मीनमा माय / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
नाटी कद रोॅ ऊ हमेशा मटमैलोॅ साड़ी में लिपटलोॅ रहै छेली। देखै में गोरोॅ-चिट्टोॅ दगदग बगुला रॅं। घास आकि फसल काटै पर ऊ जैत्हैं रहै, आकि फेनु कुटौनी-पिसौनी करै पर ही। दिन भरी में ऊ कहीं न कहीं रस्ता-पैड़ा पर चलतें दिखाय पड़िये जाय छेली। रस्ता चलतें जों कोय ओकरा टोकी दै, आरू टोकवैया रिश्ता में देवर आकि कुटुम लगतें रहेॅ तबेॅ तेॅ ओकरोॅ बोली सावन भादो रो झड़ी लागी जाय छेलै, थमै के नामे नै लै छेलै। सुनै वाला के भीतर में गुदगुदियो हुऐ. गुदगुदी सें रोआं-रोआं खाड़ो होय उठै। रस्ता-बेरस्ता चलतें दूसरो सिनी रूकी जाय, आरू ओकरहो सिनी के हँसी के फव्वारा रूकवां नै रूकै।
जबे बारिस के समय आवै, तबेॅ ऊ ताड़ के पत्ता के बनलोॅ घोघी तरोॅ से रस्ता पर आवै-जाय वाला केॅ तिरछोॅ नजरोॅ सें देखै। भरी सावन-भादो ताय तेॅ ऊ घोघी ओढ़ले रहै, कभी-कभार पन्नियो के घोघी ओढ़ी लै। मजकि पन्नी वाला घोघी केॅ ऊ कभियो अच्छा नै समझै छेलै। कहै छेलै-"यहू कोय घोघी भेलै, पानी पड़ला पर भीतर पानी जायके देहोॅ में सट्टी जैत्हौ"। ई बात ऊ रिश्ता में देवर-कुटुम लगैवाला केॅ ज़रूरे सुनावै छेलै।
पता नै, कोने ओकरो नाम मनचलिया राखी देलै, आरो ओकरोॅ नाम यहेॅ पड़ी गेलोॅ छेलै गांव भरी में। ओकरहौ ई नाम बुरा ने लागै छेलै, कहै छेलै-"कोय मनचलवा नाम राखलेॅ छै, आवें केना नाम हटैय्यौ" मतरकि जोॅर-जनानी वास्तें ऊ मीनमा छेली। मीनमा माय रोपा रोपते हुएं कादोॅ खेतोॅ में सिरैतिन ही रहै छेलै। ऊ एक हाथ में बिचड़ा पकड़नें रहै आरू दुसरोॅ हाथोॅ सें पौधा टपाटप गाड़तें चल्लोॅ जाय। तखनी ओकरोॅ मुँहोॅ सें जे अमरित वाला गीत झड़े, ओकरोॅ तेॅ बाते अलग छेलै। खेतोॅ में काम करै वाला किसान, बिचड़ा उखाड़तें बिहनबाहा आकि हलवाहा रहेॅ कि मेढ़ दै वाला, गीतारिन मीनमा माय के दिश ताकतें रही जाय, ओकरा दिश कान पटैले रहै।
मीनमा माय चैत-वैशाख में जलावन रोॅ लकड़ी चुनै कामोॅ बगीचा में करै छेलै। ओकरोॅ मरदाना आम के बगीचा डाक पर लै छेलै, मीनमा माय वही बगीचा में बकरी चरावै, आम के दिन में टिकोला चुनै तखनी बकरी केॅ चरै लेली खुल्ले छोड़ी दै। आम पकै तांय ऊ लकड़ी-जौरेॅ करै। लोगे देखै तेॅ कहै-"मीनमा माय बकरी चरावै छौ।" आवाज सुनहै मीनमा माय टनकोॅ आवाज में बोली दै-" की तोरा ई बकरी बुलाय छौं, अरे ई तेॅ तोरोॅ बड़का भाय छेकौं, जड़ी सुंधाय केॅ बकरी बनैलेॅ छियौं, यहेॅ से घूमै छौं, हमरोॅ आगू-पीछू बहुत हिन्ने-हुन्नें करलेॅ फुरै छेलौ। सुनवैय्या हँसी पड़ै।
बकरी चराबै में मीनमा माय के कोय जोड़ नै छेलै। की मन्तर छेलै ओकरोॅ पास कि बकरी सिनी ओकरोॅ आगू-पीछू करत्हैं रहै, जबेॅ कि आरो धोरैय सिनी के बकरी रन्न-बन्न होय जाय। मीनमा माय असकल्ली कभियो नै, तीन चार जनानी के सात्हैं बकरी चरावै। कोय पूछै तेॅ बोलै-" बकरी आरू औरत तेॅ एक्के रॅं झुण्डे में रहवोॅ ठीक्के.
