मुसुआ / हरि भटनागर
गजराज को चमेली बाई की सेवा में लगा दिया गया है।
चमेली बाई बला कि हसीन हैं। इतनी कि लोग आह करके रह जाते। ऊँचा माथा, उस पर बड़ी-सी बिंदी। बड़े-बड़े काले बाल जो लबी चोटी की शक्ल में रहते। नाक लंबी और निहायत ही चिकनी। गाल सेब की तरह लाल और गला-देखते ही बनता था।
जब वह अच्छे से तैयार होकर, चोटी करके और लहरदार, चमकीला और बड़े घेर का घाघरा पहनके मंच पर उतरतीं, लोग दीवाने होकर, चिल्ला-चिल्लाकर उनका स्वागत करते। चमेली बाई झुक-झुकके सबको सलाम करतीं, कहतीं-हमारे स्वागत के लिए तहे-दिल से आप सभी का शुक्रिया!
चमेली बाई ने खुद की कंपनी खोल रखी है जिसमें वे अकेली शाम से लेकर देर रात तक फ़िल्मी और देशी गाने नगाड़े की किर्र के बीच जानमारू अदा में गाती हैं। चमेली बाई हर आदमी से टिकट के रूप में बीस रुपये लेती हैं और यही उनका जीविकोपार्जन का एकमात्र सहारा है।
तकरीबन चार-पाँच घंटे लगातार चमेली बाई गातीं और उसकी तर्ज पर विभिन्न मुद्राओं में नाचतीं हैं। इसके बाद वह थककर चूर हो जातीं। फिर उनकी उठने की हिम्मत नहीं पड़ती। भयंकर थकान और नींद के बीच वे थोड़ा-बहुत खा लेती हैं, लेकिन उनसे खाया नहीं जाता। उनहें आराम की ज़रूरत होती है।
गजराज को उनकी सेवा के लिए लाया गया है। वह उनकी सेवा करेगा। हाथ-पाँव टीपा करेगा। पूरा ख्याल रखेगा ताकि वह खाना तो ठीक से खा लें और दूसरे दिन नाचने लायक तो रहें!
लेकिन गजराज को यह काम पसंद नहीं। चमेली बाई-वह भी बेड़नी, नीच जात का गोड़ टीपना-उसे किसी भी तरह सह्य नहीं लग रहा है। वह परेशान है, गुस्से में, लेकिन असहाय! दूसरा कोई काम नहीं जो उसे मिल सके...
सुबह जब उसे चमेली बाई की सेवा के लिए लाया गया, चमेली बाई उसे देखकर इंतहा खुश हुईं। उन्होंने पूछा कि तेरा नाम क्या है?
गजराज ने बताया तो वह चिहुँककर हँस पड़ीं। चोली में भयंकर हरकत हुई और वह देर तक ठठा-ठठाके हँसती रहीं। कहतीं-गजराज नाम है तेरा! गजराज! हे भगवान! लेकिन तू तो इत्ता दूबर, मरघिल्ला है कि इस नाम की बेइज्जती हो रही है। मैं तेरा नया नाम रखती हूँ जो कंपनी में सिक्के की तरह चलेगा। बताऊँ नाम-तेरा नाम होगा-मुसुआ! कहकर वह इतनी जोरों से हँसीं कि गजराज शरमा गया। कट के रह गया।
चमेली बाई थीं कि कहे जा रही थीं, हँसी के बीच-कित्ता सुंदर नाम है तेरा, मुसुआ! मुसुआ राजा! उन्होंने उरोजों को हाथों की गोलाई में भरा और नाच के यह गाना गाया-
पीले राजा दुधुआ
मोटाय जा बाबू मुसुआ!
पीले राजा...
चमेली बाई गाती जातीं और हँस-हँस के लोट-पोट होती जातीं।
इस बीच उन्होंने गजराज को बाएँ हाथ के दायरे में जोरों से भर लिया और उसके मुँह को अपने दोनों उरोजों से भिड़ा दिया और जबरदस्त हँस के कहा-मेरा दूध पिएगा तो मोटाय जाएगा मुसुआ!
