मुरझाई रजनीगंधा पर महक बनी रहे / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 17 नवम्बर 2021
समाज में मध्यम आय वर्ग के संघर्ष और दुख-दर्द को अभिव्यक्त करने के लिए साहित्य के क्षेत्र में नई कहानियां आंदोलन का प्रारंभ हुआ था। मोहन राकेश, राजेंद्र यादव और मन्नू भंडारी इस आंदोलन के अग्रणी लेखक रहे। मन्नू की कहानी ‘यही सच है’ पर आधारित सफल फिल्म, बासु चटर्जी ने ‘रजनीगंधा’ के नाम से बनाई। उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ पर आधारित फिल्म ‘समय की धारा’ भी सराही गई परंतु मन्नू ने अपनी कथा में फेरबदल किए जाने के कारण अदालत में केस दायर किया । उनकी रचना ‘महाभोज बहुत चर्चित हुई।
इस कथा में बिसेसर नामक पात्र की मौत को कुछ लोगों ने हत्या माना। पुलिस द्वारा जांच-पड़ताल में हुई धांधली पर करारा व्यंग्य किया गया है इसमें।
शरतचंद्र के एक उपन्यास की फिल्म पटकथा मन्नू भंडारी ने लिखी है। फिल्म का नाम ‘स्वामी’ रखा गया, जिसमें शबाना आज़मी और गिरीश कर्नाड ने अभिनय किया था। टेलीविजन पर प्रसारण के लिए मन्नू भंडारी ने पटकथाएं लिखीं। इन रचनाओं के नाम हैं ‘अकेली’ ‘त्रिशंकु’ ‘रानी मां का चबूतरा’ ‘कील और कसक’, ‘रजनी’ और ‘दर्पण’। उन्होंने यह भ्रम भी तोड़ा कि पटकथाएं सिर्फ अंग्रेजी में ही लिखी जा सकती हैं।
मन्नू भंडारी और राजेंद्र यादव के अलग होने के बाद भी वे आपस में मिलते रहे। इस बात से याद आता है कि रणधीर कपूर और बबीता का भी तलाक नहीं हुआ परंतु दशकों से भी अलग-अलग रहते हुए प्राय: दोपहर का भोजन वे साथ-साथ करते हैं। रिश्ते इस तरह भी निभाए जाते हैं। मन्नू भंडारी ने अपनी आत्मकथा ‘एक कहानी यह भी’ के नाम से लिखी परंतु वे बार-बार यह कहती रहीं कि यह आत्मकथा नहीं है वरन मध्यम वर्ग के विरोधाभास और विसंगतियों का विवरण है। मन्नू ने पत्नी, मां और पुत्री का दायित्व निभाया। प्राय: नारी विविध दायित्वों का निर्वाह करती है। उसकी साड़ी के पल्लू में बहुत सी चाबियां होती हैं लेकिन वह स्वयं के जीवन के लौह कपाट की चाबी कभी खोज नहीं पाती।
मन्नू भंडारी का जन्म, मंदसौर में हुआ था। मन्नू भंडारी की कुछ रचनाओं में प्रस्तुत किया गया है कि एक पात्र अपने विगत में किए गए असफल प्रेम की बात छुपा कर अन्य स्त्री से विवाह कर लेता है। परंतु सत्य उजागर हो जाता है। गोया की रिश्ते रेशम से नाजुक होते हैं और कांच की तरह तड़क जाते हैं। टूटे हुए कांच का एकाध किरचा आंख में चुभ जाता है जो आंसू बहाने पर बाहर नहीं निकल पाता। इस तरह की दुविधा को शैलेंद्र ने प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत किया है, ‘जो बीत गया वह सपना था, जो सच है सामने आया है, यह धरती है इंसानों की कुछ और नहीं इंसान हैं हम।’ क्षमाशील सहिष्णु इंसान का जीवन जीना आसान नहीं होता। जख्मों से भरा सीना लेकर अपनी नजर को मस्त बनाए रखना बहुत कठिन काम है। मन्नू भंडारी सारा जीवन स्वयं को खोजती रहीं। बहरहाल, मन्नू भंडारी के लेखन की प्रशंसा आलोचक नामवर सिंह ने भी की है। मन्नू एक जगह लिखती हैं कि ‘तुरुप का इक्का यानी घर उसके (पुरुष) के पास, तुरुप का बादशाह यानी बच्चा उसके पास, बेगम यानी बीवी उसके पास। प्रेम करने के लिए प्रेमिका उसके पास, गुलाम यानी नौकर-चाकर उसके पास, गाड़ी-बंगला भी उसके नाम’। खाकसार का कहना है कि स्त्री के पास बचता है ‘निल बटे सन्नाटा’ ज्ञातव्य है कि यह एक फिल्म का नाम भी है।
90 वर्ष की आयु रही मन्नू भंडारी की। इस लंबी यात्रा में अनेक मोड़ व घुमावदार घाटियां आईं वे कभी-कभी लड़खड़ाईं परंतु गिरी नहीं। उनके आत्म बल ने उन्हें संबल दिया।
क्या मन्नू भंडारी पर बायोपिक बनेगी? क्या उसे कोई पुरुष निर्देशित करेगा? यह तय है कि पूंजी कॉर्पोरेट संस्था लगाएगी। बहरहाल, रजनीगंधा की महक बनी रहना बेहद जरूरी है।