बगीचा सें बाहर रहै तेॅ बस सरकारी मिडिल स्कूल के अहाते के पास वाला मैदान में आकि हाई स्कूल के बगीचा वाला बड़का आम गाछी के नीचें, झबरलोॅ-झबरलोॅ ठाहरी के नीचें। तखनी ओकरी बेटी ज़रूरे रहै। गाँव के कुच्छु-बूढ़ोॅ दादा बाबा तेॅ नै, सब ओकरा मन चलिये कहै-मनचली काकी, मनचली दीदी, मनचली भौजी, एत्तेेॅ-एत्तेॅ नाम छेलै ओकरोॅ। जे भी हुएॅ मीनमा माय वास्तें खुट्टा नाँखी एक जग्घा पर बैठवोॅ एकदम्में मुश्किल छेलै। नै होय छेलै तेॅ आपनोॅ बकरी केॅ ही खेतोॅ दिंश हाँकी दे आरू फेनू वही दिशा बकरी केॅ हाँक देतें बढ़ी जाय, एतन्हें नै, खेत जोगवारोॅ पर हँसी-हँसी केॅ फेकड़ा कसै में भी बाज नै आवै-"समझलियै, हमरो बकरी केॅ कैन्हेॅ फुसलाय केॅ तोहेॅ बुलैलेॅ छौ, अरे जानी लेॅ, बकरी तोरोॅ जालोॅ में फँसेॅ पारें, मीनमा माय नै" आरू मीनमा माय आपनोॅ बकरी के दोसरोॅ दिश हाँकी केॅ लै जाय। आय तक कोय्यो ओकरा मनझमान नै देखलेॅ छेलै, हमेशा हँसमुखिया। ओकरोॅ नाम हँसमुखिये होतियै तेॅ कत्तेॅ अच्छा।
मीनमा माय मुहफट बोलै जत्तेॅ रहेॅ, मजकि ओकरोॅ-माथा पर साड़ी हमेशे बनले रहै। हों केकरो टोकला पर कन्नें घोघोॅ आरू कन्नें घूंघटा मीनमा माय पढ़ली-लिखली नै छेली, मतरकि पढ़वोॅ-लिखवोॅ के गुण खूब समझै छेली। स्कूले के नगीच एक टा बड़का पीपल रोॅ गाछ छेलै, वही अक्सर ऊआपनोॅ बकरी चरैलोॅ करै। घोॅर जाय सें पैहिले ओकरा बाज़ार के सामानो सौदा करना रहै, यै लेली बकरी के भार अपनोॅ साथ के दूसरोॅ औरत पर छोड़ी केॅ बीचो में बाजारो निकली जाय। मतरकि आपनोॅ साथ के दूसरोॅ औरत सिनी केॅ जैतें-जैतें दू-तीन वार ज़रूरे कहलेॅ जाय-"देखियौ, कहीं हमरोॅ बकरी सिनी इस्कूल के अहाता में नै घुसी जाय, मास्टर सिनी की कहतै, लूर-लार नै छै मीनमा माय केॅ। फेनी तोरा सिनी केॅ तेॅ मास्टर साहबें कुच्छू नै कहतौं, जे कहतै हमरहै, आरू हमरा सुन्हौलेॅ पड़तै।" बेटी केॅ समझाय केॅ कहै-"लौटवै तेॅ झिलिया देबौ आरू लेमनचूसो देवौ।" वें खूब जाने छेली कि ओकरा गेला पर केना केॅ ओकरोॅ बकरी सिनी समेटलोॅ रहेॅ सकेॅ।
मीनमा माय नाँखी कहाँ डॉक्टर-कम्पोउन्डर होतै, जेनहोॅ ऊछेली बाज़ार रहेॅ कि गाँव, परसोती वाला काम जहां भी रहै, मीनमा माय बिना काम होना मुश्किल। हेनोॅ समय में ऊआपनोॅ कारीगिरी के अद्भुत नमूना पेश करै छेलै, मलन-जतन सें लै केॅ सब्भे कुछू आरू काम पूरा होला पर बदला में, ओकरा मिलै छेलै पुरानोॅ-धुरानोॅ साड़ी, कुच्छू अंगा, पुरानोॅ कोट-पैंटोॅ। मतरकि ओकरा कथु के दुख नै, वहू में ऊसंतुष्ट। एतन्है टा नै जे जोॅर-जनानी के बाल-बच्चा नै हुऐॅ, ओकरा जड़ी दै के कामोॅ मीनमा माय के छेलै। तखनी मीनमा माय एकदम्में डॉक्टरे नाँखी बाल जनानी केॅ किसिम-किसिम के परहेज करै लेॅ बतावै। जेकरा जड़ी लगी जाय छेलै, ओकरोॅ नजरो में तेॅ मीनमा माय एकदम्में देवता देवी बनी जाय। तखनी ऊकुच्छू ज्यादे विस्तार सें दोसरोॅ जनानी सिनी केॅ ई बतावै कि केना वैं शनिच्चर आरू रविवार केॅ बड़ी नेम-टेम सें भगवान सुरुज केॅ प्रणाम करी जड़ी उखाड़ै छै आरोॅ गोबर रॅं चौका लगा केॅ शिलापाटी पर लोड़ी से पिसै छै तवे पानी र घोल बनाय केॅ सुरूजो मुँखे प्रणाम करि केॅ, तवे पिये छै।
