मुक्तक का मर्म / ओम नीरव

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मुक्तक एक ऐसी काव्य विधा है जो आजकल सर्वाधिक लोकप्रिय है। कवि सम्मलेन का मंच हो या कविगोष्ठी या फिर फेसबुक का विस्तृत संसार, मुक्तक का वर्चस्व सर्वत्र देखा जा सकता है। थोड़े में अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय देना हो, किसी लम्बे काव्य पाठ की भूमिका बनानी हो या श्रोताओं के बंधे हुए हाथ तालियों के लिए खोलने हों तो सबसे अचूक विधा है मुक्तक। आइये देखते हैं, ऐसी चमत्कारी काव्य विधा मुक्तक का मर्म क्या है।

मुक्तक क्या है?

मुक्तक एक सामान लय और विशिष्ट कहन वाली चार पंक्तियों की रचना है जिसकी पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति तुकान्त तथा तीसरी पंक्ति अनिवार्यतः अतुकान्त होती है और जिसकी अभिव्यक्ति का केंद्र अंतिम पंक्ति में होता है।

समग्रतः मुक्तक के लक्षणों को हम एक उदाहरण के साथ विंदुवत समझने का प्रयास करते हैं-

रोज़ियाँ चाहिए कुछ घरों के लिए,

रोटियाँ चाहिए कुछ करों के लिए।

काम हैं और भी ज़िंदगी में बहुत-

मत बहाओ रुधिर पत्थरों के लिए।

(स्वरचित)

(1) मुक्तक में समान लय वाली चार पंक्तियाँ होती हैं। लय समान होने के कारण इन पंक्तियों का आधार छन्द एक ही होता है अर्थात चारों पंक्तियों की लय एक ही छन्द पर आधारित होती है।

उपर्युक्त मुक्तक में चार पंक्तियाँ हैं जिनकी लय एक समान है और उस लय का आधार-छन्द 'वाचिक स्रग्विणी' है। इस छंद की एक निश्चित मापनी है जो निम्नप्रकार है-

गालगा गालगा-गालगा गालगा

जबकि ल और गा क्रमशः लघु और गुरु के सूचक हैं।

मुक्तक की पंक्तियों का कलन निम्नप्रकार किया जा सकता है-

रोज़ियाँ / चाहिए / कुछ घरों / के लिए,

गालगा / गालगा / गालगा / गालगा

रोटियाँ / चाहिए / कुछ करों / के लिए।

गालगा / गालगा / गालगा / गालगा

काम हैं / और भी / ज़िंदगी / में बहुत-

गालगा / गालगा / गालगा / गालगा

मत बहा / ओ रुधिर / पत्थरों / के लिए।

गालगा / गालगा / गालगा / गालगा

इन पंक्तियों में लय की समानता को गा कर देखा जा सकता है।

(2) पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति तुकान्त होती हैं जबकि तीसरी पंक्ति अनिवार्य रूप से अतुकान्त होती है।

उक्त मुक्तक की पहली, दूसरी और चौथी पंक्तियों का तुकान्त है–'अरों के लिए' जिसे निम्नप्रकार निर्धारित किया जा सकता है-

घरों के लिए = घ् + अरों के लिए

करों के लिए = क् + अरों के लिए

थरों के लिए = थ् + अरों के लिए

इस तुकान्त 'अरों के लिए' में 'अरों' समान्त है जबकि 'के लिए' पदान्त है l

(3) यदि मुक्तक की बुनावट को देखा जाये तो ग़ज़ल या गीतिका का मुखड़ा और एक युग्म मिलाने से मुक्तक बन जाता है किन्तु यह पूरा सच नहीं है क्योंकि गीतिका के मुखड़े और युग्म के विषय स्वतंत्र होते है अर्थात अलग-अलग हो सकते हैं जबकि मुक्तक की चारों पंक्तियाँ एक ही विषय को प्रतिपादित करती हैं और उनमें निरंतरता होती है।

उद्धृत मुक्तक की शाब्दिक बुनावट को देखें तो पहली दो पंक्तियाँ गीतिका के मुखड़े जैसी लगती है और अंतिम दो पंक्तियाँ उसी गीतिका के युग्म जैसी लगती हैं l

(4) यदि मुक्तक की बुनावट को छन्द के संदर्भ में देखें तो यदि किसी चार चरण वाले छन्द में पहले दूसरे और चौथे चरण को तुकान्त तथा तीसरे चरण को अतुकान्त कर दिया जाये तो वह मुक्तक हो जाता है।

उद्धृत मुक्तक वाचिक स्रग्विणी छन्द के पहले, दूसरे और चौथे चरण को तुकान्त तथा तीसरे चरण को अतुकान्त कर देने से बना है।

