मुआयना / हरदर्शन सहगल
Gadya Kosh से
तो आप हैं इंचार्ज साहब, यह काली- काली बैट्रियां कमरे में कितनी भद्दा लग रही हैं। इन्हें बाहर खिड़की के पास रखवाइए। चोरी हो जाने का डर है।
हूं चोरी! कोई मजाक है। तब मैं अपनी जेब से रकम भर दूंगा।
फिर मुआयना।
मुझे तुम्हारा तार मिला। तो करवा दी चोरी। वाह मैंने कहा था, रकम भर दूंगा। खूब, तुम सबने मिलकर सचमुच बैट्रियां चोरी करवा दीं। हर रोज एक आदमी की पेशी होगी।
दसवें रोज।
तुम लोगों को अब क्या पुलिस की पेशियां करवाऊं। आखिर स्टाफ बच्चों के समान होता है। यह लो सात सौ रुपए। खरीद लाओ नई बैट्रियां। लिख दूंगा, दूसरे दफ्तर वाले बिना बताए ले गए थे। मिल गई। वार्निंग ईशू कर दी।
मुआयना खत्म हुआ। साहब का टीए- डीए छब्बीस सौ से कुछ ऊपर बैठा था।