मुट्टा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
“ऐसे ऐसे एक था घर”
“घर कहाँ था दद्दा?”
“घर,घर कहां होता है?”
“गांव में होता है, शहर में होता है और कहाँ होता है|”
“नहीं यह घर था पहाड़ की तलहटी में”
“अरे बाप रे पहाड़ पर”
“अरे बुद्धु,पहाड़ पर नहीं पहाड़ के नीचे”
“अच्छा…..दद्दा ठीक है ,फिर आगे क्या हुआ दद्दा”
“फिर क्या,उस घर में रहते थे करोड़ीलाल”
“कैसे थे करोड़ीलाल”
“वैसेई थे जैसे करोड़ीलाल होते हैं”
“अरे दद्दा ठीक से बताओ न कैसे होते हैं”
“अरे यार जैसे अपने पकोड़ीलाल हैं,जैसे अपने छकौड़ी लाल हैं वैसई”
“अच्छा ऐसा बोलो न कि करोड़ीलाल बूढ़े बाबा थे”
‘बिल्कुल ठीक कहा तुमने”
“आगे फिर”
“आगे फिर क्या उनका एक लड़का था मुट्टा”
“मुट्टा, यह क्या नाम है दद्दा?” गबरू हंसने लगा|”
“अबे हँसता क्यों है,लड़का मोटा था इसलिये उसका नाम मुट्टा पड़ गया होगा”
“ठीक है दद्दा फिर क्या हुआ?”
“मुट्टा का एक दोस्त था,अच्छू,दोनों पक्के दोस्त थे, दांत काटी चाकलेट”
“दांत काटी चाकलेट मतलब”
“एक चाकलेट को दो लोग आधी आधी काटकर खाते हैं|पहले एक, अपने दांत से आधी काटकर खा लेता है बाकी बची आधी दूसरा खा लेता है|”
“दद्दा यह तो दांत काटी रोटी वाला मुहावरा है|”
“चुप तू ज्यादा जानता है या मैं|”दद्दा ने अपने बड़े होने का अहसास कराया|
“फिर आगे क्या हुआ दद्दा|’
“मुट्टा की इच्छा थी कि वह अच्छू को एक बार अपने घर खाने पर बुलाये|उसने करोड़ीलाल से पूछा तो वे बोले बुला लो बित्ते भर का छोकरा कित्ता खायेगा|अच्छू जी आमंत्रित हो गये| अब क्या था,अच्छूजी सज धज कर मुट्टा के यहाँ पहुँच गये| भोजन बना पूड़ी साग रायता पापड़ दाल भात आम की चटनी|दोनों धरती पर एक बोरी बिछाकर मजे से बैठ गये|
“अरे बाप रे इत्ता नमक” अच्छू ने पहला ग्रास मुंह में रखते ही बुरा सा मुंह बनाया|
“कितना नमक खाते हो भाई”अच्छू ने दो घूंट पानी पीकर नमक को मुँह में ही डायलूट करते हुये कहा|
“कहाँ यार मुझे तो नहीं लग रहा”,मुट्टा ने थाली में अलग से रखा नमक सब्जी में मिलाते हुये कहा|
“अरे मुट्टा इतना नमक खाया जाता है क्या, पागल हो गये हो क्या?” अच्छू ने आश्चर्य की मुद्रा बनाई|
“मैं तो इत्तई खाता हूं,शुरु से ही” मुट्टा ने भोलेपन से कहा|
“मेरे भाई कुछ किताबें विताबें पढ़ा करो क्या खाना चहिये कितना खाना चाहिये इसका मोटा मोटा अंदाज तो होना ही चाहिये”अच्छू ने समझाइश देना चाही|
“क्या बात करते हो नमक खाने से क्या होता है|”
“अरे भाई नमक खाने से कुछ नहीं होता, मगर अधिक खाने से बहुत कुछ होता है|” अच्छू ने जबाब दिया|
“बताओ बेटा बताओ क्या होता है ज्यादा नमक खाने से ,मैं भी खूब खाता हूं” करोड़ीलालजी बीच में ही बोल पड़े|
“काकाजी नमक शरीर के लिये अति आवश्यक है किंतु हद से ज्यादा नमक खाना बहुत हानिकारक है दिन भर में 5-6 ग्राम नमक शरीर की आवश्यकताओं को पूर्ण कर् देता है|”
“अधिक नमक खाने से क्या क्या नुकसान होता है ठीक से बताओ न|”मुट्टा ने पूछा|
“ज्यादा नमक से हृदय रोग होने का खतरा होता है|”
“अरे बाप रे कैसे खतरा होता है खुलकर बताओ न|
“अधिक नमक खाने से उसे घोलने के लिये शरीर में अधिक पानी का उपयोग होता है और जलीय अंश के असुंतलन से रक्त चाप बढ़ता है,रक्त चाप बढ़ा तो हृदय पर भार पड़ता है इससे हृदय रोग होने का खतरा बढ़ जाता है|”
“अरे यार मैं तो बहुत नमक खाता हूं क्या इसी से तो नहीं मुझे बेचेनी होती रहती है?”मुट्टा को भय सताने लगा था|
“हो सकता है तुम्हारे मुटापे का करण भी यही हो|”अच्छू हँस पड़ा|
“आगे बताओ और क्या क्या नुकसान हैं नमक के?”
