मीनू / पद्मा राय

Gadya Kosh से
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क्लास में प्रवेश करते ही-बेतरतीबी से कटे हुये और बिखरे बालों तथा हमेशा मन मोह लेने वाली मुस्कुराहट के साथ सबसे पहले गुड मार्निंग मीनू ने ही किया। उसके बाल हमेशा बिखरे रहते हैं और इस वजह से उसकी आंखें अक्सर उसके पीछे छिपी रहतीं थीं। उसे इस स्थिति से बचाने के लिये अंजना उसके सिर के बीचों-बीच बालों को इकठ्ठा कर के एक रबर बैण्ड से उन्हें बांध देती। बालों के बंध जाने से उसके पीछे छिपा एक दमकता हुआ चेहरा सामने आ जाता।

साधारण परिवार की मीनू कई मामलों में दूसरे बच्चों से भिन्न है। सीधे सादे नयन नक्श और उत्सुकता से भरी आंखों वाली मीनू का नापसन्दगी जाहिर करने का निराला अन्दाज है। अपनी कुर्सी के एक तरफ होकर थोडा-सा मुंह टेढा करके कंधे उचकाती मीनू का मतलब-कुछ है जो उसे पसंद नहीं है। हाथ पैर दोनो का दिमाग से किसी प्रकार का तालमेल नहीं। पर हमेशा ताज्जुब होता है उसकी क्षमता देखकर। अचम्भित कर जातीं हैं उसकी कोशिशें। दिमाग सब कुछ करने को तत्पर किन्तु दिमाग से विद्रोह करता हुआ उसका शरीर। और हारने के लिये मीनू कभी भी तैयार नहीं। अपनी कमजोरियों से पूरी तरह वाकिफ मीनू को उससे छुटकारा पाने की जी तोड क़ोशिश करते हुये हमेशा देखा जा सकता है। अपने नियति से जंग लडती मीनू को पढते या लिखते हुये देखकर हमेशा मेरे मन में एक बात उठती है कि काश इसी तरह की बहादुरी मैं भी दिखा पाती। मैं तो बहुत जल्दी हार मान लेतीं हूँ। कई बार सोचतीं हूँ कि इन बच्चों के मुकाबले मेन्टली रिटाडर्ेड बच्चों की तकलीफ कितनी कम होती होगी? क्योंकि उनका आई क्यू लेवल स्पैस्टिक बच्चों के तुलना में बहुत कम होता है। और जब सोचने समझने की शक्ति ही कम हो तब समझौता आसानी से किया जा सकता है। लेकिन जब आप सब कुछ अच्छी तरह समझने की हैसियत रखते हुये भी कुछ कर पाने में अपने आपको असमर्थ पातें हैं तब तकलीफ कई गुना बढ ज़ाती होगी। इसकी कल्पना भर से ही कैसी असहनीय पीडा होती है तब उसका क्या हाल होता होगा जो हर पल इस दर्द को झेलता है।

शुरू-शुरू में जब मैं उसके हांथ की ऊंगलियों की हरकत देखती थी तो घबडाहट होने लगती थी परन्तु अब आदत बन चुकी है। हाथ मेज पर रखने की कोशिश करती हुयी मीनू का हाथ अक्सर मेज से नीचे पहुंचने के लिये बेताब हो उठता है। दायें हाथ ने तो पूरी तरह से हथियार डाल ही दिया है किन्तु बांया हाथ भी पूरे तौर पर साथ नहीं देता। जो कुछ भी करना है वह सब बायें हाथ को ही करना है और कोई चारा भी तो नहीं है। काफी वजनी रिस्ट बैण्ड कलाई में बंधे होने के बावजूद अक्सर बांया हाथ भी विद्रोही अंदाज में दिखायी देता है। किन्तु मीनू के सामने उसे हार मानना ही पडता है। चारों ऊंगलियों और अंगूंठे के बीच फंसी हुयी पेन्सिल फटाफट अपना काम करते रहते थे। गजब की स्पीड थी उसकी-देखने वालों को आश्चर्य में डालने के लिये काफी थी। कई बार मुट्ठी कमजोर पडक़र ढीली पडने लगती और पेन्सिल साथ छोडने लगती। उस समय मीनू अपनी दो ऊंगलियों के बीच पेन्सिल को फंसाकर पहले गर्दन के पास लाती और फिर अपने चेहरे को नीचे लाकर गर्दन के पास मौजूद पेन्सिल पर दबाव बनाकर, तो कभी दांतों का सहारा लेकर-पेन्सिल को अपने ऊंगलियों और अंगूठे के बीच फंसाती और दुबारा अपने काम में लग जाती।

