मुंबई स्थित पंजाब पिंड में हलचल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :17 सितम्बर 2016
मुंबई में श्रेष्ठि वर्ग के निवास क्षेत्र जुहू स्कीम में धर्मेंद्र का विशाल बंगला है, जिसे फिल्म उद्योग में 'पंजाब पिंड' माना जाता है। दशकों पूर्व जब धर्मेंद्र ने बंगले के गृह-प्रवेश के अवसर पर राज कपूर को निमंत्रित किया तो यह पूछे जाने पर कि कितना बड़ा है बंगला है, धर्मेंद्र ने पिंड की सादगी से कहा, 'तीस-पैंतीस मंजियां बिछ सकती हैं।' पंजाब में खाट को मंजी कहते हैं। इतने वर्ष फिल्मों में सितारा रहने के बाद भी धर्मेंद्र ने अपने पंजाब पिंड की सादगी नहीं छोड़ी थी (यहां तक कि दक्षिण भारत की हेमा मालिनी से विवाह के बाद भी वे इडली, डोसा, सांभर खाने से बचते हुए पंजाब की तंदूरी रोटी और सरसों का साग खाना ही पसंद करते हैं गोयाकि प्यार, प्यार है ; भोजन, भोजन है)।
आश्चर्य और खुशी की बात यह है कि उनके पुत्र सनी देओल सुपरस्टार होने के बाद भी संयुक्त परिवार में ही रहते हैं परंतु उनका छोटा भाई बॉबी देओल पत्नी के साथ स्वतंत्र प्लैट में रहता है। पाश्चात्य तौर-तरीके किसी न किसी सदस्य के माध्यम से घुसपैठ कर ही लेते हैं और पल-पल परिवर्तन के दौर में यह कोई अजीब घटना भी नहीं है। साथ रहने या अलग रहने से जरूरी है दिलों का जुड़ा रहना। विगत कुछ वर्षों में देओल परिवार की बनाई गई फिल्में असफल रहीं और उनकी निर्माण संस्था विजेता फिल्म्स पर बड़ा कर्ज हो गया है। पिंड के मुखिया धर्मेंद्र ने सुझाव दिया कि फिल्म निर्माण का दफ्तर बने उनके बंगले को तोड़कर बहुमंजिला बनाएं और अपने दफ्तर के लिए दो माले आरक्षित करके शेष को बेचने पर यह कर्ज चुक जाएगा।। धर्मेंद्र ने अपने शिखर दिनों में सौ एकड़ का फॉर्म खरीदा था। पंजाब पुत्र को केवल जमीन खरीदना ही सुरक्षित पूंजी निवेश लगता है। फिल्म उद्योग में कपूर खानदान और तीनों खान सितारों के पास भी संपत्ति है परंतु धर्मेंद्र का परिवार ही सबसे अधिक पूंजी वाला परिवार है, क्योंकि उनकी खरीदी हुई जमीनों के दाम आसमान पर पहुंच गए हैं। इससे भी अहम यह है कि अपने शिखर दिनों में भी धर्मेंद्र ने दिखावे के तामझाम पर धन बर्बाद नहीं किया। पिंड के सादा जीवन के मूल्य ही उनकी असली दौलत रही। इन मूल्यों में पले परिवार ठोस रहते हैं। राज कपूर जो अपनी फिल्मों के लिए लाखों रुपए के सेट्स लगाते थे, ताउम्र एक सफेद एम्बेसडर का ही इस्तेमाल करते रहे, जबकि उनके पुत्रों और पोते के पास महंगी आधुनिकतम कारें हैं।
धर्मेंद्र ने अपने ज्येष्ठ पुत्र सनी से कहा कि उसके पुत्रों और बॉबी के पुत्रों के फिल्म में प्रवेश के लिए वे हर एक की पहली फिल्म में 25 करोड़ की लागत के लिए तैयार हैं। उनकी जमा पूंजी का कुछ अनुमान उनके पुत्रों को अब हो रहा है। धर्मेंद्र की अपनी अचल संपत्ति है तो हेमा मालिनी के पास भी जमीन जायदाद की कमी नहीं है। इसके बावजूद धर्मेंद्र ने पिता होने के नाते हेमा से जन्मी पुत्रियों के लिए भी अच्छी-खासी रकम सुरक्षित रखी है। यह सब उन संयुक्त परिवार के मूल्यों का परिणाम है, जो अब भारतीय समाज से लुप्त होते जा रहे हैं। इस धारा को पश्चिमी मूल्यों का आक्रमण समझना बड़ी भूल होगी। हमारे समाज में ही मूल्यों के पतन के कारण छिपे हुए हैं। याद कीजिए कि हम सारे विदेशी आक्रमणों से पराजित हुए ही इसलिए कि हम बंटे हुए थे। जब सोमनाथ पर आक्रमण होने वाला था, तब आस-पास के सभी राजा अपनी संयुक्त सेना भेजना चाहते थे परंतु सोमनाथ के पुजारी दल ने इस सहायता को अस्वीकार करके दंभपूर्वक यह कहा कि वे सब मंदिर के चारों ओर खड़े होकर मंत्र जाप करके सोमनाथ को सुरक्षित रखेंगे।
हमारी मायथोलॉजी ने बड़ा कहर ढाया है। धर्म अपनी जगह है परंतु उसके गिर्द रची किवदंतियां अौर चमत्कारी कहानियों ने हमें बहुत हानि पहुंचाई है। इन तमाम ग्रंथों का सही स्वरूप कब का खो चुका है अौर उसकी जगह ले ली है इन किवदंतियों ने। आज भी हम आधुनिकतम मशीन लगाते समय उसके सामने नारियल फोड़ते हैं।
हमने अपनी पुरानी मंत्रशक्ति की किवदंतियों को सच मानकर मशीन के मंत्र को अभी तक समझा ही नहीं है। कितने कार मालिकों को पंक्चर होने पर अपनी स्टेपनी का उपयोग करना आता है। हमारी फिल्मों ने भी तर्कहीन किवदंतियों और अंधविश्वास को बढ़ावा दिया है। 'जय संतोषी मां' देखने ग्रामीण दरशक अपने जूते बाहर उतारकर जाते थे।