मुखौटों के बीच व्यक्ति की तलाश / जयप्रकाश चौकसे

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मुखौटों के बीच व्यक्ति की तलाश
प्रकाशन तिथि : 22 जनवरी 2020


भारत में पहली कथा फिल्म 'धुंडिराज' गोविंद फाल्के ने 1913 में बनाई थी और इस महापुरुष के नाम पर दादा फाल्के पुरस्कार देना सातवें दशक के अंत में प्रारंभ हुआ। पहला पुरस्कार बॉम्बे टॉकीज फिल्म निर्माण कंपनी की संस्थापक देविका रानी को दिया गया। पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर और शशि कपूर को भी यह पुरस्कार दिया जा चुका है। हाल में अमिताभ बच्चन को भी दिया गया है। गौरतलब यह है कि यह पुरस्कार खलनायक की भूमिका अभिनीत करने वालों को नहीं दिया गया है। चरित्र भूमिका करने वाले भी इस पुरस्कार से वंचित ही रहे। क्या हमारी नायक पूजा की भावना से इसका कोई संबंध है? क्या अवतार अवधारणा इसकी जड़ में है? यह भी संभव है कि हमारा जन्मना आलस्य और पलायनवादी प्रवृत्ति इसके मूल में हो। हमारी आपसी फूट और विदेशियों से पराजय का इतिहास लंबा है। हमने केवल पाकिस्तान को पराजित किया है। चीन हमारी सैकड़ों एकड़ जमीन दबाए बैठा है।

खलनायक की भूमिकाएं कर प्राण सिकंद ने सबसे अधिक लंबी पारी खेली, परंतु दादा फाल्के पुरस्कार उन्हें नहीं दिया गया। गब्बर सिंह बने अमजद खान भी अनदेखा किए गए। अमरीश पुरी ने भी लंबी पारी खेली। उनका अभिनीत पात्र मोगाम्बो लोकप्रिय रहा और यह संवाद कि 'मोगाम्बो खुश हुआ' अवाम की जुबान पर चढ़ गया। प्रेम चोपड़ा आज भी सक्रिय हैं। महेश भट्‌ट की 'सड़क' में सदाशिव अमरापुरकर ने डर का भाव बखूबी अभिव्यक्त किया। अमजद खान ने राजेंद्र कुमार की गौरव अभिनीत फिल्म 'लव स्टोरी' में हंसोड़ पुलिसमैन की भूमिका अभिनीत की थी।

महान चिंतक एवं पत्रकार राजेंद्र माथुर का विचार था कि हमारा अवाम चाहता है कि कोई और उसके लिए सोचे, कार्य करे और जरूरत पड़ने पर उसके लिए अपने प्राण भी दे दे। सारांश यह कि अवाम स्वयं कभी कोई उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहता। नायक और खलनायक दोनों ही अवाम के अवचेतन से जन्म लेते हैं।

हॉलीवुड फिल्मों में खलनायक की भूमिका अभिनीत करने वाले कलाकारों को भी ऑस्कर पुरस्कार दिया गया है। स्टीवेंसन के 'डॉ. जैकल एंड मि. हाइड' आकल्पन में नायक और खलनायक एक ही व्यक्ति हैं। अपनी पत्नी के आग्रह पर स्टीवेंसन ने मूल आकल्पन में परिवर्तन करके दो पात्र रचे और रचना ने अपना दार्शनिक महत्व खो दिया। यह सभी जानते हैं कि महान चित्रकार लियोनार्डो द विंची ने क्राइस्ट के अंतिम भोज का चित्र बनाने में वर्षों परिश्रम किया। ईसा के लिए मॉडल पियोत्रा का चयन किया गया। जूडस की धोखेबाजी के कारण क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाया गया था। जूडस के लिए भी मॉडल पियोत्रा का ही चुनाव अनजाने में हो गया। ज्ञातव्य है कि ईसा के लिए मॉडलिंग करने के बाद पियोत्रा ने एक कत्ल किया था और उसे मृत्युदंड दिया गया था। चित्रकार को जूडस का चित्र बनाने के लिए फांसी की सजा पाया पियोत्रा ही सही लगा, परंतुु वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि यही व्यक्ति क्राइस्ट की तस्वीर बनाते समय मॉडल चुना गया था। यह आश्चर्यजनक है कि पेंटर को पियोत्रा के चेहरे पर दिव्य भाव दिखा और उन्होंने उसे ईसा के चित्र का मॉडल चुना। कुछ वर्षों के अंतराल में उसी पियोत्रा के चेहरे पर उन्हें निर्दयता व दुष्टता का भाव नजर आया। भावहीन चेहरे वाले को पोकर फेस्ड कहा जाता है।

एक दौर में दिलीप कुमार 'बैंक मैनेजर' नामक फिल्म बनाना चाहते थे। नायक बैंक में मैनेजर है और रात में उसी बैंक को लूटने की योजना बनाता है। मैनेजर पक्ष बार-बार उसे रोकना चाहता है, परंतु मन में छिपी बैंक लूटने की इच्छा इतनी बलवती है कि वे उसे रोक नहीं पाते।

बिल बटलर नामक लेखक ने अपनी किताब 'द मिथ ऑफ द हीरो' में पूर्व और पश्चिम के पुरातन समय से आधुनिक काल तक के नायक निर्माण की प्रक्रिया का विशाद वर्णन किया है। वे लिखते हैं कि अमेरिका का अवाम रिचर्ड निक्सन के दुष्कर्मों से परिचित होते हुए भी उसे चुनता रहा। उन पर डगलस की हत्या का आरोप 1947 में लगा था। अमेरिकन अवाम स्वयं को अपराध बोध से मुक्त करने के लिए सब कुछ जानते हुए भी निक्सन जैसे व्यक्ति को सहता रहा। अमेरिका में इम्पीचमेंट प्रस्ताव गिरा दिए जाते हैं, क्योंकि मामला सामूहिक अपराध बोध से मुक्त होने का है। प्राय: इम्पीचमेंट से साफ बचा व्यक्ति अगला चुनाव नहीं लड़ पाता है और लड़े तो हार भी जाता है। क्या डोनाल्ड ट्रम्प भी बेदाग बरी होंगे? क्या हम इसे अवाम का पलायन मानें कि गलत व्यक्ति को चुन लेने के बाद भी उससे जुड़े रहते हैं, ताकि अपने मन की अदालत में उन्हें खुद अपराधी के कठघरे में खड़ा न होना पड़े? क्या खुद को बचाते हुए हम नकारात्मकता को भी प्रश्रय देने लगे हैं?