मुरोॅ सें मीठ्ठोॅ सूद / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
समय दुनिया में सबसे बड़ोॅ मरहम छेकै जें बड़ोॅ से बड़ोॅ घाव भी भरी दै छै। हैजा के कारण श्राद्ध-संस्कार तक में शामिल होय लेली कोय परिवार बाजा ने जावेॅ पारलै। ई भयानक रोगें जैवा के ही सुहाग लूटी केॅ शांत नै होलै बलुक ओकरा से आगू एक महिना तांय काली माय रो रंथ चलतें रहलै। केनां कोय जैतियै?
कोय रूकी जाव, समय तेॅ नै रूकै छै। सात-आठ बरस बीती गेलै। जैवा रोॅ खेलना-खाना पहिलके नांकी चलतें रहलै। आभी तांय नै ओकरा बियाह के बोध होलोॅ छेलै आरो नै आपनोॅ मोसमास होयके. माय-बाप, भाय-भौजाय के राज छेलै। कोनों कमी तेॅ नहियें छेलै। लालजी आरो अधिकलाल मड़रोॅ के बाल-बच्चा साथें खेलतें दिन बीतलोॅ जाय छेलै। सोनमनी रूपी वट वृक्ष अत्तेॅ बड़ोॅ रूप में फैली गेलोॅ छेलै कि लालजी केॅ पाँच बेटा, दू बेटी आरो अधिकलालोॅ में अब तांय तीन बेटा होय चुकलोॅ छेलै। अत्तेॅ बच्चा-बुतरू के बीचोॅ में जैवा मुलगैन बनी केॅ जीवी रहलोॅ छेलै। कोय चिन्ता, कोय फिकर नै।
शलिगराम आरो चकरधर जवान होय गेलोॅ छेलै। अठारह वरसोॅ के शलिगराम आरो सोलह वरसोॅ के चकरधर। पाँच हाथों से दुनूं भाय में कोय कम नै। लंबा, साँवरोॅ, गठलोॅ बदन, एक रंग छैल छवीला। भोरें उठी केॅ अखाड़ा पर कुश्ती लड़ै आरो जी भरी केॅ दूध पीयै, फुललोॅ बादाम हँसड़ै। जबेॅ दूनों केॅ दादा सोनमनी देखै तेॅ सुख समुद्र में डूबी जाय। लालजी बाबू केॅ कहै-" की बाबू, ऐकरा सीनी केॅ पहलवाने बनैभोॅ की?
सोनमनी हांसै आरो बोलै-"गाँव वाला बड्डी सतैलेॅ छै। असकल्लोॅ जानी केॅ हमरा यें सीनी की-की दुख नै देनें छेॅ। घरोॅ में आगिन लगैवा सें लै करी केॅ गाय-बैल चोराय तक, अड्डा काटवोॅ सें खेतोॅ में पानी करै तक आरू तेॅ आरू हमरी गाय जबेॅ गाँव आवै छेलै तेॅ रसता सें घरोॅ के बथानी तांय गाय नै आबै दै लेली लाठी भांजै छेलै। बरियों आरो बपुतगरोॅ होलें बिना अत्ते बड़ोॅ संपत्ति के रक्षा करना संभव नै छै।"
"अधिके नांकी ऐकरोह सीनी केॅ बांका भेजी केॅ पढ़ैतिहोॅ-लिखैतिहोॅ तेॅ कत्तेॅ सुन्नर होतियै।" लालजी लगभग निहोरा ही करलकै। "एक ठो इसकूल जिला भरी में। नाम लिखावै वासतें मारामारी होय छै। खोखा बाबू जे कलकत्ता गेलोॅ छै ई तेसरोॅ वरस छेकै नै एैलोॅ छै। कमपीटीशन में जे लड़का पास होय छै ओकरे नाम वहाँ लिखै छै। यहाँ जोॅड़ मजबूत करै वाला नै कोय मासटर, नै कोय इसकूल। लै दै केॅ एक ठो नीलमोहन पंडीजी, हुनी खोड़ा आरो किताब क, ख ... आखर गियान सें बेशी जानथें नै छै। केनां की होतै। बांका में सातमां किलासोॅ सें पढ़ाय होय छै। यै बीचोॅ के पढ़ाय वाला कोय रहतिये तबेॅ नी जाँचोॅ में ई सब पास होतियै।" समझैतें हुअें सोनमनी मड़रें कहलकै।