जेकरोॅ काम सफल होवै ओकरोॅ नैहर तक बात अपने-आप चल्लोॅ जाय। जैसें देखतें-देखतें मीनमा माय के है गुण आग नाँखी सौंसे इलाका में फैली गेलोॅ छेलै। कहाँ-कहाँ सें नै बुलाहट हुएॅ लागलोॅ छेलै ओकरोॅ, मजकि ओकरोॅ स्वभाव कटियो टा हेरा-फेरी ई मान-प्रतिष्ठा से नै ऐलोॅ छेलै। बाहरोॅ में जे ओकरा मिली जाय, ओकरहै सें संतुष्ट। हर समय एक रस एक रॅं। ओकरा जे भी कहना रहै, मुँहे पर कहै, मजकि ज़रा हँसिये हँसी केॅ। एक दाफी चिन्हलोॅ गाँव के एक छवारिक सें वें पुछलकै "है कद्दू कहाँ से लानी रहलोॅ छौ।" छवारिक कहलकै-"बाजारोॅ से चोराय केॅ लानी रहलोॅ छियै, जा तोहू चोराय केॅ लै आनौ।" यै पर मीनमा माय नें हंसते हुए कहलकी-"हम्में चोर गाँव आदमी थोड़े छेकां"। इस्कूल में मेहता मास्टर साहब के पीछू तेॅ ऊलागले रहै छेली मेहता जीतेॅ एकदम्मे सीधा-सादा प्राणी। मेहताजी केॅ देखत्है कहै-"मास्टर साहब हमरहौ सलवार-सूट सिलवाय दा, तें हम्मू इसकूलोॅ में नाम लिखाय लेभौं। पढ़वो करवौं आरू सेवा करवौंन ट्यूशनो तोरहै से पढ़वौ माटर साहब। मेहता जी कहै-" अच्छा मास्टर साहब सें तोरोॅ बारै में बात करभौं। यै पर मीनमा माय कहै-"जबे तोरा दम्में नै छौं तेॅ दूसरा के पैरवी की।"
पढ़ै के प्रति यहेॅ लगन के कारण जबेॅ मीनमा माय ने बेटी रोॅ शादी कौरोॅ दिन करीब ऐलै तेॅ इस्कूली के सब्भे मास्टर केॅ निमंत्रण कार्ड खुद्दे देलेॅ छेलै। देखत्हैं-देखत्हैं बेटी के शादी के दिनो आवी गेलै। फागुन के मौसम छेलै। खाय पीयै रोॅ काफी सरंजाम करलेॅ छेली मीनमा माय। गॉमो-टोला के लोगे नै उतरलोॅ छेलै ओकरा कन, बाज़ार के लोगोॅ छेलै, मजकि मीनमा माय के कलेजा तेॅ एकदम्में धुंक-धुक करै छेलै।
"माटर साहब आरनी कैन्हैं नी ऐलोॅ छै। की गरीब के घोर माटर साहब आरनी वास्ते नै होय छै। जो वहू पढली-लिखली होतियै तेॅ ओकरहौं कन माटर साहब सिनी ज़रूर ऐतियै। ने जानौं कत्तेॅ-कत्ते बात भावी रहले छेलै मीनमा माय में। कि तखिनिये हमरा आरनी सब मास्टर सहित ओकरोॅ द्वारी पर पहुँची गेलोॅ छेलियै। मीनमा माय के खुशी के तेॅ ठिकाने नै रही गेलोॅ छेलै। हम्में गमै छेलियै कि सच्चे में मीनमा माय के देह-हाथोॅ में जेना फागुन प्रवेश करी गेलोॅ छेलै। उ$तै जेना उन्मत्त। वैनें बड़ी गौरव के साथ सबकेॅ दिखाय-दिखाय केॅ कहलेॅ छेली-" देखोॅ विरजू माय, देखोॅ मंगली माय, हमरो दुवारी पर माटर साहब आरनी दरपलोॅ छै नै, मास्टर साहब नै कहे देवता कहोॅ, देवता। ई बेटी तेॅ हमरोॅ जीवन धन्न करी देलकी"।" नै जानौं की सोची केॅ हमरोॅ आँख भरी ऐलो छेलै।