मुर्गे / सुकेश साहनी
दीवान जी हरिया को लातों, घूसों से धुने जा रहे थे।
"और मारो हरामी को!" दरोगा जी भुनभुनाए, "साले, चोरी ये करें और सजा भुगतंे हम। हम तो इनके बाप के नौकर हो गए, जो लू के थपेड़ों में झुलसते हुए तफतीश कर रहे हैं।"
"हुजूर! मैंने चोरी नहीं की। बच्चे भूख से कुलबुला रहे थे इसलिए रघु काका के खेत से केवल एक गोभी का फूल तोड़ा था... पर मैं शहर में कर्फ्यू खुलते ही उसे मजदूरी करके लौटा देता। मैंने यह बात रघुकाका को बताई भी थी लेकिन उन्होंने मेरी एक न मानी। मैं आपके सामने गोभी वापस करने का वचन देता हूँ। रहम करें मालिक...मैं सच कह रहा हूँ!"
"दीवान जी, घसीट ले चलो चोट्टे को! सत्यवादी जी को पता ही नहीं कि रघुराज कितनी पहुँचवाला है। बेट्टा जी, अब सड़ो सारी उम्र जेल में!"
रोती कुरलाती हरिया की घरवाली ने अपनी चाँदी की पायलें उतारकर दरोगा जी के आगे रख दी और उनके पैर पकड़ कर सिसकने लगी।
"क्यों बे रघु, तेरे भी पर निकल आए? झूठी रिपोर्ट लिखाता है!" तेरे खेत में सोने-चाँदी की गोभियाँ उगती है जो कोई चुराएगा! "
"गुस्सा थूक दें, सरकार!" रघुराज ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "रपोट झूठी नहीं है, हरिया को हम रंगे हाथों पकड़े थे। आप हमारे माई-बाप है, ऐसा सबक सिखाइए कि फिर कोई हमारे खेतों की ओर आँख उठाकर न देख सके."
"वाह बेटा! बहुत ऊँचे उड़ रहे हो। दीवान जी, लगा दो हथकड़ी। जेल में जब चक्की पीसनी पड़ेगी तो सारी रईसी निकल जाएगी। हरिया के लिए राजधानी से फोन आया है, हम चाहें भी तो क्या कर सकते हैं?"
"हुजूर, ऐसा गजब न करे," रघुराज के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी, "हमारे मिनिस्टर, प्रधानमंत्री सब आप ही हैं, आपको ही कुछ करना होगा वरना बनी बनाई इज्जत धुल जाएगी। फिर इस गाँव में हमेें कौन पूछेगा? आप भीतर तो चलें माई-बाप!"
लौटते हुए दरोगा जी मस्ती में कुछ गुनगुना रहे थे। पीछे-पीछे चल रहे दीवान जी के हाथ में दो मुर्गे लटक् रहे थे, जिन्हें एक ही डोरी से बाँधा गया था।