लालजी के समनां में बात स्पष्ट होय गेलोॅ छेलै। चाही के भी नै पढ़ाय केॅ मजबूरी सें निराश हुनी कहलकै-"हों, अधिकें पढ़ी केॅ की करलकै, दरोगा रो नौकरी मिलै छेलै। जमींदारें समझाय के थक्की गेलै, मतुर उ$ अम्हक नौकरी पर नहियें गेलै। लरबेलाख संपत्ति देखी केॅ बौराय गेलै।"
"अधिकें तेॅ बड़का गलती करनें छै। ई नौकरी सें परिवारोॅ के दबदबा बढ़तियै। दस-बीस गाँव, कोॅर-कुटमैती काहूँ अत्तेॅ बड़ोॅ नौकरी केकरोह नै छै। हमरा समझैला पर सीधे यें कही देलकै कि अंगरेजोॅ के नौकरी हम्में नै करभौं।" शांत मतुर उद्विग्न होयकेॅ सोनमनी बाबू बोललै।
बहुत दिनोॅ के बाद दोनों बापुत बैठलोॅ छेलै। गपशपोॅ में लालजी कहलकै-"हिन्नें अधिकलालोॅ पर सुराजोॅ केॅ भूत चढ़लौ छौं बाबू। गंधी बाबा रो नाम लै छौं। कोन-कोन अखबार, पर्चा, किताब सीनी पढ़तें रहै छौं। एक रोज महेनदर गोप भरको-रामपुर वाला भी एैलोॅ छेलैं, बीस-पच्चीस आदमी हुनका साथें छेलै, सभ्भेॅ रो खाना-पीना आधोॅ-रात तांय अधिकें करनें छेलै।"
सोनमनी मड़र केॅ मन आरो माथोॅ हक सें उड़ी गेलै। वहेॅ स्थिति होय गेलै बाबू सोनमनी रोॅ जेनां सांपोॅ पर लात धराय गेलोॅ रहेॅ। हकलैतें हुअें मुँहोॅ सें आवाज निकललै-"की कहै छैं तोय लालजी. अनर्थ होय जैतेॅ। यें अधिकवां हमरो सब कमैलोॅ बरबाद करी देतै। जौं जमींदारें जानी जैतेॅ तेॅ की होतै। कुरकी-जब्ती, वारंट, मारपीट के साथें घोॅर तहस-नहस करी देतै।"
लालजी सोनमनी के बड़ोॅ बेटा छेलै। ई सब जानकारी देना ओकरोॅ नैतिक कर्त्तव्य छेलै। आगू लालजी बतैलकै-"तोरोॅ दू पोता भी महेन्द्र गोप केॅ सेवा-टहल, खिलौंन-पिलौंन में बढ़ी-चढ़ी केॅ शामिल रहै छौं।"
"के, के ...?" सोनमनी मड़रोॅ के आगू धरती घूमेॅ लागलोॅ छेलै।
" गजाधर आरो चकरधर दूनोॅ भाय अधिकेॅ बातोॅ में रहै छौं।
"बिना लागोॅ, बिना कोय सम्बंधोॅ के महेन्द्र गोप छिपै नुकाबे लेॅ यहाँ केनां आबै छै।" सोनमनी बेटा लालजी सें प्रश्न करलकै।
"चकरधरोॅ केॅ महेन्द्र गोप ममिया ससुर लागतै। ओकरोॅ भंसिया बंधुडीह वाली के आपनोॅ मामू छेकै महेन्द्र गोप।" लालजी जोर दैकेॅ कहलकै।
सन्न सें माथोॅ घूमेॅ लागलै सोनमनी मड़रोॅ के. कड़क आवाज में कहलकै-"यै आफत के केन्होॅ केॅ रोक लालजी, नै तेॅ सब मटियामेंट होय जैतोॅ। लोगें की कहतै कि सोनमनी मड़रोॅ के बेटा आरो पोता क्रांतिकारी होय गेलोॅ छै। चल तेॅ अखनिये सब रो खबर लै छियै।"
