनका नाम और पता मेरे मोबाइल पर एस.एम.एस. कर दो। आने में सुविधा होगी। कर पाओगे ना?' उधर से-हाँ कर दूंगा की आवाज आयी। रोहित-'ठीक है, भेज दो।' कुछ ही देर बाद रोहित को एस.एम.एस. प्राप्त हो गया। प्राप्त एस.एम.एस. के अनुसार लगभग पचास किलोमीटर दूर एक बस्ती का पता दिया गया था। ठीक ग्यारह तारीख को रोहित उस गाँव के लिये चल पड़ा। दो घंटे के अन्दर शाम के चार बजे दिये गये पते पर रोहित हाजिर था। वहाँ रोहित को पहचाननेवाला कोई नहीं था। शादी का घर होने के कारण ढूंढ़ने में रोहित को कोई परेशानी नहीं हुई। लड़की के पिता को रोहित ने बुलवाया और मिस्ड कॉल की पूरी कहानी बतायी। उनसे ही जानकारी मिली कि छोटू उनके साढ़ू का भाई है। शादी के घर में एक अनजान मेहमान तो कौतूहल का कारण बन ही चुका था, साथ ही सच्चाई जानने के बाद हर किसी की जुबान पर रोहित की ही चर्चा थी। तथाकथित भाभी से भी मुलाकात करायी गयी। ठहाकों का दौर चल पड़ा। एक छोटी-सी गरीब की बस्ती, जिसमें मुश्किल से मजदूरी करनेवाले बीस-पच्चीस घर। एक घंटे बाद रोहित ने चलने की इच्छा व्यक्त की लेकिन सबों के अनुनय विनय ने रोहित को रहने को मजबूर कर दिया। दो हजार रूपये रोहित ने लड़की के पिता के हाथ में रखना चाहा, लेकिन किसी ने उसे स्वीकार नहीं किया। अंततः रोहित के बहुत आग्रह करने पर निर्णय यह हुआ कि लड़की का कन्यादान रोहित ही करेंगे और कन्यादान में ये लड़की को जो भी देंगे वह उसे स्वीकार करेगी और शादी में रोहित ने चाचा की भूमिका बखूबी निभायी। बेटी की विदाई के बाद ही रोहित को घर जाने की इजाजत मिली। पूरे गाँव के लोग बेटी की विदाई की तरह इस बिन बुलाये मेहमान को भी बस अड्डे तक छोड़ने आये। रोहित को आज भी इंतजार है मिस्ड कॉल का, लेकिन प्रेमिका का नहीं! बल्कि संकट में घिरी एक बहन का या शादी की बेदी पर बैठी कन्यादान की बांट जोहती एक बेटी के मिस्ड कॉल का।