मुनासिब कार्रवाई / सआदत हसन मंटो
जब हमला हुआ, तो मुहल्ले में से अल्पसंख्यकों के कुछ आदमी तो क़त्ल हो गये, जो बाक़ी थे, जान बचाकर भाग निकले। एक आदमी और उसकी बीवी अलबत्ता अपने घर के तहखाने में छिप गये।
दो दिन और दो रातें छिपे हुए मियाँ-बीवी ने क़ातिलों के आने की संभावना में गुज़र दीं, मगर कोई न आया। दो दिन और गुज़र गये। मौत का डर कम होने लगा। भूख और प्यास ने ज़्यादा सताना शुरू किया।
चार दिन और बीत गये। मियाँ-बीवी को ज़िंदगी और मौत से कोई दिलचस्पी न रही। दोनों छिपे स्थान से बाहर निकल आये। खाविंद ने बड़ी दबंग आवाज़ में लोगों को अपनी तरफ़ मुतवज्जह (आकर्षित) किया और कहा "हम दोनों अपना-आप तुम्हारे हवाले करते हैं हमें मार डालो।"
जिनको मुतवज्जह किया गया था, वे सोच में पड़ गयेμ "हमारे मज़हब में तो जीव-हत्या पाप है।"
वे सब जैनी थे, लेकिन उन्होंने आपस में मशवरा किया और मियाँ-बीवी को मुनासिब कार्रवाई के लिए दूसरे मुहल्ले के आदमियों के सुपुर्द कर दिया।