आरो दूनो बापुत बाहर निकली गेलै।
दू बरस आगू-पीछू शलिगराम आरो चकरधर दुनोॅ केॅ बियाह होय गेलोॅ छेलै। बड़ोॅ होयके कारण शलिगरामोॅ के गौना पैन्हें होना छेलै। ई तेसरोॅ साल छेलै। शलिगराम माय ठिंया पहुँची के कहेॅ लागलै-"माय गे, एक बात कहियो।"
"बोलें बेटा, एक नै चार बात बोलें।"
"हम्में कनियान केॅ बियाह में मड़वा पर बढ़ियां सें देखनें छेलियै।"
"हूँ ।" माय पंचोॅ गेनरा सीवी रहलोॅ छेलै। हुंकारी मारतें माय ने माथोॅ उठाय केॅ बेटा हिन्नें देखलकै।
"बाबू कहै छेलोॅ कि गौना रो कट फगुआ के पैन्हें भेजवै। की आबेॅ नै भेजतौ की?" बेटा जे बात केकरोह सें नै कहै सकेॅ छै हाव माय सें कहै छै। गौना के प्रबल इच्छा शलिगराम के मनोॅ में छेलै। माय बोललै कुछ्छू नै। सिरिफ हाँसी देलकै। थोड़ोॅ देर खाड़ोॅ रही के शलिगराम भी चल्लो गेलै।
सच तेॅ ई छेले कि खुद लालजी भी बिना बापोॅ केॅ पूछले कुछ करै वाला नै छेलै आरो लालजी यही कारणें पंचो के नै बतैनें छेलै। ऐन्हां में माय चुपेॅ रही गेलै। मतुर ई फैसला मनेंमन करी लेलकै कि आय राती ज़रूरे हिनका से पूछी केॅ बेटा केॅ बताय देवै कि गौना कहिया होतै।
फागुन रो हवा उठलोॅ छेलै। सांय-सांय करतें बॉव देहोॅ के छूवी केॅ सिहरन पैदा करी दै छेलै। फगुवा आबै में पाँच रोज बांकी छेलै। साँझ एक घंटा से बेशी होय रेल्होॅ छेलै। शलिगराम अपना कोठरी में चूप, गुमसुम, मनझमान बैठलोॅ छेलै। नै जानौं कैन्हेॅ, ओकरोॅ धियान कनियैनी पर सें हटतैं नै छेलै। नै चाहै तहियो बार-बार मोॅन वाहीं भागी जाय। खाय-पीयै सें कोय खास रूचि नै रही गेलोॅ छेलै।
इंजोरिया पुरकस जवानी पर छेलै, लागै चाँदनी ठीं-ठीं करीकेॅ हँसतें रहेॅ। गाँव भरी में फगुवा गैवोॅ शुरू होय गेलोॅ रहै। ढ़ोलक झाल के आवाजोॅ के साथ दुआरी पर भी फगुवा भुट्टो काका के अगुवाई में शुरू होय रहलोॅ छेलै। एक नम्बर के हँसोड़िया आरो फेंकड़ावाज छेलै भुट्टो काका। फगुवा रो रंग हुनका पर पूरे चढ़ी गेलोॅ छेलै। मसखरी करतें हुअें हुनी कहलकै-"सुनें, फगुआ गाबै लेली बड़ोॅ-छोटोॅ जे भी एैलोॅ छैं, हमरोॅ दू बात सुनी लेॅ।"
सौसे टोली शांत होय गेलोॅ रहै। शलिगरामोॅ केॅ एक-एक शब्द साफ सुनाय दै रहलोॅ छेलै। भुट्टो काका जत्तेॅ रग छेलै गरजी केॅ गैलकै-"भर फागुन बुढ़बा दियौर लागै हे, सुन फागुन में।" गैला के बाद फेरू बोललै-"ई दोसरोॅ बात जे हम्में कहै छियौ, ऐकरा गेंठी में बान्ही लीहें, जे भूलेगा उ$ झुलेगा। महाकवि डाक ने कहनें छै-" कातिक कुत्ता, माघ बिलाय, फागुन मुंशा, चैतें गाय"तेॅ बूझी लेॅ, मुंशा माने मरद होय छै आरो ई फागुन छेकै।" कही केॅ भुट्टो ठठाय केॅ हाँसलै। सौसे टोली ओकरा साथें बिन लगामोॅ रो घोड़ा नांकी हँसलै आरो फेरू धमगज्जड़ फगुआ शुरू होय गेलै।