(5) मुक्तक की कहन कुछ-कुछ गीतिका के युग्म या ग़ज़ल के शेर जैसी होती है, इसे वक्रोक्ति, व्यंग्य या अंदाज़-ए-बयाँ के रूप में देख सकते हैं लेकिन गीतिका में जो बात दो पंक्तियों में पूरी होती है वही बात मुक्तक में चार पंक्तियों में पूरी होती है। वस्तुतः मुक्तक की पहली दो पंक्तियों में लक्ष्य पर 'संधान' किया जाता है और अंतिम दो पंक्तियों में प्रहार किया जाता है, वह भी इस प्रकार कि चौथी पंक्ति में ही प्रहार की प्रक्रिया पूरी होती है। यह प्रहार एक विस्फोट की भांति चमत्कारी होता है। जैसे विस्फोट की ध्वनि के प्रभाव से व्यक्ति के मुख से कुछ अचानक प्रस्फुटित हो जाता है वैसे ही चौथी पंक्ति के प्रभाव से श्रोता के मुख से बरबस ही 'वाह' निकल जाता है।

उद्धृत मुक्तक की कहन की विशिष्टता को सहज ही देखा और परखा जा सकता है। इसका मुख्य कथ्य है-'पत्थरों के लिए रुधिर मत बहाओ'। प्रारम्भिक दो पंक्तियों में इस कथ्य की प्रस्तावना गयी है, तीसरी पंक्ति से मुख्य कथ्य का प्रारंभ होता है और चौथी पंक्ति में उसका विस्फोटक प्रकटीकरण होता है जिससे श्रोता 'वाह' करने के विवश हो जाता है।

मुक्तक के दूसरे अर्थ

'मुक्तक' शब्द आज के साहित्यिक परिवेश में उसी अर्थ में प्रयोग होता है जिसकी चर्चा ऊपर की गयी है और जो इस लेख का प्रतिपाद्य है किन्तु कदाचित इसका प्रयोग निम्न रूपों में भी होता है-

(1) भारतीय काव्य शास्त्र में काव्य को दो वर्गों में विभाजित किया गया है–प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य। प्रबंध काव्य के अतर्गत दो वर्ग आते हैं–महा काव्य और खंड काव्य। इन दोनों के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के काव्य 'मुक्तक काव्य' के अंतर्गत आते हैं।

(2) भारतीय सनातनी छंदों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है–मात्रिक और वर्णिक। इनमे से वर्णिक छंद भी दो प्रकार के हैं-एक 'वर्ण वृत्त' जिनमें प्रत्येक चरण के सभी वर्णों की संख्या और मात्राभार सुनिश्चित होता है और दूसरे 'वर्णिक मुक्तक' जिनमें प्रत्येक चरण के वर्णों की संख्या तो सुनिश्चित होती है किन्तु वर्णों का मात्राभार अनिश्चित या स्वैच्छिक होता है।

आओ रचें मुक्तक

मुक्तक रचना है तो सबसे पहले किसी मनपसंद गीतिका या छन्द को गाकर और गुनगुनाकर उसकी लय को मन में बसाइए और फिर उसी लय पर शब्दों को ढालते हुए अपने मन के भावों को व्यक्त कीजिए। अपनी बात मुक्तक के ढांचे में इस प्रकार कहिए कि कथ्य का विस्फोट चौथी पंक्ति में ऐसे चमत्कार के साथ हो कि सुनने वाला 'वाह' करने पर विवश हो जाये। जब मुक्तक बन जाये तब एक बार उसकी छंदबद्धता और तुकान्तता को अवश्य जाँच लीजिए और यदि कोई कमी दिखे तो उसे सुधार लीजिए। यदि आप में काव्य प्रतिभा है तो मुक्तक अवश्य बनेगा और बहुत सुन्दर बनेगा। इस प्रकार रचे हुए मुक्तक को अवसर मिलने पर मित्रो के बीच कवि-गोष्ठियों में सुनाये और इस बात पर ध्यान दीजिये कि मुक्तक के समापन पर कितनी प्रबल 'वाह' मिलती है। यदि 'वाह' की प्रबलता में कुछ कमी लगे तो अपने मुक्तक कि कहन पर पुनर्विचार कीजिए और सुधार करने का मन बनाइए।

मुक्तक के अनुप्रयोग

मुक्तक का सबसे अधिक प्रयोग काव्य मंचों पर श्रोताओं को जोड़ने के लिए अथवा किसी बड़ी रचना कि भूमिका बाँधने के लिए किया जाता है। जब कोई कवि अनेक विषयों पर लय की विविधता के साथ अपनी बात रखना चाहता है तो मुक्तक या छन्द विधा का प्रयोग किया जाता है। मुक्तक को गीत के अंतरे के रूप में प्रयोग करना बहुत प्रभावशाली रहता है। खंड काव्य या लंबी कविता में मुक्तक बहुत रोचक लगता है। हरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला इसका जीवन्त उदाहरण है। आजकल बहुत से मुक्तक-संग्रह प्रकाशित और हिन्दी साहित्य में सम्मानित हो रहे हैं। समग्रतः आजकल किसी कवि की सर्वांगीण सफलता के लिए मुक्तक एक संजीवनी का कार्य करता है।