मुकेश अंबानी,आमिर खान और महाभारत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :26 मार्च 2018
खबर है कि मुकेश अंबानी आमिर खान की चार खंडों में बनने वाली फिल्म महाभारत में पूंजी निवेश करने जा रहे हैं। इसकी लागत की वापसी के लिए यह जरूरी है कि यह हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में बनाई जाए ताकि इसका व्यापक प्रदर्शन हो सके। वेदव्यास द्वारा रचित इस महाकाव्य की व्याख्या करने वाली दर्जनों पुस्तकें लिखी गई हैं। एक पुस्तक में संस्कृत श्लोक के साथ ही उसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी दिया गया है। वेदव्यास ने अपनी रचना का नाम 'जय-विजय' रखा था परंतु धीरे-धीरे यह रचना 'महाभारत' के नाम से प्रचलित हुई। इसके साथ कई अंधविश्वास जुड़ गए हैं, जिसमें से एक यह है कि जिस घर में महाभारत की एक कॉपी हो, उस घर में भाइयों के बीच द्वंद्व अवश्य होता है। संपत्ति के लिए भाइयों में द्वंद्व होना सामान्य बात है और इसके लिए किसी महाकाव्य को दोष नहीं दिया जा सकता। अंबानी परिवार में भाइयों के बीच एक संघर्ष हो चुका है। भारतीय समाज का आदर्श भले ही 'रामायण' हो परंतु यथार्थ तो महाभारत ही है। प्रचलित मान्यता यह है कि मूल महाभारत में मात्र सात हजार श्लोक हैं परंतु ऐसे संस्करण भी हैं, जिनमें तीस हजार श्लोक हैं। पुणे के एक संस्थान में महाभारत का प्रामाणिक संस्करण है।
महाभारत में अनेक पात्र है परंतु टीकाकारों की रुचि कर्ण में सबसे अधिक है। मराठी भाषा में लिखने वाले शिवाजी सावंत ने कर्ण को नायक की तरह प्रस्तुत किया है। महाभारत में भीष्म पितामह का पात्र सबसे अधिक दुविधाग्रस्त पात्र है, जिसने सिंहासन की रक्षा का प्रण लिया है। सिंहासन पर बैठा व्यक्ति न्याय के आदर्श से बंधा नहीं है तब भी भीष्ण पितामह उसकी ओर से संग्राम करने के लिए शपथ-बद्ध हैं। दरअसल, महाभारत सत्य बनाम असत्य का युद्ध नहीं होते हुए असत्य बनाम असत्य की कथा बन जाती है, क्योंकि दोनों ही पक्षों ने अनैतिक आचरण किया है। दरअसल, महाभारत के दो पात्र ऐसे हैं, जो सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कृष्ण एवं द्रौपदी केंद्र में रहने वाले पात्र हैं।
रामायण और महाभारत भी एक सूत्र से बंधे हैं। रामायण में रावण की कैद से मुक्त सीता को अग्नि परीक्षा देना पड़ती है। छाया सीता अग्नि में प्रवेश कर भस्म हो जाती है और सीता अग्नि कुंड से बाहर आती दिखाई पड़ती हैं। इस घटना के समय श्रीराम ने छाया सीता को वचन दिया था कि द्वापर कालखंड में यही छाया सीता द्रौपदी के रूप में धरती की कोख से जन्मेंगी और राम कृष्ण के अवतार में उसकी रक्षा करेंगे। महाभारत में उपेक्षित पात्रों की संख्या अच्छी-खासी है। इस अजीब ग्रंथ में लेखक वेदव्यास भी एक ऐसे पात्र हैं कि उनकी संतानें ही एक-दूसरे के खिलाफ युद्ध कर रही हैं। यह भी गौरतलब है कि अश्वत्थामा ने अन्याय यह किया था कि द्रौपदी के पांचों पुत्रों को युद्ध समाप्त होने के बाद रात में सोती हुई दशा में मारा था। द्रौपदी ने उसे श्रॉप दिया कि वह कभी मरेगा नहीं और सदैव जीवित बने रहना ही उसका दंड भी है। आज भी कई क्षेत्रों में वाहनों की दुर्घटनाओं के लिए अश्वत्थामा को दोष दिया जाता है। वह मरना चाहता है परंतु मरता नहीं। क्या द्रौपदी यह मानती थी कि कलयुग में जीवन ही एक भीषण दंड होगा। उसे क्या यह कल्पना भी थी कि आध्यात्मिक माने जाने वाले देश में लक्ष्मी पूजन सबसे बड़ा उत्सव होगा और सरस्वती पूजन लगभग उपेक्षित ही रहेगा। द्रौपदी को यह कल्पना भी नहीं होगी कि नैतिक मूल्यों का इतना अधिक पतन होगा। उन्हें इस धर्मनिरपेक्षता की भी कल्पना नहीं होगी कि इस्लाम को मानने वाले परिवार में जन्मा व्यक्ति 'महाभारत' के फिल्मांकन के लिए अपनी सारी संचित रकम और परिश्रम लगा देगा।
इस प्रस्तावित फिल्म की सबसे बड़ी समस्या है कलाकारों की खोज। लगभग सभी पुरुष लंबे कद के बलिष्ठ लोग थे और स्त्रियां अत्यंत सुंदर व सुगठित देह वाली होती थीं। आज के बौने कालखंड में महाभारत के पात्रों को अभिनीत करने वाले लोग कहां मिलेगे? उस कालखंड के गधे भी वर्तमान के घोड़ों से अधिक शक्तिशाली होते थे। स्वयं आमिर खान का कद छोटा है परंतु वे कृष्ण अभिनीत करने के लिए स्वयं को सांवला सलौना बनाने के लिए अथक परिश्रम सकते हैं। उनके लिए हर फिल्म निर्माण एक अखाड़ा और दंगल की तरह है। उन्हें कुरुक्षेत्र जाकर एक मुट्ठी मिट्टी वहां से लानी होगी। प्रियंका चोपड़ा को द्रौपदी की भूमिका देने से अमेरिका में प्रदर्शन की सुविधा मिलेगी।
महाभारत में अर्थ की अनेक परते हैं। अगर महाभारत को आप एक प्याज मान लें और एक-एक करके छिलके उतारें तो सारे छिलके हटा देने पर प्याज ही नहीं बचता परंतु प्याज की परतें हटाने वाली उंगलियों को सूंघे तो उसमें प्याज की गंध आती है। वही गंध प्याज का सार है। मुकेश अंबानी के जीवन बही-खाते में लाभ-शुभ और शुभ-लाभ दर्ज है, कहीं कोई घाटा हो ही नहीं सकता। आमिर खान की कुंडली में भी गुरु-चंद्र की युति है। दोनों को ही सबसे पहले कुरुक्षेत्र में जिस दिन युद्ध प्रारंभ हुआ उस दिन आकाश गंगा में ग्रह नक्षत्रों की दशा क्या थी- यह देखना चाहिए। वह दशा 1 सितंबर 1939 को भी वैसी ही थी, जब दूसरा विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ था।