मीटू आंदोलन की जड़ कहां है? / जयप्रकाश चौकसे

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मीटू आंदोलन की जड़ कहां है?
प्रकाशन तिथि : 25 अक्टूबर 2018


पुरुषों द्वारा महिलाओं से छेड़छाड़ करना, अभद्र संकेत देना इत्यादि के खिलाफ एक आंदोलन चल पड़ा है और मीडिया चटखारे लेकर इसे तूल दे रहा है। इस तरह के आरोप सभी क्षेत्रों में लगाए जा रहे हैं परंतु केवल मनोरंजन जगत में आरोपियों के खिलाफ निर्णय लिए गए हैं। इसी कारण कुछ फिल्में रद्‌द कर दी गई हैं। आमिर खान ने संगीत व्यापारी गुलशन कुमार पर बन रहे बायोपिक 'मोगुल' में अभिनय नहीं करने की घोषणा कर दी है। जिस उद्योग पर भांति-भांति के आरोप लगाए जाते रहे हैं, उसी उद्योग ने नैतिक व आदर्श निर्णय लिए हैं। राष्ट्रीय संकट के समय फिल्म उद्योग के लोगों ने सड़कों पर आकर भिक्षा मांगी है और चंदा एकत्रित किया है। अक्षय कुमार ने फौजियों की विधवाओं की सहायता के लिए स्थापित कोष में 5 करोड़ रुपए दिए हैं। लुगदी उपन्यास लिखने वाले चेतन भगत ने जवाबी हमला बोलते हुए उस महिला द्वारा किया गया प्रेम आमंत्रण प्रकाशित कर दिया है।

पृथ्वी पर चल रहे इस आंदोलन की भनक स्वर्ग पहुंचे और वहां भी आंदोलन चले तो इंद्र को कठघरे में खड़ा होना पड़ेगा और सजा देकर नर्क भेजा जा सकता है। हमारे आख्यानों में वर्णित घटनाओं में महिलाओं का चित्रण गलत ढंग से हुआ है। लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा की नाक काटना इस आंदोलन के दूसरे पक्ष को उजागर करता है। शूर्पणखा का प्रेम निवेदन अस्वीकृत किया गया था। उमाकांत मालवीय की पुस्तक 'टुकड़ा टुकड़ा औरत' में वर्णित कथा इस तरह है कि विश्वामित्र ने गुरु दक्षिणा स्वरूप 800 श्यामवर्ण अश्वों की मांग की और उनके शिष्य ने अपनी पुत्री माधवी को चार बार अलग-अलग राजाओं के यहां एक-एक वर्ष के लिए गिरवी रखकर कुछ अश्व प्राप्त किए। गालव ने इस तरह 600 श्यामवर्ण घोड़े प्राप्त किए और अपनी पुत्री को साथ लेकर गुरु के पास पहुंचे और बताया कि किस तरह इस पुत्री की सहायता से इतने अश्व ही मिल सके। गुरु ने मालवीय का रूप देखा और कहा कि मूर्ख अगर इतनी सुंदर कन्या उसे दिखाता तो वे अश्व नहीं मांगते हुए उसकी कन्या को मांग लेते। कथा इस तरह है गुरु विश्वामित्र ने माधवी को अपनाया और माधवी ने अष्टक नामक पुत्र को जन्म दिया।

उमाकांत मालवीय की पुस्तक में माधवी का दर्द उसी के शब्दों में इस तरह वर्णित है, 'उसे पिता ययाति से घृणा है। उसे गालव से घृणा है, उसे हर्यश्व से नफरत है, उसे विश्वामित्र से घृणा है। उसे अपनी कोख से जन्मे पुत्रों से भी स्नेह नहीं है। उसे पुरुष मात्र से घृणा है। उसे उस समाज से भी घृणा है जो कहता है 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' और आचरण में घोड़ों की कीमत पर औरत की इस्मत नीलाम करता है। वह अभिशप्त पुत्री है। उसका कौमार्य शापग्रस्त है। उसे नारीत्व का चरम विकास मातृत्व नहीं मिला, वह केवल अंकशामिनी ही बनी रही, कभी सुहागन नहीं हुई। केवल पुत्रों को जन्म देना मातृत्व नहीं है, उसे अपने पुत्रों को पालने का अवसर ही नहीं दिया गया।' इस लेख में उमाकांत मालवीय का लिखा हुआ जस का तस रखा गया है। सारांश यही है कि धार्मिक आख्यानों से आधुनिक संविधान तक महिला को पूजनीय कहा गया है परंतु यथार्थ जीवन में उसे पैरों से कुचला गया है। इस तरह का दृष्टिकोण ही इस 'मीटू' आंदोलन की जड़ तक हमें ले जाता है। द्रौपदी के चीरहरण के समय उस सभा में मौजूद किसी महापुरुष ने प्रतिवाद नहीं किया। ग्वालियर के कवि पवन करण का नया काव्य संग्रह 'स्त्री शतक' पाठ्यक्रम में शामिल की जाना चाहिए ताकि छात्र समझ सके कि उनका गौरवपूर्ण इतिहास स्त्री के प्रति कितना निर्मम रहा है। वह बेचारी तो नपुंसकों द्वारा भी नोची गई है।