मीनू जब अपने काम को कुछ ज़्यादा एकाग्रचित्त होकर कर रही होती-उस समय उसका दांयां कूल्हा ऊपर की तरफ उठ जाता, भवें सिकुड ज़ातीं तथा बांयां हाथ अपना काम करता रहता। और भिंचे हुये चेहरे के साथ तब एक के बाद दूसरा, तीसरा, चौथा-लगातार पन्ने दर पन्ने वह अपना काम पूरा करती जाती जब तक कि अंतिम पन्ने का काम भी शेष न हो जाता। कभी-कभी उसका जोश इतना बढ ज़ाता कि वह जल्दी से जल्दी काम पूरा करना चाहती और इस चक्कर में न चाहते हुये भी पेन्सिल पर दबाव बढने लगता तथा उत्तरों को मिलाते समय पेन्सिल की नोक उसकी नोटबुक के पन्ने को चीरती चली जाती। तब उसका चेहरा एक अजीब प्रकार के भाव से घिर जाता। खिसियानी-सी मुस्कान के साथ अपना चेहरा ऊपर उठाकर देखती कि किसी ने उसे इस समय देखा तो नहीं। अगर किसी को अपनी तरफ देखते हुये पाती तो अपना दुबला पतला नाजुक-सा कंधा उचकाकर दुबारा काम करना आरम्भ कर देती।

अभी कुछ दिन पहले ही नियमित होने वाली जांच के दौरान मालूम हुआ है कि मीनू को सुनने में भी प्राब्लम है और इसीलिये बोलने में भी उसे दिक्कत होती है। तभी तो छः वर्ष की उम्र होने तक भी वह बोलने में असमर्थ है। मीनू ने हियरिंग एड लगाना आरम्भ कर दिया है और साथ में एक घंटे के लिये उसे हर रोज स्पीच थैरिपिस्ट के पास भी जाना होता है। कमाल का बदलाव आ रहा है मीनू में। पन्द्रह बीस दिनों के भीतर उसने काफी कुछ नया सीख लिया है। हमेशा सीखने की ललक तो उसमे पहले से ही मौजूद है। अब उसे बहुत मजा आता है। लम्बे-लम्बे वाक्य बिना किसी गलती के बोलने के बाद हम लोगों को जब देखना शुरू करती तब उसके मन में शाबासी पाने की इच्छा कुलांचे मारती दिखायी पडती। आज कल रोज ही उसे इनाम के तौर पर एक स्टार तो मिल ही जाता है।

पहले कम बोलने के लिये टोकी जाने वाली मीनू को आजकल कम बोलने के लिये कहा जाता है। उसे इस बात के लिये डांट खाने में मजा भी बहुत आता है। लेकिन आज मीनू कुछ परेशान-सी दिखायी दे रही है। शायद तबीयत खराब हो गयी हो क्योंकि बदलते मौसम में ऐसा हो जाना र्को अनहोनी भी नहीं। उसके नजदीक जाकर उसका माथा छूकर देखा। ठंडा था। बुखार नहीं था। फिर क्या बात हो सकती है?

"तुम्हें क्या हुआ है मीनू?" उसके सामने खडी थी मैं।

मीनू ने अपना सिर उठाकर मेरी तरफ देखा, लेकिन कुछ कहा नहीं और फिर अपना सिर झुकाकर बैठ गयी। उसके चेहरे पर निराशा की परछांई साफ दिखायी दे रही थी। आज उसकी आवाज में मौजूद शोखी-जो कुछ दिनो पहले से ही दिखायी देने लगी है-सिरे से गायब थी।

"कुछ तो है।"

"मीनू कहीं दर्द तो नहीं है?" उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर मैंने पूछा।

"नहीं।"

"फिर?"