“नमक के नहीं ,ज्यादा नमक के|”
“हां हां वही तो पूछ रहा हूं|”
“देखो मुट्टा भाई, हम लोग जो भोजन करते हैं उसमें प्राकृतिक रूप से इतना नमक तो रहता ही है कि जितना हमारे शरीर के लिये आवश्यक है फिर शरीर की स्थूल से लेकर सूक्ष्म अति सूक्ष्म क्रियाओं के संचालन में नमक की महिती भूमिका होती है|नमक को अंग्रेजी मं| रसायन शास्त्र की भाषा में सोडियम क्लोराइड कहते हैं|इसका मुख्य काम शरीर की कोशिकाओं में स्थित पानी का संतुलन करना है|ग्यान तंतुओं के संदेशों का वहन और स्नायुओं का आंकुचन, प्रसरण होने की शक्ति भी नमक से ही मिलती है|”
“मित्र यह तो गज़ब की बात है ,मैं तो खाता हूं मनमाना,,बिना नमक के खाने में स्वाद ही नहीं आता|और क्या नुकसान है अच्छू मुझे तो घबराहट हो रही है|”मुट्टा उतावला हो रहा था,जैसे नमक के बारे में आज ही सब कुछ जान लेना चाहता हो|
““नमक शरीर में सप्त धातुओं में निहित ओज को क्षीण कर देता है,ऊर्जा कम होने से इंसान में एक अग्यात भय उत्पन्न होता है,वह चिंतित रहने लगता है और उसकी प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है|”
“यार मुझे लगता है कि इस कारण से ही मुझे कमजोरी सी लगती है,सुबह कभी कभी चक्कर भी आ जाते हैं|”
“लगता क्या है यही कारण है मित्र मुट्टा,इतना नमक खाओगे तो यह होगा ही|”
“और… और बोलो मेरे प्यारे अच्छू डाक्टर तुम्हारी बातों में बड़ा रस मिल रहा है|”मुट्टा ने अच्छू को उकसाया|
“नमक खाने से केलशियम मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है|जितना नमक खाओगे उतना ही केलशियम बाहर निकल जाता है|केलिशियम की कमी से शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, दांत गिरने लगते हैं,त्वचा पर झुर्रियां पड़ने लगतीं हैं और असमय बाल सफेद होने या झड़ने लगते हैं| आंखों के ग्यान तंतु क्षिति ग्रस्त होनें से रोशनी कम होने लगती है ,मुटापा मधुमेह…………”
“बस यार चुप करो अब आगे नहीं सुन सकता|”मुट्टा बौखला गया|
“दद्दा क्या यह कहानी बिल्कुल सच्ची है”,गबरू ने दद्दा की पीठ पर लदते हुये पूछा|
“तो तुम्हें क्या झूठी लग रही है” दद्दा ने आँखें दिखाईं|
“नहीं नहीं सच्ची ही होगी, जब आप सुना रहे हैं तो|हमारे दद्दा की कहानी झूठ हो ही नहीं सकती “गबरू लड़याते हुये बोला|
“दद्दा मुट्टे ने फिर क्या किया?”
“क्या किया ,नमक खाना बिल्कुल कम कर दिया|”
“दद्दा इस कहानी का शीर्षक क्या रखा आपने?’
“इस कहानी का नाम…. नाम …हाँ ,मुट्टा की कहानी, ठीक है न मुट्टा की कहानी?’
“हां दद्दा ठीक तो है मगर ………यदि केवल “मुट्टा”रखें तो ………”
“वाह बेटे “मुट्टा”तो और भी अच्छा है बहुत अच्छा|”