मुराद / गोवर्धन यादव

Gadya Kosh से
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रोज की तरह, उसने सुबह के ठीक छः बजे अपनी शैय्या का त्याग कर दिया था, बिस्तर छोडने से पहले उसने ईश्वर का गुणानुवाद किया, फिर धरती पर पैर रखने के पहले, उसने झुककर धरती माँ को प्रणाम किया और उठ बैठी थी,

सुबह के दैनिक नित्यक्रिया कर्म से निजात पाकर उसने कपडॆ बदले और घूमने निकल गयी, घर से कुछ दूरी पर एक विशाल पार्क है, जिसके चार चक्कर लगाना उसकी दिनच्रर्या बन गई थी, बागीचे में प्रवेश करते ही उसकी नज़र पेडॊं पर खिले रंग-बिरंगे फ़ूलों पर पडी, फ़ूलों पर मंडराते भौरों की गुनगुन सुन और शीतल सुगन्धित बहती मन्द-मन्द पवन के झकोरों ने उसके मन को और भी रोमांटिक बना दिया था, वह भी कोई फ़िल्मी गीत गुनगुनाने लगी थी,

तेजी से क़दम बढ़ाते हुए उसने अब तक दो चक्कर लगा लिए थे, वह कुछ थॊडा आगे बढ ही पायी थी कि किसी शिशु के कराहने की आवाज़ सुनकर उसके क़दम वहीं रुक गए, उसकी आँखे अब शुक्ष्मता से अपने चारों ओर का मुआयना करने लगी थी, कुछ भी न पाकर, उसने जैसे ही अपने क़दम आगे बढना चाहा कि शिशु अपनी पूरी ताकत के साथ रोने लगा था,

मन में विचारों का एक चक्रवात-सा उठ खडा हुआ था, दिल तेजी से धडकने लगा था, उसने अब तेजी से उस ओर क़दम बढ़ाए, जिस ओर से उसने रुदन की आवाज़ सुनी थी, पास ही एक बडा-सा गड्ढा था, जिसमे किसी ने बडी ही बेरहमी के साथ उसे फ़ेंक दिया था, नवजात शिशु को चिथडॊं में लिपटा देख उसके मुँह से चीख निकलते-निकलते बची, उसने अपने चारों ओर दृष्टि दौडाई, अभी तक कोई भी घुमक्कड वहाँ नहीं पहुँचा था, उसने हिम्मत करके गड्ढे में उतरने का प्रयास किया और वह उसमें सफल भी हो पायी थी, शिशु को जैसे-तैसे संभालते हुए वह ऊपर आयी, किसी स्त्री का स्पर्श पाकर बच्चा चुप हो गया था, दिमाक का मीटर अभी भी तेज गति से घूम रहा था, वह एक अनिर्णयात्मक द्वंद में वह बुरी तरह से फ़ंस गयी थी, क्या उसे चलकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवानी चाहिए या फिर पहले बाल कल्याण निकेतन पहुँच कर बच्चे को आगे की परवरिश के लिए छोड आना चाहिए, उसने निर्णय लिया कि बाल कल्याण केन्द्र जाना ही उचित होगा, वहाँ से भी वे पुलिस को सूचना दे ही देंगे,

एक अबोध शिशु को अपने सीने से चिपकाए हुए वह आगे बढ रही थी, बच्चे के सीने से लगते ही उसकी ममता जाग उठी थी और अब वह सोचने लगी थी-" बडी निष्ठुर होगी इस बच्चे की मां, तभी तो उसने उसके पैदा होते ही उसे अपने से अलग कर लिया, यह भी संभव है कि किसी कुवांरी लडकी ने समाज और परिवार के भय से ऐसा किया होगा, समाज में आए दिन ऐसी घटनाओं का होना आम बात हो गयी है, प्रेम करने वाले जवानी के जोश में उलटी-सीधी हरकते करते है, ऐसा करते हुए उन्हें तब न तो समाज का भय होता है और न ही परिवार वालों का, एक अंधे प्रेम के चलते, जिसका मतलब शायद वे तब नहीं लगा पाते और शारीरिक सम्बंध बना लेते हैं, जब गर्भ ठहर जाता है, तब नाम बदनाम न हो जाए, इसकी चिन्ता लगनी शुरु हो जाती है, फिर परिवार वाले भी अपनी बदनामी न हो, इसके लिए डाक्टरों को भी पैसों के लोभ में फ़ंसा कर गर्भपात करवा लेते है, और मुक्ति पा जाते हैं, जब गर्भ गिराना मुश्किल हो जाता है तो लडकी बाहर किसी अपरिचित स्थान पर तब तक छिपाकर रखते हैं, जब तक डिलिवरी न हो जाए, मन अब भी विचारों के चक्रवात सक्रीय था

तभी एक विचार यह भी उठ खडा हुआ कि उसकी शादी हुए एक अरसा हो गया और वह अब तक माँ नहीं बन पायी, कितना अच्छा हो कि वह उस शिशु को अपने पास ही रख ले, उसे गोद ले-ले और उसकी परवरिश करे, उसे पढाए-लिखाए और समाज में जीने का हक़ दे, फिर क्या कमी है उसके पास, संसार की सारी भौतिक चीजें तो है उसके पास, फिर वह और उसके पति सरकारी मोहकमें में ऊचें पद पर प्रतिष्ठित हैं, एक अनाथ बच्चे को गोद लेकर उसे अपना नाम देने में आपत्ति ही क्या है? उसे माँ का प्यार मिल जाएगा जो उसके लिए आज ज़रूरी है, वैसे भी वे काफ़ी दिनों से एक बच्चे को गोद लेने की सोच ही रहे थे, वह तो ईश्वर की असीम कृपा का फ़ल है कि उसकी मुराद आज अनायास ही पूरी होने जा रही है,

उसने तत्काल ही निर्णय ले लिया था कि वह बच्चे को गोद ले लेगी, उसके क़दम शीघ्रता से बाल कल्याण केन्द्र की ओर बढ चले थे।