गजराज शर्म से गड़ गया। कैसी औरत है! ज़रा भी लाज-हया नहीं। उसे अपने दूधों से लगा रही थी। हे भगवान! कोई देख लेता तो क्या कहता?
लेकिन कहते हैं कि खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान! गजराज इस कथन के मर्म को समझ रहा है, अटकी में है, मजबूर। इसलिए चमेली बाई के पाँव टीप रहा है।
कल देर रात तक वह चमेली बाई के मुलायम-मुलायम, नाजुक-चिकने पाँवों को टीपता रहा। चमेली बाई कहती रहीं-तेरे हाथों में दम नहीं मुसुआ! ज़रा जोर लगा के टीप! जोर लगा, हाँ ऐसे। ऊपर ला हाथ और ऊपर और ऊपर... शरमाता काहे को है राजा! मैं कोई बेगानी नहीं, दबा जोर से...
गजराज शरमाता, चमेली बाई कहतीं-शरमाता काहे को है मुसुआ? तेरे तो भाग्य हैं कि तू मेरा गोड़ टीप रहा है, इहाँ लोग गोड़ देखने को तरस रहे हैं, लाखों खरचने को तैयार हैं... हाँ, दबा और ऊपर और ऊपर...
रात को ऊपर तक टीपते गजराज को उतनी शर्म नहीं आ रही थी जितनी कि इस बखत आ रही है कि वह पानी-पानी हुआ जा रहा है। दम घुटा जा रहा है उसका।
गाँव का सरपंच टीन की कुर्सी पर बैठा है। सूस जैसा मोटा। गरदन भालू जैसी। हाथ-पाँव भी ऐसे। बड़ी-सी रंग-बिरंगी छींट की पग्गड़ बाँधे है। धोती पहने है और ऊपर मिरजई। काँधे पर लाल गमछा। पाँव में चमरौंधा-धूल और तेल से अटा। पीतल की चमकती मूठवाली छड़ी टिकाए है वह पाँवों के बीच।
सरपंच ललचाई नजरों से चमेली बाई को देख रहा है। उसकी आँखों में कामुकता है और चमेली बाई को किसी तरह भोग लेने की ललक! वह बड़ी-बड़ी मूँछों को बाएँ हाथ से मरोड़ा दे रहा है और सोच रहा है कि यह छोकरा कितना भाग्य का बली है जो इसकी टहल में है...
गजराज को लग रहा है कि सरपंच उसे देख रहा है और मन ही मन कह रहा है कि साले, तुझे यही काम मिला था करने को, नीच जात के पाँव टीप और उसके बदले में लुकमे तोड़। हद है तेरी जात को। नाक कटा दी तूने। तू तो नीच से भी नीच हो गया है-परम नीच!
गजराज पाँव टीपते-टीपते रुका तो चमेली बाई चिल्ला उठीं-ठीक से गोड़ दबाता क्यों नहीं पापी! ठीक से दबा। ताकत लगा... जोर से और जोर से दबा...
यकायक चमेली बाई ने सरपंच से पूछा-मूस में कित्ता दम होता है सरपंच जी?
सरपंच जी की तंद्रा टूटी। बात वे समझ नहीं पाए। खोखली हँसी हँसने लगे। छड़ी की मूठ पकड़े वे उँगलियों के पोरों से मूँछों को सहलाने लगे। उन्होंने कहा-बहुत गरमी है। रावटी में ज़रा भी दम नहीं जो ताप रोक ले। अच्छा, चलता हूँ, शाम को भेंट होगी, जय राम जी की!
उस रात गजराज को भयंकर गुस्सा आया। थककर चूर आईं चमेली बाई का वह तीन घंटे से गोड़ टीप रहा है, पूरी ताकत से, लेकिन चमेली बाई हैं कि बार-बार चिल्ला पड़तीं कि जोर से टीप! मन भर खाता है, रोटी पर रोटी उड़ाता है, हाथों में ज़रा भी दम नहीं, जोर से टीप!