शलिगरामें बिछौना पर लंबा सांस लेलकै, तखनिये माय खोजलें-खोजलें वाहीं आबी गेलै। धरफड़ाय केॅ उठलै शलिगराम। माय नें कहलकै-"बेटा! तोंय अत्तेॅ देर तांय बिन खैलोॅ तेॅ रात केॅ नै रहै छोॅ। होलियौ में नै गेलोॅ छै। की बात छै, मोॅन तेॅ ठीक छौं न।"
"मोॅन तेॅ ठीक छै माय। चाहै नै छियै लेकिन मनोॅ केॅ उदासी घेरी लै छै। मोॅन केनां-केनां न करै छै।"
माय पंचोॅ देवी ने बेटा माथा पर हाथ धरलकै आरो नीचा सें उपर तांय सहलैतें हुअें पोछी देलकै। माय ममता सें भरलोॅ आवाज में बोललै-"देखनगरोॅ छै बड़का बेटा हमरोॅ। कोय कुलछनी के नजर-गुजर छेकै ई. बड़ोॅ, पैहलोॅ लड़का-बच्चा पर नजरोॅ, टोक-टाक बेशी लागै छै। चल बेटा खाय लेॅ, हम्मू अब तांय नै खैलेॅ छी आरो हों, गौना रो खबर दादा-बाबू, ससुराल भेजनें छेलोॅ मतुर ससुरें दशहरा के दशमी रो दिन देलकौ। कहलकौ-घरोॅ में गोसांय होय गेलोॅ छै, ऐन्हां में गौना केनां होतै।"
भरी मोॅन सें शलिगराम उठलै आरो माय पीछू-पीछू चली देलकै।
फागुन के मस्त महिना तेॅ बितवे करलै, चैता रो चैतारोॅ आरो बैशाख-जेठ के गरमी भी बितलै। अखारोॅ में बीचड़ोॅ बुनी केॅ सौनोॅ में रोपा शुरू होय गेलोॅ रहै। सोनमनी मड़रें जहाँ भी जमीन खरीदनें छेलै, तीस सें पचास बीघा के पलॉट से कम काहीं नै, काहीं-काहीं तेॅ सौ बीघा भी एकमुश्त एक्के ठिंयां, यही लेलोॅ तीस-चालीस होॅर एक बहियारोॅ में चलै तेॅ कोय दिक्कत नै होय छेलै।
रोपा होय रेल्होॅ छेलै। झोॅर भी पड़ी रेल्होॅ छेलै। हाव दिन पचास रोपनियां, बाइस बीचड़वाहा छेलै। खेतोॅ में आंटी छींटलोॅ नै छेलै। रोपनियां हरक्कत नै होय जाय ऐकरे चिन्ता लालजी मड़रोॅ केॅ छेलै। ई कामोॅ के जिमेवारी शलिगरामें आरो चकरधरें उठाय लेलकै।
हड़ौतिया बांसों के दुनू भाय कंधा पर ढ़ौ वाला बघ्घी बनैलकै आरो जौं बीचड़ोॅ के आंटी ढुअेॅ लागलै तेॅ सौसे बहियारोॅ के जोॅन-मजूरें खाड़ोॅ होय केॅ देखै। देखवैंया दाँतो नीचू औंगरी दाबी अचरजोॅ सें देखै। जोंन अड्डा पर सें दूनोॅ भाय सौं-सौं आंटी बघ्घी पर दोनों तरफें टांगलें गुजरै अड्डा भसकी जाय। अड्डा पर खाड़ोॅ सोनमनी आरो लालजी मड़रोॅ केॅ आँख जुड़ाय गेलै।
ऐकरोॅ बाद नै जानौं कैन्हें जैवा दीदी बहुतें देर तांय चुप होय गेलै। नै चाहतै हुअें भी हुनको आँख चूवेॅ लागलोॅ छेलै। भरी-भरी आँख लोर। काकभुसंडी आपनोॅ रामायण कहतैं स्वयं कानें लागलोॅ छेलै।
" की होलौं दीदी? अनचोके भरी-भरी आँख लोर कैन्हेॅ दीदी?
