मुंबई के नाम लिखा प्रेमपत्र ! / जयप्रकाश चौकसे
मुंबई के नाम लिखा प्रेमपत्र
प्रकाशन तिथि : 20 जनवरी 2011
किरण राव-खान की फिल्म 'धोबी घाट' का प्रदर्शन होने जा रहा है। इसके पूरे नाम में मुंबई डायरीज शामिल है। किरण राव खान कोलकाता से मुंबई आकर बसी हैं और संभव है कि उन्होंने इस महानगर में आते ही इसके प्रभाव को व्यक्तिगत डायरी में लिखा हो, जिनके आधार पर पटकथा लिखी गई है। यह फिल्म उनका सलाम मुंबई हो सकती है। इसका टाइटिल तो एक पारंपरिक फिल्म का है परंतु प्रदर्शन पूर्व झलकियों से यह एक सार्थक बयान लगती है। चार पात्रों के डर और सपनों की विविध कहानियां उनके समान धोबी से जोड़ी गई हो सकती हैं। एक कम बजट की गैर पारंपरिक फिल्म उत्सुकता जगा रही है। क्योंकि आमिर खान इसके निर्माता हैं और उनकी ब्रांड कीमत बहुत अधिक है। पूरे दशक में उन्होंने सार्थक सफल फिल्में बनाई हैं। पिछले दशक में सामाजिक परिवर्तन तेजी से हुए हैं, जिन्होंने दर्शक की रुचियों में भी कुछ बदलाव तो किया है। इस विस्फोटक दशक में 'लगान', 'तारे जमीं पर', 'जाने तू... या जाने ना' और 'पीपली लाइव' जैसी विविधता रची है आमिर खान ने। अत: 'धोबी घाट' के प्रति उत्सुकता है।
डायरी आधारित फिल्में विदेशों में बहुत बनी हैं, जैसे 'डायरी ऑफ एने फ्रेंक', जिसे दूसरे विश्वयुद्ध का दस्तावेज माना गया है। भारतीय सिनेमा में डायरी का नाटकीय इस्तेमाल किया गया है। डायरी लिखने की आदत कम लोगों में है। उद्योगपतियों और कॉर्पोरेट प्रमुखों की डायरियां उनके समय प्रबंधन का हिस्सा हैं और सितारों की डायरियों में उनकी शूटिंग इत्यादि की बातें होती हैं। ये सब पारंपरिक उपयोग है। सृजन धर्मी लोगों की डायरियां अलग होती हैं। नेहरू जैसे जीनियस की डायरी अपने वक्त का इतिहास थी। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की डायरी में भारतीय समाज का विवरण होता था। दरअसल आजकल साहित्यिक और सामाजिक मूल्यों वाली डायरियां चलन से बाहर हो चुकी हैं। खुद को समझने के प्रयास में डायरी लेखन का बड़ा महत्व है।
यह फिल्म मुंबई को आदरांजली भी हो सकती है। ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी 'आनंद' मुंबई को समर्पित की थी। हर शहर की अपनी खूबियां होती हैं, चेहरा होता है और चरित्र भी होता है। हर शहर दिन और रात के हर प्रहर में अपना नया स्वरूप प्रकट करता है। आम आदमी के आक्रोश को प्रकट करने वाली 'ए वेडनसडे' भी मुंबई के प्रति आदर ही प्रकट करती है। अवसरों के इस हमेशा जागने वाले शहर को राज कपूर ने 'श्री 420' में बखूबी प्रस्तुत किया था और ख्वाजा अहमद अब्बास की 'शहर और सपना' भी सार्थक फिल्म थी।
हर छोटे-बड़े शहर के लोगों की आंख में मुंबई एक सपने की तरह पलता है और अधिकांश लोगों को यह स्वप्न भंग की त्रासदी ही देता है। समुद्र तट पर बसे इस शहर में मनुष्यों की लहरें सतत प्रवाहित रहती हैं। मुंबई का चेहरा चमकता है और उसकी अंतडिय़ों में अपराध के कीड़े बिलबिलाते हैं। विरोधाभासों, विसंगतियों के बीच अद्भुत जीवन ऊर्जा वाले इस महानगर के दिल की धड़कनों में पूरे देश के सपनों और उनके टूटने का आभास होता है। कई बार यह भ्रम होता है कि मुंबई एक विराट फिल्म सेट है जिस पर भारत नामक फिल्म बन रही है। देखना यह है कि किरण राव इस सेट का कैसे इस्तेमाल करती हैं।