अपने हाथ में बंधे आर्म बैण्ड की तरफ इशारा करके उसने कहा-

"दुख रहा है।"

मैंने अमित को बुलाया। उसने ध्यान से उसे देखा और फिर उसे खोलकर हाथ की कुछ एक्सरसाइजेज करवायीं। और एक बार फिर से उसका हाथ आर्म बैण्ड में बंद हो गया। लेकिन उसके चेहरे की मायूसी में किसी तरह की कोई कमी नहीं आयी। खाली-खाली आंखों से देखती हुयी मीनू के चेहरे पर एक बार भी मुस्कुराहट नहीं दिखायी दी। आज मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा है। बस मीनू में ही अटका है। अंजना की कुर्सी मीनू से कुछ दूर थी। उसने उससे कुछ कहा लेकिन कोई तवज्जो नहीं मिली। मैं देख रही थी। मुझे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी हियरिंग एड का सेल डिस्चार्ज हो गया हो और वह सुनने में अपने आपको असमर्थ पा रही हो।

अपनी तसल्ली के लिये उसके दोनो कानो में से हियरिंग एड निकालकर उसे जांचा परखा। उसके बारे में मुझे कोई जानकारी भी नहीं थी। इसलिये डर भी लग रहा था। लेकिन एक अजीब बात हुयी। जब मैं ये सब कर रही थी तब मीनू का चेहरा तनावमुक्त होने लगा था। लेकिन जैसे ही मैंने उन्हें वापस उसके कानो में लगा दिया उसका चेहरा जस का तस हो गया। उसमें हुये इस छोटे से परिवर्तन ने जो सिर्फ़ कुछ मिनटों के लिये ही हुये थे-यह आभास कराने के लिये काफी थै कि गडबड क़हीं न कहीं हियरिंग एड में ही है। पृथ्वी जाकर अनिता दी को बुला लाया। अनिता दी स्पीच थैरिपिस्ट है। दुबली पतली सांवली सलोनी अनिता दी। जब चलतीं तो लम्बे-लम्बे बालों की गुथी हुयी चोटी उनके पीठ पर लहराती रहती। उनके पीछे-पीछे चली आरही है उनकी दस ग्यारह साल की बिटिया। यह नन्हीं वालण्टियर वहाँ मौजूद सभी वालण्टियरस् से ज़्यादा व्यस्त रहती है और सबसे ज़्यादा प्रसन्न भी। हर छुट्टी के दिन वह यहाँ मौजूद होती है और अपने वालण्टिय्र का रोल भी बखूबी निभाती है। भाग-भाग कर सारा काम करने में उसे बहुत आनन्द आता है।

अनिता दी आयीं और मीनू के सामने बैठ गयीं। उसका हियरिंग एड एक बार फिर से निकाला गया। अनिता दी ने उसे ध्यान से देखा। फिर बोलीं-"इसमें कोई खराबी नहीं है। इसके सेल्स भी चार्ज हैं बस पाइप में मैल भर गयी है।"

उन्होने एक सेफ्टी पिन से उसकी पाइप की अच्छी तरह से सफाई की और वापस मीनू के कान में लगा दिया। साफ होकर हियरिंग एड दोबारा मीनू के कान में फिट हो गये थे। कुछ देर तक मीनू आँख सिकोडे चुप चाप बैठी रही। पर ज़्यादा समय नहीं लगा उसके चेहरे की रंगत वापस लौटने में। दहशत का भाव जो कुछ समय पहले तक उसके चेहरे पर विराजमान था वह अब वहाँ से गायब हो चुका है। फिर से सहज होकर मीनू-वापस चहकने लगी है। अब जल्दी ही अंजना से उसे डांट पडने वाली है।