हमरा टोकला पर जैवा दीदी के धीरज रो बाँध आरो टूटी गेलै। साठ-सत्तर बरस पैन्हेॅ पोछलोॅ आँखी के लोर आय फेरू उमड़ी गेलोॅ छेलै। बुढ़ापा सें पड़लोॅ झुर्री आरो घुमचियैलोॅ चेहरा पर ढ़ेर सीनी भावोॅ के उतार-चढ़ाव साफ नजर आबी रहलो छेलै। दीदी लोर नै पोछलकै, उगठी केॅ बैठी गेलै आरो कहना शुरू करलकै। " आसिन महिना शुरूवेॅ होलोॅ छेलै। अन्हरिया पख छेलै। पूवारी टोला में हैजा फैललै। ई बात एक कान, दू कान सौसे गाँव फैली गेलै। हैजा नामें सें तहिया लोगोॅ केॅ कंपकपी छूटेॅ लागै छेलै। धीरें-धीरें सौसे गाँव हैजा के चपेट में आबी गेलोॅ छेलै आरो यहीं हैजा शलिगरामोॅ केॅ निगली गेलै। रातभर तड़पी-तड़पी केॅ उ$ लंबा, मजबूत छवारिकें दम तोड़ी देलकै। माय-बाप, दादा, दादी कानतें रही गेलै, भाय-बहिन सब पछाड़ खायकेॅ देहोॅ पर गिरी गेलै, मतुर सुगना उड़ी गेलोॅ छेलै हमेशा-हमेशा लेली ई दुनिया छोड़ी केॅ।
लंबा सांस लेतें हुअें जैवा दी आगू कहलकै-"हमरा सें तीने साल के छोटोॅ छेलै शालिगराम। सोनमनी मड़रोॅ के सबसें बड़ोॅ पियारोॅ पोता। ई दुख हुनी सहे नेै पारलकै, अतनै दुख आरो फिकर करलकै कि खटिया पकड़ी लेलकै। एक तेॅ बूढ़ोॅ दोसरें पोता मरै के फिकिर। पोता रो नाम लैकेॅ हक्कन करै हुनी। खैबोॅ-पीबोॅ त्यागी देलकै हुनी। मूरोॅ सें मीठ्ठोॅ सूद होय छै। महाजन केॅ सूद मूरोॅ सें जादा पियारोॅ होय छै। पोता तेॅ सूदे न होलै।"
माघपंचमी केॅ सरोसती पूजा के दिन छेलै। शलिगरामोॅ के कनियान मोसमास सीरामपुर वाली केॅ बड़ी जिद करीकेॅ हुनिये विदागरी कराय केॅ मंगवैलेॅ छेलै। भरी नजर देखवौ आरो दुनियादारी समझेवोॅ पुतोहुओॅ केॅ, यहेॅ इच्छा छेलै हुनको, मतुर सोना रं सुन्नर, गोरी-उजरी दपदप जवान पुतोहु केॅ देखतैं हुनी अपना केॅ संभारे नै पारलकै। पोत पुतोहु के गोड़ छूवी केॅ परनाम करतैं हुनी भोकार पारी के कानै लागलै आरो मुँहोॅ से यहेॅ टा आवाज निकललै-"केनां दिन काटतै यें जवान बुतरू रे दैवा।" साँझ रो समय छेलै। सोनमनी मड़रोॅ केॅ ई रंग विलपतें देखी केॅ घरोॅ के आरो सब लोगें सीरामपुर वाली केॅ हुनका नजरोॅ समना सें हटाय केॅ अलग लै गेलै मतुर हुनका आँखी सें लोर जैतें रहलै आरो रात केॅ तेसरोॅ पहर होतैं हुनकोॅ सांस रूकी गेलै।
सून्ना सें जीवन शुरू करीकेॅ आकाश के उँच्चाई तक सरपट दौड़ेॅ वाला सोनमनी मड़र पोता के मरै के दुख बरदास्त नै करेॅ पारलकै। हुनका मरला के साथैं एक बहुत बड़ोॅ युग के अंत होय गेलोॅ रहै। खबर मिलतैं सौसे गाँव कानलोॅ-पीटलोॅ दुआरी पर आबी गेलै। सबके आँख लोरैलोॅ छेलै। घरोॅ के भीतर बीच ऐंगना में उतरा-दखिनी सोनमनी मड़रोॅ के मरलोॅ शरीर राखलोॅ छेलै आरो हुनकोॅ सौसे परिवार हुनका चारों तरफ सें घेरी केॅ कानी-पीटी रहलोॅ छेलै।