और वे गोड़ झटकती जाती थीं।
गोड़ झटकना गजराज को उतना नहीं खला और न ही ताने मारना जितनी यह बात खल गई। उन्होंने दर्द से तड़पते हुए पैर झटका कि पैर उसके मुँह में लगा। गजराज को यह बात साल गई और वह आगबबूला हो उठा-साली छिनाल, लात मारती है। मैं इत्ती सेवा कर रहा हूँ, जाग-जाग के पैर दबा रहा हूँ उसका फल यह कि लात खाऊँ-साली मुँह पर लात मार रही है... उसने उसे माँ की गंदी-गंदी गालियाँ दीं और तै किया कि इस छिनाल को इसका सबक सिखा के रहूँगा। तभी समझ में आएगा कि लात मारने का नतीजा क्या होता है।
और दूसरे दिन गाढ़ी रात में गजराज ने एक ऐसा खेल खेला कि चमेली बाई की पीठ में धूल लग गई। उनके प्राण नहों में आ गए। वे जोर-जोर से चिल्ला रही थीं और लोग थे कि उनका मजाक उड़ा रहे थे तालियाँ बजा बजाके।
बात यों हुई कि गोड़ टीपने के बाद गजराज उस रात सो नहीं पाया। पूरी रात जागता रहा, करवटें बदलता रहा। अपमान उसे खाए जा रहा था। एक बेड़नी ने उसका अपमान किया-लात से मारा। यह तो हद है और शर्म की बात! तभी उसे एक बात सूझी। इस बात को वह अमल में लाया। बात यह थी कि एक छछूंदर कई दिनों से उसकी रावटी में छू-छू करती घूम रही थी। छछूंदर काफी मोटी थी और शायद बच्चे जनने वाली थी।
गजराज ने उस छछूंदर को पकड़ लिया और एक मजबूत सुतली से बाँधकर रावटी के पीछे छिपा दिया। इस ख्याल से कि रात में जब थकी-माँदी चमेली बाई आएँगी, वह पाँव टीपेगा, वह गहरी नींद में गाफिल हो जाएँगी, तो वह अपना काम कर गुजरेगा...
और उसने यह काम काफी रात गए अंजाम दे दिया। उसने चमेली बाई का घाघरा उठाया और छछूंदर अंदर छोड़ दी।
रात के सन्नाटे में भूचाल-सा आ गया।
चमेली बाई बेतरह किकिया रही थीं और आस-पास के लोग इकट्ठा हो गए थे।
नगाड़ा किरकिराने वाले एक अधेड़ मुच्छड़ ने पूछा-क्या हुआ चमेली बाई? काहे आसमान उठा लिया चीख के? क्या हो गया है ऐसा?
चमेली बाई जमीन पर पसरी बैठी थीं, निःशक्त बेतरह हाँफ रही थीं। मुच्छड़ को नजर उठाकर देखा-जवाब नहीं दिया।
मुच्छड़ ने आगे पूछा-क्या हुआ? कुछ तो बताओ?
चमेली बाई बोलीं-कुछ नहीं छछूंदर थी। लहँगे में घुस आई थी।
हे भगवान! सभी लोग एक साथ जोरों से हँसे-छछूंदर को वहीं ठौर मिलना था!
मुच्छड़ ने यकायक गंभीर होकर रहस्यमयी मुस्कान के बीच पूछा-छछूंदर थी? तो गई कहाँ?
एक दूसरे नगड़ची ने जो झबरीली मूँछों का अमीर था, जोरदार हँसी में कहा-कहाँ जाएगी? यह समझने की बात है! जहाँ मुकाम होगा, वहाँ जाएगी! वह जोर-जोर से हँस के ताली बजा उठा।
सभी लोग ठठा-ठठाके हँस रहे थे।
चमेली बाई शर्म से गड़-सी गई थीं। बोलती नहीं फूट रही थी उनकी।
गजराज अपनी हँसी छुपा नहीं पाया। उसने जोरदार ठहाका लगाया।