मुर्गाभाई और कौवेराम की कथा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
संसार के सबसे बड़े तीन देवताओं में से एक ब्रह्माजी धरती पर भ्रमण करने निकले थे| सभी जीवचर उनके दर्शनों के अभिलाशी थे इस कारण जैसे ही उनके आने की सूचना मिली संसार के सभी प्राणी उनके जोरदारा स्वागत की तैयारी में लग गये| कोई सुंदर सुगंधित मालायें गूथने लगा तो कोई मीठे मीठे फल कंद और शहद एकत्रित करने लगा| जंगली जानवरों को इस बात की भनक लगी तो वे भी ब्रहमाजी के स्वागत की तैयारी करने लगे| जंगल के राजा शेरसिंह ने आदेश पारित कर दिया कि जंगल के सभी जानवरों को ब्रह्माजी के स्वागत के लिये अनिवार्यत: उपस्थित रहना पड़ेगा| समय कम था इस कारण शेरसिंह ने सभी बड़े जानवरों को बुलाकर समझाया कि एक जानवर दूसरे जानवर को और दूसरा जानवर तीसरे जानवर को इस तरह सूचित करे कि जंगल के छोटे से छोटे जानवर को भी यह समाचार प्राप्त हो जाये कि ब्रह्माजी का स्वागत करना है और उपस्थिति अनिवार्य है| ब्रह्माजी सुबह छ: बजे निकलने वाले थे इससे शेरसिंह ने सबको साढ़े पाँच बजे हाजिर होकर पंक्ति बद्ध होकर उनका स्वागत करने की योजना तैयार कर ली थी| सभी जानवर एक दूसरे को सूचना दे रहे थे ताकि कोई छूट न जाये| यथा समय ब्रह्माजी अपने रथ पर सवार होकर जंगल से गुजरे| सड़क के दोनों ओर जानवर हाथों में माला और फल लेकर कतार बद्ध खड़े थे| उनका स्वागत करने लगे| इस तरह रंगारंग और भव्य स्वागत होता देखकर ब्रह्माजी गदगद हो गये| जंगल में मंगल ही मंगल हो रहा था| उन्हें फूलों की मालाओं से लाद दिया गया था खुशी के मारे वे मालायें उतार उतार कर जानवरों के बच्चोंकी ओर फेकने लगे| अचानक उन्होंनें वनराज से पूछा राजा साहब सभी जानवर तो यहां दिखाई पड़ रहे हैं परंतु मुर्गा भाई और कौवाराम नहीं दिख रहे? शेरसिंह ने देखा कि मुर्गा और कौवा सच में गायब थे| ब्रह्माजी ने इसे अपना अपमान समझा और जोर से दहाड़े" तुरत दोनों को मेरे सामने हाज़िर किया जाये|"
डर के मारे शेर सिंह की घिग्गी बंध गई|वह डर गया कि कहीं ब्रह्माजी उससे राज पाठ न छीन लें। आनन फानन हाथी को भेजकर कौआ और मुर्गे को बुलाकर ब्रह्माजी के समक्ष पेश कर दिया गया| ब्रह्माजी ने दोनों को आग्नेय दृष्टि से देखा और प्रश्न दागा की जब जंगल के सभी जानवर मेरे स्वागत में हाज़िर हैं तो आप क्यों नहीं आये? मुर्गा बोला नहीं आये तो नहीं आये मेरी मर्जी तुम कौन होते हो पूछने वाले, सुबह नींद ही नहीं खुली? कौआ बोला आप कौन हैं कहां से आये हैं मैं क्यों आपका स्वागत करूं?
इतना अपमान ब्रह्माजी का भेजा खराब हो गया एक मंत्र फूंका और कौआरामजी और मुर्गाभाई जहां खड़े थे वहीं खड़े रह गये| हाथ पैर वहीं जम गये| हिलना डुलना बँद हो गया ,दोनों डर गये क्षमा मांगने लगे, "त्राहिमाम गलती हो गई सरकार क्षमा करें,हमारे बाल बच्चे मर जायेंगे|" ब्रह्माजी टस से मस नहीं हुये, " उद्दंडों को दंड दिया ही जाना चाहिये" ऐसा कहकर वे आगे बढने लगे| "नहीं प्रभु हमें माफ करो आप जो भी प्राश्चित करने को कहेंगे हम तैयार हैं किंतु हमें उबारो प्रभु|" दोनों फफक फफक कर रोने लगे| "ठीक है आज से तुम सुबह चार बजे उठकर संसार के सभी प्राणियों को सूचित करोगे कि भोर हो गई है उठ जाओ इसके लिये तुम्हें कुकड़ूं कूं की सुरीली तान छेड़ना पड़ेगी|
" इतना बड़ा दंड|"मुर्गे ने आंसू बहाते हुये पूछा|
"नहीं ये बड़ा दंड नहीं है,लोग तुम्हारी प्रशंसा करेंगे| स्कूलों में भी तुम्हारे चर्चे होंगे किताबों में तुम्हारे गीत पढ़े जायेंगे"मुर्गा बोला हुआ सबेरा अब तो आंखें खोलो" अथवा म्रुर्गे की आवाज़ सुनी तो मुन्ना भैया जाग उठे जैसे मीठे गीत बच्चे बड़े मजे से गायेंगे|"
" जो आज्ञा भगवन" आंखों में आंसू आ गये|भगवान ने फिर मंत्र फूंका और वह अपनी पूर्वावस्था में आ गया|
इधर कौआ भी पश्चाताप कर रहा था| ब्रह्माजी बोले "आज के बाद तुम जल्दी उठकर लोगों के घर की छतों अथवा मुड़ेरों पर बैठोगे और जिनके यहां मेहमान आने वाले होंगे उनके यहां कांव कांव करके पूर्व सूचना दोगे, ताकि उस घर का मालिक मेहमान के स्वागत के लिये खाने पीने के सामान सब्जी भाजी इत्यादि की व्य्वस्था कर सके| अथवा यदि मेहमान, मान न मान मैं तेरा मेहमान हो तो सुबह से घर में ताला लगा कर भाग सके|"
तब से ही आज तक ये बेचारे अपना धर्म निभा रहे हैं|